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Temples of Uttarakhand

by Pankaj Pant
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Temples of Uttarakhand

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उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध मंदिर व उनका इतिहास

Triyuginarayan Temple

त्रियुगीनारायण महादेव

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Triyuginarayan Temple

उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध मंदिरों में त्रियुगीनारायण मन्दिर एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह उत्तराखण्ड के रूद्रप्रयाग जिले के त्रियुगीनारायण गांव में स्थित है।

यह मन्दिर चारों तरफ से बडेबडे पहाडो चारो और फैली हरियाली से ढका हुआ है जिसे देखने से ही श्रद्धालुओं को आन्नद की प्राप्ति होती है। यह स्थल भगवान विष्णु को समर्पित है। यह एक पवित्र हिन्दू धर्म स्थ है जिसका पौराणिक महत्व है।

यहाँ भगवान नारायण भूदेवी तथा लक्ष्मी देवी के साथ विराजमान है। त्रियुगीनारायण मन्दिर में ही भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह होने के कारण ये स्थल देशविदेश में प्रसिद्ध है तथा एक लोकप्रिय तीर्थ स्थली है।

इस दिव्य विवाह में भगवान विष्णु ने देवी पार्वती के भाई के कर्तव्यों का निर्वहन किया था तथा ब्रहमा जी द्वारा यज्ञ के आचार्य का निर्वहन किया गया था। इस विवाह में भगवान विष्णु ब्रहमा के अलावा अन्य देवीदेवताओं के साथ भगवान शिव के गणों ने भी भाग लिया था।

मन्दिर के सामने रखी ब्रहमशिला को ही विवाह का वास्तविक स्थल माना जाता है। मन्दिर के सामने ही एक अलौकिक लौ है जो कि मान्यता के अनुसार भगवान शिव पार्वती के विवाह के समय से ही जल रही है जिसे अखण्ड ज्योति भी कहा जाता है। इसे अखण्ड धूनी मन्दिर भी कहा जाता है।

मन्दिर आने वाले श्रद्धालु इस राख को अपने साथ लेकर जाते है ताकि उनका पारिवारिक जीवन सुखमय बना रहे। यहाँ मन्दिर के अन्दर अग्नि कई युगों से जल रही हैं। त्रियुगी का अर्थ तीन युगो से होता है अर्थात जो अग्नि है वो तीन युगों से जल रही है। यह मन्दिर त्रेता युग मे बनाया गया था।

यहाँ पर मन्दिर के आंगन में चार कुण्ड भी बने हुए है जिसे ब्रहमकुण्ड, रूद्रकुण्ड, सारस्वतकुण्ड एवं सूर्यकुण्ड नाम से चार कुण्ड बने हुए है। इन कुण्डो में स्नान तर्पण करने की परम्परा है। 

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Triyuginarayan Temple

रूद्रकुण्ड में स्नान, विष्णुकुण्ड में मार्जन, ब्रहमकुण्ड में आचमन और सरस्वती कुण्ड में तर्पण आदि किया जाता है। मन्दिर के आंगन में जल की एक पवित्र धारा भी है जिससे आसपास के गांव के सारे पवित्र सरोवर भरे जाते है।  

पौराणिक कथाओ के अनुसार राजा बलि को देवराज इंद्र का आसन पाने हेतु 100 यज्ञ करने थे, वो 99 यज्ञ पूरे कर चुके थे 100 वां यज्ञ चल ही रहा था कि भगवान विष्णु नें वामन के अवतार में आकर यज्ञ को भंग कर दिया। तब से ही भगवान विष्णु यहाँ वामन के अवतार में पूजे जाने लगे।

अभी से कुछ समय पहले भारत के सबसे अमीर उद्योगपति मुकेश अंबानी के पुत्र आकाश अंबानी की शादी श्लोका मेहता के साथ इसी मन्दिर में हुई थी। इससें पहले कई मंत्रियों के पुत्र पुत्रीयों कई उच्च अधिकारीयों की शादी भी इसी मन्दिर में हो चुकी हैं।

कुछ समय पहले उत्तराखण्ड सरकार द्वारा इस स्थल को वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में घोषित किया जा चुका है।

Mahasu Devta Temple

महासू देवता मन्दिर

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Mahasu Devta

उत्तराखण्ड अपने मंदिरों, तीर्थ स्थलों देवीदेवताओं के लिए पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है। उत्तराखण्ड के देहरादून जिलें के जौनसार भाबर क्षेत्र में भी एक ऐसा ही मन्दिर है जो महासू देवता के नाम से प्रसिद्ध है।

महासू देवता को लोग न्याय का देवता मानते है तथा इस मन्दिर को न्यायालय भी कहा जाता है। मान्यता के अनुसार जो भी व्यक्ति सच्चे दिल से जो कुछ मांगता है तो महासू देवता उनकी मनोकामना जरूर पूरी करते है।

यह मन्दिर हनोल गांव में स्थित है जो चकराता के पास टोंस नदी के पूर्वी तट पर स्थित है, जो त्यूणीमोरी मोटर मार्ग पर स्थित है।

मान्यता के अनुसार पाण्डव लाक्षागृह से सकुशल निकलकर इसी स्थान पर आये थे। हनोल शब्द की उत्पत्ति यहाँ के ब्राहमण हूणा भाट के नाम से हुई मानी जाती है। इससे पहले ये जगह चकरपुर के नाम से जानी जाती थी।

यह मन्दिर समुद्र तल से 1250 मीटर की ऊॅचाई पर स्थित है। यह मन्दिर प्रकृति को अपनी गोद मे समेटे हुए है जहाँ चारों तरफ से ऊॅचेऊॅचे पहाड तथा घास के मैदानों से घिरा हुआ है।

यह मन्दिर अलगअलग शैलीयों में बना हुआ है जिसका निर्माण 11 वीं ओर 12 वीं शताब्दी के आसपास का बना हुआ प्रतीत होता है जिसका संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा किया जाता है। पुरातत्व विभाग को खुदाई के दौरान यहाँ विष्णुलक्ष्मी, सूर्य, कुबेर के अतिरिक्त दो दर्जन से भी अधिक मूर्तिया मिली थी।

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Mahasu Devta

महासू देवता को उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी के अलावा, जौनसार भाबर क्षेत्र, रंवाई परगना के साथ हिमाचल प्रदेश के सोलन, शिमला, जुबबल तक महासू देवता की पूजा होती है। इस मन्दिर में प्रतिवर्ष दिल्ली के राष्ट्रपति भवन की तरफ से नमक भेंट स्वरूप भेजा जाता है।

मान्यता के अनुसार महासू ने शर्त के आधार पर महासू का मन्दिर जीता था। महासू देवता को भोलेनाथ का ही अवतार माना जाता है। इस मंदिर के गर्भगृह में श्रद्वालुओं का जाना मना है यहाँ केवल मंदिर का पुजारी ही जा सकता है।

इस मंदिर के अन्दर जल की धारा निकलती रहती है परन्तु अचरज इस बात का है कि आज तक कोई यह नही जान पाया है कि यह पानी कहाँ से आता है और कहाँ जाता है।

महासू देवता एक नही बल्कि चार देवताओं का सामूहिक मंदिर है जो आपस में भाई है जिनके नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू और चालदा महासू है जो चारों भगवान शिव के ही रूप है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार हनोल गांव में बहुत से लोग रहते थे जहाँ पर किलमिर नामक राक्षस ने अपना आतंक फैला रखा था। इस राक्षस ने हूणा भटट नामक ब्राहमण के सात बेटों को खा लिया था तथा उस ब्राहमण की पत्नी कृतिका पर भी उसकी बुरी दृष्टि थी।

हूणा भटट और उसकी पत्नी अपनी जान बचाने हेतु वहाँ से भाग निकले थे और देवी हठकेश्वरी से प्रार्थना करने लगे। देवी द्वारा उन्हे कश्मीर की पहाडियों में जाकर भगवान शिव की प्रार्थना करने को कहा।

वो दोनो वहाँ जाकर भगवान शिव की आराधना में लग गये। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर शिव जी वहाँ प्रकट हुए और उन्हे आर्शीवाद देकर उन्हे गांव लौटकर अनुष्ठान करने को कहा। इस प्रकार उनके यज्ञ और अनुष्ठान करने पर वहाँ से चार महासू उनकी सेना, मंत्रियो और देवीय सेना प्रकट हुई, जिन्होने उस क्षेत्र सें दानवों को नष्ट कर दिया।

Dharidevi Temple

धारीदेवी मन्दिर

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Dhar iDevi Temple

धारी देवी मन्दिर उत्तराखण्ड के प्रमुख मन्दिरों में से एक है जो बद्रीनाथ मार्ग पर श्रीनगर और रूद्रप्रयाग के बीच में स्थित है। यह अलकनंदा नदी के बीच में स्थित है। मां धारी देवी को उत्तराखण्ड का संरक्षक पालनहार के रूप में माना जाता है।

यह मूर्ति जाग्रत और साक्षात है। मान्यता के अनुसार ये शक्ति पीठ उत्तराखण्ड के चारों धामों की रक्षा करते है।

मान्यता के अनुसार एक बार कालीमठ मन्दिर में बाढ गई थी जिससे वहाँ मन्दिर की मूर्ति का ऊपरी भाग बह गया था तथा बहता हुआ धारों गांव के पास पहुच गया था, तभी ईश्वरीय आवाज सुनकर वहाँ आये लोगो ने उस ऊपरी भाग को उठाकर मूर्ति के रूप में वही स्थापित कर दिया। तभी से ऊपरी भाग की धारी देवी के रूप मे पूजा की जाती है जिसे दक्षिणी काली माता कहकर भी पुकारा जाता है।

निचला भाग कालीमठ में ही विराजमान है, कालीमठ में रखी देवी की काली माता के रूप में आराधना होती है। कालीमठ मे मूर्ति क्रोधित रूप में रखी हुई है जबकि यहाँ धारी देवी की मूर्ति शान्त रूप में रखी हुई है परन्तु इनका गुस्सा भी किसी से छुपा नही है कहा जाता है कि केदारनाथ आपदा मां धारी देवी के गुस्से के कारण ही आई थी।

Dhari Devi Temple

16 जून 2016 को बांध के निर्माण हेतु मन्दिर को हटाया जा रहा था उसके कुछ ही समय बाद ही केदारनाथ मन्दिर मे भयंकर आपदा गई थी जिसके कारण हजारों श्रद्धालु तीर्थयात्री मारे गये थे जिनमें से कईयों का आज तक कुछ पता नही चल पाया है।

मान्यता के अनुसार मां धारी देवी दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। सुबह के समय माता कन्या के रूप में, दिन के समय माता युवती के रूप में तथा शाम को वृद्धा औरत का रूप धारण कर लेती है। धारी गांव के लोग ही यहाँ की पूजा अर्चना करते है।

मान्यता के अनुसार ये मन्दिर सन 1807 से भी पहले का है। मौजूदा समय में मंदिर का मूल स्थान डूब गया है। मूल स्थान से अपलिफ्ट करके अस्थायी मन्दिर में माता की मूर्ति स्थापित की गई है। अब इसी स्थान पर मन्दिर निर्माण का कार्य चल रहा है।

Chandi Devi Temple

चण्डी देवी मन्दिर

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CHANDI DEVI TEMPLE

हरिद्धार को मंदिरों का शहर कहा जाता है। यहाँ दर्शन करने हेतु देश विदेश से लोग पूरे साल भर यहाँ आते है। हरिद्धार शहर दो शब्दों से मिलकर बना है। हरि और द्वार अर्थात भगवान की और जाने का रास्ता।

यही से ही श्रद्धालु आगे चार धाम दर्शन हेतु जाते है। हरिद्वार में कई प्राचीन और सिद्ध मन्दिर है। इन्ही सिद्ध प्राचीन मन्दिरों मे से एक मां चण्डी देवी का मन्दिर है जो विश्व के सबसे प्राचीन मन्दिरों में से एक है और मां चण्डी को अर्पित है।

मां चण्डी और मां मन्सा माता पार्वती के ही दो स्वरूप है। ये मन्दिर हर की पौडी के ठीक सामने की पहाडी पर स्थित है। यह भारतवर्ष के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है तथा देश के 52 शक्तिपीठो में से एक है।

इस मन्दिर का निर्माण कश्मीर के राजा सुचात सिंह ने 1929 में करवाया था परन्तु इसके अन्दर रखी मुर्ति की स्थापना 8 वी सदी में गुरू शंकराचार्य जी द्वारा करवायी गई थी। यह मन्दिर नील पर्वत पर स्थित है।

ये मन्दिर हरिद्धार के तीन तीर्थो मे से भी एक है जिसमे एक चण्डी देवी, दूसरी मन्सा देवी तीसरा माया देवी है। चण्डी देवी को मां चंडिका के रूप में भी जाना जाता है जो यहाँ की प्रमुख देवी है जो यहाँ पर माता खंभ के रूप में विराजमान है।

चण्डी देवी के निकट एक अंजना माता का भी मन्दिर है जों हनुमान जी की माता कही जाती है। कहा जाता है कि इस मन्दिर में जाने वाले व्यक्तियों को इस मन्दिर में अवश्य जाना चाहिये।

मन्दिर जाने हेतु पैदल मार्ग उडनखटोला मार्ग दोनों उपलब्ध हैं। पैदल मार्ग जाने हेतु रास्ता थोडा लम्बा खडी चढाई वाला है परन्तु उडनखटोला द्वारा मात्र कुछ ही मिनटों में ऊपर मन्दिर तक पहुचा जा सकता है। ऊपर से आपको हरकीपौडी, चण्डीदेवी अन्य के साथ सम्पूर्ण हरिद्धार के भी दर्शन होते है।

पौराणों के अनुसार दानवो मे से शुंभ, निशुंभ ने देवताओं पर आतंक मचा रखा था। दानवों नें देवराज इन्द्र को प्रताडित कर उन्हे उनके राज्य से बाहर कर दिया था और देवताओं को स्वर्ग से बाहर कर दिया था।

देवताओं द्वारा उनके संहार करने का प्रयास किया गया परन्तु तब वो असफल हो गये तब उन्होने मां पार्वती से प्रार्थना की। तब मां पार्वती द्वारा चण्डी का रूप धारण कर उन देवताओं के सामने प्रकट हुई।

उस देवी रूपी महिला की सुन्दरता देखकर शुंभ उनकी तरफ आकर्षित होकर उनके सम्मुख शादी का प्रस्ताव रखा परन्तु देवी द्वारा इन्कार किये जाने पर शुंभ ने अपने राक्षसों चंड और मुंड को उन्हे मारने के लिए भेजा परन्तु वो दोनो युद्ध में देवी चामुंडा द्धारा मारे गये।

उन्हे मारने के उपरान्त देवी चामुंडा द्वारा शुंभ और निशुंभ को भी मार गिराया तथा देवताओं से वर मांगने को कहा। देवताओ ने वर में उन्हे इसी स्थान पर विराजमान होने की प्रार्थना की। देवताओं की प्रार्थना मान कर देवी इसी स्थान पर विराजमान हो गई। तब से ही देवी चण्डी के रूप में इस स्थान से ही भक्तों के ऊपर कल्याण करती रही है तथा उन कि हर मनोकामना पूरी करती है।

चण्डी चौदस  नौरात्रियों के समय पर यहाँ हजारों की संख्या में श्रद्वालु आते है तथा अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए प्रार्थना करते है उनकी मनोकामना पूरी भी होती है। यहाँ के दर्शन मात्र से अकाल मृत्यु, रोग नाश, कष्टो से मुक्ति, शत्रु, भय आदि से मुक्ति मिलती है।

यहाँ से हरिद्वार बस अडडा रेलवे स्टेशन लगभग 3 किमी की दूरी पर स्थित है जहाँ से आटो रिक्शा या प्राईवेट वाहन द्वारा आसानी से यहाँ पहुचा जा सकता है।

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