उत्तराखण्ड के प्रमुख ट्रैक्सः
Famous tracks in Uttarakhand:
कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता परन्तु देवभूमि उत्तराखण्ड भी प्राकृतिक सुंदरता में किसी से कम नही है। उत्तराखण्ड चारों तरफ सें ऊचें–ऊचें पहाडों से घिरा हुआ प्रदेश है जहाँ के पहाडों पर साल भर बर्फ पडी रहती है। बर्फ पडी होने के कारण ये पर्यटको को अपनी और अत्यधिक आकर्षिक करते है। साल भर बर्फ होने व पहाडों के अत्यधिक ऊचें होने के कारण साहसिक पर्यटको को ये स्थान बहुत आकर्षित करते है।
यहाँ पर लोग ऊचे–ऊचे ट्रैक्स पर यात्रा करना पसन्द करते है। इन ट्रैक्स पर लोग कई–कई ग्रुप्स में यात्रा करते है तथा साथ में अपने पहनने व खाने पीने के सामान के साथ टैंट व आक्सीजन के सिलेण्डर वगैरह साथ में ले जाते है, अधिक ऊंचाई व बर्फीले पहाड होने के कारण वहा खाने पीने की चीजों व आक्सीजन आदि का अभाव रहता है।
बीते 21 अगस्त को उच्च न्यायालय ने ट्रैकिंग पर जाने वाले यात्रियों को बुग्यालों में रात्रि विश्राम करने पर रोक लगा दी थी, परन्तु मुख्यमंत्री व वन विभाग द्वारा हस्तक्षेप करने पर बुग्यालो को राष्ट्र पार्क का दर्जा दे दिया गया तथा बुग्यालों में न रूककर उसके आसपास के क्षेत्रों में रूकने की अनुमति प्रदान कर दी गई।
यहाँ कई विश्व विख्यात ट्रैक्स जोकि उच्च ऊचाई वाले, कम ऊचाई वाले तथा कम दूरी वाले पाये जाते है।
यहाँ कुमाऊॅ क्षेत्र के मुख्य ट्रैक्स में मिलम ग्लेशियर ट्रैक, पिंडारी ग्लेश्यिर ट्रैक, बिन्सर ट्रैक, काॅफनी गलेश्यिर ट्रैक, सुंदरढुंगा वैली ट्रैक, आदि कैलाश ट्रैक, पंचाचुली बैस कैम्प ट्रैक, रालम वैली ट्रैक, दरमा वैली ट्रैक, लिपुलेख वैली ट्रैक व नन्दा देवी बेस कैम्प मुख्य है
कुमाऊँ के प्रमुख ट्रैक व उनका स्थान:
Famous Treks and his place in Kumaon
कुमाऊँ के प्रमुख ट्रैक |
स्थान |
मिलम ग्लेशियर ट्रैक |
मुन्सियारी |
पिंडारी ग्लेशियर ट्रैक |
बागेश्वर |
कफनी ग्लेशियर ट्रैक |
बागेश्वर |
सुंदरढुंगा वैली ट्रैक |
बागेश्वर |
आदि कैलाश ट्रैक |
पिथौरागढ़ |
पंचाचुली बैस कैम्प ट्रैक |
पिथौरागढ़ |
रालम वैली ट्रैक |
मुन्सियारी |
दरमा वैली ट्रैक |
पिथौरागढ़ |
लिपुलेख वैली ट्रैक |
पिथौरागढ़ |
नन्दा देवी बेस कैम्प |
मुन्सियारी |

मिलम ग्लेशियर ट्रैक: Milam Glacier Trek: मिलम ग्लेशियर ट्रैक उत्तराखंड के जिला पिथौरागढ़ में है, जिसका बेस कैंप मुन्सियारी में स्थित है। यही से यात्री अपने खाने पीने की चीजे लेकर ट्रैकिंग की शुरुवात करते है। यह कुमाऊँ मंडल का सबसे बड़ा ग्लेशियर भी है जो 37 स्क्वायर किमी में फैला हुआ है। मिलम ग्लेशियर की ऊचाई समुद्र तल से 3438 मीटर है तथा इसी ग्लेशियर से गौरीगंगा नदी भी निकलती है, जो बाद में काली नदी में जाकर मिल जाती है।
गौरीगंगा नदी काली नदी की एक सहायक नदी है। यह ट्रैक लगभग 60 किमी का है जिसमे आने व जाने के लिए आपको कम से कम 13 से 15 दिन का समय लगता है जिसमे आपको छोटे-छोटे गांव, झरने, लकड़ी के पुल व बर्फ से ढकी हिमालय पर्वत चोटियाँ आदि देखने को मिल जायेंगे जो ट्रैकर्स का मन प्रफुल्लित करने के लिए काफी होते है। यहाँ पहुंचकर आप माऊँट त्रिशूली(7070मी) व हरडोल(7151मी) की बर्फ से ढकी हुई चोटियों को देखने का आनंद ले सकते है।
सन 1962 को इंडो-सीनो की लड़ाई के बाद ये ट्रैक यात्रियों के लिए बंद कर दिया गया था परन्तु बाद में फिर 1994 को ट्रैकर्स के लिए इस ट्रैक को दोबारा से खोल दिया गया था।
मिलम ग्लेशियर कैसे पहुँचे:
How to reach Milam Glacier:
यहाँ तक जाने के लिए आपको मुनस्यारी से ट्रैक शुरू करके नंदा देवी ईस्ट बेस, गौरी गंगा, लिलम, राइकोट, मापा, मर्तोली होते हुए मिलम ग्लेशियर तक पहुंच सकते है। यह ट्रैक नंदा देवी बेस कैंप से डाइवर्ट होकर मिलम ग्लेशियर को चला जाता है।

पिंडारी ग्लेशियर ट्रैक: Pindari Glacier Trek: पिण्डारी ग्लेशियर एक उच्च हिमालयी ग्लेशियर है जो उत्तराखंड के बागेश्वर में स्थित है। पिण्डारी ग्लेशियर पिंडार घाटी में स्थित है। यह समुद्र ताल से तल से 3,353 मीटर की ऊचाई पर स्थित है। इस ग्लेशियर की ऊंचाई 4200 मीटर है। जिसकी लम्बाई लगभग 5 किमी की है ऊंचाई 6 मीटर तथा इसकी चौड़ाई 2.5 मीटर है। पिण्डारी ग्लेशियर ही पिंडारी नदी का उद्गम स्थल है जो कर्णप्रयाग में अलकनंदा नदी में जाकर मिलती है जो वहाँ से अलकनंदा नदी के रूप में आगे बढ़ती है। इस नदी की कुल लम्बाई 105 किमी की है।
पिंडारी ग्लेशियर के पास में ही सुन्दरढूंगा ग्लेशियर व कफनी ग्लेशियर पड़ता है। यह ट्रैक जिला बागेश्वर के लोहारखेत से शुरू होता है तथा पूरे विश्व में सबसे अदभुत है। इसके बीच में कुछ गांव, झरने, लकड़ी व लोहे के पुल व दूर दूर तक फैले बर्फ से ढके पहाड़ देखने को मिल जायेंगे। यह ट्रैक ट्रैकर्स के लिये ज्यादा कठिन नहीं माना जाता अपितु ठीक–ठाक शारीरिक क्षमता वाले व्यक्ति भी यहाँ जा सकते है। इस ट्रैक के बीच से आप पंवाली द्धार व मैक्तोली की चोटियों का आनंद भी ले सकते है।
पिण्डारी ग्लेशियर कैसे पहुँचे:
How to rech Pindari Glacier:
यहाँ जाने के लिये आपको सबसे पहले सौंग गांव तक अपने वाहन द्धारा पहुंच सकते है इसके बाद सौंग से लोहारखेत तक 3 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है उसके बाद धाकुरी जो लोहारखेत जो धाकुरी से 11 किमी पर है फिर धाकुरी से खाती, खाती से द्वाली फिर द्वाली से फुरकिया तथा अंत में फुरकिया से पिंडारी ग्लेशियर जो कुल 31 किमी की होती है अंत में आप पिण्डारी ग्लेशियर तक पहुंच सकते है।

कफनी ग्लेशियर ट्रैक: Kafni Glacier Trek: कफनी ग्लेशियर कुमाऊँ में स्थित एक उच्च हिमालयी ग्लेशियर है जो कुमाऊँ के बागेश्वर में स्थित है। यह ग्लेशियर समुद्र तल से 13612 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह ट्रैक लगभग 85 किमी का है व इसमें आने व जाने में लगभग 11 से 13 दिन तक लग जाते है। यह ट्रैक लगभग पिण्डारी ग्लेशियर की तरह है तथा यहाँ जाने का रास्ता भी लगभग एक ही है।
कफनी ग्लेशियर ही कफनी नदी का उद्गम स्थल है जो पिंडारी नदी की एक सहयोगी नदी है जो गढ़वाल के कर्णप्रयाग में अलकनंदा नदी में जाकर मिल जाती है। यह ग्लेशियर छोटा जरूर है पर ट्रैकर्स के बीच ये एक प्रसिद्ध ट्रैक है जिसमे ट्रैक की शुरुवात करने वाले नये ट्रैकर्स भी आसानी से जा सकते है।
कफनी ग्लेशियर के पास ही पिंडारी व मिलम ग्लेशियर पड़ते है जहाँ आप कफनी की यात्रा करने के बाद आसानी से जा सकते है। यहाँ जाने के रास्ते पर आपको छोटे-छोटे गांव, झीले, लकड़ी के पुल, व दूर-दूर तक ग्रामीणों द्धारा की गई खेती व उनके हरे भरे खेत देखने को मिल जायेंगे
कफनी ग्लेशियर कैसे पहुँचे:
How to reach Kafni Glacier:
यहाँ जाने के रास्ते पर आपको लोहारखेत में रुकने के लिए के० एम० वी० एन० के गेस्ट हाउस मिल जायेंगे जहाँ पर आप भोजन व रात्रि विश्राम कर सकते है। यहाँ जाने के लिए सबसे पहले आपको सौंग गांव तक पहुँचना होता है। उसके बाद आप खाती, लोहारखेत, फुरकिया व द्वाली होते हुए आप कफनी ग्लेशियर तक पहुँच सकते है।
यहाँ से आपको पिण्डारी ग्लेशियर, नंदाकोट ग्लेशियर जिसकी ऊंचाई 6860 मीटर व नंदाभनार(6236 मीटर) की चोटी दिखाई देती है जो आपके उत्साह को दुगुना कर देती है। यहाँ जाने के लिए सबसे अच्छा समय मार्च से जून तक का होता इसके बाद वहाँ की सडको में फिसलन होने के कारण वह तक पहुँचना मुश्किल होता है। सर्दियों में वहाँ ठंड बहुत अधिक पड़ती है तथा तापमान भी माइनस के नीचे चला जाता है तथा बर्फ के पड़ने के भी बहुत अधिक आसार बने रहते है इस कारण आपके लिए मई से जून तक समय वहाँ जाने के लिए सर्वोत्तम रहता है।

सुन्दरढूंगा ट्रैक: Sunderdhunga Trek: सुन्दरढूंगा ट्रैक उत्तराखंड के जिला बागेश्वर में स्थित है। यह ट्रैक उत्तराखण्ड के कुछ सबसे सुन्दर ट्रैक्स में से एक है। यहाँ जाने का रास्ता भी लगभग पिंडारी व कफनी ग्लेशियर के रास्ता में से आता है, परन्तु सुन्दरढूंगा जाने हेतु रास्ता खाती गांव से अलग हो जाता है। इस ट्रैक को पिण्डारी और कफनी ग्लेशियर के रास्ते के अपेक्षाकृत कठिन माना जाता है। सुन्दरढूंगा ग्लेशियर, पिंडारी ग्लेशियर के दाये तरफ पड़ता है। यह ट्रैक लोहारखेत से ही शुरू होता है तथा इस ट्रैक की कुल दूरी लोहारखेत से लगभग 43 किमी है तथा इस ट्रैक में आने व जाने में लगभग 8 से 10 दिन का समय लगता है।
इस ट्रैक को सुन्दर पत्थरो वाला ट्रैक भी कहा जाता है। जैसा की सुन्दरढूंगा नाम से ही प्रतीत होता है सुन्दर अर्थात खूबसूरत और ढूँगा का मतलब पत्थर होता है अर्थात खूबसूरत पत्थरो वाला ग्लेशियर। इस ट्रैक पर जाने पर आपको बड़े और विशाल पत्थर दिखाई देंगे जो देखने में अलग अलग डिज़ाइन व रंग के तथा बर्फ से ढके हुए होते है जो देखने में बहुत खूबसूरत दिखाई देते है। इसी घाटी में सुखराम और मैक्तोली ग्लेशियर भी है। सुन्दरढूंगा ग्लेशियर से आप थरकोट, मृगथूनी व पवलीदवर जैसे खूबसूरत ग्लेशियर भी देखने को मिल जायेंगे जिनकी ऊचाई क्रमशः 6,100 मीटर, 6,856 मीटर व् 6,663 मीटर है।
सुन्दरढूंगा ट्रैक के रास्ते पर आपको विशाल पर्वत, बर्फ से ढके विशाल पत्थर, घने जंगल जो कई जंगली जानवरो का निवास स्थान है जो यात्रियों के दिल और दिमाग में यहाँ की यादें हमेशा के लिए जिन्दा रखती है।
सुन्दरढूंगा ग्लेशियर कैसे पहुँचे:
How to reach Sunderdhunga Glacier:
इस ट्रैक की शुरुवात लोहारखेत से होती है तथा वहाँ तक आप अपने वाहन द्धारा पहुंच सकते है। यहाँ से आपको ट्रैक करते हुए धाकुरी तक पहुँचना होता है जो लगभग १० किमी का है तथा समुद्र तल से 2680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ से आपको खाती गांव से होते हुए जैतोली तक पहुँचना होता है जो लगभग 15 किमी का ट्रैक है। यहाँ से धुंगिआ धौन होते हुए आप कटहलिए तक पहुंच सकते है जो लगभग 13 किमी का ट्रैक है। कटहलिए से आप मैक्तोली टॉप या सुखराम गुफा होते हुए सुन्दरढूंगा ग्लेशियर तक पहुंच सकते है।

आदि-कैलाश ट्रैक: Adi-Kailash Trek: आदि कैलाश ट्रैक उत्तराखण्ड के जिला पिथौरागढ़ में स्थित है। आदि कैलाश पर्वत समुद्र तल से 6191 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसे छोटा कैलाश और ॐ पर्वत कहकर भी जाना जाता है। यह पर्वत तिब्बत बॉर्डर के बिलकुल पास है तथा यहाँ जाने के लिए आपको पुलिस व आई० टी० बी० पी० के द्धारा अनुमति लेनी पड़ती है। यह पर्वत भारतीयों के लिए एक आस्था का विशेष केंद्र भी है। जो लोग तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर नहीं जा सकते है वो यहाँ जा सकते है और यहाँ आने का खर्चा और समय भी वहाँ की अपेक्षा बहुत कम लगता है।
यह पर्वत देखने में भी कैलाश पर्वत की तरह दिखाई देता है तथा यहाँ की परिस्थितिया भी लगभग वहाँ की तरह ही है। इसे भगवान शिव का निवास स्थान भी माना जाता है। जहाँ जाने से आपको मानसिक व आद्यात्मिक शांति की प्राप्ति होती है। यहाँ की यात्रा के दौरान आपको यहाँ प्राकर्तिक सुंदरता प्रचुर मात्रा में दिखाई पड़ती है। यहाँ रास्ते पर आपको गांव, झीले, लकड़ी से बने खूबसूरत पुल तथा जंगली जानवरो से भरपूर घने जंगल देखने को मिल जायेंगे।
आदि कैलाश के पूरे छेत्र को ज्योलिंगकॉंग के नाम से भी जाना जाता है। आदि कैलाश पर्वत के तल पर एक खूबसूरत झील भी बनी हुई है जिसे गौरीकुंड झील कहा जाता है जिस पर आदि पर्वत की खूबसूरत परछाई दिखाई देती है। वही यहाँ पर एक और झील है जिसे पार्वती सरोवर कहते है जिसे मानसरोवर सरोवर कहकर भी पुकारा जाता है। वही इस ट्रैक पर आपको घने जंगल, काली नदी, अलग-अलग प्रजाति के कई सारे फल-फूल दिखाई पड़ते है जो देखने में बहुत सुन्दर प्रतीत होती है। यही इस सरोवर के पास ही शिव और पार्वती का एक सुन्दर मन्दिर भी बना हुआ है।

आदि कैलाश पर्वत कैसे पहुँचे:
How to reach Adi Kailash:
यहाँ पहुंचने का रास्ता उत्तराखंड के अन्य ट्रैक्स में से कुछ कठिन है। यहाँ जाने के लिए सबसे पहले आपको पिथौरागढ़ जिले के धारचूला पहुँचना पड़ता है। यहाँ से आप खाने पीने व रास्ते के लिए सामान रख सकते है।
धारचूला से ट्रैक शुरू करके आपको पंगु नामक गांव तक जो एक भोटिया गांव है वहाँ तक वाहन तथा ट्रैक द्धारा पहुँचना होता है, जो धारचूला से 28 किमी है। जिसमे 19 किमी आप अपने वाहन द्धारा तथा 9 किमी का ट्रैक कर वहाँ तक पहुंच सकते है। उसके बाद पंगु से सिरखा जो 8 किमी है। वहाँ से गिलगढ़ 14 किमी, गलगढ़ से मालपा 10 किमी, मालपा से बुद्धि 8 किमी, बुद्धि से गुंजी 17 किमी गुंजी से कुट्टी 18 किमी, कुट्टी से जोलिंगकोंग 14 किमी तथा अंत में आप जोलिंगकोंग से 4 किमी का ट्रैक करके आदि कैलाश पर्वत तक पहुँच सकते है।
पंचाचूली ट्रैक: Panchachuli Trek: पंचाचूली पर्वत कुमाऊँ के उच्च हिमालयी परिसर के अंतर्गत आता है जो उत्तराखंड के जिला पिथौरागढ़ में स्थित है। यह सम्पूर्ण पर्वत श्रंखला दारमा वैली के अन्तर्गत आता है। यह पाँच पर्वतो की बर्फ से ढकी एक खूबसूरत पर्वत श्रंखला है जो पंचाचूली-प्रथम, पंचाचूली द्वितीय, पंचाचूली तृत्य, पंचाचूली चतुर्थ, तथा पंचाचूली पंचम के नाम से जानी जाती है, जिनकी ऊंचाई क्रमशः 6355 मीटर, 6904 मीटर, 6312 मीटर, 6334 मीटर तथा 6437 मीटर है। पंचाचूली द्वित्य इनमे से सबसे बड़ी चोटी है।
यहाँ जाने के रास्ते पर आपको छोटे–छोटे खूबसूरत भोटियों के गांव, घने जंगल, लकड़ियों के पुल व दूर दूर तक फैले फूलो व फलो से लदे हुए पेड़ दिखाई पड़ जायेंगे जो यहाँ आये यात्रियों को मंत्र मुघ्द कर देते है। यहाँ से आप बर्फ से ढके पहाड़ो की खूबसूरती को बहुत पास से देख सकती है। यह पूरा ट्रैक लगभग 61 किमी का होता है तथा यहाँ आने व जाने में 10 से 13 दिन तक का समय लग जाता है। जहाँ सोबाला दारमा इस ट्रैक का शुरुवाती बिंदु है।

पंचाचूली पीक कैसे पहुँचे:
How to reach Panchachuli Peak:
इस ट्रैक पर जाने के लिए सबसे पहले आपको जिला पिथौरागढ़ के धारचूला पहुँचना पड़ता है। उसके उपरान्त आपको धारचूला से तवाघाट व सोबला होते हुए धर तक पहुँचना होता है जिस में आप लगभग 35 किमी अपने वाहन तथा 5 किमी का ट्रैक करके पहुंच सकते है। उसके बाद आप 12 किमी के ट्रैक द्धारा सेला तक पहुंच सकते है। वहाँ से 12 किमी का ट्रैक बॉलिंग तथा बॉलिंग से 6 किमी के ट्रैक करके डुकतु/दाँतु तक पहुँचा जा सकता है। यहाँ से 4 किमी के अंतिम ट्रैक द्धारा आप पंचाचूली पीक तक पहुँच सकते है।
यहाँ जाने के लिए अप्रैल से जून का मौसम सबसे अच्छा रहता है। उसके बाद बारिश का मौसम आने पर यहाँ की यात्रा बहुत कठिन हो जाती है तथा वहाँ का तापमान भी 0 डिग्री से नीचे चला जाता है इस दौरान वहाँ बर्फ भी बहुत ज्यादा पड़ती है तथा रास्ते पर बर्फ होने व रपटन होने के कारण ट्रैकर्स का वहाँ तक पहुँचना मुश्किल हो जाता है।

रालम धूरा वैली ट्रैक: Ralam Valley Trek: रालम वैली ट्रैक उत्तराखंड के खूबसूरत ट्रैक्स में से एक है तथा उत्तराखंड के जिला पिथौरागढ़ में स्थित है जिसका शुरुवाती बिन्दु मुनस्यारी है। यह ट्रैक उत्तराखंड के कुमाऊँ डिवीज़न के कुछ सबसे कठिन ट्रैक्स में से एक है जहाँ जाने व आने के लिए आपको लगभग 90 किमी का ट्रैक करके जाना पड़ता है जो काफी कठिन होता है। रालम ग्लेशियर समुद्र तल से 39000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं जहाँ आने व जाने के लिये 12 से 15 दिन का समय लगता है। इसी ग्लेशियर से रालम नामक नदी भी निकलती है जो गौरी गंगा में जाकर मिलती है।
यहाँ जाने के लिये आपको तीन ग्लेशियर और दो उच्च ऊंचाई वाले पर्वतो को पार करना होता है। यह ट्रैक यहाँ आने वाले ट्रैकर्स को अलग दुनिया में ले जाते है तथा यहाँ का सुन्दर व शान्त वातावरण यहाँ आने वालो को असीम सुख की प्राप्ति देता है । यहाँ जाने वाले रास्ते पर आपको घने जंगल, लकड़ी से बने पुल, चारो तरफ ऊंचे बर्फ से ढके ग्लेशियर, जंगली जानवर तथा सुन्दर ब्रह्मकमल दिखाई पड़ जाएंगे जो यहाँ की खूबसूरती को और अधिक बढ़ा देते है।
पहले वहाँ के लोगो द्धारा रालम धुरा पास को रालम पास के नाम से जाना जाता था यहाँ दारमा वैली की और जाने वाले लोग पहले रालम और सीपू–पास की तरफ से दारमा वैली जाया करते थे। यहाँ पर सबसे पहले एक स्कॉटिश व्यक्ति ने सन 1950 ने रालम वैली की तरफ से रालम ग्लेशियर की चढाई की थी इसके बाद सन 2005 में एक भारतीय व्यक्ति कृष्नन कुट्टी और उनकी टीम द्धारा दारमा घाटी की और से इस पर्वत पर गए थे।
इसी ग्लेशियर के पास में ही कलबलान ग्लेशियर, सुतेला ग्लेशियर, यांगचार ग्लेशियर भी पड़ते है जो इसकी खूबसूरती को और कई गुना बढ़ा देते है। इसी ग्लेशियर से ही गोरी गंगा भी निकलती है जिसके पूर्व में आपको यहाँ के पहले गांव पाटन और बुइ दो गांव दिखाई देंगे। इन गावो में ठण्ड के समय पर काफी बर्फ़बारी होती है।
रालम धुरा ग्लेशियर कैसे पहुँचे:
How to reach Ralam Dhura Glacier
रालम धुरा ग्लेशियर जाने के लिए आपको सबसे पहले जिला पिथौरागढ़ के खूबसूरत हिल स्टेशन मुनस्यारी पहुँचने होता है जहाँ से आप अपने खाने – पीने का व अन्य सामान ले सकते है।
यहाँ से आपकी असली यात्रा आरम्भ होती है सबसे पहले आप मुनस्यारी से चिलमधार तक आप अपने वाहन द्धारा जा सकते है। यहाँ से आपको ट्रैक करके पाटो तक 7 किमी जाना होता है, उसके बाद पाटो से लिंगुरानी तक 12 किमी के पैदल ट्रैक द्धारा पहुँचना होता है। उसके बाद आपको 11 किमी पैदल दम्फू उड़्यार तक जाना होता ही यहाँ से अंत में आप दम्फू उड़्यार से 10 किमी रालम गांव तक पहुंच सकते है। यहाँ से अंत में आप रालम गांव से रालम ग्लेशियर तक पहुँच सकते है। जो रालम गांव से लगभग 10 किमी होता है।
रालम धुरा ग्लेशियर कब जाये:
When to go Ralam Glacier:
यहाँ जाने के लिए सबसे अच्छा समय अप्रैल से जून तथा सितम्बर से नवम्बर तक का होता है, इस मौसम में यहाँ का मौसम बहुत ही खुशनुमा हो जाता है। वही सर्दियो के मौसम में यहाँ पहुंचने मुश्किल हो जाता है क्योकि उच्च ऊंचाई पर होने के कारण यहाँ बर्फ बहुत ज्यादा पड़ती है। वही बारिश के मौसम में पहाड़ टूटने व अन्य कारणों से यहाँ के रास्ते बंद हो जाते है, जिस कारण से आप वहाँ तक नहीं पहुंच सकते हो।
लिपुलेख वैली ट्रैक: Lipulesh Valley Trek: लिपुलेख ट्रैक उत्तराखंड में पिथौरागढ़ के धारचूला से शुरू होता है जो यहाँ के सबसे कठिन ट्रैक्स में से एक है। यह रास्ता भारत की तरफ से जाने वाली कैलाश मानसरोवर यात्रा का रास्ते भी है। कैलाश मानसरोवर जाने हेतु एक रास्ते यहाँ से तथा दूसरा रास्ता नाथूला से होकर जाता है। वही ये चीन के अंतर्गत आने वाले तिब्बत की भारत से सीमा रेखा भी बनाता है। वही लिपुलेख पर भारत, चीन व नेपाल भी अपना हक़ जताते आये है।
लिपुलेख पर बहुत पहले से ही तिब्बती लोग व्यापार करने हेतु इस रास्ते का प्रयोग करते आये है वही लिपुलेख वैली के पास ही कालापानी पर नेपाल द्धारा भारत का सीमा विवाद चला आ रहा है। वो लोग अब तक इसे अपना बताते आये है। 2015 में भारत के प्रधानमन्त्री के चीन जाने के बाद दोनों की तरफ से व्यापार करने हेतु इसे खोल दिया गया था परन्तु नेपाल ने इस पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी जबकि इस पूरे छेत्र पर 1962 से ही भारत का कब्ज़ा है।
लिपुलेख दर्रे की ऊंचाई समुद्र तल से 5,200 मीटर अर्थात 17,060 फ़ीट है। यह दर्रा उत्तराखंड में धारचूला के चौदांस वैली के अंतर्गत आता है और नेपाल की ब्यास वैली और तिब्बत से मिला हुआ है जिस कारण यह एक अंतराष्ट्रीय पर्वत है।
अब ये रास्ता हर साल जून से सितम्बर तक व्यापार हेतु खोल दिया जाता है। इसी रास्ते से भारत की और से कैलाश मानसरोवर जाने वाले श्रद्धालु जाते है। कैलाश मानसरोवर यात्रा हेतु दूसरा रास्ता चीन से होकर के जाता है।
Lipulekh Valley Peak पर कैसे पहुंचे:
How to reach Lipulekh Valley Peak:
लिपुलेख पर जाने के लिए आपको सर्वप्रथम धारचूला पहुंचना होता है। जहाँ से आप 50 किमी की यात्रा करके अपने वाहन से पांगु तक जा सकते है। यहाँ से 25 किमी ट्रैक द्धारा आप गाला तक पहुंच सकते है। यहाँ से फिर बुद्धि तक 20 किमी ट्रैक द्धारा आपको जाना होता है। इसके बाद बुद्धी से गुंजी तक 17 किमी पैदल जाना होता है। यहाँ से नवी ढंग 20 किमी तथा नवी ढांग से पुनः 7 किमी के ट्रैक द्धारा आप लिपुलेख तक पहुंच सकते है।
नंदा देवी बेस कैंप ट्रैक: Nanda Devi Base Camp Trek: नंदा देवी बेस कैंप ट्रैक उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में स्थित है। यह पर्वत जुड़वाँ पर्वत है जिसे दो बहने नंदा देवी बेस कैंप व नंदा देवी ईस्ट कैंप के नाम से जाना जाता है जिनका जिक्र कई धार्मिक पुस्तकों व पुराणो में भी किया गया है। यह भारत में कंचनजंगा के बाद दूसरी सबसे ऊंची चोटी है और विश्व में 23 वे नंबर की सबसे ऊंची चोटी है। नंदा देवी ईस्ट की समुद्र तल से ऊंचाई 7434 मीटर तथा नंदा देवी वेस्ट की ऊंचाई समुद्र तल से 7816 मीटर है।
इसके आसपास का पूरा नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान के अन्तर्गत आता है जिसे UNESCO द्धारा भी राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया जा चुका है। यह ट्रैक उत्तराखंड के सबसे कठिन ट्रैक में से एक है यहाँ दूर – दूर तक फैली हुई बर्फ से ढकी हुई पर्वत श्रंखला, कई सारे ग्लेशियर, तरह–तरह के जंगली जानवर देखकर यहाँ जाने वाले यात्रिओ की सारी थकान स्वयं ही खत्म हो जाया करती है। यहाँ जाने के किये आपको 10 दिन से 14 दिन तक का समय लग जाता है।

यहाँ जाने के रास्ते पर आपको ऋषि गंगा के भी दर्शन होते है जो विश्व की कुछ सबसे गहरी नदियों में से एक है। वही आप बर्फ से ढकी हुई पंचाचूली पीक भी देख सकते है। वही रास्ते में आपको रामगंगा और सरयू वैली को भी पार करना होता है जो आपको मन्त्रमुघ्द कर देती है।
वही इस ट्रैक पर आपको कई प्रकार के प्राकर्तिक ओषधि से युक्त जड़ी-बूटिया, खुबसूरत फल व फूल, हिमालयी हिरण तथा हिमालयी बर्फीले चीते भी देखने को मिल जायेंगे। इसी ट्रैक पर आपको ऋषि पर्वत जो 6,692 मीटर, हरडोल जिसकी ऊंचाई 7,151 मीटर तथा त्रिशूल1 जिसकी ऊंचाई 7,074 मीटर की खूबसूरत चोटिया दिखाई पड़ती है वही रस्ते पर दूर दूर तक फैले भोजपत्र के वृक्ष व खूबसूरत गोरी गंगा वैली के भी खूबसूरत नज़ारे दिखाई देते है।
यहाँ पर सबसे पहले 1930 व 1934 को चढ़ने का गया परन्तु वो विफल रहा था बाद में 1936 को एक ब्रिटिश टीम व कुछ शेरपाओं द्वारा यहाँ पहली बार चढाई पूरी की गई उसके बाद अब तक कई लोग यहाँ तक पहुंच चुके है।
नंदा देवी बेस कैंप कैसे पहुँचे:
How to reach Nanda Devi Peak:
नंदा देवी बेस कैंप की यात्रा की शुरुवात मुनस्यारी से होती है मुनस्यारी से सबसे पहले आपको ट्रैक द्धारा लिलम तक जाना होता है जो मुनस्यारी से 7 किमी व 1900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मिलम गांव में रहने वाले लोग ठण्ड के मौसम में लिलम गांव में रहने के लिए आ जाते है। यहाँ से आप बोगुड़िआर तक 12 किमी0 के ट्रैक द्धारा पहुँच सकते है उसके बाद आपको रिलकोट तक 12 किमी0 के ट्रैक द्धारा पहुँचना होता है उसके बाद रिलकोट से घाँघर तक 13 किमी जाना होता है तथा अंत में आपको घाँघर से 7 किमी पैदल चलकर पंचू ग्लेशियर होते हुए आप नंदा देवी ईस्ट बेस कैंप तक पहुंच सकते है।

नंदा देवी बेस कैंप कब जाये:
When to go Nanda Devi Base Camp Trek:
यहाँ जाने हेतु सबसे अच्छा मौसम मई से जून और सितम्बर से अक्टूबर तक का होता है। सर्दियो के मौसम में बर्फ पड़ने व यहाँ के तापमान 0 डिग्री से नीचे चला जाता है जिस कारण आप यहाँ तक पहुँचना असम्भव हो जाता है तथा बरसात के मौसम में वहाँ की सड़के बंद हो जाती है जिस कारण आप वहाँ तक नहीं पहुंच पाते है।