Uttarakhand famous Festivals and Fairs

उत्तराखण्ड के प्रमुख पर्व, मेले यात्राये

DUSSHERA FESTIVAL
DUSSHERA FESTIVAL

उत्तराखण्ड को मेलों उत्सवों का राज्य कहे जाने के कारण यहाँ मेलों उत्सवों का आयोजन भी साल भर लगा रहता है। पहले के समय मे जब रिश्तेदार लोग एक दूसरे से बहुत दूर रहते थे तथा यातायात का कोई साधन नही था तब मेलों या त्यौहारो के समय पर ही लोग एक दूसरे से मिल पाते थे।

उत्तराखण्ड के लोग प्रत्येक सीजन का स्वागत त्यौहारो से करते है। कृषि काल आने पर भी यहाँ के लोग उत्सव आदि बनाकर इसका स्वागत करते है। यहाँ कुम्भ मेले में आने वाले दर्शनार्थी को उत्तराखण्ड देश की संस्कृति को जानने का मौका मिलता है जो यहाँ धूमने आने वालो के लिए सही समय होता है। उत्तराखंड में होली, दीपावली, दशहरा अदि त्यौहार बनाये जाते है परन्तु उनके अलावा भी यहाँ के कई पुराने व लोक त्यौहार है जो यहाँ लोग बहुत धूमधाम से बनाते है।

HOLI-FESTIVAL
HOLI FESTIVAL

Famous Festicals of Uttarakhand in Hindi

उत्तराखंड में मनाये जाने वाले मुख्य त्यौहार व पर्व

उत्तराखंड को पर्वो का राज्य कहा जाता है जिस कारण यहाँ साल भर कोई न कोई पर्व या त्यौहार चलते रहते है जो यहाँ की संस्कृति को भी देश व विदेश मे प्रदर्शित करते है। यहाँ के मुख्य पर्वो में बसंत पंचमी, भिटौला, हरेला, फूलदेई, बटसावित्री, गंगा दशहरा, धीसंक्रान्ति, खतडूआ, कुमाऊॅनी होली, कंडाली, धुधुती जनेउपुनयू प्रमुख त्योहार है। उत्तराखंड के त्योहारों को जानने के लिए ये पोस्ट अंत तक पढ़े

उत्तराखंड के मुख्य त्यौहार निम्न है-

उत्तराखंड की एक विशिष्ट परंपरा भिटोले का त्यौहार


A Unique Tradition Festival of Uttarakhand

भिटौलाभिटौले का त्यौहार भाई बहन के प्रेम के तौर पर बनाया जाता है, इसमें भाई अपनी बहन को उपहार आदि भेंट करता है। यह त्यौहार चैत्र के महिने में मनाया जाता है। भिटोले के त्यौहार में भाई अपनी बहनो के लिए विशेष प्रकार का पकवान बनाते है तथा अपनी बहनो को विशेष उपहार देते है।

Harela A Traditional Festival of Uttarakhand

उत्तराखंड का लोक त्यौहार हरेला

हरेला: उसी प्रकार सावन आने पर हरेला का त्यौहार मनाया जाता है जोकि हरियाली का प्रतीक माना जाता है। इसमें पांच अनाज बोए जाते है जिसमे गेहू, उड़द, मक्का के बीज, भट्ट और गहत डाला जाता है जिन्हे हरेले के दिन काटकर जी रये जग रये का आशीर्वाद देकर एक दूसरे के सर पर रखा जाता है व बड़ो का आशीर्वाद लिया जाता है।

Bat Savitri A Traditional Festival of Uttarakhand

उत्तराखंड का लोक त्यौहार बट सावित्री

बट सावित्री: बट सावित्री के पर्व मे सुहागिन औरते अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत आदि करती है। इस व्रत की कथानुसार इसमें देवी सावित्री के पति सत्यवान की मृत्यु होने के पश्चात देवी सावित्री, सत्यवान को लेने के लिए यमराज के पास जाकर अपने पति सत्यवान को अपने तप के कारण धरती पर वापस ले आई थी तभी से ये व्रत रखा जाने लगा।

Fool Dei A Traditional Festival of Uttarakhand

उत्तराखंड का पारम्परिक त्यौहार फूल दई

फूलदेई: फूलदेई का त्यौहार एक लोकपर्व है जो उत्तराखंड की संस्कृति को पूरी दुनिया में उजागर करता है। इस त्यौहार को फूल संक्रांति भी कहा जाता है जिसका सम्बन्ध प्रकृति से है। यह चैत्र मास की संक्रांति को बसंत आने के फलस्वरूप मनाया जाता है। इस अवसर पर चारो तरफ फूल खिले होते है।

फूलदेई के दिन लोग फूलो, चावल, गुड़ को घरो के मुख्य द्वार के आगे डालकर खुशहाली के लिए प्रार्थना करते हैं।

A Traditional Festival of Uttarakhand “Basant Panchmi”

उत्तराखंड का पारम्परिक त्यौहार बसंत बसंत पंचमी

बसंत पंचमी: बसंत पंचमी हिन्दुओ का प्रमुख त्यौहार माना जाता है। इसे श्रीपंचमी कहकर भी पुकारा जाता है। यह त्यौहार माघ के महीने में मनाया जाता है। बसंत ऋतु को सभी 6 ऋतुवो का राजा माना जाता है। इस दिन सभी फसल लहलहा रही होती है तथा चारो और हरियाली छाई  होती है। इस दिन शहरी ईलाको में लोग पतंग उड़ा कर बसंत पंचमी का त्यौहार बनाते है।

“Ghughuti” A Traditional Festival of Uttarakhand

उत्तराखंड का लोकपर्व घुघुती

GHUGUTI
GHUGUTI

धुधुती: घुगुती का पर्व उत्तराखंड का मुख्य त्यौहार है जो मकर संक्रांति के दिन बनाया जाता है। यह त्यौहार मुख्यतः कुमाऊँ मंडल मैं मनाया जाता है। यह एकमात्र ऐसा त्यौहार है जो हर साल एक ही तारीख अर्थात 14 या 15 को मनाया जाता है।

इस त्यौहार को उत्तरायणी पर्व के रूप में भी बनाया जाता है। यह त्यौहार फसल की कटाई के रूप मैं मनाया जाता है। इस दिन दान देने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन विशेष व्यंजन घुघुत बनाया जाता है।

Uttarakhand Famous Fairs and its History in Hindi

उत्तराखंड के प्रसिद्ध मेले व प्रमुख यात्रा व उनका इतिहास

KUMBH MELA
KUMBH MELA
मेला  गांव

गोचर मेला

गौचर,

पूर्णागिरि मेला

टनकपुर

मानेश्वर मेला

मायावती आश्रम, चम्पावत

झंडा मेला

देहरादून

सोमनाथ मेला

मासी(अल्मोड़ा)

माघ मेला

उत्तरकाशी

श्रावणी मेला

जागेश्वर (अल्मोड़ा)

चैती मेला

काशीपुर(ऊधमसिंघनगर)

बिस्सु मेला

उत्तरकाशी

थल मेला

पिथौरागढ़

चन्द्रबदनी मेला  

टिहरी

कुम्भ मेला   

हरिद्धार

तिमुड़ा मेला  

जोशीमठ

अटरिया मेला  

रुद्रपुर(ऊधमसिंह नगर)

पिरान कलियर मेला   

रूडकी

ताड़केश्वर मेला        

पौड़ी गढ़वाल

सुरकंडा मेला      

टिहरी गढ़वाल

कण्डक मेला   

उत्तरकाशी

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली मेला    

पौड़ी गढ़वाल

केसरी चंद मेला

चकराता

नाग टिब्बा मेला      

जौनपुर (टिहरी गढ़वाल)

खरसाली मेला   

उत्तरकाशी

जाखोली मेला     

चकराता

क्वानी मेला       

चकराता

हिलजात्रा मेला    

पिथौरागढ़

खकोटी मेला

  पौड़ी गढ़वाल

बुराँस मेला   

चमोली

उत्तराखण्ड में लगभग प्रत्येक दिन कोई ना कोई त्यौहार अथवा मेले का आयोजन होता रहता है। यहाँ के प्रमुख मेलों में शरदोत्सव, बैकुंठचतुर्दशी मेला, गिन्डी मेला, बिन्सर मेला, हरियाली देवी मेला, गोचर मेला, औली का मेला, नन्दा देवी राजजात मेला, जौलजीबी मेला, पूर्णागिरी मेला, देवीधूरा मेला, कावड मेला, कुम्भ मेला, अर्धकुम्भ मेला, नन्दा देवी मेला उत्तरायणी मेला प्रमुख है जिनमें से कुंभ का मेला उत्तराखंड का प्रमुख मेला नन्दा राजजात उत्तराखंड की प्रमुख यात्रा है।

कुम्भ मेला नन्दा राजजात यात्रा का आयोजन प्रत्येक 12 वर्ष में होता है, जिसे देखने भारतवर्ष देश दुनिया से करोडो लोग एकत्र होते है। कुम्भ मेला का आयोजन चार स्थानों हरिद्वार, इलाहाबाद, नासिक उज्जैन में होता है परन्तु हरिद्वार और इलाहाबाद उन में सें सबसें प्रमुख स्थल है जहाँ कुम्भ मेला लगता है।

कुम्भ मेला विश्व में लगने वाला एकमात्र ऐसा मेला है जिसमे एक समय में इतने लोग इकटठे होते है। कुम्भ के समय पर हरिद्वार में जगहजगह पर मेले, झांकिया लगायी जाती है जो उत्तराखण्ड की सभ्यता को देशविदेश तक प्रसिद्धि दिलाती है। कुम्भ मेले के साथसाथ नन्दा राजजात यात्रा कैलाश मानसरोवर यात्रा मे भाग लेने भी देश विदेश से लोग उत्तराखण्ड आते है।

Famous Fair of Uttarakhand “Gauchar Mela”

उत्तराखंड का प्रसिद्ध गौचर मेला

गौचर का मेला उत्तराखंड के प्रमुख नगर गौचर में लगता है जो चमोली के कर्णप्रयाग तहसील में स्थित है। गौचर कर्णप्रयाग का एक प्रसिद्ध नगर भी है जो देखने में पूरा समतल भूमि पर बसा हुआ है परन्तु इसके चारो तरफ पहाड़ है जो इस नगर को और आकर्षित बनाते है।

गौचर मेले की शुरुआत सबसे पहले 1943 में गढ़वाल के कमिश्नर बेर्नाडी के समय पर हुई थी। गौचर मेला का आयोजन प्रति वर्ष 14 नवंबर से किया जाता है और ये मेला 6 दिन तक चलता है, तथा मेले का समापन 7 वे दिन होता है।

यह मेला बहुत ही शानदार होता है जिसे देखने के लिए लोग दूर-दूर व अन्य राज्यों से भी मेले को देखने व खरीददारी के लिए यहाँ आते है। यहाँ का लोकल बना सामान जैसे भोटियों द्धारा बनाये ऊनी कपडे, वहाँ की दाल व अन्य सामान लोगो को बहुत पसंद आता है।

मेला दिन को व रात को भी लगातार चलता रहता है। मेले में कई कार्यकर्मो का आयोजन भी किया जाता है, जिसमे महिला दल, स्कूली बच्चे, लोक गायक, कलाकार पहुँचकर अपने कार्यकर्मो द्धारा मेले में चार चाँद लगा देते है। इस मेले में तरहतरह के खेलो, प्रदर्शनी, सर्कस, कवि सम्मलेन आदि प्रस्तुत किया जाता है।              

Famous Mela of Uttarakhand “Jolgibi Mela”

उत्तराखंड का प्रसिद्ध जौलजीबी मेला

जौलजीबी का मेला उत्तराखंड का प्रसिद्ध मेला है जो उत्तराखंड के पिथौरागढ़ शहर में गौरी व काली नदी के संगम पर लगता है। जौलजीबी पिथौरागढ़ एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है जिसके नाम पर मेले का आयोजन १४ से १९ नवंबर के बीच किया जाता है।

14 नवंबर बाल दिवस के दिन इस मेले की शुरुआत होती है तथा ये मेला 5 दिन तक चलता रहता है। जौलजीबी पिथौरागढ़ शहर से 88 किमी की दूरी पर स्थित है। यह मेला भारत और नेपाल की सामूहिक संस्कृति का प्रतीक है। इस मेले को भारत और नेपाल के लोगो के द्धारा सामूहिक रूप से मनाया जाता है।        

जौलजीबी मेले का आरम्भ सर्वप्रथम 1 नवंबर 1914 को हुआ था। इसका श्रेय अस्कोट निवासी स्व० गजेंद्र बहादुर पाल को जाता है जिन्होंने सबसे पहले इस मेले को शुरू किया।

स्व० गजेंद्र बहादुर पाल अस्कोट के ताल्लुकदार थे। उन्होंने इस मेले को धार्मिक आधार पर शुरू किया था, परन्तु बाद मैं मेले ने एक व्यापारिक रूप ले लिया। इसमें हिस्सा लेने के लिए भारत, तिब्बत और नेपाल से व्यापारी भाग लेते थे तथा अपना सामान यहाँ आकर बेचा करते थे।

चीन के आक्रमण से पहले ये उत्तर भारत का सबसे बड़ा मेला हुआ करता था जिसमे नेपाल से शहद, तिब्बत तथा धारचूला व मुन्स्यारी से ऊनी कपडे, कालीन आदि उचित कीमत पर मिल जाया करते थे जो देखने में काफी सुन्दर व मजबूत भी हुआ करते थे। 

चीनी आक्रमण के बाद तिब्बत से व्यापारी आने बंद हो गए जिसके कारण ये मेला धीरे धीरे कम होता चला गया। इस मेले में वहाँ की रीती रिवाज, सांस्कृतिक कार्यकर्म, लोक नृत्य व कुमाऊँनी नृत्य भी मनोरंजन में चार चाँद लगा देता है।

"Purnagiri Mela" A Famous Religious Mela of Uttarakhand

उत्तराखंड का प्रसिद्ध धार्मिक मेला पूर्णागिरि मेला

पूर्णागिरि मंदिर जिला चम्पावत के टनकपुर में स्थित है। यह मंदिर अन्नपूर्णा शिखर पर 5500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर चीन, नेपाल व तिब्बत से घिरे चम्पावत जिले के टनकपुर से 19 किमी की दूरी पर स्थित है।

यह मंदिर एक शक्तिपीठ है जो देवी माँ भगवती को अर्पित है यह मंदिर देवी के 108 शक्तिपीठो में से भी एक है। माता सती की नाभि यहाँ गिरी थी इस कारण इसकी गिनती शक्तिपीठो में की जाती है।

यहाँ पर साल में दो मेलो का आयोजन किया जाता है जिसमे एक शरद ऋतु व दूसरा चैत्र ऋतु में लगता है परन्तु चैत्र मास के महीने यहाँ बहुत अधिक भीड़ लगती है जिसमे श्रद्धालुओं को लाइन में लगकर अपनी बारी की प्रतीक्षा करनी पड़ती है यह मेला बैसाख माह के अन्त तक चलता है।

यहाँ मंदिर व मेले के दर्शन हेतु अन्य राज्यों से श्रद्धालु यहाँ पहुंचते है यहाँ का रास्ता बहुत ही खतरनाक है तथा एक और काली नदी भी अपने पूरे आवेग से आगे बढ़ती है जो श्रद्धालु के मन में दर भी पैदा करती है फिर भी श्रद्धालु आस्था के बल पर यात्री मंदिर तक पहुंच पाते है।

यहाँ जाने हेतु आप ठुलीगाड़ तक बस तक आ सकते है उसके बाद भैरव पहाड़, रामबाड़ा व टुन्नास होते हुए आप मंदिर तक पहुंच सकते है।

“Nanda Rajjat Yatra” A famous Religious Yatra of Uttarakhand

उत्तराखंड का प्रसिद्ध धार्मिक यात्रा नंदा राजजात यात्रा

NANDA RAJJAT YATRA
NANDA RAJJAT YATRA

नन्दा राजजात यात्रा का आयोजन भी 12 वर्ष में एक बार होता है जिसे पहाड का कुम्भ मेला भी कहा जाता है। नन्दा राजजात यात्रा को विश्व की सबसे बडी धार्मिक यात्रा माना जाता है जिसकी कुल अवधि लगभग 19 दिवस की होती है। यह यात्रा कुमाऊँ गढवाल क्षेत्र से होकर निकलती है, जिसमें कुमाऊँ गढवाल क्षेत्र के लोग संयुक्त रूप से सम्मिलित होते है जिस कारण यह विश्व की सबसे लम्बी यात्रा मानी जाती है।

यह यात्रा लगभग 280 किमी0 की होती है जो नौटी से प्रारम्भ होकर सेम, कोटी, भगौती, कुलसारी, चैपडो, लोहाजंग, बेदनी, पातर, रूपकुण्ड, शिला समुद्र, धाट से होते हुए नन्दप्रयाग और फिर नौटी आकर यात्रा का समाप्त होती है।

इसमें मनुष्यो के साथसाथ चार सिंगो वाला खाडू अर्थात भेड भी सम्मिलित होता है। खाडू पर्वतीय क्षेत्रों में चलने हेतु निपुण होता है, जो यात्रा की आगवानी करता है।

यह खाडू यात्रा प्रारम्भ होने के समय ही पैदा होता है। इसमें कुमाऊँ के अल्मोडा, कटारमलव नैनिताल से आने वाली डोलिया नन्दकेशरी में आकर जात में सम्मिलित होती है। नंदादेवी को पार्वती का रूप भी कहा जाता है।

वर्ष 2000 के पूर्व नन्दा राजजात मेले के विषय मे जानकारी का अभाव था परन्तु सन 2000 के बाद यहाँ की सरकार द्वारा इसका प्रचुर मात्रा में प्रचारप्रसार किया गया जिसके पश्चात इसमे शामिल होने के लिए देशविदेश से लोग उत्तराखण्ड आने लगे।

NANDA RAJJAT YATRA
KHADU, NANDA RAJJAT YATRA
NANDA RAJJAT YATRA

Kailash Mansarover Yatra

कैलाश मानसरोवर यात्रा

KAILASH MANSAROVER YATRA ROUTE
KAILASH MANSAROVER YATRA ROUTE

विश्व विख्यात कैलाश मानसरोवर की यात्रा भी उत्तराखण्ड के पिथौरागढ से ही प्रारम्भ होती है। इस यात्रा की अवधि कुल चार माह होती है जो जून से शुरू होकर सितम्बर तक चलती है इसके उपरान्त बर्फबारी के कारण यह यात्रा बन्द करा दी जाती है तथा अगले साल पुनः जून में प्रारम्भ होती है।

इसमें कई ग्रुप में लोग होते है जो देश के अलगअलग भाग से आते है जिसका चुनाव विदेश मंत्रालय द्वारा किया जाता है। इस यात्रा में जाने के लिए व्यक्ति के पास पासपोर्ट होना आवश्यक होता है क्योकि यह यात्रा भारत के अलावा चीन से होकर भी गुजरती है।

KAILASH MANSAROVER YATRA
KAILASH MANSAROVER YATRA ROUTE

इसके अलावा यात्री शारिरिक मानसिक रूप से भी स्वस्थ होना चाहिये, जिसका स्वास्थ्य परीक्षण भी विदेश मंत्रालय द्वारा ही यात्री के स्वयं के खर्चे पर कराया जाता है। यह यात्रा दिल्ली, उत्तराखण्ड, सिक्किम सरकार आई0टी0बी0पी0 के सहयोग द्वारा कराई जाती है।

कैलाश पर्वत समुद्र तल से 22,068 फुट की ऊॅचाई(Height of Kailash Parvat) पर स्थित है। इसे पृथ्वी का केन्द्र बिन्दु भी कहा जाता है। यह हिमालय की उत्तर दिशा में तथा तिब्बत में स्थित है, जो चीन के अन्तर्गत आता है तथा हिन्दू, बौद्ध, जैन, तिब्बती धर्मो के लोगो का आध्यात्मिक केन्द्र है।

कैलाश पर्वत के अन्तर्गत एक झील आती है जिसे मानसरोवर झील कहा जाता है जो इतनी ऊॅचाई पर पाये जाने वाली गहरे नीले मीठे पानी की एकमात्र झील है, जो पुराणों में क्षीरसागर नाम से वर्णित है। यह झील चारो तरफ से पहाडो से घिरी हुई है। इसका पानी गंगा के जल के समान ही निर्मल माना जाता है तथा वहाँ जाने वाले लोग उस जल को अपने साथ अवश्य लाते है।

कैलाश पर्वत के चारो दिशाओं सें चार नदियों का उदगम होता है जिसमें ब्रहमपुत्र, सतलज, सिंधु उरनाली नदी है ये नदिया चारों दिशाओं में बने जानवरों के मुख से निकलती है। पूर्व की दिशा में अश्वमुख, पश्चिम की दिशा में हाथी, उत्तर दिशा में सिंह दक्षिण की तरफ मोर का मुख है। हिन्दुओं की मान्यता अनुसार कैलाश पर्वत को मेरू पर्वत भी कहा जाता है।

Kumbh Mela

कुम्भ मेला

kumbh mela
kumbh mela

कुम्भ मेला 12 साल बाद लगने वाला एक भव्य मेला है जिसमें भारतवर्ष ही नही अपितु देशविदेश से लोग पुण्य कमाने आते है परन्तु यह मेला केवल पुण्य कमाने के लिए ही नही अपितु यहाँ की भव्यता भी लोगों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है। मेले के समय मात्र कुम्भ क्षेत्र ही नही अपितु पूरे शहर की भव्यता देखते ही बनती है।

मेले के दौरान शाही स्नान पर निकलने वाली पेशवाईया अदभुत होती है जिसमें साधुसन्त अपने सोने चादी से सुशोभित रथो पर निकलते है जिसे देखने के लिए देशविदेश से लोग आते है। प्रसाशन, अखाडों से हरकीपौडी तक पेशवाईया निकालने हेतु अलग रास्तों का निर्माण करवाता है जिस से होते हुए ये पेशवाईया अपनी टोलियो के साथ तलवार, भाला, फरसे आदि हथियारो के साथ प्रदर्शन करते हुए चलती है।

इन पेशवाईयों में बडी संख्या में हाथी, घोडे, बध्धी बैंडबाजा रहता है तथा इन पेशवाईयों के आगमन हेतु चारो तरफ बडी संख्या में श्रद्धालु व सेवादार खडे रहते है साधु संतो पर फूलों की बारिश भी करते है। यहा साधुसंत अखाडों द्वारा लगे हुए पंडाल किसी राजमहल से कम प्रतीत नही होते है।

कुम्भ मेले के दौरान कई पंडाल लगाये जाते है जिसमे प्रतिदिन नयेनये सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते है तथा उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक कलाकृतियों को दिखाया जाता है।

KUMBH MELA
KUMBH MELA

History of Kumbh Mel in Hindi: कुम्भ मेले का इतिहास: कुम्भ के विषय में मान्यता है कि जब देवो दानवों द्वारा क्षीरसागर का मंथन किया गया तो मन्थन उपरान्त वहाँ से अमृत युक्त घडा निकला था जिसे लेकर इन्द्र के पुत्र  देवताओं के इशारे पर वहाँ से भाग निकले थे, परन्तु राक्षसों द्वारा रास्ते में पकडे जाने पर देवताओ और राक्षसों में 12 दिन तक धमासान युद्ध हुआ था जिसके फलस्वरूप कुछ बूंदे पृथ्वी पर गिर गई थी, जो बूंदे पृथ्वी के जिस हिस्से पर गिरी, उसी स्थान पर कुम्भ लगने लगा।

KUMBH MELA
KUMBH MELA, HARDWAR

ये बूंदे पृथ्वी पर हरिद्वार, ईलाहाबाद, नासिक उज्जैन में गिरी तब से ही इन स्थानों में कुम्भ मेले का आयोजन होने लगा। देवताओ के 1 दिवस यहाँ के 1 वर्ष के बराबर होने के कारण कुम्भ का आयोजन प्रति 12 वर्ष में होता है परन्तु अबकी बार विशेष संयोग होने के कारण कुम्भ मेला 11 वें साल में 2021 में हरिद्वार में सम्पन्न होगा। कुम्भ का अर्थ कलश होता है जो कुम्भ राशि का भी प्रतीक होता है।