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Famous Temples of
Uttarakhand in Hindi
Famous Temples of
Uttarakhand :उत्तराखडं एक धार्मिक स्थल है यहाँ पुरातन काल से है
ऋषियों व मुनियो द्धारा हजारो वर्षो तक तप व साधना की गई है तथा असंख्यों मंदिरो
का निर्माण भी उन्ही द्धारा किया गया है।
इन्ही पुरातन काल में बने मन्दिरों के दर्शन हेतु देश-विदेश से हर साल हजारो लाखो लोग उत्तराखंड आते है। इसी कारण उत्तराखंड को देवभूमि तथा ऋषियों व मुनियों की धरती भी कहा जाता है।
यहाँ के मंदिर देश विदेश मे प्रसिद्ध है जिसके दर्शन हेतु देश–विदेश से श्रद्धालु प्रति–वर्ष करोडो की संख्या में उत्तराखंड आते है तथा मंदिरो के दर्शन कर पुण्य के भागीदार बनते है।
History of Famous
Temples in Uttarakhand
बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमनोत्री उत्तराखण्ड के प्रमुख तीर्थ स्थल है जिन्हे छोटा चार धाम भी कहा जाता है। जिनकी गिनती चार धामों में होती है जिनके दर्शन हेतु प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते है। केदारनाथ धाम को 12 ज्योतिर्लिंग में से भी एक माना जाता है।
इन मंदिरों के अतिरिक्त भी यहाँ के लोग अपने कुल के देवताओं की पूजा करते है जिनके बारे में मान्यता है कि ये कुल देवता ही इनके प्राणों की रक्षा, खेती व धन्य–धान्य से सम्पन्न बनाते हैं।
इन कुल देवताओ में भूमि देवता, कुल देवता, ग्राम देवता, नागदेवता, गवाल देवता, नन्दा देवी, धौलीनाग देवता, गंगनाथ देवता, नैना देवी और अन्य देवताओं की पूजा होती है।
इन देवताओ की गावों में साल भर पूजा होती रहती है जिससें गावों मे शान्ति और वैभव बना रहता है। ऋषिकेश यहाँ के मुख्य धार्मिक स्थानो में से एक है जहाँ हजारो मंदिर व मठ है, जिनके दर्शन हेतु लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ पहुचते है व मानसिक व आध्यात्मिक शान्ति प्राप्त करते है। यहाँ लक्ष्मण झूला व राम झूला पर्यटको को अपनी और आकर्षित करता है।
ऋषिकेश ध्यान व योग के क्षेत्र में देश–विदेश में प्रसिद्ध है तथा देश–विदेश में योग का केन्द्र बनता जा रहा है। यहाँ कई शिक्षण संस्थान भी खोले गये है जो योग में शिक्षा प्रदान करते है जहाँ शिक्षा लेने हेतु देश–विदेश से छात्र ऋषिकेश आते है।
यहाँ के प्रसिद्ध मंदिरो में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमनोत्री, हर–की–पौडी, ताडकेश्वर मंदिर, बागनाथ मंदिर, चितई गोलू देवता, जागेश्वर धाम, पाताल भुवनेश्वर, हाट कालिका मंदिर, पुर्णागिरी मंदिर, तुंगनाथ, कैंची धाम, हेमकुण्ड साहिब, नैना देवी मंदिर, बिन्सर महादेव, बालेश्वर मंदिर, त्रिजुगीनारायण, मदमहेश्वर महादेव, महासू देवता, धारी देवी, चंडी देवी, मंसा देवी, माया देवी, दक्षेश्वर महादेव मन्दिर तथा मुस्लिमों का प्रमुख तीर्थ स्थल पिरान कलीयर मुख्य है जिसके दर्शन हेतु दर्शनार्थी देश–विदेश से यहाँ आते है।
Har-Ki-Pauri
हर की पौडी हरिद्धार में स्थित है जो यहाँ का सबसे प्रमुख तथा विश्व प्रसिद्ध मदिर है। हर की पौडी दो शब्दो से मिलकर बना है हरि व पौडी। हरि का अर्थ भगवान नारायण से है तथा पौडी का अर्थ सीढी से है। अर्थात भगवान नारायण के पास जाने का रास्ता।
यह तीर्थ नगरी हरिद्धार में स्थित है जो दो अक्षरो हरि और द्धार से मिलकर बना है। जिसका अर्थ होता है भगवान हरि के पास पहुचने का रास्ता। यहाँ पर भगवान हरि के पैरो के निशान भी एक पत्थर पर बने हुए है। इस स्थान का निर्माण राजा विक्रमादित्य द्वारा अपने भाई ब्रिथारी की याद में कराया गया था।
चार धामो हेतु जाने वाले यात्री पहले हरिद्धार की हर की पौडी में स्नान करके ही आगे के लिए जाते है तथा यहाँ से गंगा का जल भरकर ले जाते है। यहाँ एक पवित्र कुण्ड है जिसे ब्रहमकुण्ड कहकर पुकार जाता है, कहा जाता है कि यहाँ स्नान से मनुष्य जीवन व मुत्यु के चक्र से छूट जाता है।
मान्यता के अनुसार जब देवता और दानव समुद्र में मंथन कर रहे थे तब मन्थन के दौरान समुद्र से घडे में अमृत निकला था तब देवताओ के ईशारे पर देवराज इन्द्र के पुत्र विश्वकर्मा जी वो घडा लेकर भाग निकले थे, भागते हुए उस घडे से अमृत की कुछ बूंदे पृथ्वी पर गिर गई थी, उन बूंदो में से कुछ बूंदे हर की पौडी स्थित ब्रहमकुण्ड में गिरी थी तभी से इस जगह की मान्यता है। मान्यता के अनुसार यहाँ पर नहाने से मनुष्यो के सारे पाप धुल जाते हैं।
यही वो स्थान है जहाँ से गंगा नदी पहाडों का छोडकर मैदानी ईलाकों में बहना शुरू करती है। यहाँ पर कई अन्य धाट और भी है जहाँ भीड बढने पर लोग उन्ही घाटों पर स्नान किया करते है।
कुम्भ, अर्धकुम्भ, बैसाखी, मकर संक्रान्ति, अमावस्या व अन्य बडे स्नानों के दौरान बड़ी मात्रा में श्रद्धालु
स्नान हेतु आते है जिस कारण यहाँ पर बडी संख्या में पुलिस बल तैनात किया जाता है।
शाम के समय यहाँ प्रतिदिन आरती का आयोजन किया जाता है जिसे देखना अपने आप में ही अदभुत होता है, उस समय पूरी गंगा नदी रंगीन लाईटों की रोशनी से रंगीन हो जाती है, जिसे देखने दूर–दूर से श्रद्धालु गंगा आरती व गंगा दर्शन हेतु यहाँ आते है।
हर की पौडी के पास में ही कुशावर्त घाट स्थित है जहाँ श्राद्धों के समय पर अपने पूर्वजो का श्राद्ध व तर्पण करने वालो का तांता लगा रहता है जहाँ लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति हेतु बडी संख्या में दान आदि करके पुण्य कमाते है।
यहाँ पर अत्यधिक भीड को देखते हुए यहाँ की सरकार द्वारा हर की पौडी से मंसा देवी तक रोपवे चलाने हेतु विचार किया जा रहा है।
Tarkeshwar Temple
ताडकेश्वर मन्दिर जिला पौडी के लैंसडाउन में स्थित है जो देवदार व बलूत के पेडो व धने जंगलो से ढका हुआ है। यह मन्दिर भगवान शिव को अर्पित है। यह समुद्र तल से 2092 मीटर की ऊॅचाई पर स्थित है तथा 5 किमी की चौड़ाई में स्थित है।
ताडकेश्वर मन्दिर की गिनती प्रसिद्ध सिद्ध पीठों तथा तीर्थ स्थलों में से होती है। यह स्थल भगवान शिव की विश्राम स्थली के नाम से भी जानी जाती है। यह स्थान प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध है जहाँ पानी के कई झरने भी निकलते है।
पुराणो के अनुसार ताडकेश्वर धाम से ही विषगंगा व मधु गंगा नामक नदिया निकलती है। यहाँ 1 वर्ष के अन्दर चार बार पूजा होती है जहाँ श्रद्धालु हजारों की संख्या मे पूजा करने हेतु आते है। गांव में फसलों के होने पर पहली फसल अथवा भेंट यही पर चढाई जाती है उसके उपरान्त उस फसल का इस्तेमाल घरो मे किया जाता है।
महाशिवरात्रि के अवसर पर यहाँ विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। मान्यता के अनुसार यहाँ पर मांगी गई सारी मन्नतें जरूर पूरी होती है। यहाँ एक कुण्ड भी है जिसे माता लक्ष्मी द्वारा स्वयं खोदा गया था। इसी जल का प्रयोग शिवलिंग में चढाने हेतु भी किया जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार राक्षसराज ताडकेश्वर द्वारा भगवान शिव की आराधना कर शिव जी से अमरता का वरदान प्राप्त कर लिया था तथा पूरे संसार में गलत कार्य कर साधुओ व संतो को परेशान कर उनको मारने लगा था।
इसे देखते हुए संतो ने भगवान शिव से उन्हे बचाने की आराधना की, जिस कारण भगवान शिव द्धारा मां पार्वती से विवाह किया, फलस्वरूप उनसे एक पुत्र हुआ जिसका नाम कार्तिक पडा। कार्तिक और ताडकेश्वर में युद्व चल रहा था, अपने को मरता देख ताडकेश्वर भगवान शिव से क्षमा मांगने लगा।
तब भगवान शिव ने उसे आशीर्वाद दिया कि कलयुग मे लोग तुम शिव के नाम से ही पूजे जाओगे। तब से इस स्थान का नाम ताडकेश्वर महादेव पडा। पहले इस मंदिर में एक शिवलिंग था परन्तु बाद में इसे हटाकर इसकी जगह शिव जी की मूर्ति रख दी गई।
एक अन्य मान्यतानुसार जब भगवान शिव ताडकासुर का वध करने के बाद विश्राम हेतु इसी जगह पर रूके थे। आराम के दौरान शिव जी के मुहॅ पर धूप पडने लगी, तब माता पार्वती उनको घूप से बचाने हेतु वहाँ पर सात देवदार के पेड लगाए थे।
यहाँ आने हेतु लोग अपने वाहनों द्वारा मन्दिर तक आ सकते हैं परन्तु अन्य लोगों को यहाँ तक आने के लिए 5 किमी की दूरी तय करनी पडती हैं।
Baghnath Temple
बागनाथ मन्दिर जिला बागेश्वर मे तथा समुद्र तल से 1004 मीटर की ऊॅचाई पर स्थित है। ये यहाँ के सबसें चर्चित, महत्तवपूर्ण व प्राचीन शिव मंदिरों में से एक है। यह मन्दिर सरयू व गोमती नदी के तट पर बसा हुआ है तथा इसी मन्दिर के नाम पर ही इस शहर का नाम बागेश्वर रखा गया।
यह हिन्दू धर्म को मानने वालो के लिए भी एक प्रसिद्ध स्थल है। इस स्थल को मार्केंडेय ऋषि की तपोभूमि भी कहा जाता है।
मान्यता के अनुसार मार्केंडेय ऋषि को आशीर्वाद देने हेतु भगवान शिव बाघ के रूप में यहाँ आये थे तभी से इस शहर का नाम बागेश्वर पडा। भगवान शिव यहाँ पर बाध के रूप में निवास करते थे इसलिए इसे व्याघेष्वर के नाम से भी जाना जाता है।
यहाँ सावन के प्रति सोमवार को लोग भगवान शिव की प्रार्थना के लिए यहाँ आते है। इसका निर्माण सन 1602 में चन्द्रवंशी राजा लक्ष्मी चन्द्र ने करवाया था।
7वी सदी से 16 वी सदी तक मन्दिर के अन्दर रखी प्रतिमायें आज भी मन्दिर के अन्दर रखी हुई है जिसमे सें उमा–महेश्वर, पार्वती, महिषासुरमर्दिनी, एकमुखी व चतुर्मुखी शिवलिंग, गणेश, विष्णु, सूर्य की मूर्तिया है जो यह सिद्ध करती है कि यहाँ सातवी सदी के आसपास यहाँ भव्य मंदिर रहा होगा।
मकर संक्रान्ति के दिन यहाँ उतरायणी का प्रसिद्ध मेला लगता है जो बागेश्वर के साथ–साथ पूरे उत्तराखण्ड का सबसे प्रसिद्ध मेला है। इस मंदिर में मुख्य रूप से बेलपत्री की पूजा होती है साथ में चंदन, बछडे, खीर, खिचडी आदि का भोग लगता है।
इस मंदिर के पुजारी रावल जाति के होते है। पहले यहाँ चैरासी के पांडे लोग अनुष्ठान आदि किया गया थे परन्तु बाद में उन्होने ये काम चैरासी के ही जोशी लोगो को सौप दिया था। अब यहाँ जोशी लोग ही धार्मिक अनुष्ठान आदि किया करते है।
इस मंदिर की दूरी राजधानी देहरादून से 470 किमी तथा नई दिल्ली से लगभग 502 कि0मी0 की है। यहाँ से निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है वहाँ से यहाँ तक बस या टैक्सी द्वारा आया जा सकता है।
Chitai Golu Devta Temple
चितई गोलू देवता का मन्दिर उत्तराखण्ड के अल्मोडा जिले में स्थित है। यह चारो और से जंगलो व पहाडो से घिरा हुआ है। इसकी मान्यता देश ही नही अपितु विदेशों तक मे है।
यह बिन्सर वन्य जीव अभ्यारण्य के मुख्य द्धार से 2 किमी की दूरी पर स्थित है। गोलू देवता को न्याय का देवता अथवा न्याय का प्रतीक माना जाता है। जिन व्यक्तियों को न्याय न मिल रहा हो या जिन व्यक्तियों के साथ अन्याय हुआ हो, गोलू देवता इन्हे तुरन्त न्याय दिलाते है।
गोलू देवता को शिव के अवतार के रूप मे पूजा जाता है। गोलू देवता को सफेद पगडी, सफेद कपडो, सफेद शाल के साथ पेश किया जाता है। यहाँ मौखिक रूप से, कागज में तथा स्टाम्प पेपर में लिखकर अर्जीया मन्दिर की दीवारों पर चिपकाई जाती है। इन्ही के द्वारा श्रद्धालु भगवान से अपनी मन्नतें मांगते है तथा अपनी मन्नतें पूरी होने पर इस मन्दिर में घंटिया चढाते है।
यहाँ आपको हर साईज की घंटिया देखने को मिल जायेगी। यह मन्दिर चारों और से घंटियों से भरा हुआ है जहाँ भी देखो आपको सिर्फ घंटिया ही दिखाई देती है इसलिए इसे घंटियों वाला मन्दिर अथवा अर्जियों वाला मन्दिर कहकर भी पुकारा जाता है। यहाँ पर इतनी घंटिया है जितनी विश्व के किसी भी मन्दिर में नही है।
यहाँ की घंटिया न तो बेची जाती है और न ही किसी और इस्तेमाल में आती है यहाँ घंटिया संभाल के अन्दर रख दी जाती है जिससे और घंटियों को बांधने की जगह हो सके।
गोलू देवता को कुमाऊँ क्षेत्र के कई गावों में ईष्ट देवता के रूप में पूजा जाता है। गोलू देवता अथवा गोलज्यू देवता का एक प्रसिद्ध मन्दिर चम्पावत, गैराड, धोडाखाल अथवा बिन्सर में भी स्थित है जिसकी इस मन्दिर के समान ही मान्यता है।
Jageshwsr Dham Temple
उत्तराखण्ड के प्रसिद्व मन्दिरों में से जागेश्वर धाम एक प्रसिद्ध मंदिर है जो अल्मोडा से 35 किमी की दूरी पर स्थित है। यह स्थान अपने सौन्दर्य के लिए विश्व भर में स्थित है।
यह भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है। यहाँ आकर व्यक्तिओं को आद्यात्मिक शान्ति की प्राप्त होती है। इस परिसर के अन्दर लगभग 150 मंदिर है जिसमे एक ही स्थान पर 124 छोटे–बडे मन्दिर है। यह स्थान समुद्रतल से लगभग 6200 फुट की ऊॅचाई पर तथा पवित्र जटागंगा नदी के तट पर स्थित है।
यह स्थान प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण है। यह स्थान चारों और से देवदार के पेडो से ढका हुआ है। उस मन्दिर का निर्माण बडी–बडी पत्थर की शिलाओं को काटकर किया गया है जिसके दरवाजें पर देवी व देवताओं के चित्र बडे–बडे चित्र बने हुए है।
यह मंदिर दक्षिण भारतीय, नेपाली व तिब्बती मंदिरों की बनावट जैसे दिखाई देता है। जागेश्वर धाम भगवान विष्णु द्वारा स्थापित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित है।
यह स्थल भगवान शिव, भगवान विष्णु, मां दुर्गा को समर्पित है, जहाँ देश भर से श्रद्धालु यहाँ अपनी इच्छा पूर्ति हेतु आते है।
इसके अन्दर दांडेश्वर मंदिर, चंडी का मंदिर, कुबेर का मंदिर, जागेश्वर मंदिर, हनुमान मदिर, मृत्युंजय मंदिर, नवगृह मंदिर, पिरामिण मंदिर, सूर्य मंदिर, नंदादेवी मंदिर आदि प्रमुख मंदिर है।
इस मंदिर के विषय मे अभी कोई साक्ष्य नही मिला कि इसका निर्माण कब हुआ है फिर भी मान्यता के अनुसार ये मंदिर 7 वीं से 12 वीं शताब्दी के बीच का रहा होगा तथा कत्यूरी व चंद्र राजवंश के दौरान इनका निर्माण हुआ होगा।
मान्यता के अनुसार आदि गुरू शंकराचार्य ने भी यहाँ के कुछ मंदिरो का निर्माण व कुछ का पुनःनिर्माण भी करवाया था।
यहाँ का मृत्युंज्य मंदिर सबसे पुराना व दंडेश्वर मंदिर सबसे बडा मंदिर है। सावन के माह में विशेषकर सोमवार को बडी संख्या में देश व विदेश से श्रद्धालु यहाँ पूजा व महामृत्युंज्य जप आदि करने के लिए यहाँ आते है।
पुराणो के अनुसार इस मंदिर में मांगी मन्नते उसी रूप में स्वीकार हो जाया करती थी जैसा मन्नत मांगने वाला चाहता था इससें कई लोगो का अहित भी होने लगा था, तब शंकराचार्य ने अपनी शक्ति से इस स्थान को कीलित कर दिया था।
हैलो, दोस्तों मैं पंकज पंत एक ब्लॉगर। दोस्तों लिखने, पड़ने व म्यूजिक (खासतौर से मैगज़ीन जैसे इंडिया टुडे व क्रिकेट सम्राट वगैरह) का शौक पहले से ही था तो सोचा क्यों न कुछ लिखा जाये और लिखा भी वो जाये जिसे पढ़कर पाठको को आनन्द भी आये व उसे पढ़कर उनके ज्ञान में भी कुछ वृद्धि हो सके। परन्तु लिखने के लिए एक लेखन सामग्री की आवश्यकता होती है तो सोचा किस विषय पर लिखा जाये। सोचते हुए दिमाग में आया की क्यों न अपने ही गृह राज्य उत्तराखंड के बारे में लिखा जाये जिसकी पृष्टभूमि बहुत ही विशाल होने के साथ-साथ यहाँ की संस्कृति और सभ्यता भी बहुत विकसित है। वही ये एक शानदार पर्यटक स्थल होने के अलावा धार्मिक दृस्टि से भी परिपूर्ण है। यहाँ हर साल हजारो की संख्या में मेलो व त्योहारों का आयोजन होता रहता है जिसे देखने व इनमे शामिल होने के लिए देश-विदेश से लाखो-करोडो लोग उत्तराखंड आते है व इन मेलों को देखने के साक्षी बनते है। इस कारण मैंने लिखने की शुरुवात की अपने उत्तराखंड से। अपनी इस वेबसाइट में मैंने उत्तराखंड की संस्कृति एवं सभ्यता, उत्तराखण्ड के प्रमुख पर्यटक स्थल, उत्तराखण्ड के प्रमुख मंदिरो, उत्तराखण्ड के प्रमुख नृत्य व संगीत, उत्तराखण्ड के प्रमुख ट्रेक्किंग स्थलों, उत्तराखण्ड के मुख्य डैम, उत्तराखण्ड की झीलों व ग्लेशियर के अलावा यहाँ की प्रमुख पर्वत चोटियों व अन्य विषयो को पाठको के समक्ष प्रस्तुत किया है। जैसे- जैसे मुझे अन्य कोई जानकारी मिलती जाएगी में उन्हें अपने पाठको के समक्ष प्रस्तुत करता रहूँगा। धन्यवाद पंकज पंत
Our travel guides and travel tips will help you make the most of your vacation, whether it’s your first time there or not.
Contact us: pantpankaj1985@gmail.com
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