
उत्तराखण्ड की प्रमुख पर्वत श्रंखलाए व चोटियां
Highest peaks in Uttarakhand
उत्तराखंड को पर्वतो का राज्य कहा जाता है जो चारो और से बडे और विशाल पर्वतो से धिरा हुआ है। उत्तराखण्ड भारत का 11 वां हिमालयी राज्य है जो असम, जम्मू कश्मीर, नागालैंड व अन्य राज्यो के पश्चात अस्तित्व में आया।
यहाँ विश्व के कुछ सबसे विशाल पर्वत व पर्वत श्रंखलाये आती है जिस पर मानव पहुँच चुका है परन्तु यहाँ कई ऐसे पर्वत भी है जो अभी भी राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से मनुष्यो की पहुँच से दूर है जिस पर मनुष्य अब तक नही पहुँच सका है।
यहाँ का सबसे विशाल पर्वत नंदा देवी पर्वत है जो कि समुद्र तल से 7,816 मीटर व लगभग 25,643 फीट की ऊॅचाई पर स्थित है। नंदा देवी पर्वत भारत में के-2 व कंचनजंगा के बाद तीसरी सबसे ऊॅची चोटी है तथा विश्व की 23 वीं सबसे ऊॅची चोटि है। यहाँ की पर्वत श्रंखलाये पर्यटको को अपनी और आकर्षित करती है जिन्हे देखने के लिए प्रतिवर्ष लाखो सैनानी उत्तराखण्ड का रूख करते है।

यहाँ की बर्फ से ढकी हुई पर्वत श्रंखलायें को देखकर पर्यटको को अदभुत आन्नद की प्राप्ति होती है जिस कारण पर्यटक प्रतिवर्ष उत्तराखण्ड आते है जिस कारण पर्यटक यहाँ के रोजगार का भी प्रमुख साधन बन चुका है।
यहाँ की बर्फ से ढकी हुई पर्वत श्रंखलाये, झीले व विश्व प्रसिद्व मन्दिर होने के कारण यहाँ पर अब फिल्मो के निर्माण का कार्य भी शुरू हो चुका है यहाँ पर कई बडे फिल्म निर्माता अपनी फिल्मो का निर्माण करा रहे है।
अभी कुछ समय पूर्व ही विख्यात अभिनेता सुषांत सिंह राजपूत व सैफ अली खान की पुत्री अभिनेत्री सारा अली खान पर निर्मित फिल्म केदारनाथ भी यही पर बनाई गई थी जो बाद मे सुपर हिट हुई थी।
ये फिल्म उत्तराखण्ड के जिला रूद्रप्रयाग स्थित विश्व विख्यात चार धामो मे से प्रमुख केदारनाथ मन्दिर के नाम पर और उसके आसपास की जगहो पर सूट की गई थी। इसके अतिरिक्त यहाँ कई फिल्मे अभी भी निर्माणाधीन भी है जिसका निर्माण अभी भी चल रहा है। फिल्म निर्माण क्षेत्र में यहाँ के बर्फ से ढके हुए पर्वतो, झीलो विश्व प्रसिद्व मन्दिरो (उत्तराखण्ड के मन्दिरो को और अधिक जानने के लिए पढे) व सुन्दर लोकेशनो को देखते हुए उत्तराखण्ड को सर्वश्रेष्ठ फिल्म बनाने की जगह हेतु हाल ही मे प्रथम पुरूस्कार भी मिल चुका है।

कुमाऊ क्षेत्र के प्रमुख पर्वत व उनकी ऊॅचाई
Highest Peaks in Kumaon Region
पर्वत |
समुद्र तल से ऊॅचाई |
|
|
मीटर |
फीट |
नंदा कोट पर्वत |
6,861 |
22,510 |
पंचाचूली द्वितीय |
6,903 |
22,648 |
सिरिंग वी |
6,559 |
21,519 |
राजरंभा पर्वत |
6,539 |
21,453 |
चौधारा पर्वत |
6,510 |
21,358 |
पंचाचूली पॉच |
6,437 |
21,138 |
पंचाचूली प्रथम |
6,354 |
20,846 |
पंचाचूली चतुर्थ |
6,334 |
20,781 |
ब्रहमा पर्वत |
6,321 |
20,738 |
नंदा गौंड |
6,315 |
20,719 |
पंचाचूली तृतीय |
6,312 |
20,709 |
आदि कैलाश |
6,310 |
20,702 |
नंदा पल |
6,306 |
20,689 |
सूली टॉप |
6,300 |
20,669 |
कुचेला धूरा |
6,294 |
20,650 |
नंदा भनार |
6,236 |
20,459 |
पिकॉक पीक |
6,220 |
20,407 |
कालगंगा धूरा |
6,215 |
20,390 |
पी, 6196 |
6,196 |
20,328 |
पी, 6178 |
6,178 |
20,269 |
पी, 6172 |
6,172 |
20,269 |
ईशान पर्वत |
6,120 |
20,079 |
पी, 6120 |
6,120 |
20,079 |
खोली पर्वत |
6,114 |
20,059 |
कलाबलन्द धूला पर्वत |
6,105 |
20,030 |
तेल कोट पर्वत |
6,102 |
20,020 |
टोपी धूरा पर्वत |
6,099 |
20,010 |
बैंटी पर्वत |
6,072 |
19,921 |
कुलारी पर्वत |
6,059 |
19,879 |
डांगथल पर्वत |
6,050 |
19,879 |
नागलिंग पर्वत |
6,041 |
19,820 |
चिकूला वी पर्वत |
6,038 |
19,810 |
नंदाकिनी पर्वत |
6,029 |
19,780 |
सुनंदा देवी पर्वत |
7,434 |
24,390 |
मैकतोली पर्वत |
6,803 |
22,320 |

गढवाल क्षेत्र के प्रमुख पर्वत व उनकी ऊॅचाई
Highest Peaks in Garhwal Region
पर्वत | समुद्र तल से ऊॅचाई | |
| मीटर | फीट |
नंदादेवी पर्वत | 7,816 | 25,643 |
कामेत पर्वत | 7,756 | 25,446 |
माना पीक | 7,272 | 23,858 |
मुकुट पर्वत | 7,242 | 23,760 |
चौखंबा-प्रथम पर्वत | 7,138 | 23,419 |
त्रिशूल पर्वत | 7,120 | 23,360 |
सतोपंथ पर्वत | 7,075 | 23,212 |
दूनागिरी पर्वत | 7,066 | 23,182 |
चौखंबा-द्वितीय पर्वत | 7,058 | 23,156 |
त्रिशूली पर्वत पश्चिम | 7,035 | 23,081 |
चौखबा तृतीय पर्वत | 6,974 | 22,881 |
केदारनाथ पीक पर्वत | 6,940 | 22,769 |
सरस्वती पर्वत प्रथम | 6,940 | 22,769 |
श्री कैलाश पर्वत | 6,932 | 22,743 |
कालंगा पर्वत | 6,931 | 22,740 |
चमराव पर्वत प्रथम | 6,910 | 22,671 |
चंगाबांग पर्वत | 6,864 | 22,520 |
भागीरथी पर्वत | 6,856 | 22,493 |
देवबन पर्वत | 6,855 | 22,490 |
चौखबा पर्वत चतुर्थ | 6,854 | 22,487 |
केदारनाथ डोम पर्वत | 6,831 | 22,411 |
वासुकी पर्वत | 6,792 | 22,283 |
पीलापानी पर्वत | 6,796 | 22,297 |
माना पर्वत प्रथम | 7,794 | 22,290 |
वासुकी पर्वत | 6,792 | 22,283 |
सरस्वती पर्वती द्वितीय | 6,775 | 22,228 |
माना पर्वत द्वितीय | 6,771 | 22,215 |
चंद्रा पर्वत प्रथम | 6,739 | 22,110 |
चंद्रा पर्वत द्वितीय | 6,728 | 22,073 |
माना पर्वत तृतीय | 6,730 | 22,080 |
हाथी पर्वत | 6,727 | 22,070 |
गौरी पर्वत | 6,708 | 22,008 |
मेरू पीक | 6,660 | 21,850 |
चर्तुभुज पर्वत | 6,654 | 21,831 |
खर्चाकुण्ड पर्वत | 6,612 | 21,693 |
नंदा खत पर्वत | 6,611 | 21,690 |
नीलकंठ पर्वत | 6,596 | 2,640 |
गंगोत्री पर्वत द्वितीय | 6,590 | 21,621 |
गंगोत्री पर्वत तृतीय | 6,577 | 21,578 |
बंदरपूछ पर्वत पर्वत | 6,316 | 20,722 |
स्वर्गारोहिणी पर्वत प्रथम | 6,252 | 20,512 |
स्वर्गारोहिणीपर्वत द्वितीय | 6,247 | 20,495 |
स्वर्गारोहिणी पर्वत तृतीय | 6,209 | 20,371 |
श्रीकंठ पर्वत | 6,133 | 20,121 |
बंदरपुछ पर्वत द्वितीय | 6,105 | 22,020 |
कालिंदी पर्वत | 6,102 | 20,020 |
त्रिशूल पर्वत तृतीय | 6,008 | 19,711 |

उत्तराखण्ड कॆं 10 मुख्य पर्वत चोटिया
Top 10 Highest Peaks in Uttarakhand

नंदा देवी पर्वत
Nanda Devi Peak
नंदा देवी पर्वत भारत मे उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत आता है। यह उत्तराखण्ड के गढवाल क्षेत्र मे पडता है। (Nanda Devi Peak is located in Uttarakhand State at Chamoli District) यह हिमालय पर्वत श्रंखला की दक्षिणी–पूर्वी क्षेत्र में स्थित एक प्रसिद्व पर्वत है। इसकी ऊॅचाई (Height of Nanda Devi Peak) समुद्र तल से 25,645 फुट है जो भारत मे के-2 व कंचनजंगा के बाद तीसरे स्थान पर आता है।
यह विश्व की भी 23 वे नम्बर की ऊॅचाई वाली चोटी है। यह चोटी गोरीगंगा व ऋषिगंगा के बीच मे स्थित है। इस पर्वत के दो छोर है जिसमे एक नंदा देवी ईस्ट व दूसरा नंदा देवी वेस्ट कहलाया जाता है।
नंदा देवी को उत्तराखण्ड वासी अपनी देवी के रूप में मानते है। इन्हे हिमालय की पुत्री भी माना जाता है। इन्ही के नाम पर नंदा देवी राजजात यात्रा का शुभारम्भ हुआ जो अब विश्व की सबसे लम्बी धर्मिक यात्रा के रूप में जानी जाती है। यह यात्रा प्रति 12 वर्ष के अन्तराल पर निकाली जाती है जिसे पहाड का कुम्भ कहकर भी सम्बोधित किया ताजा है।
नंदा देवी पर्वत चारो और से बडे–बडे हिमनद व पर्वतो से धिरा हुआ है। यहाँ के चारो और का क्षेत्र बहुत सुन्दर व मनमोहक है जिस कारण इस पूरे क्षेत्र को नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्योग घोषित किया जा चुका है तथा 1988 में यूनेस्को द्वारा भी विश्व धरोहर का सम्मान दिया जा चुका है।
इस पर्वत पर सबसे पहले पहुचॅने का सम्मान ब्रिटिश–अमेरिकन अभियान को जाता है जिसमें नोयल आडेल व बिल तिलमेन शमिल थे, जिन्होने सबसे पहले 1936 को यहाँ पहुचने का रास्ता ढुंढा तथा यहाँ पहुचने वाले पहले व्यक्ति बने। जबकि नंदादेवी ईस्ट पर पहले पहॅुचने का सम्मान पौलेंड को मिला। उन्होने 1939 को पहली बार ये चोटी फतह की।

इसके लगभग 30 वर्ष के बाद भारतीय दल ने एन0 कुमार के नेतृत्व मे पहली बार इस चोटी पर चढने मे सफलता प्राप्त की। नंदा देवी पर्वत श्रंखला के दोनो और हिमनद अर्थात ग्लेश्यिर है जहाँ से बर्फ पिघलने के बाद पिंडरगंगा नामक नदी का रूप ले लेती है जो आगे चलकर अलकनंदा में मिल जाती है। यहाँ पर आने वाले पर्वतारोहणीयो के अनुसार नंदा देवी की चढाई एवरेस्ट से भी कठिन मानी जाती हैं।
नन्दा देवी पर्वत का तापमान: Weather of Nanda Devi Peak- नन्दा देवी का तापमान मुख्यतः माईन्स डिग्री से नीचे ही रहता हे। यहॉ साल के अधिकतर महीनो बर्फ पडती रहती है जिस कारण यहॉ हर जगह बर्फ ही बर्फ रहती है। यहॉ आने का सर्वोतम समय मई से सितम्बर तक रहता है। यहॉ बर्फ अधिक रहने के कारण बर्फीली हवाएँ भी चलती है व ग्लेशियर मे हिमस्खलन भी होता रहता है जिससे यात्रीयो के बर्फ मे दबने का खतरा बना रहता है।

कामेट पर्वत

कामेत पर्वत भारत के उत्तराखण्ड नामक राज्य मे स्थित है। यह गढवाल के चमोली जिले मे स्थित है। (Kamet Peak is situated in Chamoli District) यह गढवाल में स्थित नंदा देवी के बाद दूसरे नम्बर की चोटी है तथा विश्व में इसका 29 वे नम्बर की सबसे ऊॅची चोटी है। यह देखने पर पिरामिण की तरह प्रतीत होता है जिसके शिखर पर दो चोटिया है। यह जांस्कर श्रंखला का एक भाग है जो इस श्रंखला में सबसे ऊॅचा पर्वत है।
इस पर्वत पर चढना बहुत खतरनाक है यहाँ का मार्ग बहुत ही संकरा व तीरछा है। यहाँ की पर बर्फ होने के कारण इस यात्रा में आदमी को फिसलने का खतरा बहुत अधिक रहता है। यहाँ पर पर्वतारोहण करने वाले यात्री रस्सीयो की सहायता से आगे बढते है।
यहॉ पर चढने हेतु पूर्व मे कई प्रयास किये गये जिसकी शुरूआत सर्वप्रथम 1855 में हुई। इसके बाद मे कई लोगो द्वारा यहॉ पर पहुचने के प्रयास किये गए परन्तु सर्वप्रथम 1931 में ब्रिटिश टीम द्वारा फ्रेंक स्मिथ के नेतृत्व में यहाँ पहुचने मे सफलता हासिल की। उनकी टीम मे अन्य एरिक शिप्टन, होल्सवर्थ व लेवा शेरपा शामिल थे।
बाद मे सन 1955 में मेजर नरेन्द्र जुयाल द्वारा नेतृत्व की गई टीम द्वारा इस चोटी पर चढने मे पुनः सफलता हासिल की। यह टीम हिमालय पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग की थी। दार्जिलिंग मे पर्वतारोहण सिखाने हेतु हिमालय पर्वतारोहण संस्थान खोला गया है यहॉ से पर्वतारोहण हेतु कोर्स करने वालो को बेसिक व एडवांस कोर्स करवाया जाता है। इसके पश्चात कई अन्यो द्वारा भी अब ये चोटी फतह की जा चुकी है।
कामेट पीक की ऊॅचाई Height of Kamet Peak– यह पर्वत समुद्र तल से 7,756 मीटर अर्थात 25,446 फुट की ऊॅचाई पर स्थित है। यह तीन पर्वत शिखरो से धिरा हुआ है। जिसके एक और मुकुट पर्वत दूसरी और अबी गमिन पर्वत तथा तीसरी और माना पर्वत स्थित है।

चौखंबा पर्वत

चौखंबा पर्वत भारत के राज्य उत्तराखण्ड मे स्थित है। यह उत्तराखण्ड के गढवाल मे स्थित है। यह गंगोत्री क्षेत्र की गंगोत्री पर्वत श्रंखला मे स्थित है जो इस श्रंखला की सबसे ऊॅची चोटी है। यह विश्व की सबसे खूबसूरत पर्वत चोटियो मे से एक है जिन्हे देखने प्रतिवर्ष हजारो सैलानी उत्तराखण्ड पहुचते है।
चौखंबा पीक की ऊॅचाई Height of Chaukhamba Peak– जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है चौखंबाA ये चार चोटियो के समूह वाला पर्वत है जिसमे चार अलग–अलग चोटी है जिसे चौखंबा प्रथम, चौखंबा द्वितीय, चौखंबा तृतीय व चौखंबा चतुर्थ है जिसमे चौखंबा प्रथम की ऊॅचाई 7138 मीटर अर्थात 23,419 फुट, चौखंबा द्वितीय की ऊॅचाई 7,070 मीटर अथवा 23,196 फुट, चौखंबा तृतीय की ऊॅचाई 6,995 अथवा 22,949 फुट व चौखंबा चतुर्थ की ऊॅचाई 6,854 मीटर अर्थात 22,487 फुट है।
इन चारो चोटियो के अलावा शिवालिक पर्वत चोटी भी इस पर्वत श्रंखला का एक महत्तवपूर्ण भाग है। चौखंबा पर्वत श्रंखला अपने मनमोहक दृश्य के कारण पूरे देश और विदेश में प्रसिद् है। यहॉ का चौखंबा व्यू पाइंट से हिमालय और यहॉ के ग्लेशियरो का पूरा दृश्य देखा जा सकता है। ये चारो और से ओक और बुरांस के पेडो से धिरा हुआ है। यह स्थान अपनी सुंदरता के कारण ये जगह घूमने जाने वालो और पिकनिक जाने वालो के लिए एक प्रिय स्थान है।
इस स्थान पर जाने के प्रयत्न बहुत पहले से ही चल रहे है परन्तु इसमे कई बार असफलता ही हासिल हुई परन्तु प्रथम बार स्विस ग्रुप द्वारा 13 जून 1952 लूसिन जोर्ज व विक्टर रसेनबर्गर को यहॉ पर चढने मे सफलता हासिल हुई। यहॉ पर पहुचने के लिए पहले बद्रीनाथ धाम तक आना होता है जिसके बाद यात्री यहॉ से ही पैदल चढाई प्रारम्भ होती है।

त्रिशूल पर्वत
Trishul Peak

त्रिशूल पर्वत भारत के एक राज्य उत्तराखण्ड मे स्थित है। यह बागेश्वर के जनपद बागेश्वर से कुछ दूरी पर स्थित है। ये पर्वत तीन शिखरो से बना हुआ है जिस कारण भगवान शिव के अस्त्र के नाम पर इसका नाम त्रिशूल पडा।
यहॉ तीन पर्वत होने के कारण इनमे से एक को त्रिशूल प्रथम, दूसरे का त्रिशूल द्वितीय व तीसरे को त्रिशूल तृतीय कहा जाता है।
त्रिशूल पीक की ऊॅचाई Height of Trishul Peak– इसमें से त्रिशूल प्रथम की समुद्र तल से ऊॅचाई 7,120 मीटर, त्रिशूल द्वितीय की ऊॅचाई 6,690 मीटर तथा तीसरे की ऊॅचाई 7,007 मीटर है।
इस पर्वत को पहले यहॉ के लोग पवित्र पर्वत मानते है इस कारण जब यहॉ पर यात्रा शुरू हुई जो प्रारम्भ मे यहॉ के पोर्टर पर्वत पर चढने से मना कर दिया करते थे। उनकी नजरो में यह एक पवित्र जगह थी जो भगवान शिव के पवित्र त्रिशूल को समर्पित था तथा उन्ही के नाम पर इसका नाम त्रिशूल पर्वत पडा था। इसका सबसे मनोरम दृश्य बेदनी बुग्याल व कौसानी से स्पष्ट देखा जा सकता है। यहॉ पर कई ऐसे व्यू पाइंट है जहॉ से त्रिशूल पर्वत का मनोरम दृश्य देख जा सकता है।
इस चोटी पर चढने के पहले भी कई प्रयास किये गये परन्तु सर्वप्रथम 1907 को इस चोटी पर दो ब्रिटिश पर्वतारोहियो व कुछ गाइडो द्वारा यहॉ चढने का प्रयत्न किया गया व सफलता पाई। उन्हे रास्ते मे हिमनद व बर्फ की ऊॅची –ऊॅची चटटाने मिली परन्तु उनसे पार पाकर उन्होने वहा सफलतापूर्व चढाई पूरी की थी। उस समय तक त्रिशूल से ऊची चोटी को कोई मनुष्यो छू तक नही पाया था।

उन दोनो यात्रियो द्वारा यहॉ से पैराग्लाइडिंग भी की थी। वहॉ का दृश्य बहुत ही मनोरम होता है। इसके पश्चात 1987 के आसपास यूगोस्लोवाकिया के एक दल द्वारा इन पहाडो पर चढाई प्रारम्भ की। इसके बाद उन्होने एक साथ ही इन तीनो शिखरो पर एक साथ यात्रा पूरी की। चढाई के दौरान उन्होने कुल्हाडी द्वारा बर्फ के बने रास्ते को खोदकर चढने के लिए रास्ता बनाया।
यहॉ एक रहस्यमयी रूपकुण्ड नामक जलाशय इस पर्वत के नीचे स्थित है। उस स्थान पर खुदाई के दौरान कई मानवो व जानवरो के कंकाल वहॉ पर मिले थे। बाद मे गिनती करने के पश्चात यहॉ कुल मिलाकर 600 से भी ज्यादा मानवो और घोडो के कंकाल बरामद हुए।

गौमुख पर्वत
Gomukh Peak
गौमुख पर्वत भारत के उत्तराखण्ड राज्य में स्थित है। यह पर्वत जिला उत्तरकाशी के गंगोत्री नामक पवित्र मन्दिर से 18 किमी0 की दूरी पर स्थित है। यही से पवित्र भागीरथी नदी निकलती है जो आगे चलकर पवित्र गंगा नदी बनकर निकलती है।
यह हिन्दुओं के लिए बहुत ही पावन स्थल है। यहॉ आने वाले श्रद्वालु यहॉ आकर पवित्र गंगा नदी में स्नान कर मोक्ष की कामना करते है। स्वर्ग से आकर गंगा नदी सर्वप्रथम इसी स्थान पर पृथ्वी पर आकर गिरी थी। इस कारण इस स्थान का नाम गंगोत्री पडा। गंगोत्री समुद्र तल से लगभग 13,200 फुट व लगभग 4,023 मीटर की ऊॅचाई (Height of Gomukh Peak) पर स्थित है।
मान्यता के अनुसार राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजो की आत्मा की शान्ति व उनके उद्धार करने हेतु सुमेरू पर्वत पर तपस्या की थी जिनकी तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा नदी का पृथ्वी पर अवतरण हुआ जिसे भगवान शिव ने अपनी जटाओ मे बांध लिया था परन्तु राजा भगीरथी के पुनः आग्रह करने पर शिवजी ने अपनी जटाये खोल दी जिस कारण गंगा दस धाराओ मे विभक्त हो गई। उन में से एक धारा यहॉ गोमुख से प्रकट हुई। अन्य शेष धाराये अन्य स्थानो पर निकलने लगी तथा आगे जाकर देवप्रयाग में मिलती है तथा वही से गंगा अपने असली स्वरूप में आगे को बढती है।
गंगा नदी को अपनी जटाओं में बांधने के लिए भगवान शिव गाय की मुद्रा में बैठ गये थे इस कारण इस जगह का नाम गौमुख पडा। गोमुख पर्वत में गाय के मुहॅ के आकार की चटटान है वहॉ से पवित्र गंगा नदी निकलती है इसलिए भी इसे गौमुख पर्वत कहा जाता है।
गोमुख से आगे पर्वतारोहण तपोवन के लिए भी जा सकते है। तपोवन से गौमुख पर्वत का सुन्दर व मनमोहक नजारा सुन्दर व स्पष्ट देखा जा सकता है।
गौमुख हिमनद पर्वत लगभग 24 किमी लम्बा व 6 मीटर चौडा है जो भारत मे सियाचीन के बाद दूसरा बडा हिमनद है।
ताजा शोध के पश्चात पता लगा है कि मौसम मे बदलाव व ग्लोबल वार्मिंग के कारण गौमुख पर्वत के आगे का हिस्सा पिधलने के कारण क्षतिग्रस्त हो चुका है तथा उसके आगे का मुहॅ बंद हो चुका है जिस कारण भागीरथी नदी गोमुख से न निकलकर कही और से बह रही है। गोमुख पर्वत ट्रैकिंग करने वाले पर्वतारोहणो के लिए भी एक सुन्दर अनुभव होता है। गोमुख जाने के रास्ते पर कई सारे भोज व चीड के पेड पाये जाते है। वहॉ जाने हेतु पर्वतारोहणीयों को डी0एफ0ओ0, उत्तरकाशी की अनुमति लेनी पडती है जो एक दिन मे 150 लोगो को जाने की अनुमति प्रदान करते है।

केदारनाथ पर्वत
Kedarnath Peak

केदारनाथ पर्वत भारत के उत्तराखण्ड राज्य में स्थित है। यह उत्तराखण्ड के गढवाल के हिमालयी क्षेत्र में स्थित है। यह जिला उत्तरकाशी में स्थित है तथा समुद्र तल से इसकी ऊॅचाई लगभग 6940 मीटर अथवा 22764 फुट है। Height of Kedarnath Peak यहॉ केदारनाथ और केदारनाथ गुम्बद नाम के दो पर्वत है जिसमे से केदारनाथ गुम्बद यहाँ की मुख्य चोटी से 2 किमी की दूरी पर स्थित एक छोटा पर्वत है।
केदारनाथ गुम्बद मे बर्फ से बनी हुई बडी–बडी ढलाने है यहॉ लोग स्कीइंग का आन्नद लेते है। केदारनाथ पर्वत गंगोत्री ग्लेशियर के दक्षिणी भाग मे आता है जो इस दक्षिणी भाग की सबसे ऊॅची चोटी मानी जाती है जबकि केदारनाथ गुम्बद इस भाग की तीसरी सबसे ऊॅची चोटी है। केदारनाथ चोटी पैराग्लाईडिंग, स्कीईंग, साइक्लिइंग, रैपलिंग करने वालो के लिए एक बेहतरीन स्थान है। केदारनाथ चोटी के तल पर ही विश्व प्रसिद्ध चार धामो मे से एक केदारनाथ मन्दिर स्थित है जो समुद्र तल से लगभग 3562 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं।
यह हिमालय पर ट्रैक करने वालो के लिए एक पसंदीदा जगह है। केदारनाथ पर्वत को सबसे पहले 1947 को एक स्विस टीम द्वारा जिसको लीड आन्द्रे रोस कर रहे थे, ने फतह किया था जबकि केदारनाथ गुम्बद को पहली बार हंगेरियन ग्रुप द्वारा 1989 को फतह किया गया था।
केदारनाथ पर्वत जाने के लिए उत्तरकाशी होते हुए सबसे पहले गंगोत्री, भोजवासा, गौमुख, तपोवन होते हुए केदारनाथ पर्वत के लिए जाया जा सकता है।

पंचाचूली पर्वत
Panchachuli Peak

पंचाचूली पर्वत भारत के एक राज्य उत्तराखण्ड में स्थित है। यह पर्वत उत्तराखण्ड के उत्तरी कुमाऊँ के क्षेत्र में पडता है। यह कुमाऊँ के पिथौरागढ जिले के अन्तर्गत आता है। पंचाचूली पर्वत पांच पर्वत शिखरो का एक समूह है जो अलग–अलग ऊॅचाई के है जो अलग अलग नामो से प्रसिद्ध है।
मान्यता के अनुसार पंचाचूली पर्वत दो नामो से मिलकर बना है पंचा और चुली। जिसमें पंचा का अर्थ पांच से तथा चूली का अर्थ चिमनी से है। यहॉ पांडवो द्वारा स्वर्ग जाने से पहले इन्ही पांच चोटियों पर अपने लिए अन्तिम बार खाना इन्ही पांच चोटियो पर बनाया था। ये पांच पर्वत पांच पांडवो युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल व सहदेव के प्रतीक स्वरूप है।
दूसरी अन्य मान्यता के अनुसार पहले ये क्षेत्र नेपाल के अन्तर्गत आता था। नेपाली भाषा में पंचा का अर्थ पांच व चूली का अर्थ चोटी से है अर्थात इन्ही नामो से इसका नाम पंचाचूली चोटी पडा।
पंचाचूली पर्वत चारो और से विशाल पहाडो व हिमनद से धिरा हुआ है जिसके पूर्व की दिशा मे सोना हिमनद और ओला हिमनद तथा पश्चिम मे उत्तरी बाल्टी हिमनद व उसका पठार स्थित है। पंचाचूली का सबसे सुन्दर दृश्य चैकोडी व मुन्स्यारी से देखा जा सकता है। वहाँ से पांच एक साथ खडे पर्वत आसानी से यात्रीयो को पहचान मे आ जाते है। वहाँ से एक तरफ वहा के सुन्दर गांव व दूसरी तरफ पंचाचूली की खूबसूरत चोटिया दिखाई देती है।
वहाँ का सुन्दर, शान्त व शुद्ध हवा वहाँ आने वाले यात्रियो का मन मोह लेती है तथा वहाँ पर दुबारा आने का विचार बरबस ही यात्रियो के मन मे बार बार आता है। वहाँ सूर्यास्त का दृश्य बहुत ही मनभावक होता है जो बार बार अपना रंग बदलता रहता है।
इन पांच चोटियो मे से कुछ पर मनुष्य जा चुके है परन्तु कुछ ऐसे भी है जिस पर मानव के पैर अभी तक नही पहुचे है। पंचाचूली प्रथम पर प्रथम बार आई0टी0बी0पी0 द्वारा हुकूम सिंह और उनके दल द्वारा पहली बार 1972 को फतह किया था। पंचाचूली द्वितीय इस समूह के साथ साथ कुमाऊ क्षेत्र की भी सबसे बडी चोटी है जिस पर प्रथम बार आई0टी0बी0पी0 द्वारा महेन्द्र सिंह और उनके दल द्वारा पहली बार 26 मई 1973 को फतह किया था।
पंचाचूली तृतीय पर्वत पर चढने मे अभी तक कोई कामयाब नही हो पाया है अपितु सन 1996 व 1998 को इन चोटियो पर चढने का प्रयत्न जरूर किया गया था। पंचाचूली चतुर्थ पर प्रथम बार न्यूजीलैंड के एक दल ने जान नैनकेरविस के साथ सन 1995 को यह पर्वत फतह किया था तथा पंचाचूली पंचम पर पहली बार भारतीय–ब्रिटिश दल के क्रिस बोनिन्गटन व हरीश कापडिया द्वारा 1992 को यह पर्वत फतह किया गया था।
पंचाचूली पर्वत की ऊचाई: Height of Panchachuli Peak-
ये पर्वत पंचाचूली–प्रथम, पंचाचूली–द्वितीय, पंचाचूली–तृतीय, पंचाचूली–चतुर्थ, पंचाचूली–पंचम के नाम से प्रसिद्ध है। जिसमे पंचाचूली प्रथम की ऊचाई 6,355 मीटर, पंचाचूली–द्वितीय की ऊचाई 6,904 मीटर, पंचाचूली–तृतीय की ऊचाई 6,312, पंचाचूली–चतुर्थ की ऊचाई 6334 व पंचाचूली–पंचम की ऊचाई 6437 मीटर है।

नीलकंठ पर्वत
Neelkanth Peak

यह पर्वत भारत के एक राज्य उत्तराखण्ड मे स्थित है। यह उत्तराखण्ड के चमोली जनपद मे स्थित है। यह पर्वत हिन्दुओ के पवित्र मन्दिर बद्रीनाथ धाम के ऊपर स्थित है। जिसे गढवाल की रानी कहकर भी सम्बोधित किया जाता है। यह पर्वत नर और नारायण पर्वत के बीच मे स्थित है। गढवाल की खूबसूरती इस पर्वत के बारे मे बताये बिना अधूरी है।
नीलकंठ पर्वत दो शब्दो से मिलकर बना है नील और कंठ अर्थात नीलकंठ। यह पर्वत भगवान शिव को समर्पित है। यह पर्वत दूर से देखने पर पिरामिण की तरह प्रतीत होता है जिस कारण ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान शिव स्वयं इस स्थान पर बैठे हुए है। ये लगभग 10 किमी का ट्रैक उत्तराखंड के सबसे सुन्दर ट्रैक्स उत्तराखण्ड के अन्य ट्रैक्स के बारे मे और ज्यादा जानकारी के लिए पढे में से एक है।
यह खूबसूरत पर्वत समुद्र तल से लगभग 6,597 मीटर की ऊॅचाई पर स्थित है तथा अलकनंदा नदी से 3474 मीटर की ऊॅचाई Height of Neelkanth Peak (नीलकंठ पर्वत की ऊॅचाई) पर स्थित है। एक अंगे्रज पर्वतारोहिणी द्वारा इस पर्वत को सिक्किम स्थित सिनोल्चू पर्वत के बाद भारत का सबसे सुन्दर पर्वत कहा गया था। इसके उत्तर–पश्चिम दिशा मे सतोपंथ ग्लेशियर आता है जो समुद्र तल से 2500 मीटर की दूरी पर स्थित है। दक्षिण–पश्चिम की तरफ पनपटिया ग्लेशियर, पश्चिम की तरफ गंगोत्री ग्लेशियर आते है।
इस पर्वत पर जाने वालो में सबसे पहले कन्हैया लाल, दिलिप सिंह, नीमा दोरजे और सोनम पुलजर आदि शामिल थे जो यहाँ सर्वप्रथम 1974 को पहुचे थे। तब से इस पर्वत पर अब तक असंख्या लोग पहुच चुके है। ये सब भारतीय–तिब्बत पुलिस बल के थे। यहाँ जाने के लिए सबसे पहले आपको बद्रीनाथ पहुचना होता हैं वहाँ से माना, हनुमान चटटी, लक्ष्मी वन से होते हुए आप नीलकंठ चोटी के बैस कैंप तक पहॅुच सकते है।

बंदरपूछ पर्वत
Bandarpunch Peak

बंदरपूछ पर्वत भारत देश के एक राज्य उत्तराखण्ड में स्थित है। यह उत्तराखण्ड के गढवाल क्षेत्र में जिला उत्तरकाशी में स्थित है। इसी के पश्चिम क्षेत्र में यमुनोत्री हिमनद से ही यमुना नदी का उदगम होता है। यह पर्वत देखने मे बहुत सुन्दर प्रतीत होता है जिस पर चारो तरफ बर्फ से घिरी चोटियां दिखाई देती है। बंदरपूछ पर्वत दूर से देखने पर बंदर की पूछ की तरह प्रतीत होता है। इसलिए इसका नाम हिन्दुओ के पवित्र व पूजनीय हनुमान जी के नाम पर बंदरपूछ पर्वत पडा।
बंदरपूछ की समुद्र तल से ऊॅचाई– Height of Bandarpunch Peak: बंदरपूछ पर्वत दो पर्वतो बंदरपूछ–एक व बंदरपूछ दो से मिलकर बना है। जिसमें बंदरपूछ एक, बंदरपूछ दो से ऊॅचाई में बडा है। यहाँ बंदरपूछ एक की समुद्र तल से ऊॅचाई 6316 मीटर है वही बंदरपूछ दो की ऊॅचाई समुद्रतल से 6102 मीटर है। बंदरपूछ पर्वत श्रेणी आपस में मिलकर तीन पर्वत शिखरो की श्रंखला बनाते है जिसमे बंदरपूछ एक व बंदरपूछ दो के अलावा कालानाग पर्वत भी है जिसकी ऊॅचाई समुद्र तल से 6387 मीटर की ऊॅचाई पर स्थित है।
बंदरपूछ दो को सफेद चोटी अथवा सफेद पर्वत कहकर भी पुकारा जाता है जबकि कालानाग पर्वत को काला चोटी अथवा काला पर्वत कहकर भी पुकारा जाता है। बंदरपूछ ग्लेशियर लगभग 12 किमी लम्बा है।
मान्यता के अनुसार जब रावण साता माता को अगुवा करके लंका ले गया था तब हनुमान जी माता सीता को बचाने के लिए लंका चले गये थे। वहाँ पर रावण के कहने पर उनकी सेना ने हनुमान जी की पूछ मे आग लगा दी गई उस आग का बुछाने के लिए हनुमान जी इसी पर्वत पर आये थे तब ही से इस पर्वत का नाम बंदरपूछ पर्वत पडा। दूर से देखने पर भी ये बंदर की पॅूछ की तरह ही प्रतीत होता है।
इस पर्वत पर सबसे पहले मेजर जनरल हेराल्ड विलियम्स और उनकी टीम मे शमिल तेंजिंग नार्वे, सर्जेन्ट राय, शेरपा सिरिंग ने सन 1950 मे इस चोटी मे विजय प्राप्त की थी। इस यात्रा मे जाने के रास्ते पर आपको बहुत सारे बर्फ से ढके पर्वत, धने जंगल व खडी चढाई आदि आते है।

आदि कैलाश पर्वत
Adi Kailash Peak

आदि कैलाश पर्वत भारत देश मे विराजमान है। यह भारत के उत्तराखण्ड राज्य के पिथौरागढ नामक जिले में आता है। यह हिन्दुओ के लिए एक पवित्र पर्वत है जिसका उल्लेख पुराणो में भी मिलता है। यह पर्वत भगवान शिव को समर्पित है।
आदि कैलाश पर्वत को छोटा कैलाश, शिव कैलाश, जोंगलिंगकोंग पर्वत, आदि कैलाश व और भी कई अन्य नामो से कहकर सम्बोधित किया जाता है। यह पर्वत ओम पर्वत के बिल्कुल निकट है तथा ओम पर्वत और आदि कैलाश हिन्दुओ के पवित्र तीर्थ स्थल है। यह पर्वत समुद्र तल से लगभग 6191 मीटर अर्थात 14,500 फुट (Height of Adi Kailash Peak) की दूरी पर स्थित है।
इस यात्रा के बीच में बर्फ से ढके पहाड, खूबसूरत झीले, धने जंगल, जंगली फल व फूल तथा वनस्पति आदि मिलते है जो यात्रीओं को बरबस ही अपनी और आकर्षित करने का काम करते है।
इस यात्रा का अधिकांश भाग कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग के बीच मे ही पडता है जिसकी यात्रा की शुरूआत जनपद पिथौरागढ स्थित धारचुला से होती है। ये स्थल ट्रैक पर जाने वालो के लिए भी एक अदभुत रहता है जहाँ बीच में सुन्दर गांव, जंगल, बर्फ से ढके हुए पहाडो का अलग ही आन्नद रहता है जिसे यात्री जीवन भर नही भूल पाते है।

यह ट्रैक लगभग 76 कि0मी0 लम्बा है जिस पर आने व जाने हेतु लगभग 12 दिन व 11 रात्रि लगते है। छोटा कैलाश के तल पर ही पार्वती लेक व गौरीकुण्ड स्थित है जो हिन्दुओ के लिए भी एक पवित्र स्थान है। आदि कैलाश पर्वत ब्रहमा पर्वत और सिन ला पास के निकट स्थित है। यह पर्वत पवित्र ज्योलिंगकोंग झील जोकि कुटी गांव मे स्थित है यहाँ एक प्राचीन शिव मन्दिर भी है वहाँ से 17 किमी0 की दूरी पर स्थित है।
इस पर्वत पर चढने का पहला प्रयत्न सबसे पहले भारत–आस्ट्रेलिया–ब्रिटिश व स्कोटिश दल द्वारा सितम्बर से अक्टूबर 2002 के दौरान किया था जिसमें मार्टिन मोरान, टी0 रैंकिन, एम0 सिंह, एस0 वार्ड, ए0 विलियम्स और आर0 ओसडिन द्वारा किया गया था जिस में वो नाकाम रहे थे। वो वहाँ की बर्फबारी और कठिन परिस्थितियो के कारण वहाँ से 200 मीटर अथवा 660 फीट की दूरी से कम रह गये थे तथा भारी बर्फबारी व प्रतिकूल मौसम के कारण वही से वापस आ गए थे।
पहली बार आदि कैलाश पर्वत पर सफल चढाई 8 अक्टूबर 2004 को ब्रिटिश–स्कोटिश–अमेरिकन दल द्वारा जिसमें टिम वुडवर्ड, जैक पियर्स, ऐंडी पर्किन्स, जेसन हुबर्ट, मार्टिन वेल्च, अमांडा जोर्ज और पाल ज्योसकी शमिल थे, ने पूरी की थी।
उत्तराखण्ड की प्रमुख पर्वत चोटियो के चित्र
Pics of Himalayan Peak in Uttarakhand






7 comments
Fantastic post but I was wondering if you could write a litte more on this subject?
I’d be very grateful if you could elaborate a little bit further.
Thanks!
Hello
Tnx for appreciating my article. Keep continue to read my blog at http://hindi.worldtravelfeed.com
Tnx
From
Pankaj pant
[…] Peaks in Uttarakhand […]
[…] Peaks in Uttarakhand […]
[…] Peaks in Uttarakhand […]
[…] Peaks in Uttarakhand […]
[…] Peaks in Uttarakhand […]