किन्नर कैलाश ट्रैक
Kinner Kailash Trek
भगवान शिव को पूजने वालो की दुनिया में कोई कमी नहीं है। भारत देश के साथ साथ विदेशो में भी उनके भक्तो की संख्या लाखो व करोडो में है। वही भगवान शिव के मंदिर भी ऐसी जगह बने हुए है जहाँ साधारण पुरुष आसानी से नहीं पहुंच पाता है।
इन्ही में से एक दुर्गम स्थल है किन्नर कैलाश। जिसमे आने व जाने में 32 किमी0 का सफर करना पड़ता है परन्तु ये सफर बहुत दुर्गम जगहों से होकर जाता है।
किन्नर कैलाश हिमाचल के किन्नौर जिले में स्थित है। किन्नर का अर्थ आधा किन्नर और आधा ईश्वर से होता है। मानसरोवर के कैलाश के बाद किन्नर कैलाश को दूसरा कैलाश माना जाता है। इसे किन्नौर का कैलाश कहकर भी जाना जाता है जो समुद्र तल से 24,000 फ़ीट की ऊंचाई पर विराजमान है। भगवान शिव के दर्शन हेतु कैलाश मानसरोवर यात्रा के बाद दूसरी सबसे मुश्किल चढ़ाई मानी जाती है। यहाँ जाने के के लिए अत्यन्त दुर्गम व कठिन दर्रो से होकर जाना पड़ता है।
यह यात्रा आधिकारिक तौर पर 11 दिन की होती है जो अगस्त व सितम्बर माह में होती है। यात्री अलग–अलग बैच में इस यात्रा में जाते है। इसके अतिरिक्त धार्मिक प्रवर्ति के लोग यहाँ पर स्वयं ही अलग–अलग माह में आते–जाते रहते है परन्तु उस समय पर यहाँ जाना खतरे से भरा हुआ रहता है। अन्य समय पर यहाँ पर भारी मात्रा में बारिश व भूस्खलन का खतरा बना रहता है। उस समय कोई सरकारी सेवा भी उस रास्ते पर नहीं मिलती व सड़के भी ख़राब रहती है जिस कारण पर्यटको को अन्य किसी महीने में यहाँ न जाने की सलाह दी जाती है।
यह यात्रा हिन्दु धर्म के साथ बौद्ध धर्म के लोगो के लिए भी आस्था का केंद्र मानी गई है। हिमालय को कई देवी व देवताओ का घर भी माना गया है। हिमालय से ही पवित्र गंगा नदी का उद्गम होता है वही हिन्दुओं का पवित्र मंदिर केदारनाथ धाम व कैलाश मानसरोवर व मानसरोवर झील भी हिमालय में ही स्थित है।
हिमालय ही विश्व का सबसे बड़ा बर्फ का मैदान है जिसकी लम्बाई लगभग 45,000 किमी से ज्यादा है।हिमालय पर्वत धार्मिक दृस्टि से महत्वपूर्ण होने के साथ–साथ कई खेलो व पर्यटन गतिविधियों के लिए भी उचित स्थान है वही ट्रैकिंग को पसंद करने वालो के लिए भी एक आदर्श स्थल है। यहाँ हर साल हजारो लाखो पर्यटक हिमालय में अलग–अलग किस्म की गतिविधियों के लिए आते है व आनंद की प्राप्ति करते है।
इसी हिमालय पर्वत पर स्थित है किन्नर कैलाश। ये स्थल 1993 से पहले पर्यटकों के लिए बंद था परन्तु 1993 के बाद इसे पर्यटको के लिए खोल दिया गया। इस स्थान पर भगवान शिव की लगभग 79 फुट अथवा 40 फ़ीट ऊंची तथा चौड़ाई 16 फ़ीट ऊंची पत्थर की चट्टान है जिससे हिन्दू धर्म व बौद्ध धर्म को मानने वाले शिवलिंग मानते है।
इसी पत्थर की चट्टान रूपी शिवलिंग के दर्शन हेतु भारी संख्या में हिन्दू व बौद्ध धर्म को मानने वाले हजारो की संख्या में यहाँ पर आते है। दोनों ही धर्मो को मानने वाले लोगो की इस शिवलिंग में गहरी आस्था है खासकर हिन्दुओं के लिए ये स्थल देव स्थल के समान माना गया है। हिन्दू व बौद्ध धर्म के लोग इस शिवलिंग की चारो और परिकर्मा कर अपने आपको धन्य मानते है वही भगवान शिव भी उनकी हर मुरादे पूरी करते है। यहाँ पर भगवान शिव द्धारा शीतकालीन प्रवास पर आये थे तथा कई सालो तक यहाँ पर रूककर तपस्या की थी।
मान्यता के अनुसार पहले इस स्थान को इन्द्रकील पर्वत के नाम से जाना जाता था। इसी स्थान पर भगवान शिव और अर्जुन के बीच में भयंकर युद्ध हुआ था तथा अर्जुन को भगवान शिव द्धारा पशुपात अस्त्र की प्राप्ति भी इसी स्थल पर हुई थी। यही पर पांडवो द्धारा अपने जीवन काल का अंतिम समय व्यतीत किया था वही भगवान कृष्ण के पोते अनिरुद्ध का विवाह भी देवी उषा के साथ यही पर हुआ था।
Things to Carry
साथ ले जाने वाली वस्तुएँ
किन्नर कैलाश ट्रैक पर जाते समय आपको स्वयं सावधानी बरतने के साथ रोजाना के प्रयोग होने वाली जरूरत की चीजों को भी अपने साथ ले जाना आवश्यक होता है। साथ ही आपको छोटी मोटी शारीरिक परेशानियों के लिए सर दर्द, पैट ख़राब व अन्य रोगो के उपचार हेतु फर्स्ट ऐड की चीजे व दवाइयां भी जरूर ले जानी चाहिए ताकि आवश्यकता अनुसार जरूरत के समय ये प्रयोग में लाई जा सके।
वहाँ का मौसम प्रति घंटे के हिसाब से बदलता रहता है जिस कारण वहाँ ठण्ड भी अधिक रहती है। इस कारण आपको ठण्ड व बारिश से बचाव हेतु रैनकोट, फुल स्लीव्स पतली जैकेट्स, मंकी कैप, ट्रैकिंग शूज, गर्म मोज़े, मफलर, तौलिए, धुप से बचाव हेतु अच्छे किस्म के चश्मे, कोल्ड क्रीम, लिप बाम, सनस्क्रीन लोशन, एल०ई०डी टॉर्च, गर्म पानी की बोतल, ट्रैकिंग पोल, सिरदर्द की दवाइयाँ जैसे क्रोसिन, डिस्प्रिन, कॉटन, बैंड-ऐड, मूव स्प्रे, गौज, क्रैप बैंडेज आदि चीजे है जो आपको ट्रैक पर जाते समय अपने साथ रखनी चाहिए। इनकी जरूरत आपको ट्रैक पर जाते वक्त कभी भी पड़ सकती है।
यात्रा कार्यक्रम
Itineraryप्रथम दिवस: थांगी से लाम्बर(9,678 फ़ीट,10 किमी)
दूसरा दिवस: लाम्बार से चारांग(11319 फ़ीट)
तीसरा दिवस: चारांग से ललांति(14108 फ़ीट, 8 किमी)
चौथा दिवस: ललांति से चितकुल
पांचवा दिवस: चितकुल से रक्चम
छटवा दिवस: रक्चम से शिमला
How to reach Kinner kailash Trek
किन्नर कैलाश ट्रैक पर कैसे जायेपोवारी से गुफा: आपके पहले दिन की यात्रा पोवारी से शुरू होकर तिंगलिंग तक जाती है। पोवारी सतलुज नदी के किनारे पर स्थित है। यही से नदी के साथ साथ ऊपर जंगल की और खड़ी चढ़ाई शुरू होती है। यहाँ आप को भारत का सर्वश्रेस्ट किस्म का सेब मिलता है। यहाँ से किन्नर कैलाश की कुल दूरी 16 किमी के आसपास पड़ती है परन्तु ये 16 किमी का रास्ता बहुत दुर्गम जगहों से होकर जाता है जिसमे बीच में दो विशाल दर्रे व बड़े बड़े बोल्डरो व नदियों के ऊपर बने पुलों को पार करके जाना होता है।
रास्ते में आपको वन विभाग के गेस्ट हॉउस भी रहने को मिल जायेंगे अन्यथा आप यहाँ से 2 किमी आगे गुफा नामक स्थान पर भी रह सकते है। गुफा एक ऐसा स्थल है जहाँ पर एक बड़ी सी गुफा बनी हुई है। ये गुफा काफी बड़ी है अगर आपके पास स्लीपिंग बैग है तो आप इस गुफा में आसानी से रात गुजार सकते है।
इस स्थान पर ठण्ड भी बहुत अधिक रहती है तथा रात के समय पर तापमान भी शून्य से नीचे चला जाता है इस कारण आपको गर्म कपडे साथ में रखने चाहिए।
गुफा से गौरीकुंड: गुफा से गौरीकुंड तक की दूरी लगभग 4 किमी के आस पास पड़ती है जिसमे जाने में 5 से 6 घंटे तक का समय लग जाता है। इस रास्ते पर पानी की उपलब्धता बहुत कम है। पूरे रास्ते पर आपको 2 या 3 जगहों पर ही आपको पानी की सुविधा मिल पायेगी। इसलिए आपको सलाह दी जाती है की अपने साथ ज्यादा सामान न ले जाकर पानी की बोतल व खाने के लिए बिस्कुट, नमकीन के पैकेट साथ ले जाये। ये आपको रास्ते में चलने हेतु मदद भी करते है व आपको समय समय पर ऊर्जा भी प्रदान करते है।
गुफा से कुछ दूर तक तो रास्ता अच्छा है परन्तु उसके बाद यहाँ पर धीरे-धीरे पेड़-पौधे व वनस्पतियाँ खत्म होने लगती है तथा आपको बड़े बड़े बोल्डरो से गुजरते हुए जाना होता है। इनसे गुजरते हुए आप गौरीकुंड तक पहुंच सकते है। यहाँ यात्रा स्नान व कुछ देर आराम भी कर सकते है।
गौरीकुंड से किन्नर कैलाश: यहाँ से ऊपर आपको कड़ी चढ़ाई व विशाल बोल्डरो को पार करके जाना होता है यही इस पूरे मार्ग का सबसे कठिन बिन्दु भी है। इस पूरे रास्ते में आपको पत्थर के बोल्डरो को पार करके जाना होता है जिन पर आपके रास्ते का भटक जाने का खतरा बना रहता है।
अनुभवी ट्रैकर्स रास्ते को देखकर ही पता लगा लेते है की कौन सा रास्ता सही है अन्यथा नए आदमी के रास्ता भटक जाने का खतरा रहता है। किन्नर कैलाश पहुंचकर आप रास्ते की सारी थकान भूल जाते है।
यहाँ से दिखाई देने वाला सुन्दर चित्र यात्रियों के दिल में सदा के लिए बस जाते है। यात्रियों यहाँ चलती ठंडी हवायें यात्रियों को मदमस्त कर देती है वही भगवान शिव के शिवलिंग को देख यात्री भक्ति में खो जाते है।यहाँ कुछ समय बिताने के बाद आप यहाँ से वापस आ सकते है।
किन्नर कैलाश ट्रैक कैसे जाये
How to go Kinner Kailash Trek
By Air: हवाई मार्ग द्धारा: किन्नर कैलाश ट्रैक पर जाने के लिए सबसे पास स्थित हवाई अड्डा शिमला में स्थित है। नई दिल्ली, चंडीगढ़ व अन्य जगहों से शिमला के लिए आपको फ्लाइट की सुविधा आसानी से उपलब्ध हो जाएगी। यहाँ से आप थांगी तक टैक्सी बुक कर आसानी से पहुंच सकते है जहाँ से आप किन्नर कैलाश के लिए ट्रैक शुरू कर सकते है।
By Bus: सड़क मार्ग द्धारा: किन्नर कैलाश ट्रैक पर जाने के लिए सबसे पास स्थित बस स्टेशन शिमला है कोई बस आपको सीधे चैल गांव तक भी उपलब्ध हो जाएगी। चैल तक बस न मिलने पर आप शिमला से थांगी तक प्राइवेट वाहन या कैब द्धारा आसानी से पहुंच सकते है जहाँ से आप किन्नर कैलाश के लिए ट्रैक शुरू कर सकते है।
किन्नर कैलाश ट्रैक पर कब जाये
When to go Kinner Kailash Trek
किन्नर कैलाश ट्रैक पर जाने के लिए सबसे अच्छा समय मार्च से जून और सितम्बर से लेकर नवम्बर तक का होता है उसके बीच सावन का मौसम होने के कारण ट्रैक पर फिसलन रहती है जिस कारण ट्रैकर्स को जाने में काफी परेशानियों व फिसलन के कारण गिरने का डर बना रहता है। वही दिसम्बर से फ़रबरी तक यहाँ जम के बर्फवारी होने के कारण यहाँ चारो और बर्फ ही बर्फ दिखाई पड़ती है जिस कारण ट्रैकर्स का यहाँ आना मुश्किल हो जाता है। सही मौसम पर यहाँ आकर आप यहाँ पर प्रकर्ति का भरपूर आनंद ले सकते है।