उत्तराखंड के प्रमुख ताल एवं झीले
Uttarakhand Famous Lakes

उत्तराखंड के प्रमुख ताल एवं झीले
Uttarakhand famous Lakes
उत्तराखंड एक पर्वतीय राज्य होने के कारण यहाँ से कई झीलों व मनोहारी तालो की उत्पत्ति होती है। यहाँ गर्म और ठन्डे पानी की कई झीले है यहाँ की कई झीले प्राकर्तिक रूप से बनी हुई है जिनमे मान्यता के अनुसार स्नान करने से स्वतः ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कुमाऊँ के प्रमुख ताल
Famous Lakes in Kumaon
ताल |
स्थान |
नैनीताल |
नैनीताल |
भीमताल |
भीमताल |
नौकुचिया ताल |
नैनीताल |
सात ताल |
नैनीताल |
खुरपा ताल |
नैनीताल |
सूखाताल |
नैनीताल |
थगरीताल |
काशीपुर |
द्रोणाचार्य ताल |
काशीपुर |
नानकसागर |
नानकमत्ता |
सुकुण्डा ताल |
बागेश्वर |
तडांग ताल |
अल्मोडा |
श्याम ताल |
चम्पावत |
झिलमिल ताल |
चम्पावत |
नन्दकुण्ड |
पिथौरागढ |
गढ़वाल के प्रमुख ताल
Famous Lakes in Garhwal
ताल |
स्थान |
सहस्त्र ताल |
टिहरी गढवाल |
महासर ताल |
टिहरी गढवाल |
अपसरा ताल |
टिहरी गढवाल |
यमताल |
टिहरी गढवाल |
मंसूरताल |
टिहरी गढवाल |
बसुकीताल |
टिहरी गढवाल |
विष्णु ताल |
चमोली गढवाल |
सतोपंथ झील |
चमोली गढवाल |
रूपकुण्ड |
चमोली गढवाल |
बेनीताल |
चमोली गढवाल |
सुखताल |
चमोली गढवाल |
तप्त कुण्ड |
चमोली गढवाल |
नदीकुण्ड |
चमोली गढवाल |
लिंगा ताल |
चमोली गढवाल |
लमाताल |
उत्तरकाशी |
देवसाडीताल |
उत्तरकाशी |
नचिकेता ताल |
उत्तरकाशी |
बयां ताल |
उत्तरकाशी |
गांधी सरोवर |
रूद्रप्रयाग |
वासुकिताल |
रूद्रप्रयाग |
सुखदिताल |
रूद्रप्रयाग |
नन्दीकुण्ड |
रूद्रप्रयाग |
भौरीअमोला कुण्ड |
रूद्रप्रयाग |
गौरीकुण्ड |
रूद्रप्रयाग |
कांसरो ताल |
देहरादून |
उत्तराखंड की झीलों व तालो को हिंदी मे जानने के लिए ये लेख पढ़े!
कुमाऊँ की मुख्य झीले एवं ताल
Famous Lakes in Kumaon
नैनीताल: Nainital: नैनीताल एक पर्यटक स्थल जो अपने चारो और फैले शांत वातावरण, बड़े-बड़े व विशाल पहाड़ जो नैनीताल को सात और से घेरे हुए है तथा कई मनमोहक झीलों के कारण पूरे देश विदेश तक में प्रसिद्ध है। यहाँ प्रति वर्ष लाखो की संख्या में यात्री आते है तथा मानसिक तथा आत्मिक शांति को प्राप्त करते है। वैसे तो नैनीताल में लगभग 60 झीले है परन्तु उन सब में सर्वश्रेष्ठ नैनीताल झील है जो आकार में आँख की तरह बनी हुई है तथा पर्यटको के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बिंदु है।
यह झील 1500 मीटर लम्बी, 510 मीटर चौड़ी तथा लगभग 30 मीटर गहरी है। माना जाता है इस झील का निर्माण पुलस्य और पुलह ऋषियों द्वारा कराया गया है। इस झील में नौकायन, रोइंग, पैडलिंग जैसे वाटर वॉटर स्पोर्ट्स का आनंद भी ले सकते है।

इस झील का उत्तरी भाग मल्ली ताल तथा दक्षिणी भाग तल्ली ताल कहलाता है। झील के समीप ही शॉपिंग मॉल, होटल्स, डाक घर, बस स्टैंड व टैक्सी स्टैंड उपलब्ध है। शाम की रोशनी में झील और आस पास की जगह किसी स्वर्ग से काम प्रतीत नहीं होती।
पुराणों के अनुसार जब भगवन शिव अपनी जली हुई मृत पत्नी देवी सती को लेकर आकाश मार्ग में भ्रमड कर रहे थे तब माता सती की आँख इसी स्थान पर आकर गिरी थी जिससे इस झील का निर्माण हुआ था।
नौकुचिया ताल: Naukuchiya Taal: नौकुचिया ताल जिला नैनीताल में स्थित है जो नैनी ताल के बाद दूसरा ऐसा प्रमुख ताल है जहाँ सबसे ज्यादा पर्यटक आते है। इस ताल में नो कोने है जो देखने में टेढ़े मेढ़े है। नौकुचिया ताल समुद्र तल से 1292 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह झील 983 मीटर लम्बी, 693 मीटर चौड़ी व लगभग 45 मीटर गहरी है। इस ताल को नैनीताल का सबसे गहरा ताल भी माना जाता है।
इस झील में कई प्रकार की मछलियाँ भी देखने को मिल जाएँगी जो मछलियों के शिकार करने वालो के लिए एक पसंदीदा जगह है। यहाँ ताल में हर जगह कमल के फूल खिले देखने को मिल जायेंगे, जो यहाँ के गहरे नीले रंग के जल में और अधिक सुन्दर दिखाई प्रतीत होते है।
नौकुचिया ताल नैनीताल से लगभग 26 किमी तथा भीमताल से 4 किमी की दूरी पर स्थित है। भीमताल से आपको 4 किमी पैदल ही जाना होता है पर ये दूरी ज्यादा कठिन नहीं होती तथा आप आराम से यहाँ तक पहुंच सकते है। यहाँ पर मनोरंजन के और भी कई साधन मौजूद है, जहॉ पर आप क्याकिंग, झील में जॉबिंग, पैरासेलिंग, पैराग्लाइडिंग और माउंटेन बाइकिंग जैसे तमाम चीजे है जिनका आप आनंद ले सकते है।
मान्यता के अनुसार इस झील के नो कोनो को यदि व्यक्ति एक बार में ही देख ले तो वो व्यक्ति अमर हो जाता है परन्तु एक साथ इन सब कोनो को एक साथ देखना असंभव है, अपितु आप एक बार में झील के किसी भी कोने से मुश्किल से सात ही कोने देख सकते है इसलिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ये धारणा गलत दिखाई देती है।
भीमताल: Bhimtal: नैनीताल जिला अपने यहाँ चारोँ तरफ फैली झीलों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ पर नैनी ताल, नौकुचिया ताल, भीमताल, सातताल, खुरपा ताल व कई अन्य झीले है जिन्हे देखने प्रति वर्ष लाखो लोग नैनीताल आते है। इन्ही झीलों में एक झील है भीमताल झील जो नैनीताल की प्रमुख झील नैनी झील के सामान ही प्रसिद्ध है, जिसे देखने हर साल पर्यटकों का ताँता लगा रहता है।
यह झील काठगोदाम से 10 किमी तथा नैनीताल शहर से लगभग 22.5 किमी की दूरी पर स्थित है। ये झील आकार में नैनीताल की मुख्य झील नैनी झील से भी बड़ी है जो की लम्बाई में 1674 मीटर, चौड़ाई में 447 मीटर तथा 15 से 50 मीटर गहरी है। इस झील में भी नैनी झील का समान दो कोने है जिन्हे मल्लीताल व तल्लीताल के नाम से जाना जाता है।
इस झील के मध्य में एक टापू है जहाँ खाने व पीने के लिए अच्छे रेस्टॉरेंट उपलब्ध है जहाँ यहाँ आने वाले यात्री अपनी पसंद का खाना खा सकते है। इस टापू पर मछलियों के लिए एक aquarium भी बनाया जाता है। यहाँ मछलियों को पकड़ने वालो के लिए भी अच्छी सुविधा उपलब्ध है।
यह झील सिचाई के लिए भी बहुत लाभकारी है जिससे छोटी-छोटी नहरें निकली गयी है जिससे आसपास की जगहों में सिचाई होती है तथा एक नहर गोला नदी में जाकर मिल जाती है।
प्राचीन मान्यता के अनुसार महाबली भीम द्धारा खोदकर इस जगह पर झील का निर्माण किया गया था। यहाँ पर एक मंदिर भी बना हुआ है जिसे भीमेश्वर मन्दिर कहकर भी पुकारा जाता है।
सात ताल: Sattal: सातताल झील उत्तराखंड के जिला नैनीताल में स्थित है जो नैनीताल के मुख्य शहर से 23 किमी की दूरी पर बसी एक बहुत ही खूबसूरत झील है। यह झील भीमताल से 7 किमी की दूरी पर व्यवस्थित है। आजकल यहाँ जाने के लिए एक अन्य मार्ग खोला गया है जो माहरा गांव से होता हुआ जाता है। जहाँ से इस ताल की दूरी 7 किमी पड़ती है। इस ताल के चारो तरफ अलग अलग किस्मो के फूल व लतायें लगायें गए है जो इस जगह की खूबसूरती को अत्यधिक बढ़ा देती है। पर्यटन विभाग की तरफ से इस जगह को प्रमुख पर्यटक क्षेत्र घोषित किया गया है।
यह ताल समुद्र तल से 1379 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है तथा इसकी लम्बाई 19 मीटर, चौड़ाई 315 मीटर तथा गहराई 150 मीटर तक है। यह ताल सात छोटी -छोटी झीलों का समूह है जिन्हे नल-दमयंती ताल, गरुण ताल, राम ताल, लक्ष्मण ताल, सीता ताल, पूर्ण ताल तथा सूखा ताल के नाम से जाना जाता है। इसी जगह पर नौकुचिया देवी का मंदिर भी विराजमान है।
इस ताल को कुमाऊँ का सबसे खूबसूरत ताल कहा जाता है जो अपनी प्राकर्तिक सुन्दरता व एक साथ फैले हुए सात तालो के कारण मन को मोह लेता है। इसी जगह पर अमेरिकन व्यक्ति डॉ स्टेन्ले द्धारा एक वन्य विहार का भी संचालन किया जा रहा है जिसमे वो पशु-पक्षियों की देखभाल आदि का कार्य किया करते है।
पहले समय में एक महात्मा के द्धारा इस स्थान पर मछलियाँ पाली गयी थी इस कारण इस जगह पर मछलियों को नहीं मारा जाता है इस कारण यहाँ पर अभी भी कई बड़ी और प्रमुख मछलियों का अस्तित्व बाकी है।
खुरपा ताल: Khurpa Taal: खुरपा ताल उत्तराखंड राज्य के जिला नैनीताल में स्थित है। यह नैनीताल से 6 किमी की दूरी तथा समुद्र ताल से 1635 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। खुरपा ताल के चारो तरफ चीड़ के पेड़ खड़े हुए है। मुख्यतः खेती के लिए ये जगह बहुत अनुकूल है। यहाँ पर आपको दूर-दूर तक सीढ़ीनुमा खेत देखने को मिलेंगे जो इस जगह को और भी खूबसूरत बना देते है। यहाँ बारिश भी काफी अधिक होने के कारण इन खेतो में ज्यादातर सब्जियों का ही उत्पादन होता है। जिस कारण यहाँ सब्जियों की पैदावार भी बहुत अच्छी होती है।
इस झील के चारो तरफ मकान तथा रिसॉर्ट्स भी बने हुए है। जैसा की नाम से प्रतीत
होता है खुरपा ताल।
परन्तु देखने में ये खुरपा की तरह नहीं दिखाई देता है। प्राचीन मान्यता के अनुसार प्राचीन समय पर यहाँ पर लोहे
की सामग्री बनायीं जाती होंगी, जिस कारण इस झील का नाम भी खुरपा ताल रखा गया होगा।
मछलियों को पकड़ने के शौकीन व्यक्तियों के लिए भी ये ताल बहुत अच्छा है, यहाँ कई प्रकार की मछलियाँ भी देखने को मिल जाती है जिन्हे लोग पकड़ने का आनंद भी ले सकते है। यात्रियों के लिए यहाँ पर ज्यादा सुविधाए उपलब्ध नहीं है जिस कारण यात्री यहाँ ज्यादा देर न रूककर रात्रि विश्राम हेतु नैनीताल या किसी अन्य जगह चले जाते है।
झिलमिल ताल: Jhilmil Taal: झिलमिल ताल जिला चम्पावत के टनकपुर से मिलती हुई नेपाल सीमा से 8 किमी की दूरी पर स्थित है। यह ताल भारतीय संस्कृति में भी काफी धार्मिक महत्व रखता है तथा प्राकर्तिक सौन्दर्य से भरी हुई है। मान्यता के अनुसार इस झील का पानी एक दिन में सात बार रंग बदलता है। पूर्णागिरि मंदिर में आने वाले श्रद्धालु इस झील को देखने के लिए जरूर आते है। ये झील हर तरफ से प्राकर्तिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। इस झील में चट्टा प्रजाति की मछलिया पाई जाती है जिन्हे श्रद्धालु भोजन कराकर पुण्य कमाते है, परन्तु इन मछलियों को मारना यहाँ प्रतिबंधित है।
यह झील लगभग 6800 वर्ग मीटर में फैली हुई है तथा झील के किनारे पर पूर्णागिरि देवी का मंदिर बना हुआ है, जहाँ पूजा आदि करने से श्रद्धालुओं की हर मन्नत पूर्ण होती है। मान्यता के अनुसार माँ पूर्णागिरि इसी झील में स्नान किया करती थी।
कुछ लोग इसे पांडवो के द्धारा निर्मित किया जाना भी बताते है। मान्यता के अनुसार पांडव इस जगह पर विश्राम हेतु रुके थे तब पांडवो को प्यास लगी तो भीम द्धारा झील के ऊपर पहाड़ के विशाल पत्थर पर घुटना मारकर वहाँ से पानी निकाला गया था, जिससे पांडवो ने प्यास बुझाई थी। तभी से इस झील की उत्पत्ति हुई वो पत्थर आज भी वह मौजूद है।
इस झील में महिलाओ के झील से पानी भरने या नहाने पर प्रतिबन्ध है मान्यता के अनुसार यहाँ बगल में पहले एक और झील थी जिस में एक महिला द्धारा भुलवश स्नान कर लिया गया था जिससे की वो झील सूख गयी थी।
उत्तराखंड के प्रमुख ताल एवं झीले
Uttarakhand Famous Lakes
गढ़वाल की मुख्य झीले एवं ताल
Famous Lakes in Garhwal
महासर ताल: Mahasar Lake: महासर ताल टिहरी गढ़वाल में स्थित है जिसकी लम्बाई 70 मीटर तथा चौड़ाई 20 मीटर है। यह झील दो कटोरे के आकर के तालो से निर्मित है, इस कारण दो तालो से बने होने के कारण इस ताल को भाई बहन ताल कहकर भी पुकारा जाता है। यह ताल महासरताल, महासरनाग देवता का निवास स्थान है तथा समुद्र तल से 10000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है।
मान्यता के अनुसार पुरातन समय में दो नागवंशी भाई और बहन इन्ही दो तालो में निवास किया करते थे। इसी जगह पर महार देवता एक प्राचीन मंदिर भी है जिसके गर्भगृह में पत्थर की बनी नाग देवता की मूर्ति रखी हुई है। यहाँ प्राचीनकाल से ही गंगा दशहरा के दिन एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है जहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु स्नान कर पुण्य की कामना करते है।
यम ताल: Yam Taal: यम ताल उत्तराखंड के जिले टिहरी गढ़वाल में स्थित सहस्त्र ताल के पास स्थित है। यहाँ साल भर बर्फ गिरी रहती है।
सहस्त्रताल: Shastra Taal: सहस्त्र ताल उत्तराखंड के जिला टिहरी गढ़वाल में स्थित है। यह ताल टिहरी गढ़वाल के घुत्तु नाम की जगह पर है, जो समद्र तल से 1530 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। जैसा की नाम से ही प्रतीत होता है सहस्त्र । ये ताल कई तालों का समूह है। ये गढ़वाल मंडल की सबसे बड़ी व गहरी झील है।
बासुकी ताल: Basuki Taal: टिहरी गढ़वाल में कई झीले स्थित है जिसमे वासुकी ताल यहाँ का एक प्रमुख ताल है। यह ताल समुद्र तल से 4150 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस ताल की खूबी यह है की यहाँ का पानी बहुत साफ़ है तथा इस ताल का पानी लाल रंग का है तथा इसमें नीले रंग के कमल खिलते है। यह ताल केदारनाथ धाम से 8 किमी की दूरी पर स्थित है।
यह ताल बहुत पुराना व बहुत ही खूबसूरत है, जहाँ पर आपको हर तरफ खिले नीले रंग के ब्रह्मकमल व सुगन्धित जड़ी बूटी देखने को मिल जाएंगी जिनकी सुगंध दूर दूर तक महसूस की जा सकती है। इस जगह को लैंड ऑफ़ ब्रह्मकमल भी कहा जाता है। यहाँ से फूल ले जाकर केदारनाथ मंदिर में भगवन शिव को चढ़ाये जाते है। कहा जाता है की नागो के राजा वासुकी यहाँ हर पल निवास करते है।
सतोपंथ लेक: Satopanth Lake: सतोपंथ झील उत्तराखंड के जिला चमोली गढ़वाल में स्थित है। यह एक प्राकर्तिक झील है जो देखने में त्रिभुज के आकार की है तथा अपने आस पास फैली अदभुत सुंदरता, मानसिक व आध्यत्मिक शान्ति के लिए देश विदेश में प्रसिद्ध है। जिसकी सुंदरता को देखने देश विदेश से लोग यहाँ आते है और आत्मिक शांति का अनुभव करते है।
ये झील चौखम्बा पर्वत की तलहटी पर बसी हुई है तथा उत्तराखंड की सबसे सुन्दर व सबसे प्रसिद्ध झीलों में से एक है। सतोपंथ में “सतो” का अर्थ “सत्य” से तथा “पंथ” का अर्थ “रास्ता” से है अर्थात सत्य का रास्ता। इस रास्ते को धरती पर बिना शरीर छोड़े स्वर्ग पर जाने का एकमात्र रास्ता गया है।
मान्यता के अनुसार पांडव इसी रास्ते से होते हुए स्वर्ग गए थे, इस कारण इस झील का नाम सतोपंथ झील पड़ा। माना जाता है की पांडवो ने स्वर्ग जाने से पहले इसी झील पर स्नान किया था, इस कारण इस झील का हिन्दुओ के जीवन में भी बहुत महत्व है। वहाँ के स्थानीय लोगो के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु व् भगवान महेश द्धारा इस झील के अलग अलग तीनो कोणों पर खड़े होकर स्नान किया था, इसलिए इस झील का आकार त्रिभुजाकार पडा। यह उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध ट्रैकिंग रुट भी है।
रूपकुण्ड झील: Roopkund Lake: रूपकुंड झील उत्तराखंड में स्थित है। यह उत्तराखंड के चमोली गढ़वाल में स्थित एक बर्फ से ढकी हुई झील है तथा वर्ष के अधिकतर समय इस झील में बर्फ पड़ी रहती है। यह झील समुद्र तल से 5029 मीटर अर्थात 16499 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है तथा इसकी गहराई 2 मीटर तक की है। इसे कंकाल झील भी कहा जाता है। यहाँ पर 500 से भी ज्यादा नर कंकाल पाये गए थे। ये जगह बहुत ही खूबसूरत व चारो और से ग्लेशियर से ढकी हुई है, जिससे देखने रोमांचक यात्रा के शौकीन लोग ट्रैकिंग करके यहाँ तक पहुँचते है। टूरिस्टों के बीच भी ये झील आकर्षण के केन्द्र में रहती है।
रूपकुंड में प्रति 12 वर्ष के पश्चात नंदा देवी यात्रा का आयोजन किया जाता है जहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु हिस्सा लेने के लिए आते है तथा यही पर नंदा देवी की पूजा भी की जाती है।
रूपकुंड झील के बारे में कई बाते सुनने को मिलती है। इस झील में पड़े नर-कंकालों की खोज सबसे पहले नंदा देवी रिज़र्व के रेंजर एच0 के0 माधवाल ने 1942 को की थी। तब से अब तक हजारो लोगो के नर-कंकाल इस झील में मिल चुके है जिसमे आदमी, औरत, बूढ़े, व बच्चे सभी शामिल है। इसके अलावा यहाँ बर्तन, आभूषण, बाल, मॉस इत्यादि के अवशेष भी मिल चुके है जिन्हे अभी भी संरक्षित करके रखा गया है।
रूपकुंड झील के बारे में कई कहानियाँ सुनने को मिलती है जिसमे किसी कहानी में ये कंकाल भारतीय आदिवासियों के, कुछ के अनुसार ये कश्मीर के जनरल जोरावर सिंह और उसके आदमियों के जो मौसम की जद में तथा रोगो की चपेट में आकर मौत हो जाने के कारण, कुछ के अनुसार ये कंकाल जापानी सैनिको के तथा कुछ के अनुसार ये कंकाल चीन के सैनिको के है। इन कंकालों के सर पर चोट के निशान है जिससे पता चलता है की इनके सर पर बर्फ के बड़े-बड़े ओले लगने से इनकी मौत हुई होगी। बाद में अध्धयन करने के बाद पता लगा की ये कंकाल 850 ई० के आसपास के रहे होंगे।
नचिकेता ताल: Nachiketa Taal: नचिकेता ताल उत्तरकाशी जिले तथा जिला टिहरी की सीमा पर स्थित है। यह बहुत ही मनमोहक ताल है जो चारो तरफ से हरियाली, बांज, बुरांस व चीड़ के पेड़ो से घिरा हुआ है। इस ताल के बारे में ज्यादा प्रचार-प्रसार न होने के कारण ये पर्यटको की नजर से दूर रह जाती है।
ये झील उत्तरकाशी से 32 किमी की दूरी पर स्थित है। यह झील 1200 वर्ग किमी में फैली हुई है तथा इसकी गहराई 8 से 10 फ़ीट की है।
मान्यता के अनुसार ये झील ऋषि उदालक के पुत्र नचिकेता के द्धारा इस झील का निर्माण कराया गया था इसलिए इस ताल का नाम भी उन्ही के नाम पर नचिकेता ताल पड़ा। इस ताल में प्रति वर्ष बैशाखी के दिन एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। यही पास में ही नाग देवता का एक छोटा सा मंदिर भी बना हुआ है जिसके दर्शन हेतु श्रद्धालु दूर-दूर से यहाँ आते है। यहाँ दर्शन के पश्चात श्रद्धालु इसी झील में स्नान करते है व प्रसाद के रूप में ताल में मौजूद शैवाल को अपने साथ घर को ले जाते है।
यहाँ पर वन विभाग के द्धारा घूमने हेतु सड़क का निर्माण किया गया है जहाँ यात्रियों द्धारा 10 रूपए का मामूली शुल्क देकर इस ताल की प्राकर्तिक सुंदरता को करीब से देखा जा सकते है। उत्तराखंड सरकार के द्धारा यहाँ का अधिक प्रचार न होने के कारण यहाँ यात्रियों के लिए ज्यादा सुविधाये भी उपलब्ध नहीं है। यहाँ न तो यात्रियों के खान पान की कोई व्यवस्था है और न ही रुकने की।
गौरीकुंड: Gorikund: गौरीकुंड झील उत्तराखंड के जिला रुद्रप्रयाग में स्थित है। ये झील मन्दाकिनी नदी के तट पर स्थित है। इसकी ऊचाई समुद्र तल से 1982 मीटर है तथा ये केदारनाथ से 14 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ से ही केदारनाथ धाम के लिए पैदल यात्रा प्रारम्भ होती है। इसी कुंड के पास ही देवी गौरी का एक अत्यन्त प्राचीन मंदिर भी है जहॉ प्रतिदिन सांध्यकालीन आरती का आयोजन किया जाता है। मान्यता के अनुसार ये मंदिर और ये कुंड देवी गौरी को समर्पित है।
यहाँ पर एक दिव्या शिला भी विराजमान है जहाँ माता देवी गौरी ने बैठकर भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए तप किया था तथा भगवान शिव को प्राप्त करने के पश्चात उन्होंने भगवान शिव से त्रियुगीनारायण मन्दिर में शादी की थी। यहाँ मंदिर के गर्भगृह में शिव और भगवान पार्वती की धातु की मूर्तिया भी विराजमान है।
यह हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है जहाँ से प्रति वर्ष लाखो लोग हिन्दुओं के पवित्र तीर्थ स्थल केदारनाथ धाम के लिए यात्रा शुरू करते है। यह एक गर्म पानी का कुंड है परन्तु जून 2013 में केदारनाथ में आई बाढ़ व त्रासदी के बाद ये स्थान और ये कुंड भी लगभग खत्म ही हो गया था। अब यहाँ पर कुंड की जगह पर पानी की छोटी-छोटी धाराएँ ही दिखाई पड़ती है। मान्यता के अनुसार इस कुंड में स्नान नहीं करना चाहिये क्योकि इस कुंड में देवी गौरी स्नान किया करती थी और ये उनका व्यक्तिगत कुंड था।
ट्रैकिंग पर जाने वाले साहसिक लोगो के लिए ये स्थल रुकने के लिए एक आदर्श स्थल है। यहाँ चारो तरफ हरियाली फैली हुई है। इसी के पास बहने वाली वासुकी नदी यहाँ की सुंदरता को और भी अधिक बढ़ा देती है। ये स्थल सोनप्रयाग से 6 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ से आप टैक्सी द्धारा आराम से यहाँ तक पहुंच सकते है। यही से ही केदारनाथ धाम के लिए 16 किमी का ट्रैक शुरू होता है।
गाँधी सरोवर ताल: Gandhi Sarover Lake: गाँधी सरोवर झील उत्तराखंड में स्थित है। ये झील उत्तराखंड के जिला रुद्रप्रयाग में स्थित है। यह झील रुद्रप्रयाग में केदारनाथ धाम से 3 किमी की दूरी पर स्थित है। गाँधी सरोवर को पहले चोराबरी ताल जाता था परन्तु 1948 में महात्मा गाँधी की मौत के बाद उनकी अस्थियाँ यहाँ प्रवाहित की गई थी इस कारण बाद में इस ताल का नाम बदलकर गाँधी सरोवर रखा दिया गया था। यह सरोवर चोराबरी बामक ग्लेशियर के बिल्कुल निकट है।
चोराबरी ताल समुद्र तल से 12582 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। इसी झील के कारण 2013 में भयंकर आपदा आई थी। उस समय भयंकर बारिश व ओलावृश्टि के कारण झील में बहुत ज्यादा पानी आ जाने के कारण ये झील टूट गई थी, जिससे यह झील टूटकर इसका पानी केदारनाथ व उसके आसपास की सारी जगह, यात्रियों, गाड़ियों को अपने साथ बहा कर अपने साथ ले गया था।
यहाँ आने के सर्वोत्तम समय गर्मियों अर्थात मई और जून का होता है जब सुबह की किरणों के साथ यहाँ का वातावरण भी अपने आप रंग बदलता रहता है।