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Religious Temples of Uttarakhand

by Pankaj Pant
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Religious Temples of Uttarakhand

Religious Temples of Uttarakhand

उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध मंदिर व उनका इतिहास

Mansa Devi Temple

मन्सा देवी मन्दिर

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MANSA-DEVI-TEMPLE

यह मन्दिर हरिद्वार में स्थित है और जहाँ के तीन तीर्थो में इसकी गिनती है। यह मन्दिर भारत के सबसें पुराने मन्दिरों में से एक है।

मां मनसा के जन्म का लेकर कई कहानीया बतायी जाती है। कई धार्मिक पुस्तको में इन्हे भगवान शिव की पुत्री बताया गया है जिनकी उत्पत्ति भगवान शिव के मस्तक से हुई है इस कारण इनका नाम मनसा मां पडा।

इन्हे नागराज वासुकी की मां के रूप में भी पूजा जाता है। इनका वास्तविक नाम जरत्कारू है। इनके पति का नाम भी मुनि जरत्कारू तथा पुत्र का नाम आस्तिक है, परन्तु कुछ धर्मिक पुस्तकों में इनका जन्म मुनि कश्यप के मस्तक से होना भी बताया गया है।

कुछ ग्रन्थों में वासुकी नाग द्वारा बहन की इच्छा प्रकट करने पर शिव द्धारा उस कन्या को भेट करने की कहानी भी बनाई जाती है परन्तु उस कन्या के तेज का सह पाने के कारण वासुकी द्धारा इस कन्या को नागलोक में तपस्वी हलाहल को दे दिया गया था। बाद मे इसी कन्या को बचाने के लिए हलाहल ने अपने प्राण त्याग दिये थे।

मां मनसा को विष की देवी के रूप में भी माना जाता है। विष की देवी के रूप में इन्हे बंगाल में पूजा जाता है। इनके सात नामों को लेने से सर्प का भय नही रहता है जो जरत्कारू, जगतगौरी, मनसा, सियोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जगतकारूप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी है।

मां मनसा का मन्दिर बिल्व पहाडी पर स्थित है। मां मनसा का अर्थ अभिलाशा से होता है जिसका अर्थ मनोकामना पूर्ण करने वाली होती है। मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति मां मनसा की पूजा अपने पूरी श्रद्धा से करता है मां उसकी सारी मुरादें पूरी करती है।

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इन्हे 14 वीं सदी के बाद शिव के परिवार के रूप में मन्दिरों में पूजा जाने लगा। यह माता के 52 शक्तिपीठों में से एक है। इन्हे नागमाता के रूप में भी जाना जाता है। महाभारत के युद्ध में भी राजा युधिश्ठिर ने मां मनसा की पूजा की थी जिसके परिणामस्वरूप उन्हे युद्ध में विजय प्राप्त हुई थी।

उनके मंत्र ऊॅ हु मनसा अमुक हु फट का सवा लाख बार जप करने से मनुष्य की हर मनोकामना पूरी होती है। मनसा देवी मन्दिर के अन्दर माता की दो मूर्तिया रखी हुई है जिसमें एक मूर्ति की पाँच भुजाए तीन मुंह है तथा दूसरी मूर्ति की आठ भुजाए है।

इस मन्दिर के अन्दर एक बडा से पेड लगा हुआ है जहाँ पर अपनी मनोकामना मांगने पर धागा बांधना होता है तथा वो मनोकामना पूरी होने पर वो धागा खोलना जरूरी होता है। किसी के ऊपर यदि किसी भी प्रकार का राशि दोष या कालसर्प दोष हो तो इस मन्दिर में पूजा करने से हर प्रकार के दोष समाप्त हो जाते है।

मनसा देवी की पूजा के बाद ही नागो की पूजा की जाती है। यहाँ के तीन प्रसिद्ध तीर्थ मनसा देवी, चण्डी देवी माया देवी त्रिभुज आकार में बने हुए है।

यहाँ पहुचने का रास्ता बहुत ही आसान है। बस अडडे या रेलवे स्टेशन पहुचने पर आप टैक्सी, तांगा, पैदल रिक्शा या आटो रिक्शा द्वारा मन्दिर तक पहुचा जा सकता है। ये स्टेशन से लगभग 2 किमी की दूरी पर बसा हुआ है।

वहाँ पहुचने पर आप पैदल या उडनखटोला द्वारा ऊपर मन्दिर तक पहुँच सकते है। पैदल चलने पर आपको कुछ समय लग सकता है परन्तु उडनखटोला द्धारा आप कुछ ही समय में मन्दिर में पहुँच सकते है।

Mayadevi Temple

मायादेवी मन्दिर

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Mayadevi Temple

माया देवी मन्दिर हरिद्धार में स्थित है जो यहाँ के प्रसिद्ध तीर्थो में से एक है। यह भारत मे देवी मां के 52 शक्तिपीठों में से एक तथा हरिद्धार के तीन शक्ति पीठो में से एक है। यह मन्दिर हरिद्धार के प्रमुख मन्दिरों में सें एक है।

माना जाता है कि से मन्दिर देवी सती या शक्ति द्वारा पवित्र किया गया है। माया देवी मन्दिर देवी माया को समर्पित है। माया देवी मन्दिर भारत के प्राचीन मन्दिरों मे से एक है। माया देवी मन्दिर 11 वीं शताब्दी से पूर्व का है।

यहाँ आकर आराधना करने से शक्ति का अहसास होता है। हरिद्धार को पहले मायापुरी भी कहा जाता था जो मायादेवी के नाम पर ही रखा गया था।

पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री उमा का विवाह भगवान शिव से हुआ था। राजा दक्ष भगवान शिव को पसन्द नही करते थे।

एक बार राजा दक्ष ने कनखल स्थित दक्ष प्रजापति में हवन का आयोजन किया जिसमें उन्होने भगवान शिव को छोडकर अन्य देवी देवताओं को बुला लिया। ये सुनकर भगवान शिव बहुत क्रोधित हुए परन्तु अपनी पत्नी देवी उमा के जिद करने पर वो वहाँ जाने के लिए तैयार हो गये।

वहाँ पर राजा दक्ष द्वारा सभी देवो का सम्मान किया गया परन्तु भगवान शिव का अपमान किया गया। यह देख माता उमा को बहुत दुख हुआ। वो यह कहकर हवन कुण्ड में कूद गई कि अगले जन्म में भी मे भगवान शिव की ही पत्नी बनूंगी और आपका यह हवन कभी सफल नही होने दूंगी, यह कहते हुए वो हवनकुंड में कूद गयी तथा सती हो गयी।

यह देखकर भगवान शिव ने अपने गणों के साथ राजा दक्ष के हवन कुण्ड को तोड डाला तथा क्रोधित हो कर माता सती के मृत शरीर को लेकर आकाश मार्ग में भ्रमण करने लगे।

इस प्रकार भगवान शिव को देखकर सभी देवगढ सोचने लगते है कि भगवान शिव कही पृथ्वी को नष्ट कर दे तो सभी देवगढ भगवान शिव से प्रार्थना कर उनके क्रोध को शान्त कर देते है।

उसके बाद भगवान शिव माता सती के मृत जले हुए शरीर को लेकर आकाश मे घूमने लगते है, जिसजिस स्थान में देवी सती के शरीर के टुकडे गिरते है वही शक्ति पीठ स्थापित होते गये। इस स्थान पर मां सती का दिल नाभि गिरे थे। बाद में इस स्थान पर एक भव्य मंदिर बनाया गया था।

मायादेवी मन्दिर के अन्दर मूर्ति के चार भुजा तीन मुँह है। माया देवी की मूर्ति के बायें हाथ पर देवी काली दाये हाथ पर देवी कामाख्या की मूर्ति बनी हुई है। माया देवी मन्दिर के पास ही भैरव बाबा का मन्दिर भी है।

मान्यता के अनुसार जब तक श्रद्धालु भैरव बाबा के दर्शन कर ले उनकी पूजा पूरी नही होती है। यहाँ दर्शन करने हेतु हरिद्धार से ही नही अपितु देश विदेश से लोग यहाँ आते है और अपनी मुराद मांगते है और मां उनकी सारी मुरादे पूरी भी करती है।

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MAYADEVI MANDIR

श्रद्धालु माया देवी मां को प्रसाद के रूप में नारियल, फल, फूल, अगरबत्ती तथा मां की चुनरी आदि चढाते है। नवरात्रियों के समय यहाँ पर अत्यधिक भीड होती है। मायादेवी, मन्सादेवी और चण्डीदेवी आपस में एक त्रिभुज के आकार की आकृति बनाते है।

मायादेवी मन्दिर हेतु पहुचने के लिए श्रद्धालुओं को पहले बस अडडा या रेलवे स्टेशन पहुँचना होता है वहा से आटो रिक्शा, तांगा टैक्सी द्वारा यहा पहुँचा जा सकता है। स्टेशन से यहाँ की दूरी लगभग 2 किमी की है जो हर की पौडी के बिल्कुल नजदीक है।

Daksheshwar Mahadev Temple

दक्षेश्वर महादेव मन्दिर

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Daksh Prajapati Mandir

दक्षेश्वर मन्दिर हरिद्धार के प्रसिद्ध मन्दिरो में से एक है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह भारत के सबसे प्राचीन मन्दिरों में से भी एक है। भगवान शिव को समर्पित होने के बाद भी इस मन्दिर को दक्षेश्वर प्रजापति मन्दिर के नाम से जाना जाता है जो भगवान शिव की ससुराल है।

इसी स्थान पर भगवान शिव और माता पार्वती की शादी हुई थी। इस मन्दिर में भगवान विष्णु के पावों के निशान बने हुए है जिन्हे देखने के लिए भी बडी संख्या में भक्त मंदिर पहुचते है।

इसी मन्दिर के बीच में एक गडडा भी बना हुआ है जहाँ मां पार्वती ने यज्ञ कुण्ड में कूदकर अपने प्राण त्यागकर सती हुई थी। इस मन्दिर को रानी दनकौर ने 1810 में बनवाया था बाद में इसका पुनः निर्माण 1962 में किया गया था।

इस मन्दिर का निर्माण बहुत बडे परिसर के अन्दर हुआ है जिसके मुख्य गेट पर ही सिंह की दो मूर्तिया दोनों कोनो पर लगी हुई है। मन्दिर के अन्दर हनुमान जी, शिवजी, पार्वती गणेश जी नन्दी महाराज की मूर्तिया लगी हुई है।

मान्यता के अनुसार श्रद्धालुओं की कोई कामना हो तो नन्दी महाराज के कान में कहने से उनकी बात सीधे शिव भगवान के कानों तक पहुँच जाती है तथा शिवजी उनकी मनोकामना जरूर पूरी करते है। मान्यता के अनुसार भगवान शिव सावन के महिनें मे दक्ष मन्दिर मे ही निवास करते है और यही से ब्रहमाण्ड को चलाते है। यह मन्दिर हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में स्थित है जो हरिद्वार से 5 किमी की दूरी पर स्थित हैं। 

मान्यता के अनुसार दक्षेश्वर महाराज इसी स्थान पर निवास किया करते थे। महाराज दक्ष ने मन्दिर पर यज्ञ का आयोजन किया था जिसमें उन्होने सारे देवीदेवताओं को बुलाया था परन्तु उन्होने देवी सती भगवान शिव को यज्ञ हेतु आमंत्रण नही भेजा।

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Dakseshwar Mahadev Temple

इस बात से अप्रसन्न होकर देवी सती द्वारा यज्ञ की अग्नि में अपने आप को समर्पित कर दिया। इससे रूष्ट होकर भगवान शिव ने अपनी सेना के वीरभद्र, भद्रकाली और शिवगणों को युद्ध हेतु यहाँ भेज दिया।

युद्ध में वीरभद्र द्वारा महाराज दक्ष का सिर काट दिया गया। महाराज दक्ष का सिर कटा हुआ देखकर सभी देवताओं द्धारा भगवान शिव से अनुरोध किया गया। सभी के अनुरोध को मानकर भगवान शिव द्धारा महाराज दक्ष को क्षमा कर दिया तथा उनके सिर के बदले बकरे का सिर लगा दिया।

इस मन्दिर के अन्दर दक्षा घाट है जहाँ श्रद्धालु पहले स्नान करके शिव भगवान आदि के दर्शन कर मनोकामना मांगते है। सावन के महीने मे यहाँ लाखो श्रद्धालु गंगा मे स्नान आदि करके भगवान शिव से आर्शीवाद प्राप्त करते हैं।

सावन के पूरे माह यहाँ झूले अन्य वस्तुओं जैसे चूडी, सिंदूर खानपान आदि की दुकाने लगी रहती है जिसके मन्दिर के दर्शन हेतु पूरे माह श्रद्वालुओ का यहाँ तांता लगा रहता है।

दक्षेश्वर मन्दिर हरिद्धार के कनखल में स्थित है जो हरिद्वार से लगभग 5 किमी की दूरी पर स्थित है। बस अडडे या रेलवे स्टेशन पहुँचने के बाद आप आसानी से टैक्सी, रिक्शा या बैटरी रिक्शा द्वारा यहाँ पहुँच सकते है।

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