previous post
History of Temples in
Uttarakhand
उत्तराखण्ड के प्रमुख
मंदिरो का इतिहास
यहाँ के प्रसिद्ध मंदिरो में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमनोत्री, हर–की–पौडी, ताडकेश्वर मंदिर, बागनाथ मंदिर, चितई गोलू देवता, जागेश्वर धाम, पाताल भुवनेश्वर, हाट कालिका मंदिर, पुर्णागिरी मंदिर, तुंगनाथ, कैंची धाम, हेमकुण्ड साहिब, नैना देवी मंदिर, बिन्सर महादेव, बालेश्वर मंदिर, त्रिजुगीनारायण, मदमहेश्वर महादेव, महासू देवता, धारी देवी, चंडी देवी, मंसा देवी, माया देवी, दक्षेश्वर महादेव मन्दिर तथा मुस्लिमों का प्रमुख तीर्थ स्थल पिरान कलीयर मुख्य है जिसके दर्शन हेतु दर्शनार्थी देश–विदेश से यहाँ आते है।
Patal Bhuvneshwar Temple
पाताल भुवनेश्वर मन्दिर उत्तराखण्ड का एक प्रसिद्ध मन्दिर है जो उत्तराखण्ड के पिथौरागढ जिले मे स्थित है तथा वहाँ के सीमान्त कस्बे गंगोलीहाट में स्थित है।
यह गंगोलीहाट से 14 किमी की दूरी पर बसा हुआ एक प्रसिद्ध तीर्थ है जहाँ एक गुफा के अन्दर भगवान शिव के साथ 33 कोटि देवी व देवता निवास करते है। यह गुफा भक्तों के आकर्षण का केन्द्र है जो धने जंगलो के बीच मे बसा हुआ है।
यह धार्मिक दृष्टि व सांस्कृतिक दृष्टि से हिन्दुओं के लिए एक प्रमुख स्थान है। बाहर से देखने पर यह एक साधारण जगह प्रतीत होती है यहाँ बाहर अन्दर जाने के लिए एक छोटा सा दरवाजा है परन्तु अन्दर जाने पर एक बडी सी गुफा है जो पृथ्वी के 90 फीट अन्दर है तथा 160 वर्ग मीटर क्षेत्र मे फैली हुई है।
इस गुफा के अन्दर चार पत्थर रखे हुए है जो चारों युगो के प्रतीक माने जाते है जिसमे से एक पत्थर कलयुग का प्रतीक माना जाता है कहा जाता है कि जब ये पत्थर दीवार से टकरा जायेगा तब पृथ्वी का अन्त हो जायेगा।
इस गुफा के अन्दर बद्रीनाथ, केदारनाथ व अमरनाथ जी के भी दर्शन होते है। यहाँ कालभैरव की जीभ के दर्शन भी होते है मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति कालभैरव के मुह से गर्भ मे प्रवेश करके पूँछ तक पहुच जाता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस गुफा की खोज सबसे पहले सूर्य वंश के राजा ऋतुपर्णा ने की थी, जो त्रेता युग मे अयोध्या के शासक थे। पुराणो के अनुसार जब राजा ऋतुपर्णा एक जंगली हिरण का पीछा करते हुए इस गुफा में प्रवेश किया तो उन्होने भगवान शिव व 33 कोटि देवी देवताओं के साक्षात दर्शन किये थे।
द्धापर युग में पाण्डवों ने इसी स्थान पर चौपड़ खेला था। मान्यता के अनुसार भगवान शिव स्वयं इस स्थान पर रहते है और अन्य देवी देवता उनकी पूजा आराधना करने हेतु यहाँ आते है। मान्यता के अनुसार सन 822 मे गुरू शकराचार्य जी यहाँ आये थे तथा मन्दिर में तांबे का शिवलिंग स्थापित किया था।
इस गुफा मे जाना बहुत कठिन है इसलिए अन्दर जाने के मोटी जंजीर लगी हुई है। जंजीर के सहारे ही व्यक्ति गुफा के अन्दर पहुँच सकता है। लगातार दीवारो से पानी रिस्ने के कारण गुफा की दीवारें बहुत चिकनी हो चुकी है।
इस गुफा की दिवारो पर कई देवी–देवताओं के चित्र उकेरे हुए है जो इस गुफा की पवित्रता को बयां करता है। इस गुफा के अन्दर 1000 पैरो वाला हाथी बना हुआ है साथ में शिवजी ने गजानन का जो सिर काटा था वो भी इसी गुफा के अन्दर रखा हुआ है।
इसके अन्दर हंस के जोडे भी बने हुए है जो मान्यता के अनुसार भगवान ब्रहमा जी के है। इसके अन्दर एक कुण्ड भी बना हुआ है जिसमें मान्यता के अनुसार जनमेजय ने नागयज्ञ किया था जिसमे सारे साँप जलकर भष्म हो गयें थे।
Hat Kalika Mandir
हाट कालिका मन्दिर हिन्दुओं की आस्था व श्रद्धा का प्रतीक है जिसके दर्शन हेतु हजारो लोग प्रतिवर्ष यहाँ आते है और अपनी मन्नते मांगते है। यह मन्दिर काली माता को अर्पित है।
माना जाता है कि काली माता ने अपना घर स्थानांतरित कर पश्चिम बंगाल से यहाँ बना लिया था तभी से इस स्थान को काली माता के रूप में पूजा की जाती है।
गुरू आदि शंकराचार्य द्वारा निर्मित यह मन्दिर 1000 वर्ष पुराना है। बाद में संत जंगम बाबा ने इस मन्दिर में कई सालों तक प्रार्थना की और एक दिन देवी उनके सपने मे आई और यहाँ मन्दिर बनाने को कहा इसलिये ये मन्दिर बनाने का श्रेय जंगम बाबा को जाता है।
आरती के पश्चात माँ शक्ति का बिस्तर लगाया जाता है परन्तु जब सुबह उठकर देखो तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे उस पर रात को कोई सोया हुआ हो। पूरे बिस्तर पर सिलवटे पडी हुई प्रतीत होती है।
यह कुमाऊँ रेजीमेंट के जवानों की भी ईष्ठ देवी है। एक बार की बात है जब दूसरे विश्व युद्ध के समय कुमाऊँ रेजीमेंट के जवान पानी के जहाज से कही के लिए कूच कर रहे थे तभी जहाज डूबने लगा। उनमें से एक जवान ने हाट काली देवी का जयकारा लगाया वैसे ही जहाज एकाएक बाहर आने लगा तथा अपने आप किनारे पर लग गया।
उस घटना के बाद कुमाऊँ रेजीमेंट के लोगो ने वहाँ दो घंटी चढाई तथा मन्दिर के लिए दरवाजा बनवाया। अब जब भी कुमाऊँ रेजीमेन्ट के जवान युद्ध के लिए कही जाते है तो माता के दर्शन किये बगैर नही जाते। माघ के महीने में यहाँ सैनिकों की भीड लगी रहती है।
मान्यता के अनुसार जब गुरू शंकराचार्य बद्रीनाथ व केदारनाथ होते यहाँ आये जो उन्हे आभास हुआ कि यहाँ किसी शक्ति का निवास है जैसे ही वो यहाँ पहुचे वो अचेत हो गये, तब मां ने कन्या के रूप मे दर्शन दिये और कहा मुझे ज्वाला से शान्त रूप मे ले आओ।
तब उन्होने मंत्रोचारण द्वारा उन्हे शान्त रूप में लाये तथा उस स्थान पर मन्दिर की स्थापना की। 1971 को पाकिस्तान से युद्ध जीतने के बाद भी कुमाऊँ रेजीमेंट ने हाट कालिका मंदिर में महाकाली की बडी मूर्ति स्थापित की थी।
Purnagiri Temple
उत्तराखण्ड के पर्वतों में स्थित यह मन्दिर यहाँ के प्राचीन देवी के मन्दिरों में से एक है जो चारों दिशाओं में स्थित शक्ति पीठों कालिका गिरि, हेमला गिरि, मल्लिका गिरि में से सबसें अधिक मान्यता रखता है। इसकी गिनती 108 मुख्य सिद्ध पीठों में से भी होती है।
यह उत्तराखण्ड के चम्पावत जिले के टनकपुर नामक शहर में स्थित है। चम्पावत एक पौराणिक नगर होने के साथ–साथ देवी और देवताओं की नगरी भी है। यह मन्दिर समुद्र तल से 5500 फुट की ऊॅचाई पर स्थित है तथा नानकमत्ता और रीठा साहिब के मध्य की पहाडियों पर स्थित है।
यहाँ चारों और घने जंगल व पहाडी क्षेत्र है जो यहाँ के वातावरण को मनोहारी बनाते है। यहाँ सें शारदा नदी व टनकपुर शहर का सुन्दर दृष्य दिखाई पडता हैं। यहाँ पर श्रद्धालुओं द्वारा माँगी गई हर मनोकामना को माँ जरूर पूरी करती है।
पौराणिक कथानुसार जब भगवान शिव देवी सती के मृत शरीर को लेकर वायु मार्ग से जा रहे थे तब श्री हरि भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 64 टुकडे कर दियें थे वो टुकडे पृथ्वी के जिस भी स्थान पर गिरे थे वो ही स्थान शक्ति पीठ कहलायें जाने लगे।
पूर्णागिरी मंदिर में देवी सती की नाभि गिरी थी इसलिये ये भी शक्ति पीठ कहलाया जाने लगा। यहाँ पर देवी सती की नाभि की पूजा व दर्शन किये जा सकते है।
यहाँ साल भर में 20 लाख सें अधिक श्रद्धालुओं मन्दिर के दर्शन हेतु आते है परन्तु विशेषकर चैत्र मास की नवरात्रि से 2 माह हेतु यहाँ एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है जहाँ आने वाले श्रद्वालुओं हेतु सभी सुविधायें यहाँ की जिला पंचायत द्वारा की जाती है। यहाँ पर आपको मेडिकल स्टोर, अस्पताल, डाकघर व रेस्टोरेन्ट आदि की सुविधा मिल जायेगी।
यहाँ आने के लिए आपको सर्वप्रथम टनकपुर आना पडता है टनकपुर रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी 20 किमी है। यहाँ आप टुन्यास तक वाहन से आ सकते है उसके पश्चात 3 किमी की दूरी आपको पैदल ही पार करनी होती है। वायु मार्ग हेतु निकटतम हवाई अडडा पन्तनगर में है जो यहाँ से लगभग 130 किमी की दूरी पर स्तिथ है। वहाँ से आप सडक मार्ग द्वारा यहाँ पहॅुच सकते है।
Tungnath Temple
यह मन्दिर उत्तराखण्ड के जिला रूद्रप्रयाग में स्थित है। तुंगनाथ मन्दिर समुद्र तल से लगभग 3460 मीटर अर्थात 12000 फुट की ऊॅचाई पर स्थित है।
यह मन्दिर पचंकेदार पर्वतमाला श्रंखला में बसा हुआ है तथा शिव के तृतीय केदार के रूप में इसकी पूजा होती है। यह मन्दिर चोपता व चन्द्रशिला के बीच बुग्यालों के मध्य में कटुआ पत्थरों से बना हुआ है, जहा चारो तरफ से बर्फ से ढके पहाडों का अत्यन्त मनभावक दृश्य दिखाई देता है।
यहाँ से देखने पर ऐसा लगता है मानो हिमालय पर्वतो की श्रंखला आपकी आखो के सामने पर ही स्थित हो। तुंगनाथ पर्वत की चोटी से तीन धारायें निकलती है जिसे अक्षकामिनी नदी बनती है। यह स्थान चोपता से 3 किमी की ऊॅचाई पर बसा हुआ है जहाँ आप पैदल ही ट्रैकिंग द्वारा इस स्थान पर पहुँच सकते है।
यहाँ भगवान शिव के हदय व बाहो की पूजा होती है। मन्दिर जाने के रास्ते पर गणेश जी का एक अत्यन्त प्राचीन व छोटा से मन्दिर बना हुआ है जिनके आर्शीवाद के कारण श्रद्धालुओं को आगे के रास्ते का पता नही लगता व थकावट प्रतीत नही होती है। यहाँ आकर व्यक्ति हर प्रकार के तनाव को भूल जाता है।
तुंगनाथ पहुँचते ही श्रद्धालुओं को तरह–तरह के फूल व मन को आनन्दित कर देने वाले मनोरम दृश्य देखकर रास्ते की सारी थकावट दूर जाता है व मन को अत्यन्त शान्ति की प्राप्ति होती हैं।
पौराणिक कथाओ के अनुसार महाभारत युद्ध के पश्चात पांडवों पर भाईयों की मौत का पाप लगा था तथा इसके प्रायश्चित करने हेतु भगवान शिव आर्शीवाद लेना जरूरी था। भगवान शिव को ढूंढते हुए पांडव केदार जा पहुचे जहाँ शिव भगवान बैल रूप में छुपे हुए थे।
पांडवो को संदेह हो गया था इसलिये भीम द्वारा अपना शरीर बडा कर लिया गया तथा दो पहाडो पर अपने पैर फैला लिए। उनके पैरो से अन्य जीव तो निकल गये परन्तु जैसे ही भीम द्वारा भगवान शिव को पकडने लगे वो धरती के अन्दर समाने लगे।
भीम ने उनका एक हिस्सा पकड लिया गया, ऐसा करते हुए उनके धड से ऊपर का भाग अर्थात पीठ काठमांडू में प्रकट हुई जहाँ पर विश्व प्रसिद्ध पशुपतिनाथ जी का मन्दिर है। शिव जी की भुजाए तुंगनाथ मे, मुख रूद्रनाथ मे, नाभि मदमहेश्वर में, जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई थी।
इन चारों व केदारनाथ को मिलाकर इसे पंचकेदार भी कहा जाता है जहाँ शिव के अति प्राचीन व अत्यन्त सुन्दर मन्दिर बने हुए है। पांच पंचकेदारों में ये मन्दिर सबसे ज्यादा ऊॅचाई पर स्थित है।
Kainchi Dham Temple
इस मन्दिर की गिनती घामों मे होती है। यह पवित्र धाम उत्तराखण्ड को पूरे विश्व स्तर पर प्रसिद्धि दिलाता है। यह मन्दिर चारो और से पहाडों से घिरा हुआ है जहाँ अधिकांश वक्त ढंड का मौसम रहता हैं।
यहाँ पर कैंची की तरह दो मोड थे, उन्ही के नाम पर इस मन्दिर का नाम कैंची धाम पडा। बाबा के आने पर ही इस स्थान को इतनी प्रसिद्धि मिली तथा छोटे से आश्रम से ये आश्रम इतना विशाल आश्रम बन पाया जिसकी प्रसिद्धि मात्र भारत देश मे ही न होकर विदेशों में भी होने लगी थी, अधिकतर अमेरिका के लोग उनके अनुयायी थे।
इस स्थान पर 15 जून को एक विशाल भण्डारे का आयोजन होता है जिसमें बाबा के भक्त देश–विदेश से यहाँ आते है।
यहाँ के प्रमुख संत नीम करौली महाराज की गिनती 20 वीं सदी के प्रमुख संतो में से होती है। जिनक भक्त केवल भारत ही नही अपितु पूरे विश्व मे है। यह आश्रम नैनीताल से 38 किमी0 दूर भवाली के रास्ते में पडता है।
नीम करौली बाबा ने सन 1964 मे इसका निर्माण में कराया था। बाबा को हनुमान जी का अवतार भी कहा जाता है। करौली बाबा का असली नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था जो उत्तरप्रदेश के फिरोजाबाद जिलें के अकबरपुर में हुआ था।
बाबा ने एक मन्दिर नैनीताल व दूसरी मन्दिर हिमाचल में बनवाया था जिसका निर्माण तत्कालीन लेफ्टिनेंट गर्वनर राजा बजरंग बहादुर सिंह द्वारा 21 जून 1966, दिन मंगलवार को इसका निर्माण शुरू करवाया था।
यह इतना भव्य है कि शिमला आने वाला इसको देखे बिना वापस नही जा पाता। बाबा करोली इतने सभ्य थे जो न तो भगवा वस्त्र पहनते थे और न ही कोई माला, कंठी या अन्य कुछ धारण करते थे। बाबा की मुख्य चीजों मे गददी, कम्बल व छडी मुख्य है जो वो हमेशा अपने पास रखते थे।
कहा जाता है कि बाबा के पास अलौकिक शक्तियों का वास था जिसे वे दूसरों की भलाई हेतु इस्तेमाल किया करते थे। वे एक दिव्य पुरूष थे जिन्हे 17 साल की आयु तक ही सारा ज्ञान हो गया था।
बाबा के भक्त केवल भारत ही नही अपितु विदेशों में भी थे। उनके प्रमुख शिष्यों में से मार्क जुकरबर्ग, लेखक रिचर्ड एलपर्ट, स्टीव जाब्स व हालीवुड अभिनेत्री जुलिया राबर्टस थी। जुलिया राबर्टस ने इस स्थान पर आकर ही हिन्दू धर्म अपना लिया था।
बाबा द्वारा दिये गयें सेब के कारण ही स्टीव जाब्स ने अपनी कम्पनी का लोगों व कम्पनी का नाम भी एप्पल ही रख लिया था।
10 सितम्बर 1973 का महान संत व बाबा नीम करौली का निधन वृन्दावान की पवित्र भूमि में हुआ था। उनकी मृत्यु के बाद भी जो व्यक्ति इस स्थान पर आता है उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। बाबा ने कई चमत्कारी कार्य भी किये थे जिस कारण उन्हे चमत्कारी बाबा व हनुमान जी का अवतार भी कहा जाता था।
हैलो, दोस्तों मैं पंकज पंत एक ब्लॉगर। दोस्तों लिखने, पड़ने व म्यूजिक (खासतौर से मैगज़ीन जैसे इंडिया टुडे व क्रिकेट सम्राट वगैरह) का शौक पहले से ही था तो सोचा क्यों न कुछ लिखा जाये और लिखा भी वो जाये जिसे पढ़कर पाठको को आनन्द भी आये व उसे पढ़कर उनके ज्ञान में भी कुछ वृद्धि हो सके। परन्तु लिखने के लिए एक लेखन सामग्री की आवश्यकता होती है तो सोचा किस विषय पर लिखा जाये। सोचते हुए दिमाग में आया की क्यों न अपने ही गृह राज्य उत्तराखंड के बारे में लिखा जाये जिसकी पृष्टभूमि बहुत ही विशाल होने के साथ-साथ यहाँ की संस्कृति और सभ्यता भी बहुत विकसित है। वही ये एक शानदार पर्यटक स्थल होने के अलावा धार्मिक दृस्टि से भी परिपूर्ण है। यहाँ हर साल हजारो की संख्या में मेलो व त्योहारों का आयोजन होता रहता है जिसे देखने व इनमे शामिल होने के लिए देश-विदेश से लाखो-करोडो लोग उत्तराखंड आते है व इन मेलों को देखने के साक्षी बनते है। इस कारण मैंने लिखने की शुरुवात की अपने उत्तराखंड से। अपनी इस वेबसाइट में मैंने उत्तराखंड की संस्कृति एवं सभ्यता, उत्तराखण्ड के प्रमुख पर्यटक स्थल, उत्तराखण्ड के प्रमुख मंदिरो, उत्तराखण्ड के प्रमुख नृत्य व संगीत, उत्तराखण्ड के प्रमुख ट्रेक्किंग स्थलों, उत्तराखण्ड के मुख्य डैम, उत्तराखण्ड की झीलों व ग्लेशियर के अलावा यहाँ की प्रमुख पर्वत चोटियों व अन्य विषयो को पाठको के समक्ष प्रस्तुत किया है। जैसे- जैसे मुझे अन्य कोई जानकारी मिलती जाएगी में उन्हें अपने पाठको के समक्ष प्रस्तुत करता रहूँगा। धन्यवाद पंकज पंत
Our travel guides and travel tips will help you make the most of your vacation, whether it’s your first time there or not.
Contact us: pantpankaj1985@gmail.com
2 comments
[…] History of Temples in Uttarakhand […]
[…] History of Temples in Uttarakhand […]