Home Tourist places of Uttarakhand History of Almora

History of Almora

by Pankaj Pant
0 comment
History of Almora

History of Almora

अल्मोडा का इतिहास

About History of Almora in Hindi: अल्मोडा उत्तराखण्ड का एक प्रमुख जिला है जिसका सबसे बडा शहर भी अल्मोडा ही है। इस जिलें का मुख्यालय भी अल्मोडा में ही बनाया गया है। अल्मोडा में हिन्दी, संस्कृत, कुमाँऊनी व अंग्रेजी भाषाए बोली जाती है।

अल्मोडा के पूर्व में पिथौरागढ जिला, पश्चिम में गढवाल मण्डलउत्तर में बागेश्वर जिला तथा दक्षिण में नैनीताल जिला है। अल्मोडा कुमाऊॅ मण्डल का एक व्यवसायिक केन्द्र भी है जो समुद्र तल से 1,638 मीटर की ऊंचाई(Height of Almora from Sea level) पर बसा हुआ है। अल्मोडा का कुल क्षेत्रफल 3,082 वर्ग किलोमीटर, जनसंख्या 6,22,506 तथा साक्षरता दर 80.7 है तथा लिंगानुपात 1,139 है। 

अल्मोडा जिला धोडे की नाल के आकार के पर्वतो के ऊपर बसा हुआ शहर है जिसके पूर्वी भाग को तालिफाट(Talifat) और पश्चिमी भाग को सेलिफाट(Selifat) कहा जाता है जिसे चंद राजाओं द्वारा बनाया गया था तथा अंग्रेजी शासनकाल में इसका विकास किया गया था।

अल्मोडा 1563 तक एक अज्ञात जगह थी इसके उपरान्त स्थानीय पहाडी सरदार कल्याणचंद्र ने इसे अपनी राजधानी बनाई, उस समय इसे राजापुर के नाम से जाना जाता था।

पौराणिक आधार पर कहा जाता है कि कुमाऊॅ का राजवंश कत्यूरी शासकों का था जो अयोध्या के सूर्यवंशी नरेशों के वंशज थे। सन 1797 को अल्मोडा को गोरखों ने कत्यूरीयों से छीन लिया था ओर इसे नेपाल में मिला लिया था।

बाद में सन 1816 में नेपालीयों और अंग्रेजो में भयंकर युद् हुआ जिसके बाद वहाँ की पहाडियों व अल्मोडा पर अंग्रेजो का अधिपत्य स्थापित हो गया।

Culture of Almora: अल्मोड़ा की संस्कृति-

History of Almora
TRADITIONAL AIPAD IN UTTARAKHAND

अल्मोडा अपने हिमालयी क्षेत्र, सांस्कृतिक विरासत, हस्तशिल्प से बना सामान तथा अपने भोजन खासकर बालमिठाई के लिए विश्वभर में प्रसिद् है। कुमाऊॅनी क्षेत्र की असली संस्कृति अल्मोडा मे ही दिखाई देती है। स्वतंत्रता संग्राम के आन्दोलन में भी यहाँ के लोगों ने बढचढ कर हिस्सा लिया था।

यहाँ की मिठाई देशभर में बहुत प्रसिद् है खासतौर पर यहाँ की बाल मिठाई बहुत प्रसिद् है। दूरदूर से आने वाले यहाँ की बालमिठाई को अपने साथ अवश्य ले जाते है। वैसे तो बाल मिठाई उत्तराखण्ड के अन्य राज्यों में भी मिलती है, परन्तु जो बात यहाँ की मिठाई में है उसकी बात ही कुछ अलग होती है वही शिक्षा तथा संस्कृति के क्षेत्र में भी अल्मोडा शहर का विशेष योगदान है। यह नोबेल पुरस्कार विजेता सर रोनाल्ड रास का जन्मस्थान भी है जो मलेरिया के प्रसार के लिए पूरे विश्व में प्रसिद् है।

यह एक कृषि व्यापार क्षेत्र होने के अलावा यहाँ पर कृषि भी बहुतायत से की जाती है। यहाँ की मुख्य फसलों में चावल, गेंहू, मोटा अनाज व फल है तथा खनिज पदार्थो में ताबा व मैग्रेटाइट के भण्डार भी यहाँ प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। यहाँ के खेत सीढीनुमा होने व बर्फ से ढकी हुई चोटिया होने के कारण ये जगह पर्यटकों को अपनी और बहुत आकर्षित करते है।

Things to do in Almora

History of Almora

अल्मोड़ा एक शांत व चारो और से विशाल पर्वतो से घिरा हुआ पर्यटक स्थल है जहाँ बड़ी संख्या में पर्यटक हर साल घूमने जाते है। यहाँ कई मंदिर भी मौजूद है जो सदियों से पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करते आये है। इस के अलावा आप अल्मोड़ा में ट्रैकिंग के साथ ही शॉपिंग का आनंद भी ले सकते है।   

यहाँ के प्रमुख पर्यटक स्थलों में डियर पार्क, गोविन्द बल्लभ पन्त संग्रहालय, चौबटियाँ, जीरो पॉइन्ट, द्वाराहाट, गणनाथ तथा स्वामी विवेकानन्द की विश्राम स्थली भी है जिसे धरोहर के रूप में सुरक्षित रखा गया है।

1- Trekking in Almora:

अल्मोड़ा अपने यहाँ मौजूद ट्रैक्स के लिए भी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है जहाँ ट्रैकिंग हेतु देश-विदेश के ट्रैकर्स का आना-जाना लगा रहता है यहाँ मौजूद प्रमुख ट्रैकिंग स्थलों में अल्मोड़ा-जागेश्वर ट्रैक, अल्मोड़ा-शीतलाखेत-रानीखेत ट्रैक, द्वाराहाट-दूनागिरी-कौसानी ट्रैक तथा अल्मोड़ा-बनादी देवी-कुंवारी देवी ट्रैक मुख्य है जहाँ ट्रैकर्स ट्रैकिंग हेतु जा सकते है

(i) Almora-Binsar-Jageshwar Trek: अल्मोड़ाबिन्सरजागेश्वर ट्रैक: अल्मोड़ा जागेश्वर ट्रैक अल्मोड़ा में स्थित सबसे सुन्दर ट्रैक्स में से एक है जो बिन्सर से होता हुआ जाता हैयह ट्रैक हरे भरे घास के मैदानों और खूबसूरत गांवो के बीच से होते हुए जाता है रास्ते के बीच आपको मनमोहक बुरांस के फूलो के साथ देवदार के घने जंगल भी देखने को मिल जायेंगे ये पूरा ट्रैक लगभग 44 किमी का होता है जिसमे जाने में आपको 4 दिन तक का समय लग जाता है 

(ii) Almora-Shitalakhet-Ranikhet Trek: अल्मोड़ाशीतलाखेतरानीखेत ट्रैक: अल्मोड़ा-रानीखेत ट्रैक अल्मोड़ा में स्थित सबसे सुन्दर ट्रैक्स में से एक है जो खूबसूरत गांव शीतलाखेत से होता हुआ जाता हैयह ट्रैक हरे भरे घास के मैदानों और खूबसूरत गांवो के बीच से होते हुए जाता है रास्ते के बीच आपको मनमोहक बुरांस के फूलो के साथ देवदार के घने जंगल भी देखने को मिल जायेंगे ये पूरा ट्रैक लगभग 34 किमी का होता है जिसमे जाने में आपको 3 दिन तक का समय लग जाता है 

(iii) Dwarahat-Dunagiri-Kausani Trek: द्वाराहाटदूनागिरीकौसानी ट्रैक: द्वाराहाट से कौसानी ट्रैक अल्मोड़ा में स्थित सबसे सुन्दर ट्रैक्स में से एक है जो कई खूबसूरत गाँवो दूनागिरी, भटकोट, तथा वृद्ध पिन्नाक से होता हुआ जाता है

यह ट्रैक हरे भरे घास के मैदानों और खूबसूरत गांवो के बीच से होते हुए जाता है ट्रैक के दौरान आप दुनागिरि में स्थित प्रसिद्ध दुनागिरि मंदिर (Dunagiri Temple) के दर्शन भी कर सकते है

रास्ते के बीच आपको मनमोहक बुरांस के फूलो के साथ देवदार के घने जंगल भी देखने को मिल जायेंगे ये पूरा ट्रैक लगभग 40 किमी का होता है जिसमे जाने में आपको 4 दिन तक का समय लग जाता है   

(iv) Almora-Banadi Devi-Kunwari Devi Trek: अल्मोड़ाबनादीदेवीकुंवारीदेवी ट्रैक: अल्मोड़ा से कुंवारी देवी ट्रैक अल्मोड़ा में स्थित सबसे सुन्दर ट्रैक्स में से एक है जो खूबसूरत गाँवो बनादि देवी तथा जलना से होता हुआ जाता हैयह ट्रैक हरे भरे घास के मैदानों और खूबसूरत गांवो के बीच से होते हुए जाता है रास्ते के बीच आपको मनमोहक बुरांस के फूलो के साथ देवदार के घने जंगल भी देखने को मिल जायेंगे ये पूरा ट्रैक लगभग 20 किमी का होता है जिसमे जाने में आपको 2 दिन तक का समय लग जाता है

Almora Attractions-

1- Deer Park: डियर पार्क: अल्मोड़ा भ्रमण के दौरान आप यहाँ डियर पार्क घूमने हेतु जा सकते है जो अल्मोड़ा शहर से 2 किमी की दूरी पर स्थित है यह एक शानदार पर्यटक स्थल है जहाँ आप तरह तरह के जानवर व पशु पक्षी देखने को मिलते है यहाँ अनेको किस्म की जड़ी बुटिया भी देखने को मिलती है

डियर पार्क के अंदर आपको काले भालू, हिरन, चीते जैसे जानवर देखने को मिल जायेंगे इसके अंदर जाना निःशुल्क रहता है तथा यहाँ घूमने हेतु सबसे सही समय फ़रबरी से अप्रैल तथा अक्टूबर तथा नवंबर का रहता है 

2- Zero Point: जीरो पॉइंट: जीरो पॉइंट अल्मोड़ा में घूमने हेतु एक बेहतरीन जगह है जहाँ से आप सूर्योदय और सूर्यास्त का अध्भुत द्रस्य देख सकते है जीरो पॉइंट बिनसर वन्यजीव अभ्यारण्य के अंदर बना हुआ एक टॉवर है जिसकी ऊंचाई लगभग 2400 मीटर है जीरो पॉइंट तक आपको लगभग 1.5 किमी की ट्रैकिंग करते हुए जाना होता है यहाँ से आप नंदा, त्रिशूल, केदारनाथ पीक तथा शिवलिंग चोटियों को देख सकते है

बिनसर वन्यजीव अभ्यारण्य के अंदर जाने के लिए आपको 150 रुपया प्रति व्यक्ति के हिसाब से फीस देनी पड़ती है। यहाँ जाने के लिए सबसे सही समय फ़रबरी से अप्रैल तथा अक्टूबर व नवम्बर का रहता है इन महीनों के दौरान आप यहाँ चारो और हरियाली तथा बर्फ से ढके पर्वतो को देखने का भी आनंद ले सकते है     

3- Binsar: बिन्सर: अल्मोड़ा से लगभग 30 किमी की दूरी पर एक छोटा सा गांव बसा हुआ जिसे बिन्सर नाम से जाना जाता है ये गांव प्राकर्तिक खूबसूरती के कारण प्रसिद्ध है वही यही पर विश्व प्रसिद्ध Binsar Wildlife Sanctuary भी स्थापित है

बिन्सर झंडीधार नामक पहाड़ी के ऊपर स्थित है जहाँ से आप लगभग 300 किमी का बर्फ से ढका हिमालय पर्वत की खूबसूरती को साफ़ देख सकते है प्रकर्ति प्रेमियों के लिए ये जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं है इस स्थान पर बिन्सर महादेव का एक प्राचीन मन्दिर भी स्थापित है जहाँ श्रद्धालु दूरदूर से अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु आते है इसके अंदर ट्रैकिंग करते हुए आप Zero Point तक भी जा सकते है जहाँ से सूर्योदय और सूर्यास्त का अध्भुत नजारा देखा जाया जा सकता है

Binsar Wildlife Sanctuary के भीतर प्रवेश करने हेतु साधारण फीस 150 रुपए प्रति व्यक्ति लगती है यहाँ जाने का सबसे सही समय February से April तथा October और November तक का रहता है

4- Pt. Govind Ballabh Pant Museum: गोविन्द बल्लभ पन्त संग्रहालय: Govind Ballabh Pant Museum अल्मोड़ा शहर के बीचो-बीच मॉल रोड में स्थित है। इस संग्रहालय का निर्माण पंडित गोविन्द बल्लभ पंत जी की याद में सन 1980 को कराया गया था। इस संग्रहालय के अन्दर कत्यूरी और चंद वंशजो के समय की प्राचीन वस्तुवे देखने को मिलती है। यही यहाँ आप उत्तराखंड की संस्कृति के बारे में भी काफी कुछ जानने को मिलता है।

Top 5 Temples in Almora:-

History of Uttarakhand
CHITAL GOLU TEMPLE

यहाँ के प्रमुख मंदिरों में सूर्यमल कटारमल मंदिर, जोकि उडीसा के सूर्य मंदिर के बाद दूसरा प्राचीन सूर्य मंदिर है इसके अलावा यहाँ दूनागिरी मंदिर, हेडाखान, मां कालिका मंदिर, चितई गोलू देवता मंदिर, बिन्सर महादेव मंदिर, जागेश्वर धाम, झूला देवी मंदिर, कसार देवी मंदिर, नंदा देवी मन्दिर, बदरिकाश्रम आदि प्रमुख मंदिर है।

1-  Chitai Golu Devta Temple: चितई गोलू देवता मंदिर: चितई गोलू देवता मंदिर उत्तराखंड के जिला अल्मोड़ा में स्थित है जो अल्मोड़ा शहर से लगभग 8 किमी की दूरी पर एक विशाल तप्पड़ पर विराजमान है ये मंदिर अल्मोड़ा के प्रमुख मंदिर में से एक है जिसे उत्तराखंड की निवासी न्याय का देवता मानते है। गोलू देवता हाथ में धनुष बाण लिए हुए है तथा घोड़े पर विराजमान हैमाना जाता है की जिसे कही पर भी न्याय न मिल रहा हो वो गोलू देवता की शरण में आता है तो गोलू देवता उसे तुरन्त न्याय दिलवाते है

इस मन्दिर को घंटियों वाला मंदिर कहकर भी जाना जाता है इस मंदिर के अंदर असंख्यों घंटिया बंधी हुई है इन घंटियों को कभी बेचा नहीं जाता है अपितु जगह भर जाने पर इन्हे उतारकर संभाल कर रख दिया जाता है जिससे दूसरी घंटियों को बांधने की जगह हो सके लोग अपनी मनोकामना पूरी होने पर यहाँ घंटिया भेट करते है अपितु कई लोग अपनी मनोकामनाएँ कागज और स्टाम्प पेपर पर लिखकर भी लाते है जो आपको यहाँ की दीवारों पर स्पष्ट दिखाई पड़ जाएँगी

यही लोग अपनी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाने पर यहाँ घटिया चढ़ाते है मंदिर के अंदर घुसते ही आपको पंक्तिवार घंटियाँ बंधी दिखाई पड़ जाएँगी। यह मन्दिर चारो और से चीड़ और मिमोसा के पेड़ो से घिरा हुआ है जिसका निर्माण 12 वी शताब्दी के दौरान चंद राजाओ द्वारा कराया गया था उत्तराखण्ड में गोलू देवता के अन्य मन्दिर चम्पावतताड़ीखेत तथा घोड़ाखाल में स्थित है जहाँ बड़ी सँख्या में श्रद्धालु दर्शन हेतु आते है

2- Dunagiri Temple: दुनागिरि मन्दिर:  दूनागिरी मन्दिर अल्मोड़ा स्थित प्राचीन व प्रमुख मन्दिरो में से एक है जो अल्मोड़ा के द्वाराहाट से 15 किमी की दुरी पर स्थित है यह मन्दिर द्रोणा पर्वत पर स्थित है तथा इसे द्रोणागिरी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है इस मंदिर की लोगो में अपार आस्था है तथा लोग दूर-दूर से मंदिर में दर्शन हेतु आते है यह मन्दिर समुद्र तल से लगभग 8,000 फुट ऊंचाई पर स्थित है जिसका पुनः निर्माण कत्यूरी वंश के शासक सुधारदेव द्वारा 1318 के दौरान किया गया था

इस मन्दिर का सम्बन्ध महाभारत काल से माना जाता है मान्यता अनुसार जब लक्ष्मणमेघनाथ द्वारा युद्ध में मूर्छित होकर गिर गए थे तब हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने हेतु गए थे हनुमान जी को बूटी की पहचान न होने के कारण वो संजीवनी बूटी का पूरा पर्वत ही उखाड़ लाये थे उस दौरान पर्वत से कुछ हिस्सा टूटकर इस जगह पर गिर गया था जिस कारण इस स्थान पर दुनागिरि मंदिर बना था

मन्दिर के भीतर एक अखण्ड ज्योति हमेशा जलती रहती है वैसे तो इस मंदिर में पुरे साल ही भीड़ रहती है फिर भी नवरात्री के पर्व के दौरान यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का आना लगा रहता है मन्दिर में बनी हुई सिद्ध पिंडियो की माँ भगवती के रूप में पूजा की जाती है वही ये स्थल कई जड़ी बूटियों का घर भी है यह मंदिर चारो और से देवदारबांज तथा सुरई के पेड़ो से घिरा हुआ है वही ये स्थल कई लुप्तप्राय पशु पक्षियों का भी घर माना जाता है       

3- Kasar Devi Temple: कसार देवी मन्दिर: अल्मोड़ा स्थित कसार देवी मन्दिर अल्मोड़ा के प्राचीन व प्रमुख मन्दिरो में से एक है जो अल्मोड़ा से 8 किमी की दूरी पर स्थित कसार देवी गांव में स्थित है यह मंदिर पहाड़ो के बीच कश्यप पर्वत पर स्थित है तथा इस मंदिर का निर्माण दूसरी शताब्दी में होना बताया जाता है

मान्यता के अनुसार इस स्थल पर माँ दुर्गा स्वयं अवतरित हुई थी तथा देवी कात्यायनी के रूप दो राक्षशो शुम्भ और निशुम्भ का अंत किया था इस मन्दिर की भक्तो में विशेष आस्था है कहा जाता है की जो मन्दिर में जो श्रद्धालु सच्चे मन से कुछ मांगता है तो माँ दुर्गा उसकी सारी मनोकामनाएँ पूरी करती है यहाँ आकर श्रद्धालुवो को अपार शांति की प्राप्ति होती है इसी कारण व्यक्ति अपने अंतिम समय पर यहाँ आने की कामना करता है

यह स्थल चुबकीय शक्ति का केंद्र भी माना जाता है यहाँ के अलावा केवल दक्षिण अमेरिका के पेरू में स्थित माचू-पिच्चू तथा इंग्लैंड के स्टोन हैंग में ऐसी ही चुंबकीय शक्तियाँ पाई जाती है अमेरिका की नासा द्वारा यहाँ पर जी० पीएस0 – 8 का केंद्र बिंदु बताया गया है जिससे व्यक्ति को मानसिक शांति की प्राप्ति होती है   

1960-70 के दशक में हिप्पी आंदोलन के समय ये जगह काफी लोकप्रिय रही है यहाँ पर कई देशी विदेशियों लोग ट्रैकिंग हेतु आते रहते है पहले ये स्थल डच सन्यासियों का घर माना जाता था स्वामी विवकानंद विवेकानंद द्वारा भी यहाँ पर एक बार ध्यान साधना की गई थी

वैसे तो यहाँ पर साल भर ही श्रद्धालुओं का आगमन रहता है फिर भी नवरात्रियों के समय पर यहाँ श्रद्धालुओं की काफी भीड़ एकत्र होती है जो देवी माँ से अपने परिवार की उन्नति की कामना करते हैकार्तिक पूर्णिमा का समय पर यहाँ एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है जिस में लोग बिना थके हुए यहाँ तक पहुंचते है। यहाँ पहुंचने हेतु कालीमठ नामक जगह से पैदल आना पड़ता है जबकि कालीमठ तक आपको टैक्सी आदि उपलब्ध हो जाती है

History of Almora
JAGESHWAR TEMPLE

4- Jageshwar Dham Temple: जागेश्वर धाम मन्दिर: जागेश्वर धाम उत्तराखंड के अल्मोड़ा में स्थित है जो भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक माना जाता है यह मंदिर अल्मोड़ा से 35 किमी की दुरी पर स्थित जागेश्वर नामक जगह पर स्थित है जागेश्वर में लगभग 250 मंदिर है तथा जागेश्वर मंदिर लगभग 125 छोटे व बड़े मंदिरो का एक समूह है जिनमे से 4-5 मंदिर प्रमुख है जागेश्वर धाम को उत्तराखंड का पांचवा धाम भी माना जाता है

इस स्थल को भगवान शिव की तपस्थली के रूप में भी जाना जाता है मान्यता के अनुसार यही पर भगवान शिव और सप्तऋषियों ने तपस्या की थी सर्वप्रथम भगवान शिव के शिवलिंग की पूजा करने की शुरुवात यही से शुरू हुई मानी जाती है

मान्यता के अनुसार इस मंदिर परिसर में भगवान राम के पुत्र लव तथा कुश द्वारा हवन का आयोजन करवाया गया था जिसमे सभी देवी-देवताओ को बुलाया गया था। मंदिर का निर्माण पत्थरो की बड़ीबड़ी शिलाओं को काटकर करवाया गया था वही मंदिर के दरवाजे देवदार की लकड़ियों एवं ताम्बे से मिलकर बनाये गए है जिसमे देवी देवताओ के चित्र बने हुए है मंदिर बनाने में वास्तुकला का खास योगदान है

मान्यतानुसार पहले यहाँ पर कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार की मन्नते मांगता था तो वो मन्नत उसी रूप में पूरी हो जाया करती थी जिससे कई लोगो का बुरा भी होने लगा था बाद में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा इस स्थान को अपनी शक्ति द्वारा कीलित कर दिया गया था उसके बाद मंदिर में केवल सही मनोकामनाएँ ही पूजापाठ द्वारा पूरी होने लगी

मंदिर प्रांगड़ के अंदर जागेश्वर मंदिर, कुबेर मन्दिर, नंदा देवी मन्दिर, नवग्रह मंदिर, पिरामिड मन्दिर, दंडेश्वर मंदिर, चंडी मन्दिर बने है महाशिवरात्रि के दौरान यहाँ पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहाँ पहुंचते है व अपने व अपने परिवार की कुशलता हेतु प्रार्थना करते है मंदिर चारो और से देवदार के घने जंगलो से घिरा हुआ है तथा कला प्रेमियों के लिए भी ये स्थल काफी महत्वपूर्ण है 

5- Nanda Devi Temple: नन्दा देवी मन्दिर: नंदा देवी मन्दिर का उत्तराखंड में एक अलग ही स्थान है जो अल्मोड़ा जिले में स्थित है जिसकी यहाँ के लोगो में अपार श्रद्धा है इस मन्दिर का इतिहास 1,000 साल से भी ज्यादा पुराना माना जाता है

इस मंदिर में देवी दुर्गा के अवतार की पूजा की जाती है जो शिव मंदिर के बाहरी ढलान पर स्थित है यहाँ प्रति वर्ष भाद्रपद मास को पंचमी के दिन माँ नंदा देवी के विशाल मेले का आयोजन किया जाता है जहाँ पूरे भारत के श्रद्धालु माँ के दर्शन हेतु यहाँ पहुँचते है इस दिन माँ नंदा को सजाया व महिलाओ द्वारा माँ नंदा को नहलाया जाता है इसके बाद अष्टमी के दिन महापूजन किया जाता है व भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है जिसमे भाग लेने देश विदेश के श्रद्धालु यहाँ पहुंचते है

प्रति 12 वर्ष के अंतराल पर माँ नंदा और सुनंदा की भव्य शोभा यात्रा निकली जाती है जिसमे भाग लेने भी देश विदेश के श्रद्धालु यहाँ पहुंचते है यह यात्रा लगभग 180 किमी लम्बी होती है जो कुमाऊँ व गढ़वाल में संयुक्त रूप से होकर जाती है जो काफी खतरनाक रास्तो से होते हुए जाती है

इस मंदिर का निर्माण चंद शासको द्वारा होना बताया जाता है चंद शासक ही देवी माँ नंदा की सोने की मूर्ति लाये तथा यहाँ लाकर स्थापित करवाई थी तभी से चंद शासको द्वारा देवी नंदा को ही अपनी कुल देवी मानकर पूजा जाने लगा मानसखण्ड के अध्याय में भी माँ नंदा का उल्लेख किया गया है इसके सन्दर्भ में माँ नंदा के दर्शन मात्र से ही मनुष्य का कल्याण, समृद्धि व सुख शांति मिल जाती है

Related Posts

Leave a Comment