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देहरादून
Dehraddun
Know About Dehradun District in Hindi:
देहरादून उत्तराखण्ड का सबसे प्रमुख जिला होने के साथ–साथ उत्तराखण्ड की राजधानी भी है। यह जनसंख्या के हिसाब से उत्तराखण्ड का सबसे बडा जिला हैं। यह उत्तराखण्ड ही नही अपितु देश के सबसे प्रतिष्ठित शहरों मे से एक है।
इसे उत्तराखण्ड बननें के बाद अस्थायी राजधानी बनाया गया था। गैरसैड राजधानी के रूप मे प्रस्तावित थी परन्तु अभावों के कारण अभी तक उसे राजधानी के रूप में स्वीकृत नही किया गया है तथा देहरादून ही अभी तक यहाँ की राजधानी बनी हुई है।
यह 3088 वर्ग किमी0 के क्षेत्र में फैला हुआ है तथा जिले की आबादी 1,696,694 है।
देहरादून की सीमाएँ:
Area of Dehradunयह 3088 वर्ग किमी0 के क्षेत्र में फैला हुआ है तथा जिले की आबादी 1,696,694 है। यह शहर दो भागों में बंटा हुआ है जिसमे से एक भाग देहरादून शहर जोकि एक खुली घाटी है जो कि हिमालय व शिवालिक पहाडियों से घिरा हुआ है तथा दूसरा जौनसार भाबर का क्षेत्र है जो हिमालयी पहाडी के बीच बसा हुआ है।
यह उत्तर–पश्चिम में जिला उत्तरकाशी, पूर्व दिशा में टिहरी व पौडी जिले से, पश्चिमी सीमा पर हिमाचल का सिरमौर जिला और टौंस व यमुना नदी तथा दक्षिण में हरिद्वार जिला व उत्तर प्रदेश का सहारनपुर से इसकी सीमाएं मिलती है।
देहरादून का इतिहास
History of Dehradun:देहरा का अर्थ देवालय अथवा देवग्रह तथा दून का अर्थ हिन्दी तथा पंजाबी में समाधि, मन्दिर तथा गुरूद्वारा कहा जाता हैं उसी के अनुसार इसका नाम देहरादून पडा। एक अन्य मान्यता के अनुसार 18 वी सदी के दौरान सिख गुरू राम राय द्धारा इसकी स्थापना की गई थी।
सन 1675 में सिख अनुयायियों का यहाँ आगमन होने लगा। यहाँ वो 24 सालों तक रहे। उसी बीच गुरू राम राय के बेटे का आगमन भी यहाँ पर हुआ, उसी समय दून अस्तित्व में आया था। गुरू रामराय के सम्मान में घामवाला गांव में भव्य मेले का आयोजन होता है।
यहाँ बौद् धर्म, तिब्बती व नेपाली लोग भी काफी मात्रा में रहते है। राजपुर गांव व क्लेमेन्टाउन में अधिकतर तिब्बती मूल व बौद्व धर्म के लोग ही निवास करते है।
यहाँ का तिब्बती बाजार भी तिब्बती लोगो द्वारा ही बसाया गया है। यहाँ घूमने के लिए कई पर्यटक स्थल है जिसे देखने देश–विदेश से पर्यटक यहाँ आते है।
संस्कृत में द्रोणि का दो पहाडाs की घाटी होता है। यहाँ पूर्व में गुरू द्रोणाचार्य ने तपस्या की थी तथा इस स्थान पर उनका डेरा भी था। यहाँ मुख्य रूप से हिन्दी, अंग्रेजी व गढवाली भाषा बोली जाती है।
राजपुर रोड पूर्वी नहर सडक से शुरू हो जाती है इसके दोनो किनारों पर चौड़े बरामदे, ढालदार छतो वाले छोटे बंगले इस शहर की पहचान है।
यह बाजार सन 1920 को ब्रिटिश टुकडी के यहाँ आने पर अस्तित्व में आया था। इस स्थान पर बडे–बडे माल, शो–रूम, रेस्टरोन्ट आदि है जो इस सडक की शोभा बढाते है।
दृष्टिबाधित लोगों के लिए राष्ट्रीय स्तर का पहला संस्थान भी राजपुर रोड पर ही स्थित है जिसकी स्थापना 19 वीं सदी के 90 के दशक में हुआ था।
यह स्थान पहाडो से घिरे होने के कारण साईकिलिंग करने वालो के लिए स्वर्ग से कम नही है। राजपुर रोड पर शाम के समय साईकिलिंग करने वाले पर्याप्त मात्रा मे दिखाई पड जायेंगे।
देहरादून में उद्द्योग के साधन:
देहरादून की बैकरीज काफी ज्यादा प्रसिद्ध है। पहले अंग्रेज लोग काफी मात्रा में देहरादून में रहते थे। उन्होने ही यहाँ के लोगों को बेकरी बनाना सिखाया, तब से ही यहाँ के लोग बेकरी बनाने में निपुण हो गये थे।
लीची को देहरादून का पर्यावाची कहे जो अतिशोक्ति नही होगा। लीची की पैदावार देश के गिने चुने जगहो मे होती है देहरादून भी उन्ही जगहों में से एक हैं।
लीची चुनिंदा जलवायु में ही होती है। इसके अतिरिक्त यहाँ पर नाशपाती, अमरूद, आम और बेर आदि के पेड भी बहुतायत से पाये जाते है। देहरादून अपने राजमा दाल व लीची के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहाँ की राजमा और लीची विदेशो तक को निर्यात होती है।
यहाँ घंटाघर से आगे का पलटन बाजार शहर का सबसे पुराना व सबसे व्यस्थतम बाजार है जहाँ शाम के समय पैर रखने की जगह तक नही मिलती है।
यह शहर यहाँ के शिक्षण संस्थानों, जीवनशैली, हास्पिटलों आदि के लिए पूरे उत्तराखण्ड में प्रमुख है। आसपास के क्षेत्रों से पढाई करने व ईलाज कराने हेतु लोग यही आते है। यहाँ कई प्रतिष्ठित स्कूल भी है जहाँ पढाई करने देश–विदेश से छात्र यहाँ आते है।
यहाँ यातायात के बेहतर साधन व सडको के अच्छी क्वालिटी होने के कारण यहाँ विश्व प्रसिद्ध कम्पनियां भी सेलाकुई क्षेत्र में लगाई गई है जो देहरादून के विकास में बराबर योगदान दे रही है। यह शहर शहद, शैंपू, फलों से तैयार शर्बत व प्राकृतिक साबुन के लिए भी प्रसिद्ध है।
यहाँ का विकास पिछले 20 वर्षो में बहुत तेजी से हुआ है। यहाँ पर देश के मुख्य शिक्षण संस्थान होने के कारण यहाँ का विकास अन्य राज्यों की तुलना में बहुत तेजी से हुआ है। यहाँ पर आई0टी0 पार्क व सेज की स्थापना ने भी देहरादून के विकास में महत्तवपूर्ण योगदान दिया है।
यहाँ दृष्टिबाधितों के लिए स्कूल, कालेज, छात्रावास, ब्रेल, पुस्तकालय आदि का भी निर्माण किया गया है। रिस्पना ब्रिज शायर गृह डालनवाला मे स्थित है जो मनुष्यों पर मानसिक रूप से आई चुनौतियों के लिए काम करता है।
देहरादून के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल:
Famous Tourist Places in Dehradunयहाँ के मुख्य स्थानों में एफ0आई0आर0, तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग, सर्वे आफ इंडिया, भारतीय पैट्रोलियम संस्थान, वन अनुसंधान संस्थान, भारतीय राष्ट्रीय मिलिटरी कालेज, इंडियन मिलिटरी एकेडमी, सहस्त्रधारा, गुच्चूपानी, वाडिया संस्थान, मालसी डियर पार्क, टपकेश्वर महादेव, रोवर्स केव, बुद्धा टेंपल, माल देवता का मंदिर, राजाजी नेशनल पार्क, लोटस टेंपल आदि आते है।
देहरादून के प्रमुख पर्यटक स्थलो का विवरण हिंदी में:
Famous Tourist places in Dehraddun:
घंटाघरः Ghanta Ghar: घंटाघर देहरादून शहर के बीचों बीच बसी एक ऐतिहासिक ईमारत है जिसे क्लॉक टावर के नाम से भी जाना जाता है। यह देहरादून के मुख्य स्थान राजपुर रोड पर स्थित है। इसका निर्मण ब्रिटिश काल के समय में हुआ था।
इस टावर के छः मुह है तथा इस टावर की आवाज दूर–दूर के हिस्सों मs तक सुनाई देती है। इसकी सुईया काफी समय से बंद पडी हुई है फिर भी ये जगह यहाँ आने वाले यात्रियों व स्थानीय लोगों को यह आकर्षित व मंत्रमुगध कर देती है।
एफ0आई0आर0% F.R.I: एफ0आई0आर0, देहरादून का सबसे पुराना इंस्टीटयूट है। घंटाघर से इसकी दूरी 7 किमी है। यह ब्रिटिश कालीन है और इसका निर्माण 1878 को वन स्कूल के रूप में हुआ था। बाद में सन 1906 में इसे वन अनुसंधान संस्थान के रूप में पुर्नगठित किया गया। इसके अन्दर कुल 7 म्यूजियम है और ये लगभग 450 हेक्टेयर में फैला हुआ है।
इसकी वास्तुकला में औपनिवेशिक व ग्रीको–रोमन शैलियों का समावेश देखने को मिलता है। इसका अंदरूनी डिजाईन मिडिया और फिल्म निर्माताओं को भी अपनी और आकर्षित करता रहा है। इसमें कई बडे निर्माताओं की फिल्म की सूटिंग भी हो चुकी है। पान सिंह तोमर व स्टूडेंट आफ द ईयर की सूटिंग भी यही पर हुई है।
पलटन बाजारः Paltan Bazaar: यह बाजार देहरादून शहर के बीचों बीच बसा हुआ है जो इस शहर का सबसे पुराना व सबसें बडा बाजार भी है। यह बाजार लगभग 100 साल पुराना है। यह बाजार अपने मसालों के लिए भी प्रसिद्ध है।
यहाँ हर समय पर्यटको व लोकल यात्रियों की भीड लगी रहती है। यहाँ पर ब्रांडेड व गैर ब्रांडेड चीजो का पूरा बाजार है। यह जगह अपने गोलगप्पों, मोमोज, चावमीन, टिक्की, डोसा आदि के लिए भी पूरे देहरादून में प्रसिद्ध है।
गुच्चूपानीः Guchupani: गुच्चुपानी, देहरादून के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। यह पहाडो के बीच बसी हुई एक केव अर्थात गुफा है जो देहरादून से 9 किमी की दूरी पर बसा एक बहुत ही सुन्दर पहाडी क्षेत्र है जहाँ पहाडाs के बीच से झरना गिरता है।
यह स्थान राबर्स गुफा के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह गुफा दो भागो में विभक्त है तथा इसे गायब होने वाली गुफा के नाम से भी जाना जाता है। ब्रिटिश काल के दौरान लुटेरे छुपने के लिए इस गुफा का इस्तेमाल किया करते थे।
लच्छीवालाः Lachiwala: लच्छीवाला देहरादून का एक और प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है जो बच्चों व बडों को समान रूप से पसन्द है। यह जगह खास तौर पर गार्मियों में जन्नत से कम नही लगती हैं। यह देहरादून से 22 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर एक बडा पार्क भी है जो बच्चो के लिए प्रमुख आकर्षण में से है।
यह जगह साल के पेड से घिरी हुई है। यहाँ सुसवा नदी बहती है, जो यहाँ बने कई सारे पूल में आकर गिरती है यहाँ आकर यात्री ढंडे पानी मे नहाने का आन्नद लेकर गर्मियों में गर्मी के मौसम से छुटकारा पा सकते है।
टपकेश्वर मन्दिरः Tapkeshwar Mandir: यह देहरादून के प्रसिद्ध मन्दिरों मे से एक है जो देहरादून शहर से 5.5 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ मौसमी नदी के तट पर स्थित है यहाँ एक विशाल गुफा है उसी के अन्दर यह मन्दिर है जो कि भगवान शिव को समर्पित है। इस मन्दिर के दर्शन करने देशभर से लोग आते है।
मान्यता अनुसार देवताओ की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें यहाँ पर देवेश्वर रूप में दर्शन दिये थे।
कथानुसार अश्वस्थामा ने अपनी माता से दुध पीने की इच्छा प्रकट की परन्तु उनकी इच्छा पूरी न हो पाने के कारण उन्होने कठिन तप किया तब भगवान शिव वहाँ प्रकट हुए और उनके तप से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान स्वरूप गुफा से दुग्ध की धारा टपका दी, इसी कारण इस स्थान का नाम टपकेश्वर रखा गया।
तब से ही गुफा से दुग्ध टपकने लगा जो सीधे शिवलिंग पर टपकने लगा तथा इसी स्थान पर अष्वस्थामा को अमरता का वरदान भी मिला था। बाद में कलियुग मे दुध की जगह पानी ने ले ली। अब इस शिवलिंग में पानी की बूंदे टपकती है।
सहस्त्रधाराः Shastradhara: यह स्थान राजपुर गाव के पास स्थित है जो देहरादून शहर के बीच से 16 किमी की दूरी पर स्थित है। यह देहरादून का बहुत प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। यह बल्दी नदी पर स्थित है। यहाँ पर दूरदराज से लोग घूमने के लिए आते है। जैसे की नाम से ही प्रतीत होता है सहस्त्रधारा जिसका अर्थ है सहस्त्रों धाराये अर्थात कई हजारों पानी की धाराये।
यह अपने गंधक के पानी के लिए प्रसिद्ध है जिससें कई सारे त्वचा सम्बन्धित रोग ठीक होते हैं। समय के साथ–साथ यह स्थान अपने मूल रूप से काफी बदल गया है। अब यहाँ पर कई सारे कुण्ड बना दिये गये है जहाँ पर पानी एकत्र किया जाता है जिसमे पर्यटक स्नान करते है।
यह पर्यटक स्थल बच्चों और बडाs को समान रूप से आकर्षित करता है जहाँ गर्मियों में पर्यटको की भरमार लगी रहती है। यहाँ खाने, पीने व रहने के लिए होटल व गेस्ट हाउस आसानी से पर्यटको का उपलब्ध हो जाते है।
यातायात मे देहरादून शहर हवाई व सडक मार्ग दोनाs से जुडा हुआ है। इसका नजदीकी हवाई अडडा जौलीग्रान्ट है जो यहाँ से लगभग 20 किमी की दूरी पर बसा हुआ है।
प्रमुख नगरों की सडक मार्ग से देहरादून की दूरी निम्न है–
o दिल्ली – 250 किमी
o यमुनोत्री – 279 किमी
o मसूरी – 35 किमी
o नैनीताल – 297 किमी
o हरिद्वार – 60 किमी
o शिमला – 221 किमी
o ऋषिकेश – 44 किमी
o आगरा – 382 किमी
o रूडकी – 43 किमी
o ऊखीमठ – 297 किमी
हरिद्धार
Haridwar
Know About Haridwar District in Hindi:
हरिद्धार को जाने हिंदी में:
हरिद्धार उत्तराखण्ड का एक महत्वपूर्ण जिला है व एक पौराणिक शहर भी है जिसे हरि की नगरी और हरि का द्धार व गंगाद्धार कहकर भी पुकारा जाता है। इसे शिव की नगरी कहकर भी पुकारा जाता है।
यह स्थल हिन्दुओं के सात पवित्रतम स्थलों में से आता है। चार धाम अर्थात बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री जाने वाले श्रद्धालु हरिद्धार से ही अपनी यात्रा प्रारम्भ करते है। हरिद्धार अपने मंदिरों के लिए देश–विदेश में प्रसिद्ध है जिनके दर्शन करने हेतु दर्शनार्थी देश विदेश से हरिद्धार भ्रमण पर आते है।
ये गंगा नदी के तट पर बसा हुआ शहर है। हर–की–पौडी यहाँ का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है जहाँ से होकर पवित्र गंगा नदी बहती है। इसे गंगा माता कहकर भी पुकारा जाता है जहाँ स्नान करने लिए श्रद्धालु देश–विदेश सें हरिद्धार आते है।
हरिद्धार की समुद्र तल से ऊंचाई व साक्षरता दर:
Height and Literacy Rate in Haridwar:यह समुद्र तल से 314 मीटर की ऊॅचाई पर स्थित है तथा कुल 2360 वर्ग कि0मी0 के क्षेत्र में बसा हुआ है।
2011 की जनगणना के अनुसार यहाँ की जनसंख्या 18.90 लाख तथा साक्षरता दर 73.34 है, जिसमें 64.79 प्रतिशत महिलायें व 81.04 प्रतिशत पुरूष साक्षर है।
हरिद्धार का इतिहास:
History of Haridwar:कहा जाता है कि गंगा जल में स्नान करने मात्र से मनुष्यों के सारे पाप स्वयं ही नष्ट हो जाते है। हर की पौडी के निकट ही ब्रहम कुण्ड है जिसे राजा विक्रमादित्य ने अपने भाई ब्रिथरी की याद में बनवाया था। यहाँ पर मन्थन के दौरान अमृत गिरा था।
पौराणिक मान्यता के अनुसार यहाँ भगवान शिव व भगवान विष्णु प्रकट हुए थे इसलिए भी ये स्थान पवित्र माना जाता है। यहाँ रोज शाम के वक्त आरती होती है जिसे देखने श्रद्धालु प्रतिदिन यहाँ आते है तथा पुण्य के भागी बनते है।
पुराणों के अनुसार राजा भागीरथ अपने पूर्वजो को मुक्ति दिलाने हेतु गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी तक लाये थे तभी से हरिद्वार मे अस्थि विसर्जन की परम्परा चली आ रही है।
मान्यता है कि हरिद्धार को ब्रहमा, विष्णु और महेश ने अपनी उपस्थिती द्धारा पवित्र किया हुआ है। यहाँ विश्व प्रसिद्ध कुम्भ का मेले का आयोजन भी होता है यहाँ 6 वर्ष के अन्तराल पर अर्द्ध कुम्भ व 12 वर्ष के अन्तराल पूर्ण कुम्भ का आयोजन होता है, परन्तु अबकी बार कुम्भ 11 साल बार यानि 2021 में लगेगा जिसकी तैयारी पहले से ही शुरू हो चुकी है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब देवताओं व दानवों द्धारा जब समुद्र का मन्थन हो रहा था तब मन्थन द्धारा कुम्भ अर्थात मटके में अमृत बाहर निकला, तब देवताओं के ईशारs पर देवराज इन्द्र के पुत्र वो मटका लेकर भाग निकले थे।
तब रास्ते में देवताओं व दानवों में भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध के दौरान उस मटके से अमृत की कुछ बूंदे धरती पर आकर गिर गई थी वो बूंदे पृथ्वी के जिस–जिस भाग पर गिरी उसी स्थान पर कुम्भ का मेला लगता है। मटके को कुम्भ भी कहा जाता है इसलिये इसका नाम कुम्भ का मेला पडा।
हरिद्धार के मुख्य अखाड़े:
Famous Akharas in Haridwar:
हरिद्धार शहर यहाँ के अखाडो के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ कुल 14 अखाडे है जिसमे निरंजनी अखाडा, जूना अखाडा, निरवानी अणी अखाडा, पंचायती अखाणा, अटल अखाडा, आनन्द अखाडा, आहवाहन अखाडा, पंचगिनी अखाडा, दिगम्बर अणि अखाडा, निरवानी अणि अखाडा, निर्मोहि अणि अखाडा, निर्मल अणि अखाडा, पचायती बडा उदासीन अखाडा व निर्मल पंचायती अखाडा मुख्य है जिनके द्धारा पूरे भारतवर्ष के अखाडों व विश्व विख्यात मंदिरों का नेतृत्व किया जाता है।
हरिद्धार के प्रमुख मन्दिर:
Famous Temples in Haridwar:यहाँ कई विश्व प्रसिद्ध मन्दिर है जिसमें दक्ष प्रजापति मंदिर, माता मन्सा देवी मन्दिर, माता चण्डी देवी मन्दिर, भैरव मन्दिर, पारद शिवलिंग मंदिर, भूमा निकेतन, शान्ति निकेतन, भारत माता मन्दिर, माया देवी मंदिर, पावन धाम, वैष्णो देवी मंदिर, पावन धाम, विष्णु धाट, भीमगोडा तालाब, दुधाधारी बर्फानी मंदिर आदि प्रसिद्ध मंदिर है।
दक्ष प्रजापति मंदिर जो की हरिद्वार के कनखल में स्थित है जिसे शिव जी की ससुराल भी कहा जाता है।
मन्सा देवी मन्दिर व चण्डी मन्दिर जाने हेतु पैदल के साथ–साथ श्रद्धालु उडनखटौला से भी यात्रा का आन्नद ले सकते है। उडनखटौला द्धारा यात्री पूरे हरिद्धार शहर व प्राकृतिक सौन्दरता का आन्नद ले सकता है।
यहाँ का भारत माता मन्दिर देश का एकमात्र ऐसा मन्दिर है जहाँ भारत माता को मूर्ति रूप मे पूजा जाता है जिसका निर्माण 1983 को स्वामी सत्यमित्रानंद द्वारा किया गया था तथा इसका उदधाटन इंदिरा गांधी ने किया था।
बी0एच0ई0एल0
B.H.E.L:हरिद्धार से लगभग 10 किमी की दूरी पर बी0एच0ई0एल स्थित है जो भारत सरकार का एक नवरत्न पी0एस0यू0 है जो 2034 एकड में फैला हुआ है। यहाँ से ही भारत के साथ–साथ पूरे विश्व मे बडे–बडे टरबाईनो आदि की सप्लाई की जाती है।
सिडकुल
Sidkul:बी0एच0ई0एल के अन्तर्गत ही सिडकुल की भी स्थापना की गई है जिसमें अनेकों कम्पनिया स्थापित है। सिडकुल के शुरूआत में यहाँ कुछ ही कम्पनिया थी परन्तु अब यहाँ 500 से भी ज्यादा कम्पनिया स्थापित है।
इन कम्पनियों में फार्मा की कम्पनियों भी काफी मात्रा में स्थापित है जहाँ पर किस्म–किस्म की दवाईयो का निर्माण हो रहा है और पूरे भारत में उनकी सप्लाई भी यही से हो रही है।
यही पर भारत का पहला आई0आई0टी इंजीनियरिंग कालेज भी है जो रूडकी में स्थित है।
राजाजी नेशनल पार्क:
Rajaji National Park:
यहाँ से कुछ ही दूरी पर राजा जी नेशनल पार्क भी स्थित है जहाँ आपको कई प्रकार के जानवर देखने को मिल जायेंगे। राजाजी पार्क हरिद्धार से 10 किमी की दूरी पर स्थित है जो जंगली जानवरों और रोमांच प्रेमियों के लिए भी आदर्श स्थल है। नेशनल पार्क जाने के लिए आपको बाहर से ही जीप वगैरह मिल जायेगी जिसकी सहायता से आप आसानी से पार्क में घूम सकते है।
हरिद्धार के मुख्य विश्वविद्यालय:
University in Haridwar:
यहाँ कई प्राचीन विश्वविद्यालय भी है जहाँ प्राचीन संस्कृति, संस्कृत के साथ–साथ नई–नई तकनीक की भी शिक्षा दी जा रही है। इनमें गुरूकुल विश्वविद्यालय व ऋषिकुल विश्वविद्यालय मुख्य है। यहाँ विश्व प्रसिद् पतंजलि विश्वविद्यालय भी है जो कि योगगुरू रामदेव द्वारा संचालित है जहाँ योग व अन्य के बारे में शिक्षा प्रदान जाती है।
हरिद्धार कैसे पहुंचे:
How to reach Haridwar:यहाँ से उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून लगभग 60 किमी की दूरी पर स्थित है व नई दिल्ली की दूरी लगभग 220 किमी है। यह शहर यातायात में वायु व सडक मार्ग से देश के लगभग सभी शहरों से आपस में जुडा हुआ है।
यहाँ का निकटतम हवाई अडडा जौलीग्रान्ट है जो यहाँ से लगभग 30 किमी की दूरी पर स्थित है। वहाँ से सडक मार्ग से हरिद्धार टैक्सी व स्वयं के साधन से हरिद्धार तक आसानी से पहुँचा जा सकता है।
टिहरी गढवाल
Tehri Garhwalटिहरी गढ़वाल को जाने हिंदी में
Know about Tehri Garhwal in Hindi:
टिहरी गढवाल उत्तराखण्ड का एक खूबसूरत जिला है जो चारो ओर सें बर्फ से ढकी हुई पहाडियों से घिरा हुआ है। टिहरी गढवाल अपनी प्राकृतिक खूबसूरती व धार्मिक पर्यटन के कारण बहुत प्रसिद्ध है, जिससे देश–विदेश से आने वाले सैलानी प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में यहाँ टिहरी आते हैं। वर्तमान में यहाँ टिहरी के जिलाधिकारीं डा0 वी0 षणमुगम है।
यहाँ मुख्यतः गढवाली, हिन्दी व संस्कृत भाषा बोली जाती हैं टिहरी गढवाल दो शब्दों से मिलकर बना है टिहरी और गढवाल।
टिहरी का अर्थ त्रीहरी से है जिसका मतलब उस स्थान से है जो तीन तरह के पाप मनसा, वचना, कर्मा से है जो कि सारे पाप धो देता है। वही दूसरा गढ से है जिसका मतलब किले से होता है। पहले गढवाल छोटे–छोटे गढों में बटा हुआ था जिसमें अलग–अलग राजा हुआ करते थे।
टिहरी गढ़वाल की जनसंख्या
Population in Tehri Garhwal:
हाल ही में टिहरी गढवाल को देश के सबसे विकसित शहरों की सूची में शामिल किया गया है। यह 3,642 वर्ग कि0मी0 में बसा हुआ है व 2011 की जनगणना के अनुसार इसकी आबादी 3,19,805 है जिसमें 2,96,604 पुरूष व 3,19,805 महिलायें है। यहाँ गावों की संख्या लगभग 1868 है।
टिहरी गढवाल के उत्तर में उत्तरकाशी, दक्षिण में पौडी गढवाल, पूर्व में रूद्रप्रयाग तथा पश्चिम में देहरादून जिला है तथा यह ऋषिकेश तक फैला हुआ है।
टिहरी गढ़वाल का इतिहास:
History of Tehri garhwal:मान्यता के अनुसार कनकपाल का विवाह भानु प्रताप की लडकी से हुआ था जिससे भानु प्रताप ने अपना सारा राज्य कनकपाल को सौप दिया था, बाद में कनकपाल ने धीरे–धीरे सारे गढ जीत लिये थे और एक समय पूरे गढवाल पर लगभग 918 सालों तक उनका साम्राज्य स्थापित हो गया था।
बाद में सन 1803 में गोरखों ने देहरादून में खूरबूडा की लडाई जीत कर गढवाल पर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था।
बाद में स्वर्गीय राजा प्रदवमुन सिंह के पुत्र सुदर्शन शाह ने अंग्रेजो की सहायता से पुनः यहाँ अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया। अंग्रेजो द्धारा पश्चिम गढवाल सुदर्शन शाह को सौप दिया गया जो बाद में टिहरी रियासत के नाम से जाना जाने लगा।
बाद में उनके उत्तराधिकारियों ने प्रताप शाह, कीर्ति शाह, नरेन्द्र शाह ने अपनी राजधानी क्रमशः प्रतापनगर, कीर्ति नगर व नरेन्द्रनगर बनाई। बाद में इन क्षेत्रों के लोगों ने सक्रिय रूप से भारत छोडो आन्दोलन के दौरान बढ–चढ कर भाग लिया।
यहाँ संचार व्यवस्था में कमी व दुर्गम पहाडी होने के कारण इसकी पुरातन संस्कृति आज भी लगभग वैसी ही है जैसे पहले थी। पर्वतों के बीचों बीच स्थित होने व चारों और हिमालय से ढके पहाड होने के कारण यह स्थान पर्यटको के आकर्षण के केन्द्र में रहती है।
यह भागीरथी नदी के तट पर बसा हुआ शहर है व कृषि के मुख्य व्यापार केन्द्र के रूप में आता है। यहाँ मुख्य रूप से चावल, जौ और तिलहन की खेती होती है। आसपास का लगभग 4421 वर्ग किमी का क्षेत्र पूरी तरह से हिमालयी क्षेत्र के अन्तर्गत आता है तथा दक्षिण में ये गंगा नदी से घिरा हुआ है।
टिहरी का सबसे मुश्किल दौर तब आया जब ये पूरा शहर भिलंगना और भागीरथी नदी में समा गई। लोगो का पुश्तों से बना घर उनके खेत–खलियान सब इस नदी में समा गये। उस समय उन लोगो के दुख का कोई परवान नही था, उन्हे वो जगह छोडनी पड रही थी जहाँ उनकी कई पीढीयों ने अपना सारा जीवन काट था।
उनके खेत खलियान सब ऊजड चुके थे। यहाँ के लोगो को कई जगहों पर जमीने दी गई। बाद में इससे ऊपर नई जगह पर नया शहर बसाया गया जोकि मास्टर प्लान के हिसाब से बनाया गया था। जो नई टिहरी के नाम से जाना जाता है जो अब पूरे भारतवर्ष के सबसे विकसित शहरों में से आता है। ये मास्टर प्लान के हिसाब से बसाया गया शहर है।
टिहरी डैम
Tehri Dam:यहाँ पर डैम बना दिया गया जो टिहरी बांध कहलाता है। यह उत्तराखण्ड के साथ–साथ पूरे देश को भी बिजली उपलब्ध करवाता है। यह एशिया का सबसे बडा डाम है तथा विश्व में ये 5 वे नम्बर पर आता है।
1978 को इस बांध को बनाने का काम शुरू हुआ था तथा इसका फेज 2006 में बनकर में तैयार हुआ था जो 52 वर्ग किमी में फैला हुआ है तथा इससे 1000 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। यह बांध 84 क्षमता के भूकंप के झटके को सहने में सक्षम है।
टिहरी गढ़वाल के प्रसिद्ध मंदिर:
Famous Temples in Tehri Garhwal:यहाँ कई प्रसिद्ध मंदिरों व पर्यटक स्थलों में श्री बूढाकेदार नाथ मंदिर, देवप्रयाग, महासरताल, कैम्पटी फाल, नागटिब्बा, नरेन्द्रनगर, चम्बा, सेम मुखेम, धनौल्टी आदि है।
पौडी गढवाल
Pauri Garhwalपौड़ी गढ़वाल को जाने हिंदी में
Know Pauri Garhwal in Hindi:
पौडी गढवाल उत्तराखण्ड का एक जिला है जिसका निर्माण अंग्रेजो के शासनकाल में हुआ था। ये प्रकृति की गोद में बसा एक छोटा सा शहर है जो तमाम इतिहास के पन्नों को खुद में समेटे हुए हैं। ये चारो और से बर्फीले पहाडों व धने जंगलो से धिरा हुआ जिला है।
पौडी गढवाल का मुख्य प्रशासनिक भवन पौडी में आता है। इस जिले में एक संसदीय क्षेत्र तथा 6 विधानसभा क्षेत्र आते है जो यमकेश्वर, पौडी, श्रीनगर, चैबटटाखाल, लैंसडौन, और कोटद्धार क्षेत्र है।
पौडी ब्रिटिश काल से ही सांस्कृतिक व प्रशासनिक गतिविधियों का मुख्य केन्द्र रहा है। यहाँ का सुन्दर वातावरण, ऊॅचे–ऊॅचे बर्फ से ढके हुए पर्वतों की श्रंखलाऐ भी सैलानियों को यहाँ आने के लिए आकर्षित करती है और यहाँ की खूबसूरती में चार चांद लगाती है।
यहाँ मुख्यतः गढवाली भाषा बोली जाती है, साथ–साथ हिन्दी व अंग्रेजी भाषा भी यहाँ के लोग बखूबी बोलते है।
यहाँ की अतुल्यनीय सुन्दरता के कारण अंग्रेजो ने पहले पौडी को ही हिल स्टेशन के तौर पर विकसित किया गया था। उत्तराखण्ड मे सबसे पहले कत्यूरी राजाओं का शासन हुआ करता था। कत्यूरी शासनकाल के बाद गढवाल साठ से अधिक राजवंशों मे विभाजित हुआ।
पौड़ी गढ़वाल की समुद्र तल से ऊंचाई व जनसंख्या:
Height and population in Pauri Garhwal:यह समुद्र तल से 1814 मीटर की ऊॅचाई पर स्थित है जिसका कुल क्षेत्रफल 5440 वर्ग किलोमीटर है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहाँ की जनसंख्या 6,97,078 थी। यह गोलाकार रूप में बसा हुआ है जिसके उत्तर में चमोली, रूद्रप्रयाग और टिहरी गढवाल, दक्षिण में उधमसिंहनगर, पूर्व में अल्मोडा और नैनीताल और पश्चिम में देहरादून और हरिद्धार आता है।
पौड़ी गढ़वाल का इतिहास:
History of Pauri Garhwal:गढवाल के इतिहास में महत्तवपूर्ण घटना तब हुई जब गोरखों ने कुमाऊॅ जीतने के बाद गढवाल पर भी आक्रमण कर दिया। गोरखा लोग अति क्रुर हुआ करते थे तथा नरसंहार व लूटमारी के लिए प्रसिद्ध थे।
ये गोरखायनी कहकर भी सम्बोधित किये जाते थे। गोरखा लोग युद्ध करते हुए व जीतते हुए लंगूरगढ तक पहुँच गये थे, परन्तु चीन के आक्रमण की खबर सुनकर उन्होने अपने आक्रमण को कुछ समय के लिए रोक दिया था, परन्तु बाद में सन 1803 को उन्होने फिर से आक्रमण कर दिया।
गोरखों की विशाल सेना के सामने गढवाल की फौज बहुत कम थी। गोरखों की विशाल फौज के सामनें गढवाल के 5000 सैनिक टिक नही पाये तथा युद्ध में मारे गये, इससें गढवाल को बहुत अधिक नुकसान हुआ और वहाँ के राजा प्रदयुमन शाह स्वयं खुडबुडा के युद्ध में मारे गये।
1804 तक पूरे गढवाल पर गोरखों का अधिपत्य स्थापित हो गया। 12 साल तक गोरखों द्धारा गढवाल पर राज करने के बाद 1815 को अंग्रेजो द्धारा यहाँ आक्रमण कर दिया गया और खदेडते हुए गोरखों को काली नदी के पार भेज दिया गया।
तत्परान्त गढवाल के आधे से ज्यादा भाग पर अंग्रजों का आधिपत्य स्थापित हो गया था जिसे ब्रिटिश गढवाल कहा जाने लगा।
पश्चिम का भाग जो कि राजा सुर्दशन शाह के अधीन कर दिया गया था, उन्होने अपनी राजधानी टिहरी में स्थापित कर ली थी। पहले गढवाल और कुमाऊॅ का मुख्यालय नैनीताल में था परन्तु बाद मे गढवाल मंडल के गठन हो जाने के कारण मुख्य आयुक्त का कार्यालय पौडी में स्थापित कर दिया गया।
पौड़ी गढ़वाल की संस्कृति:
Culture in Pauri Garhwalयहाँ के लोक गीत, संगीत और यहाँ की संस्कृति यहाँ के लोगो को अन्य जिले के लोगो से अलग बनाती है। यहाँ के लोग मेलो, कृषि कार्यो के दौरान व कही भी जाने के दौरान अपने संगीत, सभ्यता व संस्कृति को नही भूलते है।
पौराणिक व सास्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण, कई महत्तवपूर्ण दर्शनीय स्थल व सभी संसाधनों से परिपूर्ण होने के बाद भी पलायन यहाँ की मुख्य समस्या रही है। यहाँ गाँव के गाँव खाली होते जा रहे है। यहाँ का सबसे बडा गाँव निशानी गाँव है जहाँ आज भी लगभग 1000 परिवार रहते है।
यहाँ के व्यक्ति बहुत ईमानदार व होशियार होने के कारण आपको सरकारी विभागों के कई महत्तवपूर्ण पदों व ओहदों पर मिल जाएंगें। यहाँ लोग बहुत बहादुर व देश की सेवा में मरने मिटने वाले भी होते है, इस कारण आपको यहाँ के प्रत्येक परिवार मे से कोई न कोई व्यक्ति सेना मे भी अवश्य मिल जायेगा।
उत्तराखण्ड राज्य में पौडी ही एकमात्र ऐसा जिला है जहाँ सबसे ज्यादा पलायन हुआ है। यहाँ के लोग अधिकतर राज्य से बाहर या विदेशों में जाकर बस चुके है।
यहाँ से कई नदियाँ भी निकलती है जो अलकनंदा, हंवल, नायर आदि है। श्रीनगर में गढवाल क्षेत्र के मुख्य विश्वविद्यालय हेमवती नन्दन बहुगुणा विश्वविद्यालय जिसका बाद में नाम बदलकर श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय रखा गया था, का मुख्य प्रशासनिक कार्यालय है।
पौड़ी गढ़वाल के प्रसिद्ध मेले:
Famous Fairs in Pauri Garhwal:यहाँ के प्रसिद्ध मेलों में साल्टा महादेव का मेला, देवी का मेला, भौं मेला सुभनाथ का मेला और पटौरिया का मेला प्रसिद्ध है।
पौड़ी गढ़वाल के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल व मंदिर:
Famous Tourist places and Temples in Pauri Garhwal:चमोली जिले को उत्तराखण्ड का ताज भी कहा जाता है। यह अपने प्राकृतिक सौन्दर्य, ग्लेशियरों और मंदिरो के लिए विश्व विख्यात है। पहले ये एक तहसील था जिसे 24 फरवरी 1960 को अलग कर एक नया जिला का रूप दे दिया गया।
उस समय चमोली को ही इस जिले का मुख्यालय बनाया गया था तथा गोपेश्वर यहाँ से 12 किमी बसा हुआ एक छोटा सा गांव था।
वर्तमान मे यहाँ का प्रशासनिक मुख्यालय गोपेश्वर में स्थित है। यह पूरा जिला गढवाल संसदीय क्षेत्र के अन्तर्गत आता है तथा इसमें तीन उत्तराखण्ड विधानसभा क्षेत्र बद्रीनाथ, थराली और कर्णप्रयाग आते है।
यह 3,525 वर्ग मील के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह अलकनन्दा नदी के तट पर बसा हुआ जिला है तथा उत्तराखण्ड के प्रमुख धार्मिक स्थलों मे से एक है। चमोली मे कई छोटे और बडे मन्दिर है जो रहने और खाने–पीने की सुविधा प्रदान करते है तथा पर्यटको को अपनी और आकर्षित करते है।
हैलो, दोस्तों मैं पंकज पंत एक ब्लॉगर। दोस्तों लिखने, पड़ने व म्यूजिक (खासतौर से मैगज़ीन जैसे इंडिया टुडे व क्रिकेट सम्राट वगैरह) का शौक पहले से ही था तो सोचा क्यों न कुछ लिखा जाये और लिखा भी वो जाये जिसे पढ़कर पाठको को आनन्द भी आये व उसे पढ़कर उनके ज्ञान में भी कुछ वृद्धि हो सके। परन्तु लिखने के लिए एक लेखन सामग्री की आवश्यकता होती है तो सोचा किस विषय पर लिखा जाये। सोचते हुए दिमाग में आया की क्यों न अपने ही गृह राज्य उत्तराखंड के बारे में लिखा जाये जिसकी पृष्टभूमि बहुत ही विशाल होने के साथ-साथ यहाँ की संस्कृति और सभ्यता भी बहुत विकसित है। वही ये एक शानदार पर्यटक स्थल होने के अलावा धार्मिक दृस्टि से भी परिपूर्ण है। यहाँ हर साल हजारो की संख्या में मेलो व त्योहारों का आयोजन होता रहता है जिसे देखने व इनमे शामिल होने के लिए देश-विदेश से लाखो-करोडो लोग उत्तराखंड आते है व इन मेलों को देखने के साक्षी बनते है। इस कारण मैंने लिखने की शुरुवात की अपने उत्तराखंड से। अपनी इस वेबसाइट में मैंने उत्तराखंड की संस्कृति एवं सभ्यता, उत्तराखण्ड के प्रमुख पर्यटक स्थल, उत्तराखण्ड के प्रमुख मंदिरो, उत्तराखण्ड के प्रमुख नृत्य व संगीत, उत्तराखण्ड के प्रमुख ट्रेक्किंग स्थलों, उत्तराखण्ड के मुख्य डैम, उत्तराखण्ड की झीलों व ग्लेशियर के अलावा यहाँ की प्रमुख पर्वत चोटियों व अन्य विषयो को पाठको के समक्ष प्रस्तुत किया है। जैसे- जैसे मुझे अन्य कोई जानकारी मिलती जाएगी में उन्हें अपने पाठको के समक्ष प्रस्तुत करता रहूँगा। धन्यवाद पंकज पंत
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