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कुमाऊँ
Kumaon Region:
कुमाऊँ मंडल की जानकारी हिंदी में
Knowledge of Kumaon Region in Hindi:
कई सालो के आन्दोलनो व हजारो महिलाओ व बच्चो की आंदोलन में जान जाने के बाद आखिरकार 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड नाम के नये राज्य का जन्म हुआ। यह भारत में बनने वाला 27 वा राज्य है।
राज्य बनने के बाद उत्तराखंड को दो मंडलो में विभक्त कर दिया गया जिसमे से एक कुमाऊँ मंडल व दूसरा गढ़वाल मंडल के रूप में जाना जाने लगा। कुमाऊँ मंडल मे 6 जिले व गढ़वाल मंडल के अंदर 7 जिले बनाये गए।
कुमाऊँ मंडल के 6 जिलों में नैनीताल, अल्मोड़ा, उधमसिंह नगर, बागेश्वर, चम्पावत, पिथौरागढ़ आते है।
यहाँ के मुख्य शहरों में हल्द्वानी, रानीखेत, पिथौरागढ़, लोहाघाट, बेरीनाग, मुक्तेश्वर, रुद्रपुर पंतनगर इत्यादि आते है। उत्तराखंड का उच्च न्यायालय भी गढ़वाल मंडल के नैनीताल जिले में स्थित हैं।
कुमाऊँ की सीमाएँ: Border of Kumaon Mandal: कुमाऊँ की सीमाएं मुख्य रूप से तिब्बत, उत्तर प्रदेश, नेपाल और गढ़वाल से मिलती है। कुमाऊँ मंडल की उत्तर दिशा में तिब्बत, पूर्व दिशा में नेपाल देश, दक्षिड़ में उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम में गढ़वाल मंडल पड़ता है।
कुमाऊँ की संस्कृति: Culture of Kumaon Region in Hindi: उत्तराखंड अपनी संस्कृति, वेशभूषा, खानपान व नृत्य तथा संगीत के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यहाँ पर कुमाऊँ मंडल की अपनी अलग संस्कृति और सभ्यता है जिसके लिए दूर-दूर से सैलानी कुमाऊँ दर्शन के लिए उत्तराखंड आते है। उत्तराखंड की संस्कृति को सम्मान की दृष्टि से पूरे विश्व में देखा जाता है।
कुमाऊँ के अलग अलग राज्यों की अपनी अपनी संस्कृति है जैसे अल्मोड़ा अपने अपने खास प्रकार के ऐपड व प्रसिद्ध बल मिठाई के लिए जाना जाता है उसी प्रकार बागेश्वर में उत्तराखंड का प्रसिद्ध मेला उत्तरायणी लगता है जिसे देखने दूर-दूर से लोग उत्तराखंड के जिला बागेश्वर में पहुंचते है।
उसी प्रकार चम्पावत में माँ बरही धाम में बग्वाल के मेले का आयोजन होता है जो अपने किस्म का एक अलग मेला होता है जिसमे आदमी एक दूसरे के ऊपर पत्थरो से मार कर खेलते है परन्तु अभी कुछ समय से उच्च न्यायलय द्वारा इस पर रोक लगा दी गए है इसलिए अब पत्थरो की जगह फूलो से ये मेला खेला जाता है।
कुमाऊँ मंडल में अनेक पूजनीय मंदिर है तथा मानस खंड व अन्य ग्रंथो में भी कुमाऊँ को मानस खंड के नाम से पुकारा गया है जिससे अब कुमाऊँ मंडल कहा जाता है।
कुमाऊँ शब्द की उत्पत्ति: कुमाऊँ शब्द संस्कृत से लिया गया है जो संस्कृत में कूर्म के नाम से जाना जाता है। इस सम्बन्ध में मान्यता के अनुसार चम्पावत जिले में एक कांतेश्वर नाम का एक पहाड़ है, जिस पर भगवान विष्णु अपने द्वितीय अवतार में कूर्म के रूप में इस पर्वत पर 3 साल तक रहे थे।
इस कारण सम्भवतः यहाँ का नाम कुर्मांचल पड़ा तथा इस पर्वत का नाम भी कांतेश्वर से बदलकर कुर्मांचल और कूर्म-अंचल नाम से जाने जाना लगा। कूर्म शब्द कुमाऊँ में भी बहुतायत से बोला जाता है।
कुमाऊँ के अंतर्गत आने वाले जिले व उनका संपूर्ण विवरण
Total District in Kumaon Region:कुमाऊँ में कुल 6 जिले आते है जिनमे अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, उधमसिंह नगर, बागेश्वर, चम्पावत तथा नैनीताल है तथा इनका विवरण निम्न प्रकार है–
नैनीताल
Nainital
नैनीताल की संपूर्ण जानकारी हिंदी में
Knowledge About Nainital in Hindi:
नैनीताल कुमाऊॅ क्षेत्र का एक खूबसूरत जिला है जिसका पर्यटन की दृष्टि सें भारतवर्ष में महत्वपूर्ण स्थान है, जो अपनी खूबसूरती और पर्यटन की वजह से पूरे विश्व में प्रसिद्व है। उत्तराखण्ड का उच्च न्यायालय भी नैनीताल में ही मौजूद है।
ये सरोवर नगरी या झीलों के शहर के नाम से भी जाना जाता है। नैनीताल हिमालय पर्वत की तलहटी में बसा तथा समुद्र तल सें लगभग 1938 मीटर की ऊंचाई (Height of Nainital from sea lavel) पर बसा एक मनमोहक शहर है जिसे देखने के लिए लोग देश–विदेश से प्रति वर्ष लाखों लोग आते है व प्रकृति का आन्नद लेते है।
नैनीताल को अंग्रेजी शासन काल कें दौरान अंग्रेजो द्वारा बसाया गया था जो चारों तरफ से पहाडों से धिरा हुआ है जिसके उत्तर में नैना पीक जिसकी ऊंचाई लगभग 2615 मीटर(Height of Naina Peak), पश्चिम में देवपाठा जिसकी ऊंचाई लगभग 2438 मीटर, दक्षिण में अयार पाठा, जिसकी ऊंचाई 2278 मीटर आते है।
नैना पीक नैनीताल की सबसे ऊंची चोटी है (Naini peak is the highest peak in Nainital) जहाँ से नैनीताल का अति सुन्दर व मनमोहक दृश्य दिखाई पडता है।
यहाँ की मुख्य झील नैनी झील है जोकि सात पहाडियों से ढकी हुई तथा शहर के बीचों–बीच बनी हुई है, जिसे उत्तराखण्ड की सर्वोतम झील भी कहा जाता है इस झील के नाम से ही इस शहर का नाम नैनीताल पडा। यह झील समुद्रतल से 1937 मीटर की ऊंचाई पर है जो 1500 मीटर लम्बी, 510 मीटर चौड़ी तथा 30 मीटर गहरी है। (Height of Naini Lake)
शब्द का अर्थ है आखें और ताल शब्द का अर्थ झील है। इसी शब्द से इसका नाम नैनीताल पडा। इसे झीलों का शहर भी कहा जाता है। नैनी झील की मुख्य विशेषता यह है कि इस झील में उस क्षेत्र की सम्पूर्ण पर्वतमाला, वृक्षों की छाया, आसमान में छायें बादलों का प्रतिबिम्ब स्पष्ट दिखाई पडता है।
गर्मियों में इसका पानी हरा, बरसात में मटमैला व सर्दियो में हल्का नीला दिखाई प्रतीत होता है।
नैनीताल का नाम नैनीताल कैसे पढ़ा:
How did Nainital named Nainital:
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब देवी सती ने अपने शरीर का अग्निदाह कर लिया था तब शिवजी क्रोघित होकर देवी सती के मृतक शरीर को ले कर तांडव कर रहे थे तब देवी सती के शरीर के 52 टुकडे 52 स्थानों पर गिरें।
यहाँ पर उनकी बायी आखॅ गिरी थी, तब से ही इस जगह का नाम नयन ताल अथवा नैनीताल पडा। इसे “तीन संतो की झील” भी कहा जाता है। नैनीताल में पहले साठ ताल थे इसलिए इसे शष्टिखात भी कहा जाता था परन्तु कई प्राकृतिक आपदाओं व मौसम में परिवर्तन होने के कारण इसमें से अधिकांश झीले अब लुप्त हो चुकी है।
तल्ली ताल व मल्ली ताल बाजार:
Talli Tal and Malli Tal Bazar:
नैनीताल में दो छोर है जिसमे एक और तल्ली ताल तथा दूसरी और मल्ली ताल है। तल्ली ताल में बस अडडा व होटल वगैरह तथा मल्ली ताल में एक और खुला मैदान है जहाँ शाम होते ही पर्यटक इकटठे हो जाते है जहाँ रोज मेले वगैरह लगते रहते है।
तल्ली ताल व मल्ली ताल यहाँ का प्रमुख बाजार है। यहाँ तल्ली ताल और मल्ली ताल के बीच पैदल मार्ग है जिसे माल रोड भी कहते है जहाँ शाम 5 बजे के बाद ट्रैफिक बन्द करा दिया जाता है उसके बाद प्रकृति प्रेमियों व सैलानियों का तांता इस सडक पर दिखाई देने लगता है जो देखते ही बनता है।
यहाँ एक रोपवे भी है जो नैनीताल व व्यू पाउंट को आपस में जोडती है जो मल्लीताल से शुरू होता है। शाम के समय जब नैनीताल नगरी प्रकाश से जगमगाने लगती है तब यहाँ का दृष्य देखते ही बनता है। सर्दियों के मौसम में यहाँ की पहाडिया चारों और से बर्फ से ढक जाती है।
नैनीताल के प्रमुख पर्यटक स्थल:
Famous tourist Places in Nainital:
यहाँ नैनीताल के आस पास खुर्पाताल, भीमताल, नौकुचिया ताल, नैनापीक, टिफिनटॉप, चिडियाधर, पंगोट, ठंडी सडक, इको केव, राजभवन, नैना देवी मंदिर, गुआनो हिल, भवाली, रामगढ, सातताल, नैना पीक आदि प्रमुख है।
यहाँ देवी के 51 शक्ति पीठो में से एक नैना देवी का प्राचीन मंदिर भी है जिसे देखने के लिए भी पर्यटन बडी संख्या मे यहाँ पहुचते है। नैनीताल देश के अन्य भागों से रेल, सडक व वायु मार्ग से जुडा हुआ है। ग्रीष्मकालीन मौसम यहाँ आने के लिए सर्वश्रेष्ठ समय है।
गढ़वाल के जिलों के बारे में जानने के लिए ये http://hindi.worldtravelfeed.com/category/regions/uttarakhand-regions-regions/garhwal-region/ ब्लॉग पढ़े:
पिथौरागढ
Pithoragarhपिथौरागढ़ की जानकारी हिंदी में
Knowledge of Pithoragrh in Hindi:पिथौरागढ, उत्तराखण्ड का एक जिला है व उत्तराखण्ड के सबसे खूबसूरत जिलों में से एक है जिसे छोटा कश्मीर के नाम से भी जाना जाता है। जो अपनी खूबसूरती के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। ये हिमालयी पर्वतमाला का प्रवेशद्धार भी कहा जाता है। जिसकी तुलना अपने भ्रमण के दौरान भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व0 राजीव गांधी ने स्विटजरलैंड सें की थी।
पिथौरागढ़ की जनसंख्या, क्षेत्रफल व समुद्र तल से ऊंचाई
Popolation, Area and Height of Pithoragarh
from Sea Level:
पिथौरागढ़ का कुल क्षेत्रफल 2750 वर्गमीटर तथा कुल जनसंख्या (Population of Uttarakahand) 4,85,993 है। यह एक सीमान्त जनपद है जो समुद्र तल से लगभग 1645 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं।
पिथौरागढ़ की सीमाये
Border of Pithoragarh:
पिथौरागढ़ एक पर्वतीय जिला होने के कारण इसके सीमाएं भी पर्वतीय क्षेत्र से ही मिलती है इसके उत्तर का क्षेत्र तिब्बत, दक्षिण का अल्मोडा, उत्तर–पश्चिमी क्षेत्र चमोली जिला तथा पूर्वी क्षेत्र में नेपाल पडता है, जिसका अधिकतर हिस्सा पहाडी व उबड–खाबड है।
यह चारों ओर से पहाडों और बर्फ से ढके पहाडो से धिरा हुआ है। चारो और से बर्फ से ढके पहाड व प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक सौन्दरता होने के कारण यह पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केन्द्र रहता है।
कुमाऊॅ क्षेत्र का मुख्य हवाई अडडा नैनी सैणी भी यही पर स्थित है, जिस पर अभी देहरादून से हवाई यात्रा संचालित की जा रही है परन्तु अब प्रसाशन द्वारा अन्य जगहों सें भी यहाँ के लिए यात्रा संचालित करने हेतु प्रयास किये जा रहें है।
पिथौरागढ का पुराना नाम सोरधाटी हुआ करता था जिसका अर्थ सरोवर होता है। पहले यहाँ सात सरोवर हुआ करते थे, परन्तु दिन–प्रतिदिन मौसम में परिवर्तन व ग्लोबल वार्मिंग के कारण इनका जल सूखता चला गया और यहाँ केवल पठारी भूमि ही रह गई।
यहाँ कई चर्च, मिशनरी स्कूल व अंग्रेजो के समय की बनी हुई इमारतें व पुराने किले है।
यहाँ प्रचुर मात्रा में चूना पत्थर, स्लेट, तांबा व मेग्नीशियम भी पाया जाता है। यह स्थान 6 प्राकृतिक नालों से सिंचित तथा सीढीनुमा खेतों वाला एक सुन्दर व रमणीक स्थल है।
पिथौरागढ़ के प्रमुख पर्यटक स्थल
Famous Tourist places in Pithoragarh:
विश्व प्रसिद् पर्यटक स्थल धारचुला व मुन्सयारी यही पर स्थित है जहाँ साल के अधिकतर समय बर्फ गिरी रहती हैं, सदैव बर्फ पडे रहने के कारण गर्मियो व सदिर्यो में समान रूप सें ठंड बनी रहती है।
मुनस्यारी के सामने एक विशाल पर्वत श्रंखला है जिसे विश्व प्रसिद् पंचाचूली चोटी के नाम से जाना जाता है जिसे पाँच चोटियों वाला पर्वत भी कहा जाता है। इसके बाई तरफ नन्दा देवी व त्रिशूल पर्वत है दाई तरफ डानाधार है जो एक प्रसिद् पर्यटक स्थल भी है तथा पीछे की और खलिया टॉप है।
यहाँ के अन्य मुख्य पर्यटक स्थलों में एस्काट कस्तूरी मृग अभ्यारण्य है जो कस्तूरी मृगों के संरक्षण हेतु बनाया गया है, इसके अलावा यहाँ जंगली बिल्ली, बारहसिंगा, कस्तूरी मृग, गोराल, सफेद भालू, हिमालयी भालू, भरल, मुर्गा, तीतर व यूरोपियन तीतर पाये जाते है।
पिथौरागढ शहर से कुछ दूरी पर जौलजीबी नाम का एक और पर्यटन स्थल है जहाँ दो नदियों गोरी व काली नदियों का संगम होता है जहाँ मकर संक्रान्ति के अवसर पर भव्य मेले का आयोजन होता है जिसका आयोजन पहली बार 1 नवम्बर 1914 को हुआ था।
पिथौरागढ़ के प्रमुख मंदिर:
Famous Temples in Pithoragarh:
यहाँ के मुख्य मंदिरों में से नकुलेश्वर मंदिर है जो खजुराहों की शैली का बना हुआ है, इसके अतिरिक्त यहाँ अर्जुनेश्वर मंदिर, मोस्तमनु मंदिर, पाताल भुवनेश्वर मंदिर, हाट कालिका मंदिर, कोटगरी देवी मंदिर, नारायण आश्रम आदि मुख्य मंदिर है।
ये विश्व प्रसिद् कैलाश मानसरोवर यात्रा का भी प्रवेश द्वार है। जहाँ से कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले श्रद्वालु एकत्र होते है तथा आगे की यात्रा प्रारम्भ करते है।
अल्मोडा
Almora
Almora ki Jankari Hindi main:
अल्मोडा उत्तराखण्ड का एक प्रमुख जिला है जिसका सबसे बडा शहर भी अल्मोडा ही है। इस जिलें का मुख्यालय भी अल्मोडा में ही बनाया गया है। अल्मोडा में हिन्दी, संस्कृत, कुमाँऊनी व अंग्रेजी भाषाए बोली जाती है।
अल्मोडा के पूर्व में पिथौरागढ जिला, पश्चिम में गढवाल मण्डल, उत्तर में बागेश्वर जिला तथा दक्षिण में नैनीताल जिला है। अल्मोडा कुमाऊॅ मण्डल का एक व्यवसायिक केन्द्र भी है।
समुंद्र तल से ऊचाई, साक्षरता दर व लिंगानुपात:
Height from Sea Level and Poplation:
यह समुद्र तल से 1638 मीटर की ऊंचाई पर बसा हुआ। अल्मोडा का कुल क्षेत्रफल 3082 वर्ग किलोमीटर तथा जनसंख्या 622506 है। यहाँ की साक्षरता दर 80.7 है तथा लिंगानुपात 1139 है।
अल्मोड़ा की स्थापना का इतिहास:
History of Almora:
अल्मोडा जिला धोडे की नाल के आकार के पर्वतो के ऊपर बसा हुआ शहर है जिसके पूर्वी भाग को तालिफाट और पश्चिमी भाग को सेलिफाट कहा जाता है। इसे चंद राजाओं द्वारा बनाया गया था तथा अंग्रेजी शासनकाल में इसका विकास किया गया था।
अल्मोडा 1563 तक एक अज्ञात जगह थी इसके उपरान्त स्थानीय पहाडी सरदार कल्याणचंद्र ने इसे अपनी राजधानी बनाई, तब इस राजापुर के नाम से जाना जाता था।
पौराणिक आधार पर कहा जाता है कि कुमाऊॅ का राजवंश कत्यूरी शासकों का था जो अयोध्या के सूर्यवंशी नरेशों के वंशज थे। सन 1797 को अल्मोडा को गोरखों ने कत्यूरीयों से छीन लिया था ओर इसे नेपाल में मिला लिया था।
बाद में सन 1816 में नेपालीयों और अंग्रेजो में भयंकर युद् हुआ जिसके बाद वहाँ की पहाडियों व अल्मोडा पर अंग्रेजो का अधिपत्य स्थापित हो गया।
अल्मोड़ा की संस्कृति:
Culture of Almora in Hindi:
अल्मोडा अपने हिमालयी क्षेत्र, सांस्कृतिक विरासत, हस्तशिल्प से बना सामान तथा अपने भोजन के लिए विश्वभर में प्रसिद् है। कुमाऊॅनी क्षेत्र की असली संस्कृति अल्मोडा मे ही दिखाई देती है। स्वतंत्रता संग्राम के आन्दोलन में भी यहाँ के लोगों ने बढ–चढ कर हिस्सा लिया था।
यहाँ की मिठाई देश–भर में बहुत प्रसिद् है खासतौर पर यहाँ की बाल मिठाई बहुत प्रसिद् है। दूर दूर से आने वाले यहाँ की बाल मिठाई को अपने साथ अवश्य ले जाते है। वैसे तो बाल मिठाई उत्तराखण्ड के अन्य राज्यों में भी मिलती है, परन्तु जो बात यहाँ की बाल मिठाई में है उसकी बात ही कुछ अलग होती है।
शिक्षा तथा संस्कृति के क्षेत्र में अल्मोडा शहर का विशेष योगदान है। यह नोबेल पुरस्कार विजेता सर रोनाल्ड रास का जन्मस्थान भी है जो मलेरिया के प्रसार के लिए पूरे विश्व में प्रसिद् है।
यह एक कृषि व्यापार क्षेत्र होने के अलावा यहाँ पर कृषि भी बहुतायत से की जाती है, यहाँ की मुख्य फसलों में चावल, गेंहू, मोटा अनाज व फल है तथा खनिज पदार्थो में ताबा व मैग्रेटाइट के भण्डार भी यहाँ प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। यहाँ के खेत सीढीनुमा होने व बर्फ से ढकी हुई चोटिया होने के कारण ये जगह पर्यटकों को अपनी और बहुत आकर्षित करते है।
अल्मोड़ा के प्रसिद्द पर्यटक स्थल:
Famous Tourist places in Almora:
यहाँ के प्रमुख पर्यटक स्थलों में मृग विहार, गोविन्द बल्लभ पन्त संग्रहालय, रानीखेत, रानीखेत स्थित गोल्फ कोर्स, डियर पार्क, चैबटिया गार्डन, द्वाराहाट, गणनाथ तथा स्वामी विवेकानन्द की विश्राम स्थली भी है जिस स्थल को धरोहर के रूप में सुरक्षित करके रखा गया है।
अल्मोड़ा के प्रसिद्ध मंदिर:
Famous Temples in Almora:
यहाँ के प्रमुख मंदिरों में सूर्यमल कटारमल मंदिर, जोकि उडीसा के सूर्य मंदिर के बाद दूसरा प्राचीन सूर्य मंदिर है इसके अलावा यहाँ दूनागिरी मंदिर, हेडाखान, मां कालिका मंदिर, चितई गोलू देवता मंदिर, बिन्सर महादेव मंदिर, जागेश्वर धाम, झूला देवी मंदिर, कसार देवी मंदिर, बदरिकाश्रम आदि प्रमुख मंदिर है।
How to reach Almora
अल्मोड़ा में यातायात का साधन:
यहाँ के यातायात का मुख्य साधन मुख्यतः निजी वाहन व सरकारी बस सेवा ही है, परन्तु यहाँ अधिकतर लोग पैदल ही आना–जाना पसन्द करते है।
नैनी सैणी हवाई अडडा यहाँ का निकटतम हवाई अडडा है तथा निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है। यहाँ से नैनीताल 67 किमी0, काठगोदाम 90 किमी0, पिथौरागढ 109 किमी0 तथा दिल्ली 378 किमी की दूरी पर स्थित है।
बागेश्वर
Bageshwar:बागेश्वर जिले को विस्तार से जानने के लिए ये ब्लॉग पूरा पढ़े:
Bageshwar District ko Hindi main janne ke liye ye blog pura padhe:
उत्तराखण्ड का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। ये सरयू व गोमती के तट पर बसा एक पौराणिक शहर है जिसे उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने 15 अगस्त 1997 को उत्तर प्रदेश से अलग करके बनाया था। इससे पहले ये अल्मोडा जिले का एक हिस्सा था।
बागेश्वर लोकसभा सीट (Bageshwar Lok sabha) अल्मोडा के अन्तर्गत आती है तथा बागेश्वर के अन्तर्गत दो विधानसभा क्षेत्र बागेश्वर व कपकोट पडते है।
स्वतंत्रता संग्राम के समय यहाँ के लोगो ने अपना भरपूर योगदान दिया था तथा कुली–बेगार प्रथा के रजिस्टरों को सरयू मे बहा दिया था तथा गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन में शामिल हुए थे।
पौराणिक कथाओ के अनसार यहाँ शिव भगवान बाध के रूप मे रहने के लिए आये थे इसलिए इसे बाधों की भूमि भी कहा जाता है तब से ही इस स्थान का नाम बागेश्वर पडा। शिव पुराण के अनुसार बागेश्वर को शिव की नगरी भी कहा जाता है।
बागेश्वर(Bageshwar) एक समय में उत्तराखण्ड की सबसे बडी मण्डी कही जाती थी। तिब्बत और मुनस्यारी से आने वाले लोग यही पर चटाइयो, तिब्बती ऊन, सुहागा तथा खाल, दक्षिण से बर्तन तथा कपडे तथा स्थानीय क्षेत्रों से संतरे तथा अनाज का व्यापार करते थे, परन्तु बाद में अन्य जगहो पर भी सडक बन जाने के कारण तिब्बत के व्यापारी सामान सीधे रामनगर व टनकपुर जाकर बेचने लगे, जिस कारण यहाँ का व्यापार पूर्णरूप से बन्द हो गया। बाद में यह सामान केवल उत्तरायणी मेले तक ही सीमित रह गया व केवल मेलों के दौरान ही यहाँ मिलने लगा।
बागेश्वर की सीमाएँ:
Border to Bageshwar:
इस जिले के पूर्व में पिथौरागढ, पश्चिम में चमोली, दक्षिण मे अल्मोडा तथा उत्तर में पिथौरागढ व चमोली का कुछ भाग आता है। ये चारो तरफ से पर्वतो से धिरा हुआ जनपद है जिसके पश्चिम में नीलेश्वर पर्वत, पूर्व में भीलेश्वर पर्वत, उत्तर में सूर्यकुण्ड तथा दक्षिण में अग्निकुण्ड है।
बागेश्वर की ऊंचाई, जनसंख्या व क्षेत्रफल:
Height, Population and Area of Bageshwar:
बागेश्वर जिला समुद्र तल से लगभग 1890 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। जिसका कुल क्षेत्रफल लगभग 2246 वर्ग किमी0 है। यहाँ की जनसंख्या 2,59,840 है तथा साक्षरता दर 80.01 प्रतिशत है जो राष्ट्रीय औसत 72.1 से अधिक है।
यहाँ 85 प्रतिशत पुरूष और 76 प्रतिशत महिलायें साक्षर है। यहाँ लिंगानुपात की दर 1000 पुरूषों पर 1010 महिलाओं की है।
यहाँ अनेक अलग–अलग धर्मो को मानने वाले लोग रहते है जिसमें सबसे अधिक आबादी हिन्दू धर्म की है जो 93.34 प्रतिशत इसके अलावा मुस्लिम धर्म के 5.93 प्रतिशत, सिख धर्म के 0.25 प्रतिशत, ईसाइ धर्म के 0.26 प्रतिशत, बौद् धर्म के 0.01 प्रतिशत तथा जैन धर्म के 0.02 प्रतिशत लोग यहाँ साथ रहते है।
बागेश्वर के पर्यटक स्थल:
Tourist Places in Bageshwar:
इन विश्व प्रसिद्व ग्लेशियरों को देखने के लिए देश–विदेश से सैलानी उत्तराखण्ड आते है व इन प्राकृतिक सुन्दरता व ग्लेशियरों का आन्नद लेते है। यह जिला अपनी हरियाली, खूबसूरत तालों, मेलों, ग्लेशियरों, ट्रैकिंग तथा पर्यटक स्थलों के लिए प्रसिद् है।
बागेश्वर से लगभग 38 किमी की दूरी पर विश्व प्रसिद् पर्यटक स्थल कौसानी पडता है जो अपनी खूबसूरती व प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण पूरी दुनिया मे प्रसिद् है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कुमाऊॅ भ्रमण के दौरान इसकी तुलना स्विटजरलैंड से की थी।
यहाँ के प्रसिद् मेलों में उत्तरायणी मेला व नंदादेवी मेला प्रमुख है तथा तालों में श्याम ताल व झिलमिलताल मुख्य है।
बागेश्वर के प्रसिद्ध ट्रैक्स व ग्लेशियर:
Famous Tracks and Glaciers in Bageshwar:
यहाँ के प्रसिद् ग्लेशियर व ट्रैक्स में पिंडारी ग्लेशियर ट्रैक, सुंदरढूंगा ग्लेशियर ट्रैक, पांडु स्थल ट्रैक है जो साहसिक यात्रा करने वालो के लिए किसी स्वर्ग से कम नही है।
पिंडारी ग्लेशियर, सुंदरढूंगा ग्लेशियर की तुलना में जाने में ज्यादा आसान है। पिंडारी ग्लेश्यिर ट्रैक की ऊंचाई लगभग 3353 मीटर व यात्रा लगभग 5 से 15 दिन की होता है, पांडु स्थल ट्रैक की लम्बाई लगभग 15 किमी तथा सुंदरढूंगा ग्लेशियर ट्रैक लगभग 54 किलोमीटर लम्बा है।
यहाँ के प्रसिद् ग्लेशियर व ट्रैक्स में पिंडारी ग्लेशियर ट्रैक, सुंदरढूंगा ग्लेशियर ट्रैक, पांडु स्थल ट्रैक है जो साहसिक यात्रा करने वालो के लिए किसी स्वर्ग से कम नही है। पिंडारी ग्लेशियर, सुंदरढूगा ग्लेशियर की तुलना में जाने में ज्यादा आसान है।
पिंडारी ग्लेश्यिर ट्रैक की ऊंचाई लगभग 3353 मीटर व यात्रा लगभग 5 से 15 दिन की होता है, पांडु स्थल ट्रैक की लम्बाई लगभग 15 किमी तथा सुंदरढूगा ग्लेशियर ट्रैक लगभग 54 किलोमीटर लम्बा है।
बागेश्वर के प्रमुख मंदिर:
Famous Temples in Bageshwar:
यहाँ के प्रमुख धार्मिक स्थानों में बागनाथ मंदिर, बैजनाथ मंदिर, चंद्रिका मंदिर, गौरी उडियार मंदिर, सूर्यकुण्ड, अग्निकुंड, श्रीहरू मंदिर, धौलीनाग मंदिर तथा कांडा है।
कांडा जो कि भागीरथी, गोमती व सरयू के तट पर बसा हुआ है जिसमें स्नान करने व अपने पापों से मुक्ति पानें हेतु हजारो की संख्या में लोग प्रतिवर्ष यहाँ आते है।
यह घार्मिक स्थल होने के साथ–साथ शिव की नगरी के नाम से भी प्रसिद् है। यहाँ शिव जी का अति प्राचीन बागनाथ मंदिर भी है जो पर्यटको व यहाँ के लोगो का आस्था का केन्द्र भी है। यहाँ मकर संक्रान्ति के दिन उत्तराखण्ड के सबसे बडे मेले का आयोजन होता है।
बागेश्वर कैसे पहुँचे:
How to reach Bageshwar:
यहाँ के निकटतम हवाई अडडा नैनी सैणी हवाई अडडा है तथा निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है जहाँ से यात्री प्राईवेट वाहन और सरकारी यातायात से यहाँ आते जाते है। पहाडी क्षेत्र होने के कारण यहाँ के लोग अधिकतर पैदल ही आना–जाना पसन्द करते है। उत्तराखण्ड के सभी जिलों में से बागेश्वर ही एकमात्र ऐसा जिला है जहाँ पर पैदल रिक्शा चला करते है।
बागेश्वर का तापमान:
Temperature of Bageshwar:
यहाँ का मौसम गर्मियों में काफी गर्म रहता है परन्तु कई जगहों में ठण्ड भी बहुत होती है। यहाँ सुबह व शाम को ठण्ड होती है, परन्तु दिन के समय पर काफी ठंडा होता है। यहाँ कई जगह ग्लेशियर होने के कारण सर्दियों में ठण्ड भी काफी होती है।
उधमसिंहनगर
Udhamsingh nagar
Udhamsingh nagar Jile ko Jane Hindi Main:
Know About UdhamSingh Nagar in Hindi
उधमसिंहनगर उत्तराखण्ड का एक जिला है जिसे कुमाऊॅ का प्रवेश द्वार कहकर भी पुकारा जाता है। इसका मुख्यालय रूद्रपुर में है। इसे मायावती सरकार द्वारा 1995 में नैनीताल जिलें सें अलग कर नया जिला बनाया था। रूद्रपुर की स्थापना राजा रूद्रचंद्र ने 1588 ई0 में की थी।
यहाँ कई अलग–अलग धर्मो को मानने वाले लोग एक साथ रहते है इसलिए इसे मिनी कश्मीर भी कहा जाता है। यहाँ कश्मीर, केरल, बंगाल, हरियाणा, राजस्थान, नेपाल, दक्षिण भारत, कुमाऊॅ व गढवाल के लोग समूहो में रहते है। यहाँ ही धर्मो और व्यवसायों के लोगो के विविधता में एक साथ रहने का उदाहरण मिलता है।
ऊधमसिंह नगर का लोकसभा व विधान सभा क्षेत्र:
Loksabha and Vidhan Sabha Area of Udhamsingh Nagar
उधमसिंहनगर पहले नगर पालिका के अन्तर्गत आता था, परन्तु 28 फरवरी 2013 को इस नगर को 20 वार्डो में विभक्त कर इसे नगर निगम का दर्जा दे दिया गया। यह लोकसभा में नैनीताल सीट के अन्तर्गत आता है परन्तु विधानसभा में इसकी सीटों की संख्या 9 है जिसमें सितारगंज, नानकमत्ता, जसपुर, काशीपुर, बाजपुर, खटीमा, गदरपुर, किच्छा व रूद्रपुर है।
यहाँ की 70 प्रतिशत जनसंख्या मलिन बस्तियों में आवास करती है। जहाँ मलिन बस्तियों की संख्या लगभग 18 है।
ऊधमसिंह नगर की जनसँख्या, साक्षरता दर व् क्षेत्रफल:
Population, Literacy and Area of Udhamsingh Nagar:
यह क्षेत्र 2542 वर्ग कि0मी0 में फैला हुआ है तथा यहाँ की जनसंख्या 16,48,902 है। जहाँ लगभग 8 लाख पुरूष व लगभग इतनी ही महिलाए आती है। यहाँ की साक्षरता दर 73.10 प्रतिशत है।
इसके उत्तर दिशा मे नैनीताल जिला, उत्तर–पूर्व में जिला चम्पावत, पूर्व में नेपाल और दक्षिण तथा पश्चिम में रामपुर, बरेली, मुरादाबाद पडते है।
उधमसिंह नगर का इतिहास:
History of Udhamsingh Nagar:
1950 से पहले यह एक तराई, दलदली, जंगली जानवरों, परिवहन का अभाव व वनों से आच्छादित क्षेत्र हुआ करता था, जहाँ बहुत कम लोग निवास करते थे। उस समय पंजाब और बंगाल में विभाजन की मार झेल रहे लोग यहाँ आकर रहने लगे जिनके लिए सरकार द्वारा विशेष रूप सें ट्रांजिट कैम्प व आर0 आर0 क्वार्टर की स्थापना की गई।
यहाँ की विशेष जनसंख्या तब बढी जब यहाँ पर सिडकुल की स्थापना हुई, जिसका श्रेय उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिवंगत श्री नारायण दत्त तिवारी को जाता है जिनके अथक प्रयासों के कारण यहाँ पर भी हरिद्वार के समान ही सिडकुल की स्थापना हुई।
बाद में यहाँ रेलवे की बडी लाईन भी डाली गई जिससें यहाँ का सम्पर्क बडे–बडे औद्योगिक नगरों से होने के कारण यहाँ पर कई नेशनल व मल्टीनेशनल कम्पॅनिया स्थापित हुई, जिस कारण ये जल्द ही औद्योगिक नगरी में गिना जाने लगी तथा इसकी पहचान अन्तराष्ट्रीय स्तर पर होने लगी।
इसके साथ–साथ यहाँ अच्छे स्कूल, हास्पिटल, कृषि के साधन भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। जिस कारण यहाँ की जनसंख्या में भी लगातार बढोतरी होती चली गई और ये उत्तराखण्ड का तीसरा सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला जिला बन गया।
ऊधमसिंह नगर के प्रमुख मेले व् ताल:
Famous Fairs and Tal in Udhamsingh Nagar:
यहाँ के प्रसिद् मेलों मे चैतीमेला, शहीद उधमसिंह मेला, अटरिया मेला प्रमुख मेले है। यहाँ के मुख्य तालों में नानकसागर, शारदा सागर, द्रोणसागर, गिरीताल आदि मुख्य है।
ऊधमसिंह नगर के प्रमुख मन्दिर:
Famous Temples in Udhamsingh Nagar:
यहाँ के प्रसिद् मंदिरो में चैतीमंदिर, नानकमत्ता, अटरिया मंदिर मुख्य है तथा मुख्य पर्यटक स्थलों में बनबसा, नानकमत्ता व रूद्रपुर प्रमुख है। यहाँ कई प्रसिद् मेले, मंदिर, ताल तथा पर्यटक स्थल भी है जो पर्यटको को अपनी ओर आकर्षित करते है। यह यातायात के मामले में बडे शहरो सें वायु मार्ग, रेल मार्ग व सडक मार्ग से आसानी से जुडा हुआ है।
उधमसिंह नगर कैसे पहुंचे:
How to reach Udhamsingh Nagar:
उधम सिंह नगर एक बड़ा और विकसित जिला है जो सड़क मार्ग व ट्रेन मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। यहाँ से आपको हर समय बस की सेवा उपलब्ध हो जाएगी। यहाँ आप बस, टैक्सी व ट्रेन द्वारा किसी से भी पहुंच सकते है। यह यातायात के मामले में बडे शहरो सें वायु मार्ग, रेल मार्ग व सडक मार्ग से आसानी से जुडा हुआ है।
चम्पावत
Champawat:
चम्पावत जिले को जाने हिंदी में
Know Champawat District in Hindi
चम्पावत उत्तराखण्ड राज्य का एक जिला हैं जो चम्पावती नदी के तट पर बसा हुआ है। ये अपने प्राकृतिक सौन्दर्य, हरे–भरे पहाडों, वन्यजीवों, मंदिरों, ट्रैकिंग आदि चीजों के लिए प्रसिद्व है जो कि एक पर्यटक पहाडी क्षेत्रों के भ्रमण के दौरान चाहता है। यहाँ की नदियाँ भी अदभुत छटा बिखेरती हुई पहाडी व मैदानी रास्तों से होकर गुजरती है। यह उत्तराखण्ड के प्रसिद् हिल स्टेशनों मे से एक है।
1972 से पहले यह अल्मोडा के अन्तर्गत आता था जिसको बाद में पिथौरागढ में मिला दिया गया था परन्तु बाद में 15 सितम्बर 1997 को इसे स्वतंत्र जिला घोषित कर दिया गया। इसे काली कुमाऊॅ क्षेत्र कहकर भी सम्बोधित किया जाता है।
चम्पावत की ऊंचाई, जनसंख्या व क्षेत्रफल
Height, Population and Area of Champawat:
यह समुद्र तल से 1615 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ की कुल जनसंख्या लगभग 2,59,658 है तथा कुल क्षेत्रफल लगभग 1766 वर्ग कि0मी0 है, जो आबादी के हिसाब से उत्तराखण्ड का 12 वां सबसे बडा जिला है।
उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री सुश्री मायावती द्वारा 15 सितम्बर 1997 को पिथौरागढ से अलग करके चम्पावत एक नया जिला बनाया गया। यह लोकसभा सीट अल्मोडा के अन्तर्गत आता है तथा इसमें विधानसभा की दो सीटें लोहाघाट व चम्पावत आती है। चम्पावत जिले का प्रशासकीय मुख्यालय चम्पावत में है।
इसके पूर्व में नेपाल, दक्षिण मे उधमसिंह जिला, पश्चिम में नैनीताल जिला तथा उत्तर–पश्चिम में अल्मोडा जिला स्थित है। यहाँ सs राजधानी देहरादून 266 किमी की दूरी पर स्थित है।
चम्पावत का इतिहास
History of Champawat:
केदारखंड में चम्पावत को कुर्मांचल भी कहा गया है क्योकि इसी क्षेत्र में विष्णु जी ने कछुए का अवतार लिया था।
चम्पावत कई सालों तक कुमाऊँ के चन्द राजाओं की राजधानी हुआ करती थी जिनके किलाs व महलो के अवशेष आज भी वहाँ देखे जा सकते है।
पुराणो के अनुसार चम्पावत नगरी नौ नागवंशीय राजाओं की राजधानी हुआ करती थी बाद में चन्द्रवंशी राजपूत सोमचन्द्र ने यहाँ के राजा ब्रहमदेव की पुत्री चम्पा सें विवाह करकें इस स्थान को दहेज में प्राप्त किया था बाद मे उन्होने अपनी पत्नी चम्पा के नाम पर ही इसका नाम चम्पावत रखा गया था।
चम्पावत जिला नागा और पौराणिक कथाओं में किन्नर का घर के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ के जंगल व्यापक धनत्व वाले जंगलो में से गिने जाते है जो लाखों जानवरों का निवास स्थान भी है। यह अपने विश्व विख्यात मंदिरों, मेलों, बिजली परियोजनाओं, पर्यटक स्थल व नदियो के लिए बहुत प्रसिद् है।
यहाँ के मंदिरों को महाभारत के काल का भी माना जाता है। पांडव अपने 14 साल के निर्वासन के दौरान यहाँ आये थे। यह धटोत्कच का निवास स्थान भी माना जाता है जो महाबली भीम के पुत्र थे।
पुराणों के अनुसार द्वापर युग में श्रीकृष्ण द्वारा बाणासुर नामक दैत्य का वध भी यही किया गया था जिसके द्वारा उनके पौत्र का अपहरण कर लिया गया था। वाणासुर का किला आज भी लोहाघाट में देखा जा सकता है जो कि लोहाघाट से 7 किमी0 की दूरी पर तथा 1859 मीटर की ऊॅचाई पर स्थित है।
एक और पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान राम ने रावण के भाई कुम्भकरण को मारकर उसका सिर यही कुर्मांचल की पहाडियों में फेक दिया था।
यह पूरे कुमाऊॅ क्षेत्र मे पूजे जाने वाले न्याय के देवता गोल्ज्यू महाराज अर्थात ग्वेल देवता अर्थात गोरिया की जन्म स्थली भी है जिसका एक मन्दिर अल्मोडा में तथा दूसरा मन्दिर यहाँ चम्पावत में स्थित है।
चम्पावत टाइगर
Champawat Tiger:
चम्पावत अपने एक मशहूर बाघिन के लिए भी पूरे देश में प्रसिद्ध था। ये बाघिन पहले नेपाल में रहा करता था। वहाँ बाघिन ने कई लोगो को अपना शिकार बनाया जिस कारण नेपाल से उस बाघिन को भगा दिया गया। वह भाग कर उत्तराखंड के चम्पावत जिले में आ गया जिसने वहाँ पर कई सालो तक तक़रीबन 436 लोगो को अपना शिकार बनाया।
बाद में जिम कॉर्बेट नाम के मशहूर शिकारी ने इस आदमखोर बाघिन को मार गिराया था ये भारत के इतिहास की सबसे आदमखोर बाघिन थी।
चम्पावत में शिक्षा व स्वास्थ्य
Education and Health in Champawat District:
यहाँ शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में ये जिला भी अन्य की तरह काफी पिछडा हुआ है। स्वास्थ्य खराब होने पर यहाँ के लोगो को हल्द्वानी या बरेली ले जाना पडता है जिस कारण कभी–कभी व्यक्तियों की बीच रास्ते में ही मौत हो जाती है। शिक्षा के क्षेत्र में भी ये काफी पिछडा हुआ है, परन्तु समय के साथ यहाँ शिक्षा मे थोडा–थोडा विकास हो रहा है।
चम्पावत के प्रमुख मंदिर
Famous Temples in Champawat:चम्पावत कई प्राचीन मंदिरों की भूमि भी कही जाती है जो अधिकतर महाभारत काल के माने जाते है। यहाँ के चम्पावती गाड में सात प्राचीन मंदिर पायें जाते है जिसमें बालेश्वर मंदिर, क्रान्तेश्वर मंदिर, ताडकेश्वर मंदिर, डिक्टेश्वर मंदिर, मल्लाडेश्वर मंदिर, ऋषेश्वर मदिर है जिसमें बालेश्वर मंदिर प्रमुख मंदिर माना जाता हैं।
यहाँ के अन्य प्रसिद् मंदिरों में नागनाथ मंदिर, हिंग्लादेवी मंदिर, धटोच मंदिर, मानेश्वर मंदिर, ग्वाल देवता मंदिर, चम्पावती दुर्गा मंदिर, आदित्य मंदिर, पूर्णागिरी मंदिर, गुरू गोरखनाथ धूना, रीठा–मीठा साहिब, शानि देवता मंदिर, देवीधूरा मंदिर मुख्य है।
चम्पावत के पर्यटक स्थल
Famous Tourist places in Champawat:यहाँ के प्रसिद् पर्यटक स्थलों में श्यामलाताल, माउंट एबर्ट, लोहाघाट, मायावती आश्रम, एक हथिया नौला, विवेकानन्द आश्रम, बाणासुर का किला, खेतीखान का सूर्य मन्दिर, पाताल रूद्रेश्वर गुफा मुख्य है।
चम्पावत जिले में लोहाघाट एक प्रसिद् हिल स्टेशन है जो चारों तरफ से देवदार के पेडो से ढका हुआ है तथा अधिक ऊॅचाई पर तथा देवदार के पेडो से घिरा होने के कारण यहाँ ठंड भी बहुत ज्यादा पडती है जिस कारण इसे ढंड का गढ कहकर भी पुकारा जाता है।
इतने सारे पौराणिक मंदिरों, पहाडी वन्य जीवों से भरपूर जंगल और विश्व प्रसिद् ऐतिहासिक व प्राकृतिक खूबसूरती से परिपूर्ण होने के कारण भी यहाँ से लोग निरन्तर पलायन कर रहे है जो यहाँ की मुख्य समस्या बनी हुई है।
चम्पावत के प्रसिद्ध मेले व नदियाँ
famous Fairs and rivers in Champawatयहाँ के प्रमुख मेलों में पूर्णागिरी मेला, देवी महोत्सव, गोराअटठारी, सूर्याअष्टी, दविपमहोत्सव, देवीधूरा बग्वाल आदि प्रमुख मेले आते है तथा प्रमुख नदियों में गोरी गंगा, सरयू, पनार, लधिया, लोहावती, काली, क्वैराला आदि मुख्य है।
How to reach Champawat
चम्पावत कैसे पहुँचे:
चम्पावत से लगभग 70 किमी0 की दूरी पर टनकपुर शहर पडता है जहाँ से यहाँ आने व जाने के लिए बसें व प्राईवेट वाहन आसानी से उपलब्ध हो जाते है। बारिश के दौरान यहाँ की सडकों के टूट जाने कारण यहाँ का सम्पर्क अन्य जिलों से टूट जाता है।
यहाँ यातायात के साधन बहुत सीमित है, यह पहाडी क्षेत्र होने के कारण यहाँ के लोग मुख्यतः पैदल ही आना जाना पसन्द करते है तथा थोडी दूरी के लिए यहाँ लोग पैदल या स्वयं के वाहन से ही आते जाते है।
बारिश के दौरान ही यहाँ के लोगो को सबसे अघिक परेशानी उठानी पडती है, उस दौरान पहाड से गिरने वाले मलबे सें यहाँ की मुख्य सडक टूट जाती है जिस कारण सबसे अधिक समस्या यहाँ बिजली व पानी की होती है।
हैलो, दोस्तों मैं पंकज पंत एक ब्लॉगर। दोस्तों लिखने, पड़ने व म्यूजिक (खासतौर से मैगज़ीन जैसे इंडिया टुडे व क्रिकेट सम्राट वगैरह) का शौक पहले से ही था तो सोचा क्यों न कुछ लिखा जाये और लिखा भी वो जाये जिसे पढ़कर पाठको को आनन्द भी आये व उसे पढ़कर उनके ज्ञान में भी कुछ वृद्धि हो सके। परन्तु लिखने के लिए एक लेखन सामग्री की आवश्यकता होती है तो सोचा किस विषय पर लिखा जाये। सोचते हुए दिमाग में आया की क्यों न अपने ही गृह राज्य उत्तराखंड के बारे में लिखा जाये जिसकी पृष्टभूमि बहुत ही विशाल होने के साथ-साथ यहाँ की संस्कृति और सभ्यता भी बहुत विकसित है। वही ये एक शानदार पर्यटक स्थल होने के अलावा धार्मिक दृस्टि से भी परिपूर्ण है। यहाँ हर साल हजारो की संख्या में मेलो व त्योहारों का आयोजन होता रहता है जिसे देखने व इनमे शामिल होने के लिए देश-विदेश से लाखो-करोडो लोग उत्तराखंड आते है व इन मेलों को देखने के साक्षी बनते है। इस कारण मैंने लिखने की शुरुवात की अपने उत्तराखंड से। अपनी इस वेबसाइट में मैंने उत्तराखंड की संस्कृति एवं सभ्यता, उत्तराखण्ड के प्रमुख पर्यटक स्थल, उत्तराखण्ड के प्रमुख मंदिरो, उत्तराखण्ड के प्रमुख नृत्य व संगीत, उत्तराखण्ड के प्रमुख ट्रेक्किंग स्थलों, उत्तराखण्ड के मुख्य डैम, उत्तराखण्ड की झीलों व ग्लेशियर के अलावा यहाँ की प्रमुख पर्वत चोटियों व अन्य विषयो को पाठको के समक्ष प्रस्तुत किया है। जैसे- जैसे मुझे अन्य कोई जानकारी मिलती जाएगी में उन्हें अपने पाठको के समक्ष प्रस्तुत करता रहूँगा। धन्यवाद पंकज पंत
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