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यमुनोत्री धाम मन्दिर
Yamunotri
Temple: उत्तराखण्ड को देवभूमि भी कहा जाता है। यह देवी, देवताओ और ऋषि मुनियों की धरती है। यहाँ पर अनेको ऋषि मुनियों ने सालो तक तपस्या की है तथा अपने तप व अपने चरणो द्धारा इस पवित्र धरती को पावन किया गया है। उत्तराखण्ड देवी व देवताओं की भूमि होने के कारण यहाँ अनेको मन्दिर है। यमुनोत्री यहाँ के मन्दिरो में से प्रमुख स्थान रखता है। इसकी गिनती यहाँ के चार धामो मे से होती है।
यहाँ के चार धामों मे बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री है जिनमें से यमुनोत्री धाम की अपनी अलग महिमा है। यह यमुना नदी का उदगम स्थल है। यमुनोत्री का मन्दिर उत्तरकाशी जिले में स्थित है। यह समुद्र तल से लगभग 3,235 मीटर की ऊॅचाई(Height of Yamunotri Temple) पर स्थित है।
History of Yamunotri Temple
यहाँ यमुना देवी का एक मन्दिर है। पुराणो के अनुसार यमुना जी भगवान सूर्य की पुत्री तथा यमराज व भगवान शनि की बहन मानी जाती है। यमुना नदी भी गंगा नदी(Ganga River) के समान ही पूजनीय मानी जाती है। यमुना जी का उदगम स्थल भी हिमालय ही है जहाँ से पवित्र गंगा नदी निकलती है।
यमुनोत्री से यमुना नदी का उदगम स्थल यहाँ से मात्र 1 किमी की दूरी पर स्थित है। वैसे यमुना जी का वास्तविक उदगम स्थल कालिंदी पर्वत पर स्थित एक बर्फ से जमी हुई एक झील एवं ग्लशियर है जो चंपासर ग्लेशियर नाम से प्रसिद्ध है। यह समुद्र तल से लगभग 4,421 मीटर की ऊॅचाई पर स्थित है।
यहाँ जाने के रास्ते के अत्यन्त दुर्गम व खतरनाक होने के कारण श्रद्धालु यहाँ तक नही पहुँच पाते है। यमुना जी प्रथम बार धरती पर कालिंदी पर्वत पर ही अवतरित हुई थी इसलिए यमुना जी का एक नाम कालिंदी भी है जो मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण की आठ पटरानियो मे से भी एक है।
यहाँ जाने का रास्ता अत्यन्त दुर्गम होने के कारण यमुना जी का मन्दिर पहाडी के तल पर स्थित है। यहाँ एक सप्तऋषि कुण्ड भी है जो कालिंद पर्वत के ऊपर ही स्थित है। माना जाता है कि सप्तऋषि कुण्ड में सात ऋषियों ने तपस्या की थी। यहाँ के अन्य उल्लेखनीय स्थलो मे सूर्य कुंड है जो कि गर्म पानी का एक कुण्ड है तथा दूसरा गौरी कुण्ड(Gorikund) है जो शीतल व ढंडे जल का एक स्त्रोत है।
Surya Kund in Yamunotri
सूर्य कुण्ड(Survy Kund) गढवाल क्षेत्र के गर्म कुण्डो में सबसे गर्म है जहाँ से आप को एक विशेष प्रकार की आवाज सुनाई देती है। आपको ऐसा प्रतीत होगा जैसे उसमें से ओम शब्द की ध्वनि आ रही हो। इसे ओम ध्वनि कहकर भी सम्बोधित किया जाता है।
सूर्य कुण्ड में प्रसाद आदि बनाने के लिए श्रद्धालु चावल व आलू को एक कपडे मे लपेटकर डाल देते है जिससे कुछ ही समय मे वह उबलकर तैयार हो जाता है। उसी को श्रद्धालु प्रसाद समझकर ग्रहण करते है तथा उसे ही अपने साथ अपने घरो को ले कर जाते है।
Story of Yamunotri Temple
मान्यता के अनुसार जो श्रद्धालु यहाँ यमुना जी मे स्नान करने के बाद खरसाली गाँव मे शनिदेव महाराज के दर्शन करते है उन लोगो को सारे पापो व दोषो से मुक्ति मिल जाती है। यमुना जी के मंदिर का निर्माण सर्वप्रथम टिहरी गढवाल के महाराजा प्रताप शाह द्धारा कराया गया था परन्तु बाद मे भुकम्प के कारण मंदिर ध्वस्त हो जाने के कारण इसका पुर्ननिर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया द्वारा 19 वीं शताब्दी में किया गया था।
इस स्थान पर पहले महर्षि असित का आश्रम हुआ करता था। महर्षि प्रतिदिन इसी नदी मे स्नान किया करते थे। माना जाता है कि जब महर्षि वृद्ध हो गये और नदी तक आना जाना उनके लिए मुश्किल हो गया तो गंगा माता ने अपने जल की एक धारा उनके आश्रम की तरफ छोड दी थी जिसमे महर्षि स्नान आदि करने लगे थे। वो जल की धारा आज भी वहाँ पर स्थित है।
पौराणो के अनुसार जब पांडव उत्तराखण्ड की तीर्थ यात्रा पर आये थे जो पहले यमुनोत्री धाम ही आये थे इसके बाद गंगोत्री फिर केदारनाथ और अन्त में बद्रीनाथ गये थे। तब से ही उत्तराखण्ड में तीर्थ यात्रा की शुरूआत हुई थी तथा यात्रा का ये क्रम चला आ रहा है। कहा जाता है कि चार धाम यात्रा करने वाले श्रृद्धालुओ को चार धाम की यात्रा यमुनोत्री धाम से ही शुरू करनी चाहिये तथा उसके बाद गंगोत्री फिर केदारनाथ व बद्रीनाथ जाना चाहिये।
यमुनोत्री धाम के मन्दिर में पिंड दान का भी अपना अलग महत्व है। श्रृद्धालुओ यहाँ आकर अपने पितरो का पिंड दान आदि करते है जिससे उनके पितरो को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
उत्तराखण्ड मे चार धाम मंदिरो के कपाटो मे सबसे पहले यमुनोत्री व गंगोत्री धाम के ही कपाट खोले जाते है। यमुनोत्री मन्दिर के पास ही एक पवित्र शिला रखी हुई है जिसे दिव्य शिला कहकर पुकारा जाता है। श्रृद्धालुओ मन्दिर जाने से पूर्व इस शिला की पूजा करते है उसके बाद ही मन्दिर के दर्शन आदि करते है।
Timings of Yamunotri temple
यमुनोत्री के कपाट अप्रैल से नवम्बर के दौरान ही खोले जाते है। यमुनोत्री धाम के कपाट बैशाख के महीने मे अक्षय तृतीया के दिन खोले जाते है तथा कार्तिक के माह मे यम द्वितीया को बंद कर दिये जाते है।
Yamunotri Temperature
यमुनोत्री धाम मंदिर का तापमान
यह मन्दिर साल मे कुल 6 माह के लिए ही खोला जाता है। उसके उपरान्त ये पूरा क्षेत्र बर्फ से ढक जाता है। यहाँ बर्फ अधिक पडने के कारण श्रद्धालु यहाँ तक नही पहॅुच सकते है तथा पूरा क्षेत्र बर्फ की चारद जैसी ओढे रखता है।
यहाँ गर्मियो के समय पर तापमान 6 से 20 डिग्री के बीच रहता है, दिन मे तो गुनगुनी धूप खिलती है परन्तु रात को ढंड बढ जाती है तथा सर्दियो के मौसम में यहाँ का तापमान शून्य डिग्री से नीचे चला जाता है तथा रात के समय पर अत्यधिक ढंड होती है।
दिसम्बर से मार्च तक यहाँ चारो तरफ बर्फ ही दिखाई देती है उस दौरान यहाँ हाड कपा देने वाली ठंड पडती है। इस दौरान यहाँ आना जाना नामुमकिन होता है।
How to Reach Yamunotri
यमुनोत्री मंदिर कैसे पहुंचे
यमुनोत्री धाम ऋषिकेश से लगभग 210 किमी(Rishikesh to Yamunotri Distance) और हरिद्वार से लगभग 255 किमी(Haridwar to Yamunotri Distance) की दूरी पर स्थित है। यहाँ से सरकारी बस व प्राईवेट टैक्सी व स्वयं के वाहन द्वारा यहाँ आसानी से पहुँचा जा सकता है।
मन्दिर जाने हेतु अन्तिम मोटर मार्ग हनुमान चटटी(Hanuman Chatti) है। वहाँ से आपका नारद चटटी, फूल चटटी व जानकी चटटी होते हुए यमुनोत्री तक पहुंचना होता है।
यहाँ के रास्ते मे आपको मनमोहित कर देने वाले दृश्य, मनोरम बर्फ से ढकी पहाडिया व सुन्दर जंगल दिखाई पडते है जो आपको आन्नदित करने के लिए पर्याप्त होगे।
Map of
Yamunotri Temple
हैलो, दोस्तों मैं पंकज पंत एक ब्लॉगर। दोस्तों लिखने, पड़ने व म्यूजिक (खासतौर से मैगज़ीन जैसे इंडिया टुडे व क्रिकेट सम्राट वगैरह) का शौक पहले से ही था तो सोचा क्यों न कुछ लिखा जाये और लिखा भी वो जाये जिसे पढ़कर पाठको को आनन्द भी आये व उसे पढ़कर उनके ज्ञान में भी कुछ वृद्धि हो सके। परन्तु लिखने के लिए एक लेखन सामग्री की आवश्यकता होती है तो सोचा किस विषय पर लिखा जाये। सोचते हुए दिमाग में आया की क्यों न अपने ही गृह राज्य उत्तराखंड के बारे में लिखा जाये जिसकी पृष्टभूमि बहुत ही विशाल होने के साथ-साथ यहाँ की संस्कृति और सभ्यता भी बहुत विकसित है। वही ये एक शानदार पर्यटक स्थल होने के अलावा धार्मिक दृस्टि से भी परिपूर्ण है। यहाँ हर साल हजारो की संख्या में मेलो व त्योहारों का आयोजन होता रहता है जिसे देखने व इनमे शामिल होने के लिए देश-विदेश से लाखो-करोडो लोग उत्तराखंड आते है व इन मेलों को देखने के साक्षी बनते है। इस कारण मैंने लिखने की शुरुवात की अपने उत्तराखंड से। अपनी इस वेबसाइट में मैंने उत्तराखंड की संस्कृति एवं सभ्यता, उत्तराखण्ड के प्रमुख पर्यटक स्थल, उत्तराखण्ड के प्रमुख मंदिरो, उत्तराखण्ड के प्रमुख नृत्य व संगीत, उत्तराखण्ड के प्रमुख ट्रेक्किंग स्थलों, उत्तराखण्ड के मुख्य डैम, उत्तराखण्ड की झीलों व ग्लेशियर के अलावा यहाँ की प्रमुख पर्वत चोटियों व अन्य विषयो को पाठको के समक्ष प्रस्तुत किया है। जैसे- जैसे मुझे अन्य कोई जानकारी मिलती जाएगी में उन्हें अपने पाठको के समक्ष प्रस्तुत करता रहूँगा। धन्यवाद पंकज पंत
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