previous post
HILL STATION IN UTTARAKHAND
गढ़वाल के प्रमुख पर्यटक स्थल:
BEST Hill Stations in Garhwal Region:लोग गर्मियों की छुट्टियों व अन्य अवकाश आदि के दौरान अपने व अपने परिवार के साथ समय व्यतीत करने हेतु किसी शान्त व मनोरम जगह की तलाश में रहते है। यू तो भारत वर्ष में कई ऐसे स्थान है जो सदियों से पर्यटको को अपनी और आकर्षित करते आये है परन्तु उनमे से एक स्थान उत्तराखण्ड भी है जो पर्यटको के घूमने हेतु आदर्श स्थल है। उत्तराखण्ड एक ऐसा देव स्थल है जिसे ऋषियों और मुनियो ने अपने तप व ज्ञान द्धारा पवित्र किया हुआ है। वही प्रकर्ति प्रेमियों व वन्य जीव प्रेमियों हेतु भी यहाँ कई राष्ट्रीय उद्यान व वन्य जीव उद्यान खोले गए है जहाँ लुप्त प्राय व अन्य जंगली जीवो को व्यक्ति नजदीक से देख सकते है।
वही रोमांचक खेलो के शौक़ीन लोगो के लिए भी उत्तराखंड किसी स्वर्ग से कम नहीं है यहाँ ऋषिकेश, पिथौरागढ़ और कई अन्य जगहों पर राफ्टिंग, ट्रैकिंग, पैराग्लाइडिंग जैसे खेलो का भी आयोजन होता रहता है जिसे देखने व इन खेलो में शामिल होने हेतु भी लाखो लोग उत्तराखंड का रुख करते है। वही उत्तराखंड में कई ऐसे पर्यटक स्थल है जो अपनी खूबसूरती के कारण देश विदेश में प्रसिद्ध है उत्तराखण्ड में मुख्यतः दो क्षेत्र है कुमाऊँ और गढ़वाल।
गढ़वाल क्षेत्र में औली, मसूरी, खिर्सू, फूलो की घाटी, धनोल्टी, लैंसडौन, चोपता, हर्षिल, चम्बा, ग्वालदम, कानाताल तथा नई टिहरी आदि आते है जहाँ प्रति वर्ष लाखो लोग पर्यटन हेतु आते है।
Top Hill Stations in Garhwal Region
गढ़वाल के प्रमुख पर्यटक स्थल
खिरसू
Khirsu
खिर्सू गढ़वाल का उभरता हुआ एक पर्यटक स्थल है जो अपने यहाँ चारो और फैली हरियाली, दूर-दूर तक फैले विशाल पर्वत तथा पौड़ी सरकार द्धारा पर्यटकों के लिए बनाये कॉटेजेस के लिए पूरे भारत में विख्यात हो चुका है। यहाँ की खूबसूरती देख दूर–दूर से आने वाले पर्यटको की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है।
खिर्सू पौड़ी गढ़वाल में स्थित है जो समुद्र तल से 1700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह स्थल पौड़ी से 19 किमी की दूरी पर स्थित एक एकान्त व आकर्षक पर्यटक स्थल है यह कुछ साल पहले तक पर्यटको की नजरो से अज्ञात था परन्तु पौड़ी प्रशासन व उत्तराखण्ड सरकार द्धारा इसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया जिस कारण अब यहाँ पर भी हजारो-लाखो की संख्या में पर्यटक हर साल यहाँ आते है व प्रकर्ति की सुंदरता व भव्यता का अनुभव करते है।
यह शानदार पर्यटक स्थल अपने यहाँ फैली शान्ति दूर दूर तक फैले देवदार व ओक के घने वृक्षों तथा सेब के वृक्षों के लिए प्रसिद्ध है। वही इस जगह से आप खूबसूरत हिमालय की बर्फ से ढकी 300 किमी लम्बी लम्बी चोटियों जिसमे त्रिशूल पर्वत, नंदा देवी पर्वत, नंदाकोट पर्वत तथा नन्दाघुंघटी की बर्फ से ढकी चोटियों को साक्षात देख सकते है। यहाँ पर स्थित देवदार व रसीले सेब के पेड़ यहाँ की सुंदरता को अधिक बढ़ा देते है।
इसी स्थान पर एक प्राचीन मंदिर भी स्थित है जो घंडियाल देवता के नाम से जाना जाता है। यहाँ पर प्रति वर्ष भव्य मेले का भी आयोजन किया जाता है जहाँ पर दूर-दूर से पर्यटक इसमें शरीक होने आते है व अपने व परिवार की लम्बी उम्र की प्रार्थना करते है।
खिर्सू में रुकने व विश्राम करने हेतु गेस्ट हॉउस व वन विभाग के पर्यटक कक्ष है यहाँ आने वाले पर्यटक बुकिंग आदि कराकर रुक सकते है।
खिर्सू कैसे पहुंचे:
How to reach Khirsu:
खिर्सू पूरी गढ़वाल में स्थित है जो पौड़ी से लगभग 16 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ जाने के लिए सबसे पहले आपको पौड़ी तक आना होता है जहाँ के लिए आपको हरिद्वार, दिल्ली व ऋषिकेश व अन्य जगहों से आसानी से बस उपलब्ध हो जाएगी।
पौड़ी आने के बाद आपको यहाँ से आसानी से किराये के वाहन या स्वयं की गाड़ी से यहाँ तक आसानी से पहुंच सकते है।
लैंसडौन
Lansdown
लैंसडौन गढ़वाल में स्थित एक बहुत खूबसूरत हिल स्टेशन है। यह जगह पौड़ी जिले में स्थित है। ये स्थल कई बड़े शहरो से आसानी से जुड़ा हुआ है तथा गढ़वाल के मुख्य शहर कोटद्धार से लगभग 40 किमी की दूरी पर स्थित है। स्थानीय भाषा में इस शहर को “कालुदंड” भी कहा जाता है अर्थात “काली पहाड़ी”।
लैंसडौन शहर समुद्र तल से 1,706 मीटर की ऊंचाई पर बसा हुआ है तथा इसका कुल क्षेत्रफल 2.35 मील है। जिसका निर्माण यहाँ की सुंदरता को देखते हुए अंग्रेजो ने सन 1887 को करवाया था उन्होंने यहाँ पर एक छावनी का निर्माण भी करवाया था जो आज के समय में गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंटल के मुख्य आकर्षकों में से एक है। इसके अतिरिक्त भारत के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल लोगो के लिए भी मुख्य स्थल है।
लैंसडौन चारो और से देवदार व चीड़ के वृक्षों से ढका हुआ है। यहाँ चारो और फैले विशाल पर्वत यहाँ की सुंदरता में और भी चार चाँद लगा देते है। अंग्रेजो के द्धारा ये स्थल पहाड़ो को बीच से काटकर बनाया गया था। यहाँ की हरियाली आपको यहाँ पर बार–बार आने के लिए आकर्षित करती है जिसे देखकर पर्यटक यहाँ पर बार बार आने को प्रेरित होते है।
धार्मिक दृस्टि से भी ये स्थल हिन्दुओं के लिए काफी महत्वपूर्ण है। यहाँ पर विश्व प्रसिद्ध तारकेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है जो भगवान शिव को अर्पित है। यह मन्दिर एक पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है जो समुद्र तल से 2,092 की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ हर साल हजारो-लाखो श्रद्धालु पूजा अर्चना हेतु इस मंदिर में आते है तथा अपने व अपने परिवार की लम्बी उम्र की कामना करते है।
लैंसडौन के प्रमुख पर्यटक स्थल:
Famous Tourist Places near Lansdowne:
लैंसडौन एक सुन्दर प्राकर्तिक स्थल है। पर्यटको को यहाँ की शांति भरा जीवन व शांत वातावरण बहुत पसंद आता है। लैंसडौन एक छोटा सा पर्यटक स्थल है जिस कारण यहाँ के पर्यटक स्थल भी काफी नजदीक में बसे हुए है जो देखने में पर्यटको को बहुत उत्साहित व आकर्षित करते है।
यहाँ पर मुख्य रूप से टिप इन टॉप, सेंट मैरिज चर्च, ताड़केश्वर मंदिर, भुल्ला ताल, गढ़वाल राइफल्स वॉर और म्युसियम, भीम पकोड़ा आदि प्रमुख स्थलों में से एक है जहाँ पर आप लैंसडौन यात्रा के दौरान जा सकते है व बहुत कम समय में इन पर्यटक जगहों की यात्रा कर सकते है।
टिप इन टॉप लैंसडौन की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है। प्रकर्ति प्रेमियों के लिए ये जगह किसी स्वर्ग से काम नहीं है। टिप इन टॉप को टिफिन टॉप के नाम से भी जाना जाता है जहाँ से आप हिमालय की ऊंचाई वाली चोटियो के अलावा त्रिशूल और चौखंबा की बर्फ से ढकी चोटियों को साफ तौर पर देख सकते है।
यहाँ का होने वाला सबसे सुन्दर दृस्य यहाँ का सूर्योदय व सूर्यास्त है। यह स्थल पिकनिक बनाने वालो के लिए भी स्वर्ग से कम नहीं है। यहाँ से आप–आस पास के गांव व पूरा लैंसडौन नजर आता है। यहाँ आने के लिए मार्च और अप्रैल तथा अक्टूबर से नवम्बर का मौसम सबसे अच्छा रहता है। इस समय यहाँ का मौसम साफ़ रहता है जिस कारण आप दूर दूर की खूबसूरत चीजों को भी चीजे भी आसानी से देख सकते है।
गढ़वाल राइफल रेजीमेंटल स्मारक लैंसडौन के सबसे सुन्दर व आकर्षक स्थलों में से एक है जहाँ गढ़वाल राइफल्स से सम्बंधित युद्ध व योद्दाओं के किस्से व कहानियाँ आपको जगह जगह देखने को मिल जाएगी। इस स्थान का निर्माण 1923 को भारत के पूर्व कमांडर इन चीफ के० लार्ड० राव लिंसन द्धारा कराया गया था।
इस स्थल को दरबान सिंह संग्रहालय के नाम से भी जाना जाता है। इस स्मारक में शाम 5 बजे तक ही जाने की छूट है उसके पश्चात आप इसके भीतर नहीं जा सकते है। आप यहाँ पर पाकिस्तानी मुद्रा व पुराने शाही शासन से जुड़े दस्तावेज व झंडे भी देख सकते है। यही पास में ही परेड ग्राउंड भी है जिसे आप बाहर से देख सकते है परन्तु अंदर जाने की मनाही है।
ताड़केश्वर मन्दिर लैंसडौन के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है जो की एक शक्ति पीठ में से एक है। यह मन्दिर समुद्र तल से 2092 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर चारो और से घने जंगलो और अलग अलग किस्म की वनस्पतियो से भरा हुआ है। मुख्य शहर से मंदिर तक पहुंचने में लगभग 1 घंटे का समय लगता है। यहाँ तक आप अपने वाहन से या ट्रैक द्धारा भी जा सकते है ट्रैकिंग पर जाने में आपको घने देवदार, चीड़, बाँज, बुरांस के पेड़ो के साथ-साथ तरह-तरह की जड़ी बूटियां भी दिखाई पड़ती है जिस कारण आपको ट्रैक कर जाने में अलग ही आनंद की प्राप्ति होती है।
सेंट मैरिज चर्च अंग्रेजो के कार्यकाल में बनाया गया था जो लैंसडौन के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है। अंग्रेजो द्धारा यहाँ कई भवनों के साथ-साथ इस चर्च का निर्माण भी करवाया गया था आप इस चर्च में पुराने समय की संरचनाओं को आसानी से देख सकते है। यह चर्च अंग्रेजो द्धारा 1895 को बनाया गया था। खूबसूरत चर्च “टिप इन टॉप” की पहाड़ी पर बनाया गया है जहाँ से आप पूरे शहर की सुंदरता को देख सकते है। यह चर्च अपने रंगीन खिड़कियों व दीवारों के लिए विशेष तौर पर पर्यटकों के बीच काफी पसंद है।
भीम पकोड़ा बाहरी लैंसडौन की धूरा रोड पर स्थित है जो एक बड़े से पत्थर के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ पर एक बड़ा पत्थर पहाड़ी पर रखा हुआ है जो अपनी जगह से कभी नहीं गिरता चाहे आप इस पर कितना भी जोर लगा ले।
मान्यता के अनुसार ये पत्थर भीम द्धारा यहाँ पर रखा गया था। यह पत्थर अपनी जगह से हिलता तो है परन्तु ढलान से नीचे कभी नहीं गिरता है। यही चमत्कार देखने लोग दूर दूर से यहाँ पर आते है।
लैंसडौन कब जाये:
When to go Lansdown:
लैंसडौन आप साल के किसी भी मौसम में जा सकते है। यहाँ का मौसम सालभर सुहावना बना रहता है। गर्मियों के सीज़न में भी यहाँ पर ज्यादा गर्मी नहीं पड़ती है हालांकि ठण्ड के मौसम में यहाँ ठण्ड बहुत अधिक पड़ती है तथा यहाँ का तापमान भी शून्य से नीचे चला जाता है जिस कारण सर्दियों के मौसम में पर्यटको को काफी तकलीफो का भी सामना करना पड़ता है। यहाँ पर आपको मार्च से अक्टूबर व नवंबर तक जाना चाहिए उस समय पर यहाँ का मौसम बहुत अधिक खुशनुमा व चारो तरफ हरियाली से भरा होता है जिस कारण ये जगह पर्यटको के मन को मोह लेती है।
लैंसडौन कैसे जाये:
लैंसडौन सड़क मार्ग से आसानी से जुड़ा हुआ है। यहाँ का नजदीकी हवाई अड्डा जॉलीग्रांट है जो यहाँ से लगभग 152 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ का बस स्टेशन व रेलवे स्टेशन कोटद्धार में है जो यहाँ से 40 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ से आप टैक्सी या प्राइवेट वाहन द्धारा यहाँ पहुंच सकते है। नई दिल्ली से लैंसडौन तक की दूरी लगभग 270 किमी के आसपास पड़ती है।
चोपता
Chopta
चोपता उत्तराखण्ड का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है जो रूद्रप्रयाग जिले में पडता है। यह समुद्र तल से 12000 फुट की ऊॅचाई पर स्थित है। यह गढवाल क्षेत्र के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से आता है। चोपता अपने बुग्यालों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यह पूरा पंचकेदार का क्षेत्र कहलाता है।
चोपता जाने के रास्ते में बांस व बुरांश का जंगल है जो बहुत ही मनोहारी प्रतीत होता है। तुगनाथ का प्रसिद्ध मन्दिर भी यही पर स्थित है। यहाँ से तुंगनाथ तक 3 किमी तक का क्षेत्र पूरी तरह से बुग्यालों के अन्तर्गत आता है। तुंगनाथ जी का यह मंदिर 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है वही ये मंदिर भगवान शिव के पांच केदारो में से भी एक है।
यह मंदिर इतनी ऊंचाई पर बसा एकमात्र शिव मंदिर है जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से 3460 मीटर है। यहाँ से ऊपर की तरफ चलने पर तुंगनाथ शिला पड़ती है जो लगभग 14000 फ़ीट पर पड़ता है। यहाँ पर जाने के लिए तुंगनाथ से कम से कम 2 घंटे का समय लगता है वही यहाँ से हिमालय की सुन्दर चोटियों का कभी न भूलने वाला द्रस्य देखने को मिलता है। यहाँ से जंगलो और घाटियों का भी मनमोहक द्रस्य देखा जा सकता है जो बहुत सुकून भरा महसूस होता है।
तुंगनाथ के दक्षिण दिशा की तरफ देवरिया ताल आता है जो यहाँ की खूबसूरती को और अधिक बढ़ा देता है। इस ताल में आपको नीलकंठ, चौखम्बा जैसी अन्य बर्फ से ढकी चोटियों की परछाई इस ताल में देख सकते है जो फोटो खींचने वालो के दिल में हमेशा के लिए उतर जाता है।
चोपता से गोपेश्वर जाने वाले मार्ग के मध्य कस्तूरी मृग प्रजनन फार्म है जहाँ से कस्तूरी मृगों की सुन्दरता को करीब से देखा जा सकता है। यह पूरा मार्ग बुरांस, बाँस के पेड़ो से ढका हुआ है जो बहुत ही आकर्षित दिखाई पड़ता है। जनवरी व फ़रबरी के समय पर यहाँ पर आपको बर्फ ही बर्फ दिखाई देती है।
चोपता के नजदीकी पर्यटक स्थल:
Tourist places near Chopta
चोपता उत्तराखंड के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है जहाँ दूर-दूर से पर्यटक मनोरंजन हेतु आते है। यहाँ नजदीक में भी कई ऐसे स्थान है जो पर्यटकों का मन मोह लेते है। यहाँ पास में ही विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ धाम है जो पांच केदारो में से भी एक है विश्व भर से श्रद्धालु यहाँ भगवान शिव के साक्षात् रूप के दर्शन हेतु आते है।
केदारनाथ धाम के अतिरिक्त यहाँ पास में ही कल्पेश्वर मंदिर, तुंगनाथ, मद्महेश्वर मंदिर, केदारनाथ कस्तूरी मृग अभयारण्य, चंद्रशिला ट्रैक, देवरिया ताल, कालीमठ आदि स्थान है जिन्हे यहाँ की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं को अवश्य जाना चाहिए।
केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के प्रमुख मंदिरों में से एक है जो पंच केदारो तथा 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। केदारनाथ मंदिर हिन्दुओं की धार्मिक आस्था का भी केन्द्र है जो भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर के दर्शन हेतु प्रति वर्ष लाखो लोग यहाँ की यात्रा करने आते है। वही यह मन्दिर उत्तराखण्ड में साल में सर्वाधिक भीड़ वाला मंदिर भी है। इस मंदिर में भगवान शिव के अतिरिक्त 200 और अलग अलग भगवानो की मुर्तिया लगी हुई है।
तुंगनाथ मन्दिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है जो चोपता से 3 किमी की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर 1000 साल से भी ज्यादा पुराना माना जाता है जो इतनी ऊंचाई पर स्थित एकमात्र शिव मन्दिर है।
यह मन्दिर समुद्र तल से 3,460 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है तथा भगवान शिव के पंच केदारो में से एक माना जाता है। यह पूरा 3 किमी का क्षेत्र बुग्यालो से भरा हुआ है। यहाँ से ही लगभग 14,000 फ़ीट की ऊंचाई पर चन्द्रशिला पड़ती है। यह मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए भी काफी प्रसिद्ध है जिसे देखने दूर-दूर से श्रद्धालु यहाँ आते है।
चन्द्रशिला ट्रैक अपने रोमांचक सफर के लिए जाना जाता है जो चन्द्रशिला पर्वत पर बसा हुआ है। यह समुद्र तल से 14,000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ की यात्रा आपको ट्रैक द्धारा करनी होती है जो चोपता से शुरू होता है। यह पूरी यात्रा रोमांच से भरी हुई है जहाँ आप बर्फ से ढके विशाल पर्वतो के साथ पूरा चोपता गांव व सम्पूर्ण घाटी की खूबसूरती को देख सकते है। यह ट्रैक लगभग 1.5 किमी का होता है जिस में आप हिमालय की लम्बी पर्वत श्रंखला को देख सकते है।
देवरिया ताल तुंगनाथ मंदिर के दक्षिण की तरफ पड़ता है जो एक शानदार झील है जो समुद्र तल से 2438 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह झील अपने चारो तरफ की खूबसूरती व अपने नीले पानी के अन्दर चौखम्बा पर्वत चोटी की शानदार परछाई के कारण प्रसिद्ध है। इस झील में पड़ने वाली परछाई पर्यटकों का मन मोह लेती है। वही झील के चारो और घने जंगल है जो यहाँ की सुंदरता को और अधिक बढ़ा देते है। यहाँ आकर आप सुकून के कुछ पल प्राप्त कर सकते है। यहाँ पर ट्रैक कर भी जा सकते है जहाँ से आप संपूर्ण क्षेत्र की सुंदरता को निहार सकते है।
चोपता के आस पास कई धार्मिक स्थल है जिनमे से कालीमठ भी एक है। यह मंदिर जिला रुद्रप्रयाग के प्रमुख मंदिरो में से एक है यह मंदिर भारत के प्रसिद्ध 108 शक्ति पीठो में से एक है। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जहॉ प्रति वर्ष हजारो लाखो श्रद्धालु माता काली के दर्शन हेतु आते है व पुण्य की प्राप्ति करते है। यह मंदिर चारो और से घने जंगलो और विशाल पहाड़ो से घिरा हुआ है तथा सरस्वती नदी के तट पर बसा हुआ है।
ऊखीमठ मंदिर रुद्रप्रयाग जिले के प्रमुख मंदिरो में से एक है वही इस जिले के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से भी मुख्य है। इस स्थान पर भगवान शिव, पार्वती, देवी उषा तथा बाणासुर के कई सारे मंदिर स्थित है। यहाँ पर भगवान केदारनाथ का मंदिर है।
यहाँ का शिवलिंग बर्फ से बना हुआ है जिस कारण ये मंदिर श्रद्धालुओं के आकर्षण के केंद्र में रहता है। यह मंदिर समुद्र तल से 1,317 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। सर्दियों के समय पर भगवान केदारनाथ की मूर्ति इसी मंदिर में रखी जाती है। इस मंदिर से हिमालय की बर्फ से ढकी पर्वत श्रंखला की सुन्दरता को आसानी महसूस किया जा सकता है।
चोपता कैसे जाये
How to reach chopta
चोपता सड़क मार्ग से आसानी से जुड़ा हुआ है। यहाँ से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है तथा सबसे नजदीकी वायु मार्ग देहरादून स्थित जॉलीग्रांट है। जॉलीग्रांट से यात्री यहाँ तक के लिए टैक्सी से भी आ सकते है। यहाँ के लिए ऋषिकेश, पौड़ी, हरिद्धार, देहरादून तथा नई दिल्ली से आसानी से बस की सुविधा उपलब्ध हो जाती है।
फूलो की घाटी
Valley of Flowers
फूलो की घाटी एक राष्ट्रीय उद्यान है जिसे फूलो की घाटी कहकर भी सम्बोधित किया जाता है। यह घाटी जिला चमोली मैं स्थित है तथा गोविंदघाट से हेमकुंड साहिब को जाने के रास्ते में पड़ती है। इसे Unesco द्धारा भी सन 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया है।
इस जगह की खोज करने का श्रेय सबसे पहले फ्रैंक एस० स्मिथ और आर० एल० होल्डसवर्थ को जाता है जिन्होंने सबसे पहले इस स्थान की खोज सन 1931 के दौरान की थी जब ये लोग कॉमेंट पर्वत पर ट्रैक के दौरान वापस आ रहे थे।
इसी फूलो की घाटी से प्रभावित होकर उन्होंने 1968 में वैली ऑफ़ फ्लावर्स(Valley of Flowers) नाम से पुस्तक की रचना की जिसमे उनके द्धारा इस जगह की खूबसूरती के बारे में संपूर्ण विवरण किया था। यह फूलो की घाटी 87.50 किमी वर्ग के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी कुल लम्बाई 3 किमी तथा चौड़ाई आधा किमी की है, जहाँ पर यात्री घूम सकते है।
यहाँ पर आपको 500 से भी ज्यादा किस्म के फूल दिखाई देते है जिसमे से कई पुष्प कई असाध्य रोगो जैसे अस्थमा, कैंसर, शुगर, किडनी तथा लीवर जैसे भयंकर रोगो को ठीक करने के काम में आते है। यहाँ पर कई प्रकार की जड़ी बूटियां भी पाई जाती है। मान्यता के अनुसार रामायण काल में हनुमान जी संजीवनी बूटी की तलाश में इसी जगह पर आये थे तथा यहाँ से संजीवनी बूटी लेकर गए थे।
यहाँ का मौसम में साल के अधिक्तर समय ठंडा बनी रहती है व नवंबर से मार्च तक यहाँ आस पास की पहाड़ियों में बर्फ पड़ी रहती है।
फूलो की घाटी में पाये जाने वाले मुख्य पोधो में आपको डेजी, नीले अफीम, कैलेंडुला, लोबिलिया, तारक, लिलियम, नीला पोस्त, सोसुरिया, स्ट्रॉबेरी, मोरिना, मार्स, बिस्टोरटा, अनाफलिस तथा अनेको प्रकार के पौधे व फूल पाये जाते है जिससे मनुष्यो के असाध्य रोग भी ठीक हो जाते है। वही सितम्बर के महीने में यहाँ पर ब्रह्मकमल खिलते है जो यहाँ की खूबसूरती को और भी निखार देते है। वही फोटोग्राफर्स के लिए ये स्थल किसी स्वर्ग से कम नहीं है वो यहाँ की खूबसूरती व तरह तरह के रंगीन फूलो को अपने कैमरे में कैद कर लेते है।
फूलो की घाटी के नजदीकी पर्यटक स्थल
Tourist Places near Valley of Flowers
फूलो की घाटी के पास ही कई ऐसे पर्यटक स्थल है जहाँ पर आप यहाँ की यात्रा के दौरान जा सकते है। ये स्थल यहाँ की सुंदरता को और अधिक बढ़ा देते है। यहाँ की यात्रा के दौरान आप हेमकुंड साहिब, गौरीकुंड, बेदनी बुग्याल, बद्रीनाथ मन्दिर, गोविंदघाट, वसुन्धरा झरना, नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान आदि स्थलों पर आप यहाँ की यात्रा के दौरान घूमने जा सकते है।
हेमकुंड साहिब सिक्खो का प्रमुख धार्मिक स्थल है जो हिमालय के बीचो बीच स्थित है। यह दुनिया का सबसे ऊंचाई पर स्थित गुरुद्धारा माना जाता है जो समुद्र तल से 4633 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह गुरद्वारा गुरु गोविन्द सिंह जी के जीवन से सम्बंधित है।
हेमकुंड साहिब स्थल अपने सामने सात विशाल बर्फ से ढके हुए पर्वतो तथा आस पास में फैले कई झीलों व ग्लेशियर के लिए प्रसिद्ध है। इस गुरूद्वारे को बर्फ से ढकी झील के रूप में भी जाना जाता है।
बेदनी बुग्याल उत्तराखंड के सबसे खूबसूरत बुग्यालों में से एक है तथा यहाँ के भी प्रमुख पर्यटक स्थलों में से भी एक है। यह बुग्याल अल्पाइन की घासो का एक मैदान है जो समुद्र तल से 3,354 मीटर की उचाई पर स्थित है।
यह बुग्याल रूपकुंड जाने के रास्ते पर आता है तथा वान गांव के निकट पड़ता है। यहाँ से आप त्रिशूल तथा नन्दाघुंघटी पर्वत के साथ साथ हिमालय की चोटियों का भी सुन्दर नजारा देख सकते है।
नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान यहाँ के प्रमुख पर्यटक स्थल में से है जो प्रकर्ति प्रेमियों और वन्य जीव प्रेमियों के घूमने के लिए आदर्श स्थल है। नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क को उद्यान का दर्जा 1982 को दिया गया। यह उद्यान फूलो और चारो और फैली पर्वत श्रंखला के मध्य में स्थित है। इस पार्क में आपको कई किस्म के फूलो के अलावा लुप्तप्राय जीवो जैसे भूरे भालू, नीली भेड़, काले भालू तथा जड़ी बूटियों तथा औसधीय पोधो भी देखने को मिल जायेंगे।
बद्रीनाथ धाम हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र है जहाँ लाखो भारतीयों प्रति वर्ष दर्शन करने हेतु आते है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है तथा अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है।
बद्रीनाथ धाम मंदिर समुद्र तल से 3,133 मीटर की उचाई पर स्थित है। वर्ष के 6 माह भारी बर्फवारी के कारण ये मंदिर बंद रहता है तथा अप्रैल से नवम्बर माह के दौरान ही खुलता है। यह भारत के सबसे ज्यादा भीड़ भाड़ वाले मंदिरो में से एक है। इस मंदिर में 1 मीटर ऊंची शालीग्राम की मूर्ति है जिसे 8 वी शताब्दी के दौरान आदि गुरु शंकराचार्य जी द्धारा पास के ही नारद कुंड से निकालकर यहाँ रखा था।
वसुन्धरा फॉल्स अर्थात वसुंधरा झरना एक प्राकर्तिक और रहस्मयी झरना है जो बद्रीनाथ से 8 किमी की दूरी पर स्थित है। ये झरना अपने रहस्यमकता की लिए देश दुनिया में प्रसिद्ध है। कहा जाता है की पापियों के ऊपर इस झरने का जल नहीं गिरता अपितु जो लोग सच्चे मन के होते है उन्ही के ऊपर इसका जल गिरता है।
यह झरना 400 मीटर की ऊंचाई से गिरता है। महाभारत काल में इसी स्थान पर सहदेव ने अपने प्राण त्यागे थे। ये झरना भारत के साथ साथ विदेशो में भी बहुत प्रसिद्ध है जिसे देखने विदेशो से प्रति वर्ष हजारो लोग इसकी सुंदरता व भव्यता देखने आते है। यहाँ पर आकर आपको ऐसा महसूस होगा की आप स्वर्ग की यात्रा पर आये है।
फूलो की घाटी कैसे जाये
फूलो की घाटी सड़क मार्ग से आसानी से जुड़ा हुआ है। यहाँ से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो यहाँ से लगभग 240 किमी की दूरी पर स्थित है। सबसे पहले आपको जोशीमठ होते हुए गोविंदघाट तक पहुँचना होता है तथा यहाँ से घागरिया तक आना होता है जो गोविंदघाट से 14 किमी पड़ता है। यहाँ से आप फूलो की घाटी तक ट्रैक द्धारा पहुँच सकते है।
हर्षिल
Harsil
वैसे तो पूरा उत्तराखंड ही खूबसूरती में किसी भी अन्य राज्य की तुलना में बहुत खूबसूरत है। यहाँ पर चारो और बिखरी हरी भरी वादियां, चारो और हिमाछादित पर्वत, झीले व झरने यहाँ की खूबसूरती को बहुत अधिक बढ़ा देते है। यहाँ घूमने लायक बहुत सारे पर्यटक व धार्मिक स्थल है पर जो बात आपको हर्षिल की वादियों में मिलेंगी वो और कहा?
ये खूबसूरत गांव गढ़वाल में स्थित है तथा उत्तरकाशी से 72 किमी दूर 2,620 मीटर की ऊंचाई पर है। इस स्थान की खोज का श्रेय सबसे पहले एक अंग्रेज कर्मचारी फेड्रिक विलसन नाम के व्यक्ति को जाता है जो मूलतः इंग्लैंड के मूल निवासी थे तथा किस्मत के कारण यहाँ तक आ पहुंचे थे। उनको ये स्थान इतना पसंद आया की उन्होंने वही रुकने का प्रण लिया तथा पास की ही एक कन्या से विवाह भी कर लिया। उन्होंने यहाँ पर अपने आमदनी हेतु इंग्लैंड से सेब के पौधे यहाँ लेकर के आये तथा उन्हें यहाँ पर बो दिया बाद में वो सेब के पौधे बहुत विकसित हुए तभी से यहाँ पर सेब का व्यापार होने लगा है।
हर्षिल गंगोत्री जाने हेतु रास्ते में पड़ता है जहाँ पर भागीरथी नदी अपने शांत रूप में बहकर पर्यटकों को मन्त्रमुघ्द कर देती है। हर्षिल में चारो और बिखरे देवदार के वृक्ष तथा सेब के पेड़ यहाँ की खूबसूरती को और अधिक बढ़ा देते है। यहाँ पर भागीरथी नदी के तट पर लक्ष्मीनारायण जी का एक मंदिर भी है जहाँ श्री हरी की मूर्ति लेटी हुई मुद्रा में है।
वही इस छोटी सी जगह पर कई सारे झरने, जगह जगह खिले हुए भिन्न भिन्न क़िस्म के फूल, बाग़ बगीचे तथा ताल तथा यहाँ की धरती को और अधिक सुशोभित बना देते है। यहाँ से कुछ ही किमी की दूरी पर हिन्दुओं का पवित्र मंदिर गंगोत्री धाम है जहाँ हर साल लाखो श्रद्धालु माँ गंगा के दर्शन हेतु आते है। वही यहाँ से 30 किमी दूर गंगोत्री राष्ट्रीय पार्क आता है जो लगभग 1,550 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहाँ आपको तरह तरह के जानवर व पक्षी दिखाई पड़ जायेंगे। इनमे राजकीय पक्षी मोनाल, बाघ, तीतर जैसे कई जंगली पशु-पक्षी आते है।
हर्षिल अपने यहाँ की सात झीलों के लिए भी प्रसिद्ध है जिन्हे देखने देश–दुनिया से प्रति वर्ष हजारो लोग यहाँ तक आते है तथा इस जगह को देख मन्त्रमुघ्द हो जाते है। यहाँ पहुंचकर पर्यटको को ऐसा महसूस होता है जैसे वो स्वर्ग की यात्रा पर निकले हो।
हर्षिल ट्रैकिंग के लिए भी बहुत शानदार जगह है जहाँ ट्रैकिंग करने हजारो ट्रेकर्स आते है यहाँ मुख्य रूप से नागणी क्यारकोटि ट्रैक है। यह ट्रैक हर्षिल से शुरू होता है तथा लगभग 8 किमी लंबा है। इस ट्रैक में आप फूलो की वादिया, खूबसूरत बुग्यालों तथा सात ताल आदि को देख सकते है जो इस ट्रैक की खूबसूरती को और अधिक बढ़ा देते है।
यहाँ हर जगह फैले देवदार व भोजपत्र के वृक्षों तथा विशाल हिमालय पर्वत की बर्फ से ढकी हुई चोटियों ट्रेकर्स की सारी थकान मिटा देते है।
कुछ साल पहले भारतीय सिनेमा द्धारा बनी फिल्म “राम तेरी गंगा मैली हो गई” की सूटिंग भी यही की गई थी जिसके बाद हर्षिल की खूबसूरती देश दुनिया के सामने आयी थी। गंगोत्री धाम या अन्य जगहों को घूमने जाने वाले यात्री अधिकतर यही पर आकर रात्रि विश्राम किया करते है। परन्तु राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु इस जगह के इनर लाइन घोषित होने के कारण यहाँ पर विदेशी लोगो के रात्रि विश्राम हेतु रोक लगी हुई है अपितु वो यहाँ दिन भर घूम सकते है पर रात होने से पहले ही उन्हें यहाँ से कई और जाना होता है।
हर्षिल में घूमने लायक पर्यटक स्थल
वैसे तो पूरा हर्षिल ही खूबसूरती में किसी से कम नहीं फिर भी कुछ ऐसी जगहे है जो पर्यटको का मन मोह लेती है। इन जगहों में से मुख्यतः सत्तल, गंगोत्री धाम, मुखबा गांव, गंगनानी आदि कुछ ऐसे स्थल है जहाँ पर्यटक हर्षिल भ्रमण के दौरान जा सकते है।
हर्षिल कब जाये
When to go Harshil
हर्षिल आप साल के किसी भी मौसम में जा सकते है। यहाँ का मौसम सालभर सुहावना बना रहता है। गर्मियों के सीज़न में भी यहाँ पर ज्यादा गर्मी नहीं पड़ती है हालांकि ठण्ड के मौसम में यहाँ ठण्ड बहुत अधिक पड़ती है तथा यहाँ का तापमान भी शून्य से नीचे चला जाता है जिस कारण सर्दियों के मौसम में पर्यटको को काफी तकलीफो का भी सामना करना पड़ता है। यहाँ पर आपको मार्च से अक्टूबर व नवंबर तक जाना चाहिए उस समय पर यहाँ का मौसम बहुत अधिक खुशनुमा व चारो तरफ हरियाली से भरा होता है जिस कारण ये जगह पर्यटको के मन को मोह लेती है।
हर्षिल कैसे पहुंचे
How to reach Harshil
हर्षिल सड़क मार्ग से आसानी से जुड़ा हुआ है। यहाँ से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो यहाँ से 160 किमी की दूरी पर स्थित है तथा सबसे नजदीकी वायु मार्ग देहरादून स्थित जॉलीग्रांट है जो हर्षिल से 232 किमी दूर है। जॉलीग्रांट से यात्री यहाँ तक के लिए बस या प्राइवेट टैक्सी द्धारा भी आ सकते है। उत्तरकाशी से यहाँ तक की दूरी 75 किमी पड़ती है यहाँ के लिए ऋषिकेश, पौड़ी, हरिद्धार, देहरादून, नई दिल्ली व अन्य जगहों से आसानी से बस की सुविधा उपलब्ध हो जाती है।
औली
Auli
उत्तराखंड में खूबसूरती की कही कोई कमी नहीं है यहाँ पर जगह जगह ऐसी जगह देखने को मिल जाएँगी जो पर्यटकों के मन को छू लेती है। उन्ही जगहों में से एक है औली जो अपनी खूबसूरत वादियों, सामने ही नजर आने वाले हिमाछादित विशाल पर्वतो तथा देवदार के बड़े बड़े वृक्षों के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध है।
यहाँ आकर पर्यटको को यहाँ की खूबसूरती व शानदार मौसम को देख ऐसा प्रतीत होता है जैसे वो स्वर्ग की यात्रा पर निकले हो। औली उत्तराखंड के जिला चमोली में स्थित है तथा इसकी उचाई समुद्र तल से लगभग 2,800 मीटर अर्थात 9,200 फ़ीट है जो कुल 5 से 7 किमी के एरिया में बसा हुआ है।
ओली एक छोटी सी जगह होने के बाद भी बहुत ही आकर्षित व शानदार पर्यटक स्थल है जो मुख्य रूप से स्कीइंग को पसंद करने वालो के लिए स्वर्ग से कम नहीं है। इस स्थल को ओली बुग्याल भी कहा जाता है जिसका अर्थ हरे घास के मैदान से है। यहाँ चारो और बड़े बड़े प्राकर्तिक घास के मैदान है जो देखने में बहुत सुन्दर दिखाई पड़ते है। वही ठण्ड के मौसम में जब बर्फ पड़ती है तो ये मैदान पूरी तरह से बर्फ से ढक जाते है जिस पर प्रति वर्ष स्कीइंग की प्रतियोगिताओ का आयोजन किया जाता है जिसमे भाग लेने हजारो की संख्या में देशी-विदेशी स्कीइंग का शौक रखने वाले भाग लेते है।
वही औली में विश्व की सर्वाधिक ऊंचाई पर पाई जाने वाली कृत्रिम झील है जिसे सन 2010 के दौरान बनाया गया था। इस झील में 25 हजार किलोलीटर पानी को इस झील में डाला जा सकता है। यहाँ पर फ्रांस से लाई गई मशीने लगाई गई है जिनके द्धारा इस पानी से कृत्रिम बर्फ बनाई जाती है। बर्फ न पड़ने पर इसी बर्फ पर स्कीइंग जैसे खेल खेले जाते है। जिन्हे देखने के लिए यहाँ पर सात जगहों पर ग्लॉस हाउस बनाये गये है जहाँ से स्कीइंग जैसे खेलो को देखा जा सकता है।
वही यहाँ से कुछ दूरी पर भारत का दूसरे नंबर का रोपवे भी है जिसका स्थान गुलमर्ग रोपवे के बाद आता है।
जो लगभग 4.15 किमी लम्बा है जो तथा जिसकी शुरुवात 1994 में हुई थी। यह रोपवे 10 टॉवरों से होकर जाता है। यहाँ से औली की खूबसूरती स्पष्ट नजर आती है।
औली के नजदीकी पर्यटक स्थल
Famous Tourist Places near Auli
औली के पास भी कई पर्यटक स्थल ऐसे है जिन्हे यात्री औली भ्रमण के दौरान घूम सकते है। यहाँ आप नंदप्रयाग जा सकते है जो अलकनंदा और नंदाकिनी नदियों के संगम के लिए जाना जाता है। यहाँ पर स्नान धार्मिक रूप से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। वही ये बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम का प्रवेश द्वार भी है। यहाँ आकर आप इन दोनों धामों की यात्रा पर भी जा सकते है जो हिन्दुओ के लिए सबसे पवित्र मंदिर है।
इसके अलावा आप भविष्य बद्री के दर्शन हेतु भी जा सकते है जो पाँच बद्रियों में से एक है।
औली अपने बुग्यालों के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है यहाँ पर आप गुरसो बुग्याल तथा कुंवारी बुग्याल भी जा सकते है। कुंवारी बुग्याल गुरसो बुग्याल से 12 किमी की दूरी पर स्थित है। जहाँ से आप हिमालय पर्वतो की बर्फ से ढकी चोटियों को आसानी से देख सकते है ।इसके अलावा आप यहाँ से नंदा देवी पर्वत, कामेट पर्वत, मान पर्वत की पर्वत श्रंखला को भी देख सकते है।
यहाँ पर ट्रैकिंग के साथ–साथ हिल क्लाइम्बिंग, रॉक क्लाइम्बिंग, फारेस्ट कैंपिंग आदि मनोरंजन के साधन भी है जिन्हे आप यहाँ भ्रमण के दौरान इनका लुत्फ़ उठा सकते है।
औली कब जाये
औली आप साल के किसी भी मौसम में जा सकते है। यहाँ का मौसम सालभर सुहावना बना रहता है। गर्मियों के सीज़न में भी यहाँ का मौसम बहुत ही खुशनुमा रहता है। हालांकि ठण्ड के मौसम में यहाँ ठण्ड बहुत अधिक पड़ती है तथा यहाँ का तापमान भी शून्य से नीचे चला जाता है जिस कारण सर्दियों के मौसम में पर्यटको को काफी तकलीफो का भी सामना करना पड़ता है। यहाँ पर आपको मार्च से अक्टूबर व नवंबर तक जाना चाहिए उस समय पर यहाँ का मौसम बहुत अधिक खुशनुमा व चारो तरफ हरियाली से भरा होता है जिस कारण ये जगह पर्यटको के मन को मोह लेती है।
औली कैसे जाये
How to reach Auli
औली सड़क मार्ग से आसानी से जुड़ा हुआ है। यहाँ से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो यहाँ से लगभग 260 किमी की दूरी पर स्थित है तथा सबसे नजदीकी वायु मार्ग देहरादून स्थित जॉलीग्रांट है जो औली से लगभग 290 किमी दूर है।
जॉलीग्रांट से यात्री यहाँ तक के लिए बस या प्राइवेट टैक्सी द्धारा भी आ सकते है। यहाँ के लिए ऋषिकेश, पौड़ी, हरिद्धार, देहरादून, नई दिल्ली व अन्य जगहों से आसानी से बस की सुविधा उपलब्ध हो जाती है।
मसूरी
Mussoorie
देहरादून से 35 किमी की दूरी पर स्थित एक खूबसूरत पर्यटक स्थल है मंसूरी जिसे पहाड़ो की रानी कहकर भी जाना जाता है। यह खूबसूरत पर्यटक स्थल समुद्र तल से 2005 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जहाँ हर साल लाखो पर्यटक आते है व यहाँ कि खूबसूरती का आनंद लेते है। हनीमून पर आने वालो के लिए भी ये पसंदीदा जगह है।
यहाँ पर सर्दियों में काफी मात्रा में बर्फ भी पड़ती है जिसे देखने दूर दूर से पर्यटक यहाँ पहुंचते है तथा यहाँ के खूबसूरत मौसम का आनंद लेते है।
यह स्थल ब्रिटिश काल के दौरान बसाया गया था जिसको बसने का श्रेय एक अंग्रेज सैन्य अधिकारी कैप्टेन यंग द्धारा की गई थी। यह जगह अंग्रेजो को बहुत पसंद होने के कारण उन्होंने ही यहाँ पर बड़े बड़े विशाल भवनों का निर्माण करवाया था जो आज भी यहाँ देखे जा सकते है। पहले इस जगह पर मंसूर की झाड़ियाँ बहुत अधिक मात्रा में पाई जाती थी इसी कारण यहाँ का नाम मंसूरी पड़ा। यहाँ पर प्रचुर मात्रा में वनस्पति तथा जीव जंतु पाए जाते है। वही यहाँ से दिखने वाली विशाल पर्वत चोटियों जैसे बन्दरपूँछ, श्री कंठा एवं नंदा देवी की चोटिया स्पष्ट दिखाई देती है।
मसूरी अपने यहाँ मौजूद स्कूलों व शिक्षण संस्थानों के लिए प्रमुख स्थल है यहाँ कई ऐसे शिक्षण संस्थान ऐसे भी है जो ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान खोले गए थे। यहाँ लाल बहादुर शास्त्री प्रशिक्षण केंद्र, आई०टी०बी०पी० प्रशिक्षण केन्द्र, सेंट जॉर्ज स्कूल, वुडस्टॉक स्कूल जैसे कई और भी स्कूल, कॉलेज है जो आज से तक़रीबन 100 साल से भी ज्यादा पुराने है।
यहाँ लाल बहादुर शास्त्री प्रशिक्षण केंद्र में नये भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में शामिल लोगो का देश भर में एकमात्र केंद्र है वही वुडस्टॉक स्कूल एक अंतराष्ट्रीय आवासीय विद्यालय है जिसकी स्थापना 1850 के दौरान की गई थी। यह विद्यालय भारत के प्रमुख आवासीय विद्यालय में से एक है।
मंसूरी के प्रमुख पर्यटक स्थल:
Famous Tourist Places near Mussoorieमसूरी एक खूबसूरत पर्यटक स्थल है आप यहाँ की यात्रा के दौरान यहाँ पास में
स्थित पर्यटक स्थलों की सैर पर भी जा सकते है। यहाँ के प्रमुख पर्यटक स्थलों में
लाल टिब्बा, मॉल रोड, कैम्पटी
फॉल्स, गन हिल, क्राइस्ट चर्च, सुरकुण्डा देवी मन्दिर
तथा सहस्त्रधारा आदि पड़ते है जिन्हे आप यहाँ की यात्रा के दौरान जा सकते है।
लाल टिब्बा मसूरी से लगभग 6 किमी की दूरी पर स्थित है वही ये देहरादून की सबसे ऊंची पर्वत चोटी पर भी स्थित है। जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से 2275 मीटर है। यहाँ पर कई सालो तक ब्रिटिश रहा करते थे इस कारण यहाँ अभी भी अंग्रेजो द्धारा किये गए कार्यो को देखने को मिल जायेगा। लाल टिब्बा का अर्थ लाल पहाड़ी से होता है।
कैम्पटी फॉल मसूरी में देखने के लिए सबसे अच्छी जगहों में से एक है जो मसूरी से 15 किमी की दूरी पर बसा हुआ है। यह समुद्र तल से लगभग 1364 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ पर ऊंची पहाड़ी से गिरता झरना देख पर्यटकों का मन खुश हो जाता है वही यहाँ चारो ओर फैली हरियाली पर्यटकों का मन मोह लेती है।
यह मसूरी का मुख्य बाजार है जहाँ पर घूमते हुए नई शादी वाले जोड़े हर पल दिखाई पड़ जायेंगे। वही इसी रोड पर कई सारे होटल, रेस्टोरेंट व खरीददारी करने हेतु दुकाने मिल जाएँगी जहाँ से आप अपनी पसंद का सामान वगैरह खरीद सकते है। यहाँ पर ऊनी कपडे व शाल आदि बहुत ही अच्छे मिलते है।
यही पर मशहूर उपन्यासकार रस्किन बॉन्ड की लाइब्रेरी कैम्ब्रिज बुक डिपो भी है जहाँ पर रसकन बॉन्ड प्रति शनिवार 3:30 से 5:30 तक आते है। वही इसी के पास ही बस स्टेशन व टैक्सी स्टेशन भी है जहाँ से आप टैक्सी लेकर अन्य जगह की यात्रा पर भी जा सकते है।
गन हिल मसूरी की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है। यह समुद्र तल से 2,024 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। गन हिल के बारे में एक इतिहास चौका देने वाला ये है की इस पहाड़ी से अंग्रेज रोज दोपहर एक नाव में आग लगा दिया करते थे जिससे लोगो को समय का पता लग सके। इस जगह पर छोटी–छोटी खेलो की दुकाने है जहाँ पर लोग आकर मनोरंजन कर सकते है। वही यहाँ पर कई सारी फ़ास्ट फूड्स की दुकाने भी है अगर आप यहाँ जाये तो इन स्ट्रीट फूड्स का आनंद भी ले सकते है।
क्राइस्ट चर्च भारत में मौजूद सबसे पुराने चर्चो में से एक है जिसकी खूबसूरती आज भी वैसी ही है जैसी कई साल पहले थी। यहाँ सीसे की बनी हुई खिड़किया, पत्थरो की डिजाईन, दीवारों पर बनी बनावट तथा यीशु के जीवन पर बनाई गई कलाकृतियाँ पर्यटकों को बहुत आकर्षित करती है। इस चर्च का निर्माण अंग्रेजो के कार्यकाल के दौरान 1836 में करवाया गया था।
कम्पनी गार्डन मसूरी का एक और प्रमुख पर्यटक स्थल है जिसकी स्थापना का श्रेय डॉ एच० फक्नर को जाता है जिन्होंने कंपनी गार्डन की नीव रखी। यह खूबसूरत गार्डन हरियाली, बाग़-बगीचों तथा तरह तरह के फूलो से भरा हुआ है जहाँ पर पर्यटक पूरे दिन भर अपने परिवार के साथ पिकनिक हेतु आते है।
मुख्यतः यहाँ लगे बगीचे व फूल ही यहाँ का मुख्य आकर्षण भी है यहाँ पर एक नर्सरी भी स्थापित है जहाँ से आप अपने घर के लिए फूल इत्यादि भी खरीद कर ले जा सकते है। इस गार्डन में 800 से भी अधिक क़िस्म के फूल लगे हुए है। वही इसकी अन्दर एक कृत्रिम झरने का निर्माण भी किया गया है जहा पर आप नौका विहार का आनंद भी ले सकते है। वही यहाँ खाने व पीने की वस्तुओं के लिए अलग से फ़ूड कोर्ट तथा बच्चो के खेलने हेतु भी कई सारी मनोरंजन से भरी चीजे है जिस पर बच्चे सवारी का आनंद ले सकते है।
सुरकुण्डा देवी मंदिर यहाँ के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है वही ये जगह यहाँ के आसपास की सबसे ऊंची चोटियों में से भी एक है। यह मन्दिर समुद्र तल से लगभग 10,000 फ़ीट की उचाई पर स्थित है। इतनी उचाई पर स्थित होने के कारण यहाँ से आस पास के क्षेत्र का सम्पूर्ण नजारा देखा जा सकता है जो पर्यटको को मंत्र्मुघ्द कर देता है। मंदिर में रोपवे द्धारा जाया जा सकता है। इस मंदिर में भगवान शिव की स्तुति की जाती है। वही इस मंदिर में प्रति वर्ष मई- जून के दौरान गंगा दशहरा के दौरान एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है जिसमे सम्मिलित होने श्रद्धालु दूर-दूर से यहाँ पर आते है।
झरीपानी फाल्स भी मसूरी के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है। यह स्थल मसूरी से 8 किमी की दूरी पर स्थित है यहाँ तक पहुंचने के लिए आपको थोड़ा पैदल भी जाना पड़ता है जो लगभग 1.5 किमी होता है। परन्तु यहाँ पहुंचकर आप रास्ते की सारी थकान भूल जायेंगे। पिकनिक पर जाने वालो व प्रकर्ति प्रेमियों के लिए ये जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं है। यह फॉल झरी पानी नाम के गांव में स्थित है।
मसूरी कब जाये
When to go Mussoorie
मसूरी आप साल के किसी भी मौसम में जा सकते है। यहाँ का मौसम साल भर खुशनुमा बना रहता है यहाँ पर गर्मियों में थोड़ी गर्मी जरूर होती है परन्तु सुबह व शाम को मौसम बहुत ही खुशनुमा रहता है। वैसे सितम्बर से जून तक का मौसम यहाँ आने के लिए सबसे अच्छा रहता है। यहाँ पर बारिश के दौरान आने से बचना चाहिए क्योकि बारिश आने के दौरान यहाँ की सडको पर लैंड स्लाइड का खतरा रहता है।
मसूरी कैसे जाये
How to go Mussoorie
मसूरी सड़क मार्ग से आसानी से जुड़ा हुआ है। यहाँ से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन देहरादून है जो यहाँ से लगभग 60 किमी की दूरी पर स्थित है तथा सबसे नजदीकी वायु मार्ग देहरादून स्थित जॉलीग्रांट है जो मसूरी से लगभग 60 किमी दूर है।
जॉलीग्रांट से यात्री यहाँ तक के लिए बस या प्राइवेट टैक्सी द्धारा भी आ सकते है। यहाँ के लिए ऋषिकेश, पौड़ी, हरिद्धार, देहरादून, नई दिल्ली व अन्य जगहों से आसानी से बस की सुविधा उपलब्ध हो जाती है।
नई टिहरी
New Tehri
टिहरी गढवाल उत्तराखण्ड का एक खूबसूरत जिला है जो चारो ओर सें बर्फ से ढकी हुई पहाडियों से घिरा हुआ है। टिहरी गढवाल अपनी प्राकृतिक खूबसूरती व धार्मिक पर्यटन के कारण बहुत प्रसिद्ध है, जिससे देश-विदेश से आने वाले सैलानी प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में यहाँ टिहरी आते हैं। यह शहर मास्टर प्लान के हिसाब से बनाया गया था। जो नई टिहरी के नाम से जाना जाता है जो अब पूरे भारतवर्ष के सबसे विकसित शहरों में से आता है तथा मास्टर प्लान के हिसाब से बसाया गया शहर है।
मान्यता के अनुसार कनकपाल का विवाह भानु प्रताप की लडकी से हुआ था जिससे भानु प्रताप ने अपना सारा राज्य कनकपाल को सौप दिया था, बाद में कनकपाल ने धीरे-धीरे सारे गढ जीत लिये थे और एक समय पूरे गढवाल पर लगभग 918 सालों तक उनका साम्राज्य स्थापित हो गया था।
बाद में सन 1803 में गोरखों ने देहरादून में खूरबूडा की लडाई जीत कर गढवाल पर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। बाद में स्वर्गीय राजा प्रदवमुन सिंह के पुत्र सुदर्शन शाह ने अंग्रेजो की सहायता से पुनः यहाँ अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया। अंग्रेजो द्धारा पश्चिम गढवाल सुदर्शन शाह को सौप दिया गया जो बाद में टिहरी रियासत के नाम से जाना जाने लगा। बाद में उनके उत्तराधिकारियों ने प्रताप शाह, कीर्ति शाह, नरेन्द्र शाह ने अपनी राजधानी क्रमशः प्रतापनगर, कीर्ति नगर व नरेन्द्रनगर बनाई। बाद में इन क्षेत्रों के लोगों ने सक्रिय रूप से भारत छोडो आन्दोलन के दौरान बढ-चढ कर भाग लिया।
यहाँ संचार व्यवस्था में कमी व दुर्गम पहाडी होने के कारण इसकी पुरातन संस्कृति आज भी लगभग वैसी ही है जैसे पहले थी। पर्वतों के बीचों बीच स्थित होने व चारों और हिमालय से ढके पहाड होने के कारण यह स्थान पर्यटको के आकर्षण के केन्द्र में रहती है।
यह भागीरथी नदी के तट पर बसा हुआ शहर है व कृषि के मुख्य व्यापार केन्द्र के रूप में आता है। यहाँ मुख्य रूप से चावल, जौ और तिलहन की खेती होती है। आसपास का लगभग 4,421 वर्ग किमी का क्षेत्र पूरी तरह से हिमालयी क्षेत्र के अन्तर्गत आता है तथा दक्षिण में ये गंगा नदी से घिरा हुआ है।
टिहरी गढ़वाल के प्रमुख पर्यटक स्थल:
Famous Tourist Places in Tehri
टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है यहाँ घूमने हेतु चम्बा, बूढ़ा केदार मंदिर, महासर ताल, नागटिब्बा, टिहरी डैम, कैम्पटी फॉल तथा सेम मुखेम आदि स्थल है जहाँ पर पर्यटक टिहरी की यात्रा के दौरान जा सकते है।
टिहरी डैम: Tehri Dam
यहाँ पर घूमने की जगहों में से टिहरी डैम एक प्रमुख पर्यटक स्थल है जो टिहरी बांध के नाम से भी जाना जाता है। यह एशिया का सबसे बडा डाम है तथा विश्व में ये 5 वे नम्बर पर आता है।
यह उत्तराखण्ड के साथ–साथ पूरे देश को भी बिजली उपलब्ध करवाता है। 1978 को इस बांध को बनाने का काम शुरू हुआ था तथा इसका फेज 2006 में बनकर में तैयार हुआ था जो 52 वर्ग किमी में फैला हुआ है तथा इससे 1000 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। यह बांध 84 क्षमता के भूकंप के झटके को सहने में सक्षम है।
कैम्पटी फॉल मसूरी में देखने के लिए सबसे अच्छी जगहों में से एक है जो मसूरी से 15 किमी की दूरी पर बसा हुआ है। यह समुद्र तल से लगभग 1364 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ पर ऊंची पहाड़ी से गिरता झरना देख पर्यटकों का मन खुश हो जाता है वही यहाँ चारो ओर फैली हरियाली पर्यटकों का मन मोह लेती है।
सुरकुण्डा देवी मंदिर यहाँ के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है वही ये जगह यहाँ के आसपास की सबसे ऊंची चोटियों में से भी एक है। यह मन्दिर समुद्र तल से लगभग 10,000 फ़ीट की उचाई पर स्थित है। इतनी उचाई पर स्थित होने के कारण यहाँ से आस पास के क्षेत्र का सम्पूर्ण नजारा देखा जा सकता है जो पर्यटको को मंत्र्मुघ्द कर देता है। मंदिर में रोपवे द्धारा जाया जा सकता है। इस मंदिर में भगवान शिव की स्तुति की जाती है। वही इस मंदिर में प्रति वर्ष मई- जून के दौरान गंगा दशहरा के दौरान एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है जिसमे सम्मिलित होने श्रद्धालु दूर-दूर से यहाँ पर आते है।
महासर ताल टिहरी गढ़वाल में स्थित है जिसकी लम्बाई 70 मीटर तथा चौड़ाई 20 मीटर है। यह झील दो कटोरे के आकर के तालो से निर्मित है। इस कारण दो तालो से बने होने के कारण इस ताल को भाई बहन ताल कहकर भी पुकारा जाता है। यह ताल महासरताल, महासरनाग देवता का निवास स्थान है तथा समुद्र तल से 10,000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है।
मान्यता के अनुसार पुरातन समय में दो नागवंशी भाई और बहन इन्ही दो तालो में निवास किया करते थे। इसी जगह पर महार देवता एक प्राचीन मंदिर भी है जिसके गर्भगृह में पत्थर की बनी नाग देवता की मूर्ति रखी हुई है। यहाँ प्राचीनकाल से ही गंगा दशहरा के दिन एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है जहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु स्नान कर पुण्य की कामना करते है।
बूढ़ाकेदार मन्दिर टिहरी गढ़वाल का एक प्रसिद्ध मन्दिर है वही ये टिहरी का प्रसिद्ध धार्मिक स्थान भी है। यह मन्दिर दो नदियों बालगंगा और धर्मगंगा के बीच में स्थित है। पहले इस मंदिर से होते हुए ही केदारनाथ धाम के लिए पैदल रास्ता जाता था परन्तु समय बदलने व राज्य में रास्तो का जाल पड़ने से अब केदरनाथ धाम का रास्ता बदल गया है। उस समय यही से केदारनाथ धाम जाने का मुख्य रास्ता था इस मंदिर में जाये बगैर केदारनाथ धाम की यात्रा भी अपूर्ण मानी जाती थी।
इस मंदिर को स्थापित करने का श्रेय आदि गुरु शंकराचार्य जी को जाता है। इस स्थान पर पांडवो द्धारा ब्रह्म हत्या के पाप से बचने के लिए स्वर्ग को यात्रा की थी तब इसी स्थान पर भगवान शिव द्धारा पांडवो को वृद्ध व्यक्ति के रूप में दर्शन दिए थे इसी कारण से इस स्थान का नाम बूढ़ाकेदार पड़ा।
इस मंदिर में दर्शन करने हेतु श्रद्धालु दूर-दूर से आते है। इसके अंदर पत्थरो में पांडवो की आकर्तियाँ बनी हुई है। इस मंदिर में बने शिवलिंग को उत्तर भारत का सबसे बड़ा शिवलिंग माना जाता है। इस शिवलिंग पर पांडवो के अंगलियों के हाथ के छाप भी पड़े हुए है।
सेम मुखेम मंदिर उत्तराखण्ड के प्रमुख मंदिरो में से एक है जिसे यहाँ का पांचवा धाम कहकर भी जाना जाता है। यह मंदिर उत्तरकाशी और टिहरी जनपद के मध्य में 7,000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ जाने का रास्ता जंगलो से होकर जाता है जहाँ खूबसूरत फूल चारो तरफ सुगंध बिखेरे रहते है वही बांज, बुराँस व खर्सू के घने वृक्ष भी है जो यहाँ का वातावरण खुशनुमा बनाये रखते है।
ये मंदिर भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। यहाँ भगवान कृष्ण साक्षात् नागराज के रूप में विराजमान है। इस मंदिर में दर्शन करने व पूजा–पाठ करने से मनुष्यो को अकाल मृत्यु नहीं आती तथा काल सर्प दोष का पूर्ण निवारण होता है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण द्धापर युग में यहाँ आकर मूर्ति के रूप में स्थापित हुए थे तभी से इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण को नागराज देवता के रूप में पूजा जाता है। मन्दिर के गर्भ– गृह में नागराजा की स्वयंभू भू-शिला है जो द्धापर युग के समय की बताई जाती है।
मन्दिर में प्रति तीन सालो में एक विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है जहाँ दूर दूर से इसमें शामिल होने श्रद्धालु आते है तथा पूजा पाठ आदि करते है।
टिहरी गढ़वाल कब जाये
When to go Tehri Garhwal
नई टिहरी आप साल के किसी भी मौसम में जा सकते है। यहाँ का मौसम साल भर खुशनुमा बना रहता है यहाँ पर गर्मियों में थोड़ी गर्मी जरूर होती है परन्तु सुबह व शाम को मौसम बहुत ही खुशनुमा रहता है। वैसे सितम्बर से जून तक का मौसम यहाँ आने के लिए सबसे अच्छा रहता है। यहाँ पर बारिश के दौरान आने से बचना चाहिए क्योकि बारिश आने के दौरान यहाँ की सडको पर लैंड स्लाइड का खतरा रहता है।
टिहरी गढ़वाल कैसे पहुंचे
How to reach Tehri Garhwalयहाँ आवागमन का मुख्य साधन निजी वाहन व सरकारी बस वगैरह है। यहाँ का निकटतम हवाई अडडा जौली ग्रान्ट है जो यहाँ से 93 किमी दूर है। यहाँ का निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो यहाँ से लगभग 76 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ से आप आसानी से प्राइवेट वाहन या सरकारी बस द्धारा यहाँ तक पहुंच सकते है।
हर की दून
Har ki Doon
हर की दून हिमालय की घाटी में स्थित एक मनोरम स्थल है जो रूपिन व सूपिन नदियों के पास बसा हुआ है। यह स्थान फ़तेह पर्वत की गोद में बसा हुआ है जो मुख्यतः ट्रैकिंग के लिए प्रसिद्ध है। इस घाटी को हर की घाटी अर्थात भगवान की घाटी भी कहा जाता है जो एक और से हिमांचल के किन्नौर व दूसरी और से तिब्बत से सटा हुआ है जो अत्यंत दुर्गम स्थान पर स्थित है। यहाँ जाने हेतु सूपिन नदी के किनारे किनारे जाना होता है।
यह घाटी समुद्र तल से 3,500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित
है तथा अक्टूबर से मार्च तक बर्फ से पटा रहता है। यहाँ से स्वर्गारोहिणी घाटी की
सुंदरता को भी करीब से देखा जा सकता है।
मान्यता के अनुसार इसी पर्वत से होते हुए पांडव स्वर्ग की तरफ गए थे इसी कारण इस पर्वत का नाम स्वर्गारोहिणी पड़ा। यह स्थल हर तरफ के शांत वातावरण व चारो और देवदार के घने वृक्षों से घिरा हुआ है जहाँ जाकर पर्यटको को असीम शान्ति की अनुभूति होती है। ट्रैकर्स के बीच ये स्थल काफी चर्चित है जहाँ हर साल हजारो ट्रेकर्स के शौकीन लोगो के आने जाने वालो का ताँता लगा रहता है।
हर की दून कब जाये
When to go Har ki Doon
हर की दून घाटी पर जाने के लिए आपको यमनोत्री धाम के रास्ते पर जाना होता है तथा साँकरी तक पहुँचना होता है। यहाँ से आपको पैदल ही आगे को जाना होता है। यहाँ से आपको सुपिन नदी के किनारे किनारे तालुका, ओसला गांव होते हुए यहाँ तक पहुँचना होता है। यहाँ जाने का मार्ग अत्यंत कठिन होता है जो लगभग 8 दिन का ट्रैक होता है।
हर की दून कब जाये
When to go Har ki Doon
हर की दून घाटी पर जाने के लिए मई और जून तथा सितम्बर और अक्टूबर का महीना सबसे अच्छा रहता है। अक्टूबर से मार्च तक के मौसम में यहाँ चारो और बर्फ पड़ी रहती है जिस कारण यहाँ तक आना मुश्किल भरा रहता है।
हैलो, दोस्तों मैं पंकज पंत एक ब्लॉगर। दोस्तों लिखने, पड़ने व म्यूजिक (खासतौर से मैगज़ीन जैसे इंडिया टुडे व क्रिकेट सम्राट वगैरह) का शौक पहले से ही था तो सोचा क्यों न कुछ लिखा जाये और लिखा भी वो जाये जिसे पढ़कर पाठको को आनन्द भी आये व उसे पढ़कर उनके ज्ञान में भी कुछ वृद्धि हो सके। परन्तु लिखने के लिए एक लेखन सामग्री की आवश्यकता होती है तो सोचा किस विषय पर लिखा जाये। सोचते हुए दिमाग में आया की क्यों न अपने ही गृह राज्य उत्तराखंड के बारे में लिखा जाये जिसकी पृष्टभूमि बहुत ही विशाल होने के साथ-साथ यहाँ की संस्कृति और सभ्यता भी बहुत विकसित है। वही ये एक शानदार पर्यटक स्थल होने के अलावा धार्मिक दृस्टि से भी परिपूर्ण है। यहाँ हर साल हजारो की संख्या में मेलो व त्योहारों का आयोजन होता रहता है जिसे देखने व इनमे शामिल होने के लिए देश-विदेश से लाखो-करोडो लोग उत्तराखंड आते है व इन मेलों को देखने के साक्षी बनते है। इस कारण मैंने लिखने की शुरुवात की अपने उत्तराखंड से। अपनी इस वेबसाइट में मैंने उत्तराखंड की संस्कृति एवं सभ्यता, उत्तराखण्ड के प्रमुख पर्यटक स्थल, उत्तराखण्ड के प्रमुख मंदिरो, उत्तराखण्ड के प्रमुख नृत्य व संगीत, उत्तराखण्ड के प्रमुख ट्रेक्किंग स्थलों, उत्तराखण्ड के मुख्य डैम, उत्तराखण्ड की झीलों व ग्लेशियर के अलावा यहाँ की प्रमुख पर्वत चोटियों व अन्य विषयो को पाठको के समक्ष प्रस्तुत किया है। जैसे- जैसे मुझे अन्य कोई जानकारी मिलती जाएगी में उन्हें अपने पाठको के समक्ष प्रस्तुत करता रहूँगा। धन्यवाद पंकज पंत
Our travel guides and travel tips will help you make the most of your vacation, whether it’s your first time there or not.
Contact us: pantpankaj1985@gmail.com