उत्तराखण्ड के प्रमुख ट्रैक्सः
Famous tracks in Uttarakhand:कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता परन्तु देवभूमि उत्तराखण्ड भी प्राकृतिक सुंदरता में किसी से कम नही है। उत्तराखण्ड चारों तरफ सें ऊचें–ऊचें पहाडों से घिरा हुआ प्रदेश है जहाँ के पहाडों पर साल भर बर्फ पडी रहती है। बर्फ पडी होने के कारण ये पर्यटको को अपनी और अत्यधिक आकर्षिक करते है। साल भर बर्फ होने व पहाडों के अत्यधिक ऊचें होने के कारण साहसिक पर्यटको को ये स्थान बहुत आकर्षित करते है।
इन ट्रैक्स पर लोग कई–कई ग्रुप्स में यात्रा करते है तथा साथ में अपने पहनने व खाने पीने के सामान के साथ टैंट व आक्सीजन के सिलेण्डर वगैरह साथ में ले जाते है, अधिक ऊंचाई व बर्फीले पहाड होने के कारण वहा खाने पीने की चीजों व आक्सीजन आदि का अभाव रहता है।
बीते 21 अगस्त को उच्च न्यायालय ने ट्रैकिंग पर जाने वाले यात्रियों को बुग्यालों में रात्रि विश्राम करने पर रोक लगा दी थी, परन्तु मुख्यमंत्री व वन विभाग द्वारा हस्तक्षेप करने पर बुग्यालो को राष्ट्र पार्क का दर्जा दे दिया गया तथा बुग्यालों में न रूककर उसके आसपास के क्षेत्रों में रूकने की अनुमति प्रदान कर दी गई।
यहाँ गढवाल क्षेत्र के प्रमुख ट्रैक्स में ओडेन कोल ट्रैक, बाली पास ट्रैक, चोपता चन्द्रशिला ट्रैक, दयारा बुग्याल–डोडीताल ट्रैक, डोडीताल–दरवा पास ट्रैक, डोडीताल–बमसारू खाल पास ट्रैक, गौमुख–तपोवन ट्रैक, हरकी दून ट्रैक, कालिन्ंदी खाल ट्रैक, केदारताल ट्रैक, नन्दा देवी सैंचुरी ट्रैक, नागटिब्बा ट्रैक, रूपकुण्ड ट्रैक, सतोपंथ ट्रैक, शिवलिंग बैस कैम्प ट्रैक, कुवारी पास ट्रैक, चन्द्रशिला ट्रैक, खतलिंग ट्रैक, केदारकंठ ट्रैक, बेदनी बुग्याल ट्रैक, पंचकेदार ट्रैक आदि मुख्य है।
गढ़वाल के प्रमुख ट्रैक व उनका स्थान:
Famous Treks and his place in Garhwal
गढ़वाल के प्रमुख़ ट्रैक |
स्थान |
ओडेन कोल ट्रैक |
उत्तरकाशी |
चोपता चन्द्रशिला ट्रैक |
रुद्रप्रयाग |
डोडीताल–दरवा पास ट्रैक |
उत्तरकाशी |
दयारा बुग्याल–डोडीताल ट्रैक |
उत्तरकाशी |
बाली पास ट्रैक |
उत्तरकाशी |
गौमुख–तपोवन ट्रैक |
उत्तरकाशी |
पंचकेदार ट्रैक |
रुद्रप्रयाग |
बेदनी बुग्याल ट्रैक |
चमोली |
केदारकंठ ट्रैक |
उत्तरकाशी |
हरकी दून ट्रैक |
उत्तरकाशी |
कुवारी पास ट्रैक |
चमोली |
शिवलिंग बैस कैम्प ट्रैक |
उत्तरकाशी |
कालिन्दी खाल ट्रैक |
उत्तरकाशी |
सतोपंथ ट्रैक |
चमोली |
केदारताल ट्रैक |
उत्तरकाशी |
रूपकुण्ड ट्रैक |
चमोली |
खतलिंग ट्रैक |
टिहरी गढ़वाल |
नागटिब्बा ट्रैक |
टिहरी गढ़वाल |
ऑडेन कोल ट्रैक:
Auden Col Trek in Hindi:
ऑडेन कोल ट्रैक उत्तराखंड के सबसे सुन्दर व सबसे कठिन ट्रैक्स में से एक है। कई विषम परिस्थितियाँ व उच्च हिमालयी छेत्र होने व अधिक ऊंचाई होने के बाद भी ट्रैकर्स को ये स्थान बहुत पसंद आता है जिस कारण बड़ी संख्या में लोग यहाँ ट्रैकिंग पर जाना पसंद करते है। यहाँ पर पहुंचकर लोग हिमालय की खूबसूरती व प्रकृति के खूबसूरत रंग को बिलकुल पास से देख सकते है।
ऑडेन कोल ट्रैक उत्तराखण्ड के जिला उत्तरकाशी में स्थित है जो की समुद्र तल से लगभग 5,490 मीटर अथवा 18,010 फ़ीट की ऊंचाई(Height of Auden Col Trek) पर स्थित है जहाँ आने व जाने में लगभग 18 से 20 दिन का समय लग जाता है।
इस ट्रैक को खोजने का श्रेय एक ब्रिटिश Geographical Surveyar John Bicknell Auden को जाता है जिन्होंने 1935 को सर्वप्रथम इस ट्रैक को खोजा था तथा 1939 को इसे पार किया था। उन्ही के नाम पर ट्रैक का नाम Auden Col रखा गया। बाद में 80 के दशक में दो भारतीय Harish Kapadia व Romesh Bhattacharjee द्धारा इस ग्लेशियर पर सफलतापूर्वक चढाई की गई थी। यह ट्रैक गंगोत्री-111(Gangotri-3) जो 6580 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है तथा जोगिन-1(Jogin-1) जो 6465 मीटर की ऊंचाई पर है को जोड़ने का भी काम करता है।
ट्रैक गढ़वाल के हिमालयी ट्रैक्स के कुछ कठिन ट्रैक्स में से एक है जहाँ आपको Alpine के वृक्षों के घने जंगल, पतली पगडंडिया, छोटे छोटे गांव व कई सारे मंदिर और खूबसूरत व 4,200 मीटर ऊंचा Khatling Glacier दिखाई देता है जो ट्रैकर्स के जीवन में कभी न भूलने वाला अनुभव होता है।
इसके एक तरफ Khatling Glacier व दूसरी तरफ Jogin Glacier आता है वही ये दो घाटियों Rudugaira Valley व Bhilangna Valley को भी आपस में जोड़ता है।
Auden Col ग्लेशियर तक कैसे पहुँचे:
How to reach Auden Col Glacier:
Auden Col Glacier एक उच्च ऊंचाई वाली पर्वत चोटी है जहाँ पहुँचने के लिए आपको technical चीजों की भी आवश्यक्ता होती है। इस ट्रैक पर जाने के लिए आपको पहले गंगोत्री तक पहुँचना होता है जहाँ पर आप आपने रास्ते की थकान को मिटा सकते है। यहाँ से सबसे पहले 8 किमी का ट्रैक करके आपको Nala Camp तक पहुँचना होता है इस ट्रैक के रास्ते पर आपको खूबसूरत देवदार व सनोबर के पेड़ो का जंगल दिखाई देते है वही आप Jogin और Kedartal खूबसूरती को भी निहार सकते है और Rudragaira नदी के पास अपना कैंप लगा सकते है।
उसके बाद आपको Nala Camp से 7 किमी के ट्रैक द्धारा रुद्रा गैरा बेस कैंप तक पहुंच सकते है। यहाँ से आप गंगोत्री बेस कैंप तक 6 किमी तक ट्रैक करके पहुंच सकते है जहाँ से आप गंगोत्री 1-2-3 की चोटियों को करीब से देख सकते है। यहाँ से आप Auden Col Base Camp तक 6 किमी के ट्रैक द्धारा पहुँचना होता है। इस ट्रैक पर चढ़ने के लिए आपको टेक्निकल चीजों की भी आवश्यक्ता पड़ सकती है। यहाँ से आपको khatling Glacier तक 12 किमी चलकर जाना होता है। यहाँ से आप 12 किमी ट्रैक करके वॉटरफॉल कैंप(Waterfall Camp) तक पहुंचना होता है। यहाँ से आपको मसार ताल(Masar Tal) तक जाना होता है जो यहाँ से 8 किमी पड़ता है। वहाँ से आप वासुकी ताल(Vasuli Lake) 12 किमी तथा केदारनाथ तक 5 किमी जाना होता है। यहाँ से वापस होकर आपकी आपकी यात्रा समाप्त होती है।
Auden Col Trek पर कब जाये:
When to go Auden Col Trek:इस ट्रैक पर जाने हेतु सबसे अच्छा मौसम मई से जून और सितम्बर से अक्टूबर तक का होता है। सर्दियो के मौसम में बर्फ पड़ने व यहाँ के तापमान 0 डिग्री से नीचे चला जाता है(Temperature to Auden Col Trek) जिस कारण आप यहाँ तक पहुँचना असम्भव हो जाता है तथा बरसात के मौसम में वहाँ की सड़के बंद हो जाती है जिस कारण आप वहाँ तक नहीं पहुंच पाते है।
चंद्रशिला-चोपता ट्रैक:
Chandrashila Chopta Trek:
चंद्रशिला-चोपता ट्रैक उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में स्थित है। यह ट्रैक Chopta से शुरू होता है Chopta को यहाँ की खूबसूरती के कारण Uttarakahnd का Mini Switzerland भी कहा जाता है। चोपता(Chopta) उत्तराखंड का एक खूबसूरत हिल स्टेशन है जहाँ प्रकृति प्रेमी हर साल यहाँ आते है व कुदरत द्धारा बनाई प्राकृतिक सौन्दर्यता व शान्ति का अनुभव करते है। Chopta समुद्र तल से 2,600 मीटर की ऊंचाई(Height of Chopta) पर स्थित है।
चोपता से ही प्रसिद्ध चंद्रशिला-चोपता ट्रैक की शुरुवात होती है जिसके बीच में आपको देवदार, ओक के घने जंगल व दूर दूर तक फैली बर्फ से ढकी हुई पर्वत चोटिया दिखाई देती है। वही यहाँ से 3 किमी की दूरी पर विश्व प्रसिद्ध तुंगनाथ मंदिर भी स्थित है जो इतनी ऊंचाई पर स्थित विश्व का एकमात्र शिव मन्दिर है। जो पंच केदारो में से भी एक है तथा जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से 3,600 मीटर है।
मान्यता के अनुसार ये मन्दिर 1,000 साल से भी ज्यादा पुराना है। यहाँ से लगभग 2 किमी की चढाई के बाद चंद्रशिला चोटी आती है जहाँ से आप हिमालय की खूबसूरत चोटियों Nanda Devi, Trishul Peak, Kedar Dom, Bandarpunch Peak व Chaukhamba Peak का सुन्दर नजारा देख सकते है। इस ट्रैक के आसान होने के कारण बच्चे भी इस ट्रैक पर आसानी से जा सकते है। यह पूरा एरिया Kedarnath Reserve National Park के अन्तर्गत आता है जिसे जानवरो की सुरक्षा हेतु इस पार्क को बनाया गया था। यहाँ आपको Himalayan Musk Deer, Himalayan Griffon, Snow Leopard जैसे जानवर भी देखने को मिल जायेंगे। यहाँ पर ट्रैकिंग के लिए रास्ता साल के अधिकतर समय खुला हुआ रहता है। इस ट्रैक पर आने व जाने के लिए आपको 4 से 6 दिन का समय लगता है।
चंद्रशिला-चोपता ट्रैक कैसे पहुँचे:
How to reach to Chandrashila-Chopta Trek:यहाँ पर जाने के लिए आपको सबसे पहले जिला रुद्रप्रयाग स्थित चोपता पहुँचना होता है। यहाँ के लिए ऋषिकेश व हरिद्धार से आसानी से आपको बस या टैक्सी उपलब्ध हो जाएगी। सबसे पहले आपको Sari Village सारी गांव तक पहुँचना होता है। यहाँ से आप 3 किमी की ट्रैकिंग कर Devriya Taal ताल पहुँच सकते है।
इस ताल में आप बर्फ से ढकी हुई पर्वत चोटियों को झील के पानी में बिलकुल साफ देख सकते है। यहाँ से आपको 14 किमी पैदल चलकर चोपता तक पहुंचना होता है जो समुद्र तल से 8,700 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ से आप 8 किमी की ट्रैकिंग द्धारा पहले तुंगनाथ मन्दिर और फिर चन्द्रशिला पीक तक पहुँच सकते है।
चंद्रशिला-चोपता ट्रैक पर कब जाये:
When to go Chopta-Chandrashila Trek:इस ट्रैक पर साल के अधिकतर समय आप जा सकते है। इस ट्रैक पर केवल बारिश के समय अर्थात जुलाई व अगस्त के समय ही बारिश होने व रास्ते के ब्लॉक होने के कारण यात्री यहाँ तक नहीं पहुँच पाते है। इसके अलावा आप सालभर में से किसी नहीं मौसम में यहाँ तक जा सकते है वैसे यहाँ जाने का सबसे सही समय अप्रैल से जुलाई तथा सितम्बर व अक्टूबर तक होता है।
डोडीताल-दरवा पास ट्रैक:
Dodital-Darwa Pass Trek:डोडीताल-दरवा ट्रैक उत्तराखण्ड के प्रमुख ट्रैक्स में से एक है जो उत्तराखंड के जिला उत्तरकाशी में स्थित है जो प्राकर्तिक सुन्दरता, घने जंगलो, तरह-तरह के फूलो से परिपूर्ण है। यही पर एक बहुत खूबसूरत ताल है जो डोडीताल के नाम से जाना जाता है जिसके चारो तरफ घने जंगलो व साफ व स्वच्छ पानी का भी एक स्त्रोत है। यह ट्रैक भागीरथी वैली से शुरू होता है तथा जंगलो से होता हुआ दरवा टॉप तक जाता है जो समुद्र तल से लगभग 4,150 मीटर की ऊंचाई(Height of Dodital-Darwa Pass Trek) पर स्थित है।
यहाँ स्थित डोडीताल को गणेश का ताल भी कहा जाता है मान्यता के अनुसार इसी स्थान पर भगवान गणेश का जन्म हुआ था।
यह ट्रैक संगमचट्टी(Sangamchatti) से शुरू होता है तथा असी गंगा नदी व रास्ते में स्थित छोटे गांव अगोडा(Agoda Village) तथा भबरा(Babbra) से होता हुआ माझी(Maghi) तक जाता है जो काफी ऊंचाई पर स्थित है। माझी से डोडीताल-दरवा ट्रैक के लिए रास्ता काट जाता है जो यहाँ से लगभग 6 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ से दरवा टॉप(Darya Top) की दूरी 5 किमी पड़ती है।
यह ट्रैक पर्वतारोहढ़ करने वालों के लिए एक आदर्श ट्रैक है जो खूबसूरत रास्ते, पानी के खूबसूरत झरने, घने जंगलो व पंचाचूली चोटी(Panchachuli Peak) व स्वर्गरोहिडी(Swargarohiri Peak) चोटियों को देखने का भी अवसर देता है जहाँ आने-जाने में तक़रीबन 1 हफ्ते का समय लगता है।
डोडीताल-दरवा ट्रैक पर कैसे पहुँचे:
How to go Dotital-Darwa Trek:डोडीताल-दरवा ट्रैक पर जाने के लिए सबसे पहले आपको जिला उत्तरकाशी से 16 किमी दूर संगमचटटी तक पहुँचना होता है जो इस ट्रैक का पहला बिंदु है। यहाँ पर आप रात्रि विश्राम भी कर सकते है तथा अगले दिन से अपने ट्रैक की शुरुवात भी कर सकते है।
संगमचट्टी से सबसे पहले आपको ट्रैक द्धारा भेरवा(Bherva) तक पहुँचना होता है। यहाँ जाने में आपको 5 से 7 घंटे का समय लग जाता है। यहाँ से आपको डोडीताल के लिए जाना होता है तथा यहाँ पहुंचने के लिए आपको भेरवा(Bherva) से 7 से 9 घंटे तक का समय लगता है। यहाँ से आप अंत में आप दरवा पास(Darva Pass) के लिए जाते है जो लगभग 5 से 7 किमी का ट्रैक होता है। यहाँ से आपकी वापसी की यात्रा आरम्भ होता है इस पूरे ट्रैक पर आपको 7 दिन तक का समय लग जाता है।
डोडीताल-दरवा ट्रैक पर कब जाये:
When to go Dodital-Darwa Trekइस ट्रैक पर साल के अधिकतर समय आप जा सकते है। इस ट्रैक पर केवल बारिश के समय अर्थात जुलाई व अगस्त के समय ही बारिश होने व रास्ते के ब्लॉक होने के कारण यात्री यहाँ तक नहीं पहुँच पाते है। इसके अलावा आप सालभर में से किसी नहीं मौसम में यहाँ तक जा सकते है वैसे यहाँ जाने का सबसे सही समय अप्रैल से जून तथा सितम्बर से अक्टूबर तक होता है।
दयारा बुग्याल-डोडीताल ट्रैक
Dayara Bugyal-Dodital Trek:दयारा बुग्याल-डोडीताल ट्रैक उत्तराखंड के सबसे सुन्दर ट्रैक्स में से एक है जो उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित है। दयारा बुग्याल उत्तराखंड की सबसे खूबसूरत व चारो और से प्राकर्तिक सौन्दर्य से परिपूर्ण है जहाँ से आप बन्दरपूँछ(Bandarpunch Peak) की बर्फ से ढकी चोटियों का आनन्द ले सकते है। दयारा बुग्याल उत्तरकाशी में स्थित है जो समुद्र तल से 3340 मीटर की ऊंचाई(Height of Dayara Bugyal) पर स्थित है तथा लगभग 28 Sq Km में फैला हुआ है।
दयारा बुग्याल के लिए बरसू गांव(Barsu Village) से रास्ता जाता है जो उत्तरकाशी से 30 किमी की दूरी पर स्थित है यहाँ से आप ट्रैक द्धारा व वाहन द्धारा यहाँ तक आसानी तक पहुँच सकते है। यहाँ जाने का रास्ता भी ज्यादा कठिन नही है।
दयारा बुग्याल से आगे ट्रैक करने पर वहाँ बरनाला मीडो (Barnala Meadow) आता है जहाँ एक खूबसूरत बरनाला ताल (Barnala Lake) पड़ता है। यहाँ चारो तरफ लम्बी लम्बी ढलान पड़ती है जो सर्दियों के समय पर बर्फ़बारी के कारण ढक जाती है जहाँ पर स्कीईंग का आनंद लेने वालो के लिए स्वर्ग से कम नहीं होता। वही आप यहाँ पर प्राकर्तिक सौन्दरता को भी करीब से देख सकते है।
यहाँ चारो और मखमली घास के मैदान भी यहाँ जाने वालो के लिए अनूठा अनुभव होता है। यहाँ पर आप रात्रि विश्राम के लिए कैंप भी लगा सकते है तथा रात्रि विश्राम कर सकते है। यहाँ से आगे चलने पर लम्बीधार (Lambhi Dhar) नाम की जगह आती है जो फोटो खींचने के शौकीन लोगो के लिए एक शानदार जगह है।
यहाँ पर जाने के रास्ते पर आपको घने जंगल, बम्बू तथा ओक के पेड़ दिखाई देते है जो यहाँ की सुन्दरता को और अधिक बढ़ा देते है। यही पर आपको डोडीताल नदी (Dodital River) दिखाई देती है इसे पार कर आप डोडीताल झील पर पहुंच सकते है जो एक बहुत ही खूबसूरत झील है जहाँ से आपको बन्दरपूँछ पर्वत श्रेढ़ियो का खूबसूरत नजारा भी देखा जा सकता है।
डोडीताल एक खूबसूरत झील है जो धार्मिक आधार पर भी भारतीयों के लिए काफी महत्वपूर्ण जगह है। इसी स्थान को भगवान गणेश का जन्म स्थान भी माना जाता है।
दयारा बुग्याल-डोडीताल ट्रैक पर कैसे जाये:
How to go Dayara Bugyal-Dodital Trek:
दयारा बुग्याल-डोडीताल ट्रैक जिला उत्तरकाशी में स्थित है। इस ट्रैक पर जाने के लिए सबसे पहले आपको उत्तरकाशी से 30 किमी की दूरी पर स्थित बरसु गांव (Barsu Village) तक आना होता है जहाँ से आपको ट्रैक शुरू होता है।
बरसू गांव से ट्रैक कर आपको बरनाला बुग्याल (Barnala Bugyal) तक जाना होता है जो समुद्र तल से 3,040 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ से आप 12 किमी के ट्रैक कर दयारा बुग्याल (Dayara Bugyal) तक पहुंच सकते है जो उत्तराखंड के सबसे खूबसूरत बुग्यालों में से एक है तथा यहाँ तक पहुँचने में आपको 6 से 8 घंटे तक का समय लग जाता है। दायरा बुग्याल से फिर आप 16 किमी का ट्रैक कर नीमधार तक पहुंचना होता है तथा अंत में आप डोडीताल तक 16 किमी के ट्रैक द्धारा पहुँच सकते है।
दयारा बुग्याल-डोडीताल ट्रैक पर कब जाये:
When to go Dayara Bugyal-Dodital Trek:
इस ट्रैक पर जाने हेतु सबसे अच्छा मौसम मई तथा जून और सितम्बर से अक्टूबर तक का होता है। सर्दियो के मौसम में बर्फ पड़ने व यहाँ के तापमान 0 डिग्री से नीचे चला जाता है जिस कारण आप यहाँ तक पहुँचना असम्भव हो जाता है। बरसात के मौसम में वहाँ की सड़के बंद हो जाती है जिस कारण आप वहाँ तक नहीं पहुंच पाते है।
बाली - पास ट्रैक
Bali - Pass Trekबाली – पास ट्रैक उत्तराखण्ड की कुछ सबसे ऊंचाई वाले कठिन ट्रैक्स में से एक है जो एक तरफ से टोंस नदी (Tons River) से शुरू होता है व इसका अंत यमुना नदी घाटी (Yamuna River Valley) पर जाकर होता है। यह ट्रैक उत्तरकाशी जिले के साँकरी से शुरू होकर गोविन्द नेशनल पार्क (Govind National Park), रुईंसरा झील(Ruinsara Jheel), यमुनोत्री मन्दिर(Yamunotri Temple) व अन्य कई पर्वत चोटियों जैसे कालानाग पर्वत (Kalanag Peak), बन्दरपूँछ चोटी(Bandarpunch Peak), स्वर्गारोहिणी पर्वत चोटी(Swargarohini Peak) जैसे कई खूबसूरत जगह को देखने का मौका देता है।
यह ट्रैक समुद्र तल से 4,800 मीटर अथवा 15,750 फ़ीट की ऊंचाई(Height of Bali-Pass Trek) पर स्थित है जिस पर आने व जाने में 12 से 15 दिन का समय लगता है। इस ट्रैक की कुल दूरी 105 किमी पड़ती है तथा इस ट्रैक को उत्तराखंड की उच्च ऊंचाई वाले कठिन ट्रैक्स में से एक माना जाता है। इस ट्रैक को प्रसिद्ध करने का श्रेय दून स्कूल के शिक्षक जैक गिब्सन को जाता है। इससे पहले भी लोग इस ट्रैक पर गए होंगे परन्तु 1940 के बाद ही उनके प्रयासों से इस ट्रैक को प्रसिद्धि मिली।
यह ट्रैक हरकी दून वैली और यमुनोत्री को आपस में जोड़ता है। उच्च हिमालयी पर्वत होने के कारण इस ट्रैक पर जाने के लिए ट्रैकर्स को मानसिक और शारारिक तौर पर मजबूत होना जरूरी होता है इसलिए 18 वर्ष की कम की आयु वाले ट्रैकर्स को इस ट्रैक पर नहीं जाना चाहिए।
बाली पास ट्रैक पर कैसे जायेः
How to go Bali-Pass Trek
इस ट्रैक पर जाने के लिए आपको सबसे पहले उत्तराखण्ड के जिला उत्तरकाशी तक आना होता है। यह ट्रैक उत्तरकाशी में स्थित गांव साकरी से शुरू होता है जो समुद्र तल से 1,920 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। सांकरी से आपको सडक मार्ग से तालुका तक जाना होता है जो सांकरी से 12 किमी की दूरी पर स्थित है। तालुका से आपको सीमा तक 12 किमी के ट्रैक द्वारा जाना होता है जो समुद्र तल से लगभग 2,560 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ पर आप रात्रि विश्राम कर सकते है।
यहाँ से आपको सीमा से रैनबसैरा तक जाना होता है जो सीमा से लगभग 9 किमी की दूरी पर स्थित है तथा समुद्र तल से 3,086 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसके बाद रैनबसैरा से रूनसारा ताल तक जाना होता है जो लगभग 7.5 किमी की दूरी पर स्थित है। यह ताल समुद्रतल से 3,565 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है तथा शुद्ध पानी का एक स्त्रोत भी है जिसके चारो और धने जंगल व देवदार के पेड है जो देखने मे बहुत खूबसूरत दिखाई देते है। उसके पश्चात आपको रूनसारा ताल से ओडारी तक जाना होता है जो यहाँ से 4 किमी है तथा समुद्र तल से 4,048 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ से आप बैस कैप तथा लोअर धमनी तथा बाली पास जा सकते है। अन्त मे आप जानकी चटटी और यमुनोत्री होते हुए आपकी यात्रा जानकी चटटी पर आकर समाप्त होती है।
बाली पास ट्रैक पर कब जायेः
When to go Bali-Pass Trek:
इस ट्रैक पर जाने हेतु सबसे अच्छा मौसम अप्रैल से जून और सितम्बर से अक्टूबर तक का होता है। सर्दियो के मौसम में बर्फ पड़ने व यहाँ के तापमान 0 डिग्री से नीचे चला जाता है जिस कारण आप यहाँ तक पहुँचना असम्भव हो जाता है तथा बरसात के मौसम में वहाँ की सड़के बंद हो जाती है जिस कारण आप वहाँ तक नहीं पहुंच पाते है।
गौमुख-तपोवन ट्रैक:
Gomukh-Tapowan Trek:गंगोत्री-गोमुख ट्रैक भारत के सबसे पुराने व सबसे प्रसिद्ध ट्रैक्स में से एक है वही धार्मिक दृस्टि से भी यह जगह हिन्दुओ के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। गोमुख से ही प्रसिद्ध भागीरथी नदी का उदय होता है जिसे गंगा नदी के रूप में भी जाना जाता है जो लाखो भारतवासियो के लिए केवल एक नदी न होकर गंगा माता भी है।
गोमुख का अर्थ होता है गौ का मुख अर्थात गाय का मुँह। गोमुख गंगोत्री से 18 किमी की दूरी पर स्थित है जो समुद्र तल से 13,200 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह ट्रैक लगभग 46 किमी का है जिस पर आने व जाने पर 8 से 10 दिन का समय लग जाता है। गंगोत्री ग्लेशियर यहाँ के सबसे बड़े और विशाल ग्लेशियर में से एक है जो लगभग 24 किमी के एरिया में फैला हुआ है तथा 6 से 8 किमी चौड़ा है, जो गंगोत्री के गोमुख से शुरू होकर बद्रीनाथ के चौखम्बा पर्वत तक फैला हुआ है।
गोमुख ग्लेशियर भोजवासा से 4 किमी की दूरी पर स्थित है जो वहाँ स्थित सनोबर के वृक्षों के लिए प्रसिद्ध है। वही ये ट्रैक आपको माउंट शिवलिंग, भागीरथी बहनो तथा चारो और फैले हुए विशाल ग्लेशियर को देखने का भी अवसर प्रदान करते है।
तपोवन ट्रैक ट्रैकिंग पर जाने वालो के लिए एक भारत में एक सर्वोत्तम ट्रैक है तपोवन 2 किमी में फैला हुआ है और 14,202 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह माउंट शिवलिंग की जड़ पर बसा हुआ है तथा गंगोत्री ग्लेशियर के बिलकुल ऊपर स्थित स्थित है। यहाँ से आप माउंट शिवलिंग को करीब से देख सकते है वही यहाँ से सुमेरु पर्वत, सुदर्शन पर्वत, थेनु पर्वत, भागीरथी पीक का भी सुन्दर नजारा भी देखा जा सकता है।
गोमुख-तपोवन ट्रैक पर कैसे जाये:
How to go Gomukh-Tapovan Trek:गोमुख-तपोवन ट्रैक उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी में स्थित है इस ट्रैक पर जाने के लिए सबसे पहले आपको गंगोत्री आना होता है जहाँ आप आप रात्रि विश्राम आदि कर सकते है। यहाँ से आपको 14 किमी का ट्रैक कर भोजवासा तक जाना होता है जो घने जंगलो से होकर जाता है तथा समुद्र तल से 12,440 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। इसके बाद आप भोजवासा से गोमुख होते हुए तपोवन तक जा सकते है जो लगभग 14,640 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है।
यहाँ पर आपको खूबसूरत अल्पाइन की घास का मैदान दिखाई पड़ता है जो आपके रास्ते की सारी थकान को खत्म कर देता है। यहाँ से आप भागीरथी 1,2,3 की सुन्दर चोटियों को भी देख सकते है। यही से आप अपने गंतव्य को वापस आ सकते है।
गोमुख-तपोवन ट्रैक पर कब जाये:
When to go Gomukh-Tapovan Trek:
इस ट्रैक पर जाने हेतु सबसे अच्छा मौसम अप्रैल से जून और सितम्बर से अक्टूबर तक का होता है। सर्दियो के मौसम में बर्फ पड़ने व यहाँ के तापमान 0 डिग्री से नीचे चला जाता है जिस कारण आप यहाँ तक पहुँचना असम्भव हो जाता है तथा बरसात के मौसम में वहाँ की सड़के बंद हो जाती है जिस कारण आप वहाँ तक नहीं पहुंच पाते है।
हरकी दून ट्रैक:
Har Ki Dun Trek:हरकी दून ट्रैक उत्तराखण्ड के सबसे खूबसूरत व हरे भरे ट्रैक्स में से एक है जो उत्तराखण्ड के जिला उत्तरकाशी में स्थित है। यहाँ की चारो तरफ फैली खूबसूरती हर समय रंग बदलती है। यह ट्रैक लगभग 50 किमी का है तथा इसकी ऊंचाई लगभग 3,500 मीटर अर्थात 11,500 फ़ीट की है।
यह ट्रैक यहाँ के सबसे पुराने व विख्यात ट्रैक्स मे से भी एक है। हरकी दून उत्तराखण्ड के खूबसूरत पर्यटक स्थलों में से भी है जहॉ वर्ष भर पर्यटको का ताँता लगा रहता है जो यहाँ आकर यहाँ के हरे भरे व शान्त वातावरण का आनन्द उठाते है। यह स्थल प्रकर्ति प्रेमियों व ट्रैकिंग के शौक़ीन लोगो के लिए भी आकर्षण के केंद्र में रहता है। यहाँ कई ऐसे ट्रैक्स भी है जो सदियों से ट्रैकर्स को अपनी और आकर्षित करते आये है वही प्रकर्ति प्रेमी यहाँ की खूबसूरती को भी निहार सकते है।
इस ट्रैक पर आप तालुका, ओस्ला, जनधार जैसी खूबसूरत जगहों तथा स्वर्गारोहिणी व बन्दरपूँछ की बर्फ से ढकी चोटियों को भी निहार सकते है। हरकी दून यमुना नदी की सहायक नदियों का भी मुख्य स्त्रोत है। यह ट्रैक लगभग 8 दिनों का होता है जो घने देवदार के जंगलो, खूबसूरत बर्फ से ढकी चोटियों तथा यमुना नदी के बीच से होता हुआ जाता है इस कारण इसे Valley of Gods भी कहा जाता है। मान्यता के अनुसार इसी रास्ते से पांडव स्वर्ग के लिए गए थे।
हरकी दून ट्रैक पर कैसे जाये:
How to go Harki Dun Trek:हरकी दून ट्रैक पर जाने के लिए आपको उत्तराखण्ड के जिला उत्तरकाशी के साँकरी तक पहुँचना होना है जो देहरादून से 200 किमी की दूरी पर है। यहाँ से आपको 12 किमी के ट्रैक कर ताकुला तक आना होता है यहाँ पर आप रात्रि विश्राम कर सकते है तथा अगले दिन ट्रैक की शुरुवात कर सकते है।
यहाँ से आपको 14 किमी के ट्रैक कर ओसला तक पहुंचना होता है। इस ट्रैक पर जाने का रास्ता हिमालयी जंगल से होता हुआ जाता है। यहाँ से आप ट्रैक कर हरकी दून तक पहुँच सकते है जो यहाँ से 11 किमी की दूरी पर स्थित है यहाँ से आप स्वर्गारोहिणी और जुआंडार ग्लेशियर की खूबसूरती को देख सकते हैदूरी यही से आपकी ट्रैक की वापसी की यात्रा शुरू होती है आप हरकी दून से जाँदार ग्लेशियर तथा ओसला होते हुए वापस अपने गंतव्य को आ सकते है।
हरकी दून ट्रैक पर कब जाये:
When to go Harki Dun Trek:इस ट्रैक पर साल के अधिकतर समय आप जा सकते है। इस ट्रैक पर केवल बारिश के समय अर्थात जुलाई व अगस्त के समय ही बारिश होने व रास्ते के ब्लॉक होने के कारण यात्री यहाँ तक नहीं पहुँच पाते है। इसके अलावा आप सालभर में से किसी नहीं मौसम में यहाँ तक जा सकते है वैसे यहाँ जाने का सबसे सही समय अप्रैल से जुलाई तथा सितम्बर व अक्टूबर तक होता है।
रूपकुंड ट्रैक:
Roopkund Trek:रूपकुण्ड झील उत्तराखंड के जिला चमोली में स्थित एक रहस्यमयी झील है जो अपने यहाँ पाए 500 कंकालों के लिए प्रसिद्ध है। यह झील एक वीरान जगह पर स्थित है जो अपने आप में कई अनसुलझे पहलुओं को समेटे हुए है। यह झील हिमालय पर स्थित है और समुद्र तल से 5,029 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
यह स्थान एक खूबसूरत पर्यटक स्थल भी है जो दो विशाल पर्वत चोटियों के बीच विराजमान है। यह चोटिया त्रिशूल और नन्दाघुंघटी है जो क्रमशः 7,120 मीटर और 6,310 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ट्रैकिंग करने वालो के लिए भी ये जगह स्वर्ग से कम नहीं है। सर्दियों के मौसम में यहाँ चारो तरफ बर्फ ही बर्फ दिखाई पड़ती है जिसमे ट्रैकिंग के लिए हजारो की संख्या में ट्रैकर्स यहाँ आते है तथा ट्रैकिंग का आनंद लेते है। यह स्थल प्रसिद्ध नंदा देवी राजजात यात्रा का भी महत्वपूर्ण स्थल है जिसे उत्तराखंड का कुम्भ कहकर भी जाना जाता है। ये यात्रा प्रति 12 वर्ष के अंतराल में होती है।
इस पूरे रास्ते पर आपको विशाल बर्फ से ढके पहाड़, कई बुग्याल तथा झीले व झरने दिखाई पड़ते है जो यहाँ आने वालो को रोमांचित कर देते है। अधिकतर गर्मियों में यहाँ पर्यटक बहुत अधिक आते है। यहाँ प्रति वर्ष पतझड़ के समय पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
इस झील को नर कंकाल झील भी कहा जाता है। सर्दियों के समय पर जब ये झील हर तरफ से बर्फ से ढक जाती है तब ये नर कंकाल इस झील के ऊपर ही तैरते दिखाई देते है।
इस झील के बारे में कई कहानियाँ प्रचलन में है। इन नर कंकालों को ढूंढ़ने का श्रेय सबसे पहले एक रेंजर एच० के० माधवल को(H.K Madhwal) जाता है जिन्होंने सर्वप्रथम 1942 को इन कंकालों को खोजा था जिसमे इन कंकालों में मानव खोपड़ी, हड्डिया, शरीर के ऊतक तथा गहने मिले थे। बाद में कई देशों के वैज्ञानिक वहाँ गए और इन नर कंकालों के बारे में जानकारी जुटाई गई थी। अध्धयन करने के पश्चात पता लगा की ये नर कंकाल 12 वी से 15 वी ईसवी के समय के दौरान के रहे होंगे।
वैज्ञानिको के अनुसार इन लोगो की मौत बर्फ के मोटे–मोटे ओलो के कारण हुई होगी जो लगभग क्रिकेट के गेंद के आकार के रहे होंगे। इन लोगो की लम्बाई भी काफी कम रही होगी जिनमे बच्चे, आदमी, औरते व वृद्ध रहे होंगे तथा ये लोग समूह में यहाँ आये होंगे तथा भूस्खलन तथा बर्फ़बारी होने व वहाँ रहने का कोई स्थान न होने के कारण उसके प्रकोप में आने के कारण यही दब कर मर गए होंगे। उन्ही में से ये शव बहकर इस झील में चले गए होंगे फिर भी अब तक इस बात का कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि इन लोगो को क्या हुआ होगा व इनके कंकाल यहाँ तक कैसे पहुँचे।
रूपकुंड ट्रैक पर कैसे जाये:
How to reach Reach Kund Trek:
यह ट्रैक उत्तराखण्ड के चमोली में स्थित है वैसे तो इस ट्रैक पर कई रास्तो से जाया जा सकता है फिर भी लोग लोहाजंग(Lohajung) और वाँण(Vaan) से होते हुए रूपकुण्ड(Roopkund Trek) की यात्रा करना पसंद करते है।
इस यात्रा पर जाने हेतु आपको सर्प्रथम कर्णप्रयाग से 85 किमी की दूरी पर स्थित लोहाजंग(Lohajung) पहुंचना होता है लोहाजंग जाने के लिए आपको काठगोदाम व ऋषिकेश आसानी से प्राइवेट वाहन उपलब्ध हो जायेगा। लोहाजंग से आपको वाँण से होते हुए रणका धार(RadkaDhar) तक खड़ी चढाई पर ट्रैक कर जाना होता है। यहाँ से मौसम के साफ होने पर आप बेदनी बुग्याल(Bedni Bugyal) और त्रिशूल पर्वत(Trishul Peak) की खूबसूरती को पास से निहार सकते है। इसके पश्चात आप वाँण से 12 से 13 किमी ट्रैक कर बेदनी बुग्याल(Bedni Bugyal) तक पहुँचना होता है जो उत्तराखंड का एक एक खूबसूरत बुग्याल है जहाँ पर जानवरो के लिए विशाल चारागाह, मंदिर, झीले तथा देखने हेतु बर्फ से ढकी विशाल चोटियाँ है जो यात्रियों को मन्त्रमुघ्द कर देते है।
इसके बाद आपको 10 से 11 किमी ट्रैक कर भखुवा बासा(Bhakhuva Basa) तक जाना होता है यहाँ से आपको त्रिशूल व अन्य ऊंची चोटियों को देखने का सौभाग्य प्राप्त होता है जो आपकी यात्रा की खुशियों को दुगना कर देता है। यहाँ पर आपको कई प्रकार के झरने व भूस्खलन देखने को मिल जायेगा। यहाँ से यात्री अंत में रूपकुण्ड तक पहुंच सकते है व यहाँ की शान्ति और सुन्दरता को महसूस कर सकते है। यही से यात्री चाहे तो होमकुंड तक भी ट्रैकिंग कर जा सकते है व वहाँ की खूबसूरती का आनंद भी ले सकते है।
रूपकुंड ट्रैक पर कब जाये:
When to reach Reach Kund Trek:
इस ट्रैक पर जाने हेतु सबसे अच्छा मौसम अप्रैल से जून और सितम्बर से अक्टूबर तक का होता है। सर्दियो के मौसम में बर्फ पड़ने व यहाँ के तापमान 0 डिग्री से नीचे चला जाता है जिस कारण आप यहाँ तक पहुँचना असम्भव हो जाता है तथा बरसात के मौसम में वहाँ की सड़के बंद हो जाती है जिस कारण आप वहाँ तक नहीं पहुंच पाते है।
सतोपंथ ट्रैक
Satopanth Trek:
सतोपंथ झील उत्तराखण्ड के हिमालयी छेत्र में बसी एक प्राकर्तिक झील है जो अपनी सुंदरता व वहाँ चारो तरफ फैली शांति के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध है। यह खूबसूरत झील चौखम्बा पर्वत श्रंखला के तलहटी में बसी हुई है तथा यहाँ की सबसे पुरानी झीलों में से एक है। यह ट्रैक उत्तराखंड के जिला चमोली में स्थित है। ये ट्रैक चमोली के बद्रीनाथ धाम से शुरू होता है तथा माना गांव, वसुन्धरा फॉल, लक्ष्मी वन, चक्रतीर्था वैली तथा सहस्त्रधारा से होता हुआ सतोपंथ झील तक जाता है जिसकी कुल दूरी बद्रीनाथ से 22 किमी तथा जोशीमठ से 70 किमी है। इस ट्रैक पर आने व जाने में 5 से 6 दिन तक का समय लग जाता है।
यह झील धार्मिक व सुंदरता के लिहाज से भारतवर्ष में बहुत महत्वपूर्ण झील है ये झील त्रिभुज के आकर हुई है जिसकी सुंदरता से मुग्ध होकर विदेशी इस झील को देखने हर साल यहाँ आते है और यहाँ की प्राकर्तिक सुंदरता की अनुभूति करते है। इस झील के पास में ही मौनी बाबा का निवास स्थल है जो कई सालो से वहाँ रह रहे है व मौन है। उनके बारे में प्रचलित है की मौनी बाबा कभी भोजन न उपलब्ध हो पाने के बाद भी यहाँ पर धूप व हवा के कारण जीवित रह सकते है।
ये स्थल ट्रैकिंग करने वालो के लिए भी प्रिय जगह है। सर्दियों में यहाँ चारो और बर्फ जम जाने के कारण कई देसी व विदेशी सैलानी यहाँ ट्रैकिंग के लिए आते है तथा यहाँ चारो तरफ की सुंदरता व शांति का अनुभव करते है। इस झील से कई कहानियाँ व किवंदतियां जुड़ी हुई है जैसा की नाम से ही ज्ञात होता है सतोपंथ जिसमे सतो का अर्थ सत्य व पंथ का मतलब रास्ता से है अर्थात सत्य की और जाने का रास्ता अर्थात सत्य का रास्ता।
पुराणों के अनुसार महाभारत कल में ये ही वो रास्ता है जिस से पांडव स्वर्ग जाने की तरफ गए थे परन्तु उनमे से द्रौपदी, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव की बीच रास्ते में ही मौत हो गई थी केवल युधिष्ठिर ही एकमात्र बचे थे जो एक कुत्ते के साथ स्वर्ग जा पाए थे। यही विश्व में एकमात्र रास्ता माना गया है जहाँ से बिना मानवीय शरीर छोड़े मनुष्य स्वर्ग को जा सकता है। स्वर्गारोहिणी ग्लेशियर मार्ग ही एक ऐसा मार्ग है जहाँ से आप जीते जी स्वर्ग जा सकते है स्वर्गारोहिणी ग्लेशियर देखने में भी सीढ़ियों की तरह ही प्रतीत होता है इसी स्थान से युधिष्ठिर को स्वर्ग जाने के लिए आकाशीय वाहन की प्राप्ति हुई थी। माह मई और जून के समय कई साधु सन्यासी इस मार्ग से जाते हुए दिखाई पड़ जायेंगे।
सतोपंथ ट्रैक पर कैसे जाये:
How to go Satopanth Trek:
सतोपंथ ट्रैक पर जाने के लिए आपको ऋषिकेश से बद्रीनाथ तक आना होता है तथा यहाँ से 3 किमी के ट्रैक कर माना गांव(Mana Village) तक पहुंचना होता है जो भारत और तिब्बत के बीच में भारत का अंतिम गांव है। यहाँ से कुछ दूरी पर आपको वसुंधरा फॉल(Vasundhara Fall) दिखाई देगा। वही रास्ते में आपको कल-कल की ध्वनि करती हुई अलकनंदा नदी(Alaknanda River) दिखाई देती है जिसकी आवाज आपको बहुत दूर तक सुनाई देती है। यहाँ से आप घने जंगलो से होते हुए यहाँ से 4 किमी दूर लक्ष्मी वन(Laxmi Van) तक पहुंच सकते है यहाँ आप लक्ष्मी वन(Laxhmi Van) की खूबसूरती व सुन्दर देवदार के वृक्षों को नजदीक से देख सकते है तथा यही पर आप रात्रि विश्राम हेतु कैंप कर सकते है। यहाँ से आपको चक्रतीर्था(Chakratirtha) के लिए जाना होता है जो एक खूबसूरत व चारो और से घिरा हरा भरा स्थल है।
यही से आप सहस्त्रधारा(Shastradhara), माउंट नीलकंठ(Mt. Neelkanth) के दर्शन कर सतोपंथ वैली(Satopanth valley) पर पहुंच सकते है। यहाँ से ही अंत में आप सतोपंथ झील तक ट्रैक कर जाना होता है जो अपने आप में प्राकर्तिक सौंदर्य से परिपूर्ण है यहाँ से आप चौखम्बा पर्वत(Chaukhamba Peak), नीलकंठ पर्वत(Neelkanth Peak) की बर्फ से ढकी पर्वत चोटियों के दर्शन कर सकते है तथा बेहद खूबसूरत व धार्मिक त्रिभुज के आकार की सतोपंथ झील देख सकते है। जिसके बारे में मान्यता है की तीन देवो ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने इस झील के तीनो कोनो पर खड़े होकर इसी झील में डुबकी लगाई थी व स्नान किया था। यही से चक्रतीर्था, माना व बद्रीनाथ होकर आपकी यात्रा समाप्त होती है।
सतोपंथ ट्रैक पर कब जाये:
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